Wednesday, 15 March 2023

उच्चारण संबंधी अशुद्धियाँ और उनका निराकरण Uchcharan sambandhit asudhiyan in hindi

उच्चारण संबंधी अशुद्धियाँ और उनका निराकरण Uchcharan sambandhit asudhiyan in hindi

उच्चारण संबंधी अशुद्धियाँ और उनका निराकरण Uchcharan sambandhit asudhiyan in hindi 

 

भाषा का शुद्ध लेखन उसके शुद्ध उच्चारण पर निर्भर करता है क्योंकि हम जैसा उच्चारण करते हैं, वैसा ही लिखते हैं। व्याकरण के नियमों की सही जानकारी होने तथा क्षेत्रीय प्रभाव के कारण अनेक अशुद्धियाँ हो जाती हैं। अत: इनके प्रति सावधानी बरतनी चाहिए। नीचे कुछ प्रचलित अशुद्धियाँ दी गई हैं

 

() ह्रस्व स्वर के स्थान पर दीर्घ और दीर्घ के स्थान पर ह्रस्व का प्रयोग-

(1) -

अशुद्ध                  शुद्ध

अलोचना            आलोचना

अज़ादी              आज़ादी

अगामी               आगामी

अहार                 आहार

अवश्यक             आवश्यक

अलौकिक           आलौकिक

अत्याधिक           अत्यधिक

नराज़                  नाराज़

चहिए                  चाहिए

परिवारिक            पारिवारिक

सप्ताहिक            साप्ताहिक

अनाधिकार          अनधिकार

आपना                 अपना

 

(2) -

अशुद्ध                शुद्ध

मुनी                    मुनि

नदीयाँ                नदियाँ

कवी                   कवि

अभीनेता           अभिनेता

हानी                  हानि

क्योंकी              क्योंकि

दिपावली           दीपावली

परिक्षा               परीक्षा

बिमारी               बीमारी

श्रीमति               श्रीमती

निर्दयी                निर्दयी

पहिला                पहला

अशिर्वाद             अशीर्वाद

उन्नती                  उन्नति

दिवाली                दीवाली

कवियित्री             कवयित्री

 

(3) -

अशुद्ध                  शुद्ध

पुज्य                    पूज्य

पुनिया                  पूजनीय

प्रभू                      प्रभु

जरुर                    जरूर

साधू                     साधु

पशू                      पशु

मधू                       मधु

अनुकुल               अनुकूल

 

(4) -

अशुद्ध                    शुद्ध

देनिक                    दैनिक

एश्वर्य                     ऐश्वर्य

एसा                       ऐसा

नैन                         नयन

एक्य                      ऐक्य

एतिहासिक             ऐतिहासिक

सैना                       सेना

 

(5)

अशुद्ध                     शुद्ध

ओद्योगिक               औद्योगिक

पारलोकिक              पारलौकिक

पोधा                        पौधा

अलोकिक                अलौकिक

 

(6)  अल्पप्राण- महाप्राण

अशुद्ध                     शुद्ध

झूट                         झूठ

घनिष्ट                      घनिष्ठ

निष्टा                       निष्ठा

श्रेष्ट                         श्रेष्ठ

धोका                      धोखा

लठ्ठा                        लट्ठा

पथ्थर                      पत्थर

गढ्ढा                         गड्ढा

भूका                       भूखा

 

(7) नासिक्य - व्यंजन

अशुद्ध                     शुद्ध

शरन                       शरण

रनभूमि                    रणभूमि

हिरन                       हिरण

रामायन                    रामायण

चरन                        चरण

प्रनाम                       प्रणाम

कलयान                   कल्याण

कारन                       कारण

तृन                          तृण

 

(8) चंद्रबिंदु ( ) और अनुस्वार (•)

अशुद्ध                   शुद्ध

उंगली                   उँगली

सांप                      साँप

दांत                       दाँत

पांचवा                  पाँचवाँ

महंगा                    महँगा

आंख                    आँख

बांसुरी                   बाँसुरी

अंधेरा                    अँधेरा

चांद                       चाँद

गूंगा                       गूँगा

हंसमुख                  हँसमुख

ऊंट                        ऊँट

 

(9) -

अशुद्ध                     शुद्ध

रितु                         ऋतु

श्रंगार                      श्रृंगार

रिशि                        ऋषि

ग्रहस्थ                      गृहस्थ

प्रथक                      पृथक

रिण                         ऋण

घ्रणा                        घृणा

मात्रि                        मात्र

 

(10) ज्ञ-ग्य

अशुद्ध                       शुद्ध

ग्यान                         ज्ञान

कृतग्य                       कृतज्ञ

योज्ञ                          योग्य

प्रतिग्या                     प्रतिज्ञा

 

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Tuesday, 14 March 2023

Nari Jeewan ki Anuthi Dastan par kavita /नारी जीवन जंग है

Nari Jeewan ki Anuthi Dastan par kavita /नारी जीवन जंग है

Nari Jeewan ki Anuthi Dastan /नारी जीवन जंग है

सामाजिक सीमाएं बांध देती है जिसका जीवन ।
हे ! नारी तेरा जीवन किसी जंग से कम नहीं ।
मन मे आए विचारों को न उद्धृत कर पाये ।
छुए आसमां को अगर तो अपने पंख कटवाए ।
पुरूषों के कुविचार भी यहाँ  सरताज दिलवाए ।
तेरी सु-वाणी भी यहाँ पत्थर है बरसाए ।
इच्छाएं दफन होती रही कोयले की खान में ।
फिर भी न बचा पायी स्वाभिमान इस जहाँ में ।
दिखता है सरल पर तेरी राह बहुत कठिन है ।
सावन की बारिश या जेष्ठ की तपिस है ।
लुटाकर प्रेम तुझे करूणा ही भायी है ।
संयोग और वियोग की तूही परछाई है ।
तुझे भी हक है अपने हिस्से की सांसे लेना ।
मन के छंदों को मुक्त कण्ठ गाने का ।
प्रेम की मूरत तूने दुख ही यहाँ पाए है ।
फिर भी कर्तव्य पथ से कभी न घबरायी है।
रूह की ख्वाहिश ने तेरी अस्मिता को कुरेदा है ।
पुरूष की दरिंदगी ने तुझे हर सितम-घाव दिए ।
फिर भी हे ! नारी तेरी चमक बरकरार है ।
भारत माता का गौरव और मातृत्व का अभिमान है।
सामाजिक सीमाएं बांध देती है जिसका जीवन ।
हे ! नारी तेरा जीवन किसी जंग से कम नहीं ।

Sunday, 12 March 2023

हिन्दी वर्णमाला के 15 महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर Orthography important Question all exams

हिन्दी वर्णमाला के 15 महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर Orthography important Question all exams

हिन्दी वर्णमाला के 15 महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर Orthography important Question all exams 


प्रश्न 1- वर्ण किसे कहते हैं? वर्ण का प्रयोग किन दो अर्थों में होता है?
उत्तर -
भाषा की सबसे छोटी इकाई को वर्ण कहते है। और ये दो प्रकार के होते है-- स्वर और व्यंजन वर्ण।

प्रश्न 2- वर्णमाला से क्या अभिप्राय है?
उत्तर -
वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते है।

प्रश्न 3- वर्ण और अक्षर के अंतर को स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर -
सभी स्वर अक्षर कहलाते है क्योंकि उनका उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता है, परन्तु सभी व्यंजन स्वतन्त्र उच्चारण नहीं कर पाते अतः वह अक्षर न होकर वर्ण ही कहलाते है।

प्रश्न 4- वर्णों को कुल कितने भागों में विभक्त किया गया है?
उत्तर -
दो भागों में 

प्रश्न 5- स्वर किसे कहते हैं?
उत्तर -
जिन ध्वनियों के उच्चारण में श्वास बिना रुकावट के मुख से बाहर निकले स्वर कहलाते है।

प्रश्न 6- उच्चारण के आधार पर स्वरों के कुल कितने भेद हैं? 
उत्तर -
उच्चारण के आधार पर स्वर के तीन भेद है-
● ह्रस्व
● दीर्घ
● प्लुत

प्रश्न 7- अयोगवाह से आप क्या समझते हैं?
उत्तर -
अयोग्यवाह का प्रयोग न स्वरों में होता है न व्यञ्जनों में इसीलिए ये अनुस्वार और विसर्ग के रूप में प्रयुक्त होते है- (अं अः)

प्रश्न 8- विसर्ग से क्या अभिप्राय है? सोदाहरण वर्णन कीजिए।
उत्तर -
विसर्ग का चिन्ह स्वर के अंत में दो बिंदी (:) के रूप में और तत्सम शब्दों में ही यह प्रयुक्त होती है। (दु:ख, प्रातः काल)

प्रश्न 9- मात्रा किसे कहते हैं? सोदाहरण वर्णन कीजिए।
उत्तर -
जैसे- च् + आ + च् + ई = चाची

10. स्वरों और व्यंजनों में मुख्य अंतर क्या है?
उत्तर -
स्वर स्वतंत्र रूप से बोले जाते है और व्यंजन स्वरों की सहायता से बोले जाते है।

प्रश्न 11- संयुक्ताक्षर से आप क्या समझते हैं?
उत्तर -
इनका प्रयोग पहले ही किया जाता है - जैसे-
क् + ष् = क्ष
ज् + ञ् = ज्ञ
त् + र् = त्र
श् + र् = श्र

प्रश्न 12-  वर्ण-विच्छेद से आपका क्या आशय है? 
उत्तर -
किसी शब्द में प्रयुक्त वर्णों को अलग-अलग करना ही वर्ण विच्छेद कहलाते है। जैसे--
उपर्युक्त = उ + प् + अ + र् + य् + उ + क् + त् + अ

प्रश्न 14- अनुस्वार और अनुनासिक प्रयोग वाले शब्द छाँटिए-
संगम, माँग, हंस, हँस, चोंच, स्वतंत्र ।
उत्तर - अनुस्वार - संगम, हंस, चोंच, स्वतंत्र 
अनुनासिक - माँग, हँस

प्रश्न 15- हिन्दी में गृहीत आगत ध्वनियां कौन सी है?
उत्तर -
बाहर से आयी हुई ध्वनियों को आगत ध्वनियां कहते है, जैसे---
अरबी, फारसी, अंग्रेजी आदि।

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Thursday, 9 March 2023

Consonant varn in hindi व्यञ्जन वर्ण, अल्पप्राण, महाप्राण, घोष वर्ण अर्थ परिभाषा व भेद

Consonant varn in hindi व्यञ्जन वर्ण, अल्पप्राण, महाप्राण, घोष वर्ण अर्थ परिभाषा व भेद

Consonant varn in hindi व्यञ्जन वर्ण, अल्पप्राण, महाप्राण, घोष वर्ण अर्थ परिभाषा व भेद

परिभाषा-Definition

जिन ध्वनियों का उच्चारण करते समय  मुख से निकलने वाली वायू में रुक्वाट उत्पन्न होती है, उन्हें व्यंजन वर्ण कहते है।

व्यंजन वर्ण के मुख्य रूप से तीन भेद हैं - 

1- स्पर्श वर्ण 

2- अंत:स्थ 

3- ऊष्म वर्ण 

1- स्पर्श व्यंजन- 

वर्णा के उच्चारण करते समय वायु मुख के भिन्न-भिन्न स्थानों से टकराकर ध्वनि उत्पन्न करती है। इसलिए जब वायु जिह्वा द्वारा मुख के भिन्न-भिन्न उच्चारण स्थानों का स्पर्श करते हुये ध्वनि निकलती है उन्ने स्पर्श व्यंजन कहते है।

स्पर्श व्यञ्जन 25 इस प्रकार से है--

कवर्ग  = क् ख् ग् घ् ङ्

चवर्ग  = च् छ् ज् झ् ञ्

टवर्ग   = ट् ठ् ड् ढ् ण्

तवर्ग   = त् थ् द् ध् न् 

पवर्ग   = प् फ् ब् भ् म्

2- अंतःस्थ व्यंजन - 

अंतःस्थ व्यंजन वे वर्ण हैं, जिनका उच्चारण करते समय जिह्वा विशेष सक्रिय नहीं रहती है। स्पर्श तथा ऊष्म व्यंजनो की मध्यवर्ती  स्थति में होने के कारण इन्हें अंतःस्थ व्यंजन कहते है।

ये चार प्रकार के होते है--- य् र् ल् व्

3- ऊष्म व्यंजन- 

जिन व्यंजनों का उच्चरण्यन समय श्वास वायु मुख के विशेष स्थान को छूने के कारण कुछ गर्म हो जाती है वे ऊष्म व्यंजन कहलाते हैं। 

इनकी संख्या चार होती है---- श् ष् स् ह्

4- अयोग्यवाह वर्ण

 'अनुस्वार' और विसर्ग 'अयोग्यवाह वर्ण हैं। ये स्वर एवं व्यंजन दोनों के बोले जाते है। 

जैसे- अं - अः  (स्वर द्वारा) 

        कं -  कः (व्यंजन द्वारा)

उच्चरण में वायु-प्रक्षेप की दृष्टि के आधार पर वर्णों के दो प्रकार हैं--- 

अल्पप्ररण -

ऐसे वर्ण, जिनके उच्चारण में वायू की सामान्य मात्रा रहती है, जैसी ध्वनि का बहुत ही होती है। इसके अंतर्गत सभी स्वर वर्ण तथा वर्गों के प्रथम, तृतीय और पंचम वर्ण, अनुस्वार और अन्तःस्थ व्यंजन आते हैं। 

इनकी कुल संख्या 11 + 15 + 1+ 4 = 31 है।

महाप्राण -

महाप्राण ध्वनियों के उच्चारण में वायु की सामान्य मात्रा रहती है।और हकार जैसी ध्वनि बहुत ही कम होती है। इसके अंतर्गत सभी स्वर वर्ण सभी वर्गों के द्वितीय, चतुर्थ व्यंजन विसर्ग और ऊष्म व्यंजन आते है।

इनकी कुल संख्या 11+10 + 1 + 4 = 26

स्वर-तंत्री के आधार पर वर्णों को दो अन्य भागों में बांटा गया है

1- घोष या सघोष वर्ण

घोष ध्वनियों के उच्चारण में स्वर-तंत्रियां आपस में मिल जाती है और वायु धक्का देते बाहर निकालती हैं। फलत: झंकृति पैदा होती है। इसके अंतर्गत सभी स्वर वर्ण, सभी वर्गों के तृतीय, चतर्थ और पंचम वर्ण, अन्तःस्थ और ह आते हैं। 

2- अघोष वर्ण

अघोष वर्ण के उच्चारण में स्वर-तंत्रियं परस्पर नहीं मिलती। फलत वायु, आसनी से निकल जाती है। इस वार्ग में वर्गों के प्रथम और द्वितीय वर्ण और अधिक तीनों श, ष, स, आते है।

Tuesday, 7 March 2023

Hindi Grammar Part-3 Varnmala वर्णनमाला विचार स्वर वर्ण की परिभाषा प्रकार अर्थ व भेद

Hindi Grammar Part-3 Varnmala वर्णनमाला विचार स्वर वर्ण की परिभाषा प्रकार अर्थ व भेद

Hindi Grammar Part-3 Varnmala वर्णनमाला विचार स्वर वर्ण की परिभाषा प्रकार अर्थ व भेद

वर्ण - भाषा का रूप वाक्यों से बनता है। वाक्य सार्थक पदों (शब्दों) से बनते हैं और शब्दों की संरचना वर्णों के संयोग से होती है। अतः यह स्पष्ट है कि वर्ण भाषा की सबसे छोटे इकाई है। पारिभाषिक तौर पर यह कहा जा सकता है कि-

परिभाषा-Definition
"वर्ण भाषा की वह छोटी से छोटी ध्वनि है, जिसके और टुकड़े नहीं किए जा सकते हैं। 
जैसे- अ, आ, क, च, स, न् आदि 
👉वर्ण शब्द का प्रयोग ध्वनि और ध्वनि चिह्न दोनों के लिए होता है।
👉वर्णमाला-वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला (Alphabets) कहते हैं।

वर्णों के भेद-differences of characters

वर्णों को मुख्य रूप से दो वर्गों में विभक्त किया जा कता है--
1- स्वर वर्ण
2- व्यञ्जन वर्ण
1- स्वर वर्ण 

स्वर वर्ण मुख्यतः 11 होते है-
(अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ)
स्वर वर्णों का उच्चरण बिना रुके लगातार होता है। ऊपर के किसी वर्ण का उच्चारण लगातार किया जा सकता है सिर्फ 'ऋ' वर्ण को छोड़कर, क्योंकि ॠ का लगातार उच्चारण करने पर 'इ' स्वर आ जाता है ।

स्वर वर्णों के भेद

1- उच्चारण के आधार पर स्वरों के भेद
उच्चारण में लगनेवाले समय के आधार पर स्वर वर्णों को दो भागों में बाँटा गया है-
(क) मूल या हस्व स्वर - अ, इ, उ और ऋ (उच्चारण में कम समय)
(ख) दीर्घ स्वर - आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, और औ (उच्चारण में अधिक समय)
(ग) संयुक्त स्वर - ए, ऐ, ओ, औ 
(इनको संयुक्त या संध्य स्वर कहा जाता है; क्योंकि ये दो भिन्न स्वरों के संयोग या संधि के कारण बने हैं।) 

2-  जाति के आधार पर स्वर वर्णों के भेद-

उच्चारण के अनुसार स्वर वर्णों को दो भागों में रखा गया है-
(क) सजातीय/सवर्ण स्वर : इसमें सिर्फ मात्रा का अंतर होता है। ये ह्रस्व और दीर्घ के जोड़ेवाले होते हैं। 
जैसे— अ-आ,      इ-ई,       उ—ऊ

(ख) विजातीय/असवर्ण स्वर :
ये दो भिन्न उच्चारण स्थानवाले होते हैं। 

3- उच्चारण स्थान के अनुसार स्वरों के भेद-  

1- अनुनासिक स्वर - जिन स्वरों के ऊपर चंद्रबिन्दु (ँ ) लगा है और उन्हें नाक से बोला जा रहा है। अनुनासिक(अनु+नासिक) अनु पीछे या बाद अर्थात् जिन वर्णों को बाद में नाक से बोला जाए, उन्हें अनुनासिक कहा जाता है। चंद्रबिन्दु वाली ध्वनि को वर्ण के साथ उच्चारित करते हैं आँख,ऊँट,उँगली बोलते समय चंद्रबिन्दु की ध्वनि अपने स्वर के साथ ही उच्चारित हो रही है। चिह्न को चंद्रबिन्दु / चंद्रानुस्वार भी कहते हैं।

2- सानुस्वार - ( स +अनुस्वार )" शिरोरेखा के ऊपर लगने वाले बिन्दु को अनुस्वार और जिस वर्ण पर लगता है,उसे संस्वर अर्थात् अनुस्वार सहित बोला जाता है, किन्तु अनुस्वार/ बिन्दु की ध्वनि स्वतंत्र सुनाई पड़ती है,अनुनासिक के समान साथ में नहीं। ऊपर दिए गए शब्दों अंग, इंद्र आदि शब्दों के उच्चारण से यह बात ज्ञात होती है।

3- निरनुनासिक - खण्ड करने (नि: + अनु + नासिक) अर्थात् जिसे अनुनासिक के समान नाक से नहीं बोलते। क्रमांक 3. में दिए गए शब्द अभी, आज, इधर आदि से प्रकट है।

4- ओष्ठाकृति के आधार पर स्वरों के भेद-

1- वृत्ताकार स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में होंठ गोल हो जाते हैं, उन्हें वृत्ताकार स्वर कहते हैं। 
जैसे-उ, ऊ, ओ, औ, ऑ

2- अवृत्ताकार स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में होंठ गोलाकार न होकर फैले रहते हैं, उन्हें अवृत्ताकार स्वर कहते हैं। 
जैसे- अ, आ, इ, ई, ए, ऐ।

5- मुखाकृति के आधार पर स्वरों के भेद-

1- अग्र स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का अग्र भाग सक्रिय रहता है उन्हें अग्र स्वर कहते हैं। 
जैसे- अ, इ, ई, ए, ऐ ।

2- पश्च स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा का पिछला भाग सक्रिय रहता है, उन्हें पश्च स्वर कहते हैं। 
जैसे - आ, उ, ऊ, ओ, औ, आँ।

3- संवृत स्वर - संवृत का अर्थ है - कम खुलना। जिन स्वरों के उच्चारण में मुँह कम खुले, उन्हें संवृत स्वर कहते हैं। 
जैसे- ई, ऊ 

4- अर्द्ध संवृत स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में मुख संवृत से थोड़ा ज्यादा खुलता है, उन्हें अर्द्ध संवृत स्वर कहते हैं। 
जैसे-ए, ओ।

5- विवृत स्वर - विवृत का अर्थ है - अधिक खुला हुआ। जिस स्वर के उच्चारण में मुख बहुत अधिक खुलता है, उसे विवृत स्वर कहते हैं। जैसे-आ

6- अयोग्यवाह 

स्वर व व्यञ्जन के अतिरिक्त दो और ध्वनि होती है।जिनका मेल न स्वरों के साथ होता है न व्यञ्जनों के साथ इसीलिए वे अनुस्वार और विसर्ग का रूप लेते है,
जैसे - अं, अः
जैसे— अ- इ, उ—ओ आदि ।

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