Saturday 18 May 2019

ज्योतिष शास्त्र नवग्रहों का मेल गणडमूल नक्षत्र

 ज्योतिष शास्त्र
नवग्रहों का मेल
गणडमूल नक्षत्र
गणडमूल नक्षत्र एक ऐसा योग है जो कही न कही हमारे मन को भ्रमित कर देता है या हम घबराने लगते है। जबकी यह इतने अशुभ भी नही होते है , कि जितना हम सोचते है। अगर समय से इनकी शान्ति कराई जाय तो अशुभ फल से बच सकते है।

हमारे शास्त्रों मे २७ नक्षत्र बताए गए है।और इन्ही मे से 6 नक्षत्र गणडमूल कहलाते है। ये नक्षत्र निम्न प्रकार से है---

(1)अश्विनी,    (2)-मूल,

(3)-आश्लेषा ,  (4)-ज्येष्ठा

(5)-मघा ,         (6)-रेवती


इन नक्षत्रों मे उत्पन्न व्यक्ति गणडमूल कहलाते है। इनमे जन्म लेने वाले स्वयं तथा कुटुमबियों के लिए अशुभ माने गये है। लेकिन इतना भी शास्त्रों मे कहा गया है कि अगर ये व्यक्ति जीवित रहते है तो फिर आगे का पूर्ण जीवन ऐश्वर्य पूर्ण ही जीते है।


जब जातक का जन्म होता है तो उस समय इस ब्राण्ड मे हमारे नक्षत्र विचरण करते रहते है। समय के अनुसार एक दिन मे चार चरण होते है। अब देखना यह है कि जातक का जन्म किस चरण मे हुआ है क्योंकि प्रत्येक चरण का अलग फल प्राप्त होता है।


गणडमूल नक्षत्र व उनका फल

नक्षत्र--- अश्विनी

प्रथम चरण मे---- पिता को भय,

द्वितीय चरण मे--- सुख तथा सम्पति को नुकसान,

तृतीय चरण मे----राज पद की प्राप्ति,

चतुर्थ चरण मे----राजसम्मान,


(2)--आश्लेषा नक्षत्र 

प्रथम चरण ---शान्ति से सुख

द्वितीय चरण ----धन हानी

तृतीय चरण ----माता को कष्ट

चतुर्थ चरण ---पिता को कष्ट


(3)--मघा नक्षत्र 

प्रथम चरण ----माता को कष्ट

द्वितीय चरण ---पिता को कष्ट

तृतीय चरण ---सुख प्राप्ति

चतुर्थ चरण ---धन वापस विद्या प्राप्ति


(4)--जेष्ठा नक्षत्र

प्रथम चरण ---बडे भाई को कष्ट

द्वितीय चरण ---छोटे भाई को कष्ट

तृतीय चरण ---माता को कष्ट

चतुर्थ चरण ---सुख मे कमी


(5)--मूल नक्षत्र

प्रथम चरण ---पिता को कष्ट

द्वितीय चरण ---माता को कष्ट

तृतीय चरण ---धन हानी

चतुर्थ चरण ---शांती मे वृद्धि


(6)--रेवती नक्षत्र 

प्रथम चरण ---राजसम्मान

द्वितीय चरण ---मंत्रित्वपद

तृतीय चरण ---धन सुख प्राप्ति

चतुर्थ चरण ---अनेक कष्ट


गणडमूल नक्षत्र का निष्कर्ष---

गणडमूल नक्षत्रो के आधार पर हर नक्षत्र का एक निवास स्थान है। निश्चित है इनके कष्ट भी भिन्न भिन्न माने गये है।


शास्त्रों के अनुसार ----- 

कहा जाता है गणडमूल के तीनों लोकों मे स्थान होता है , और हिन्दू बारह महीनों के अनुसार ये गणडमूल अलग अलग महीनो मे अलग लोकों मे निवास करता है। और अलग-अलग-अलग फल प्रदान करता है। हम आपको विस्तृत मे बताते है कि इनका फल क्या है।


(1)---अश्विन,   आषाढ,    भाद्रपद,    माघ , मे मूल का वास स्वर्ग मे होता है।

(2)---श्रावण , कार्तिक  , पौष  , चैत्र ,  मे भूमी पर वास होता है।

(3)--फाल्गुन  ,  मार्गशीर्ष  , वैशाख  ,ज्येष्ठ मे मूल का स्थान पाताल मे होता है।

मूल का निवास स्थान जहां का होता है वो वही का शुभ या अशुभ फल देता है।

मूल शान्ति हेतु मन्त्र व औषधी 

मूल मे जन्म लेने वाले जातक अभीष्ट की शंका होने के लिए 27 वे दिन उसी नक्षत्र मे उस नक्षत्र की शान्ति करनी चाहिए। और मूल का जो नक्षत्र होगा उसकी विधान पूर्वक शान्ति कराने से सब काम सिद्ध हो जाते है। मूल नक्षत्र के मन्त्र इस प्रकार से है।

1)--ज्येष्ठा मन्त्र--
ॐसयोषा इन्द्र सगणो मरूद्भः सोमं पिब वृत्रहा शूर विद्वान्  |
जहि शत्रुरपमृधो नुदस्वाथाभयं कृणुहि विश्वतो नः ||
ॐ इन्द्राय नमः |

2)- मूल मंत्र--
ॐ असुन्वन्त मे यजमानमिच्छस्तेनसेत्वामन्विहितस्करस्य |
अन्यमस्मदिच्छ सा तऽइत्यानमो देवि निर्ऋते तुभ्यमस्तु ||
ॐ निर्ऋते नमः |

3)--रेवती मन्त्र 
ॐ पूषन्तव व्रते वयं न रिष्येम कदाचन |
स्तोतारस्त  इहस्मसि ||
ॐ पूष्णे नमः |

4)--अश्विनी मन्त्र 

ॐयावाङ्कशा मधुमत्यश्विना षूनृतावती |
तया यज्ञं मिमिक्षितम् |
ॐ अश्विनीकुमाराभ्यां नमः |

5)--आश्लेषा मन्त्र 
ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु |
येऽन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः ||
ॐ सर्पेभ्यो नमः |

6)-'मघा मन्त्र
ॐ उशन्तस्त्वा निधोमह्युशन्तः समिधीमहि |
उशन्नुशतऽआवहपितृन् हविषेऽअत्तवे ||
ॐ पितरेभ्य नमः |

मूल शान्ति के लिये विशेष प्रकार की सामग्री का प्रयोग होता है इसीलिए लिए यह कठिन जरूर है परन्तु इसका समाधान यही है। वैसे तो सामान दुकानों पर मिल जाता है लेकिन अगर इसे खुद ही एकत्र किया जाए तो बहुत अच्छअच्छा देता है।

1- 27 छेदों वाला घडा,
2-27  नदी तालाब या कुओं का पानी,
3-27 स्थानों की मिट्टी,
4-27वृक्षो के पत्ते,
यह सामग्री अत्यन्त आवश्यक है । इसके अतिरिक्त सामग्री सामान्य होती है जो हर पूजन मे प्रयोग होती है।

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