Saturday 11 May 2019

मां की महानता /मां के उपकार/Mother day

 मां की महानता 
मां के उपकार
मां की ममता,वेदना,त्याग,तपस्या
Mother day
Mother day


नारी जीवन का एक अनुपम रिश्ता जो मां के रूप मे उभर कर आता है,  मां एक ऐसा एहसास है जो हर दिल को सुकून की छांव पहुचाती है। जीवन मे मां है तो अपने आप हर समस्या का समाधान मिल जाता है। ऐसा लगता है कि उसे किसी और सहायक की जरूरत नही है। जो कभी रूठती नही है, और नाही कभी कुंठित होती है। जैसे मानो अपने सन्तान के प्रति उसने इन शब्दों को कहीं पीछे ही छोड दिया हो।

● मां सबकुछ सहते हुए भी अपनी सन्तान को कोई दुख नही देती वो सिर्फ मां ही है।

● मां के बिना जीवन सम्भव नही है, उसकी सांसे उससे जुडी होती है,मां कितना असहनीय कष्ट सहकर बच्चे को जन्म देती है।

● अपने बच्चे की खुशहाली के लिए वह दुनिया मे किसी भी प्रताड़ना को सह लेती है। हर कष्ट को अपना लेती है।

● मां कभी भी अपने सुख की कामना नही करती बल्की उसकी सन्तान सुखी रहे अपना जीवन भी दान कर देगी।

● परिवार के सभी लोग अपने-अपने कार्यों में वयसत रहते हैं परन्तु माँ सन्तान के लिए पूरा जीवन समर्पित करती  है वह अपने निजी काम को भी त्याग देती है। बच्चे ही उसकी दुनियां होती है।

● माँ का हर समय सन्तान की देखभाल में व्यतीत होता है| सन्तान की देखभाल के लिए माँ को रात में बार-बार जागना पड़ता है| तथा अपना सुख चैन त्याग देती है।  लेकिन अधूरी नींद के उपरान्त भी माँ सदैव संतान के प्रति चिंतित रहती है। कि कही उसकी नींद खराब न हो जाए।

● सन्तान को संस्कार और आदर्शवादी व चरित्र निर्माण करने में माँ का विशेष योगदान होता है| माँ ही संतान को चलना-बोलना सिखाती है,तथा समाज मे रहना सिखाती है।

● सबसे पहले इस संसार  में माँ ही संतान के अधिक सम्पर्क में रहती है, माँ के मार्ग-दर्शन में ही संतान का विकास होता है,  वह मां की छांव मे दुनियां देख पाता है।

● माँ अपनी सन्तान को महान व्यक्ति बनने के लिए संस्कारों को कूट-कूटकर भरती है| वह अपनी सन्तान को सबसे श्रेष्ठ देखना चाहती है। सामाजिक मर्यादाओं का ज्ञान कराती है और उच्च विचारों का महत्व बताती है,ताकी उसका जीवन एक आदर्श जीवन बनकर उभरे।

● मां की बात बच्चे  कभी टाल नही सकते इसीलिए सन्तान को चरित्रवान, गुणवान बनाने में सर्वाधिक योगदान माँ का होता है|

●मां अपनी सन्तान को एक योग्य निर्धारित बनाना चाहती है वह सन्तान को लाड़-प्यार से सुरक्षा एवं शक्ति प्रदान करती है, दूसरी और डांट-डपटकर उसे पतन के मार्ग पर जाने से बचाती है,लेकिन उसकी हर डांट फटकार मे भी स्नेह छुपा होता है।

●किसी भी व्यक्ति का चरित्र-निर्माण उसकी माँ की बुद्धिमत्ता पर निर्भर करती है| यानी मां जितनी श्रेष्ठ बुद्धि वाली होगी उसकी सन्तान भी उतनी ही श्रेष्ठ और उच्च गुणों वाली होगी। एक माँ ही किसी भी व्यक्ति की प्राथमिक शिक्षिका होती है।

●सभी माँ को अपनी सन्तान सर्वाधिक प्रिय होती है| वह न चाहते हुए भी उसका अनहित कभी सहन नही कर सकती अपनी सन्तान के लिए माँ सारे संसार से लड़ सकती है, परन्तु संतान के प्रति माँ का अन्धा मोह प्राय: सन्तान के लिए अहितकर सिद्ध होता है,उसके जादा लाड प्यार से सन्तान बिगड भी जाती है।

●अपनी सन्तान के पालन-पोषण में माँ को लाड़-प्यार के साथ बुद्धिमत्ता की भी आवश्यकता होती है। क्योंकि अगर उसे एक सशक्त तथा दृढ इनशान बनाना है तो उसे जीवन के मूल्यों को भी सिखाना होग।

●मां का अपने सन्तान के प्रति      अत्यधिक लाड़-प्यार भी जायज नही है वह उसे गलत राह की ओर भी ले जा सकती है। माँ की सन्तान के प्रति लापरवाही सन्तान को पथभ्रष्ट कर सकती है।

●माँ का अपनी सन्तान के प्रति  अत्यधिक मोह सन्तान को कामचोर और जिद्दी भी बना सकती है| वास्तव में योग्यता कठिन परिश्रम के उपरान्त ही प्राप्त होती है। अपनी सार्थकता को समझे।

●यह सतय है कि एक बुद्धिमान माँ अपनी सन्तान से प्रेम अवश्य करती है,उसे कभी निराश नही करती  परन्तु उसे योग्य बनाने के लिए उसके प्रति कठोर नियम भी निर्धारित करती है ताकी वह कभी अपने मार्ग से पथभ्रष्ट न हो सके।

●मां अपने लाड़-प्यार के नाम पर सन्तान को अधिक ढील देने वाली बात कदापी सत्य सिद्ध नही हो सकती बाद में पशचाताप ही करना पड़ता है।

●वर्तमान समाज की अवधारणा ही बदल गयी है इस समाज में माँ को दोहरा जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है, क्योंकि चुनौती पग पग मे खडी है।

●नारी–स्वतंत्रता के नाम पर अधिकांश महिलाएँ विभिन्न श्रेत्रों में नौकरी, व्यवसाय करती हैं| जबकी उन्हे अपने घर-परिवार की देखभाल के लिए अधिक समय नहीं मिलता  उनहे समय दे कयोंकि परिवार अगर सफल सिद्ध हुआ तो जीवन का अनमोल धन प्राप्त कर लिया। 

● मां सुबह परिवार में सबसे पहले जागकर वह घर के काम-काज करती है| और दिनभर मे भी उसका काम कभी पूरा नहि होता लेकिन उसके कर्म को कोई प्रोत्साहन नही देता। 

● परिवार का दायित्व उसके कंधों पर आ जाता है,और वही अपनी जिम्मेदारी कोई बखूबी निभाती है। चाहे शारिरिक कष्ट हो या फिर अन्य कोई भी कष्ट वही अपने कर्म से मुह नही मोडती।

● नारी अथवा माँ के जीवन मे अनेकों  कठिनाई अवश्य होती है, परन्तु वह प्रत्येक परिस्थिती से मुकाबला करते हुए अपनी शक्ति को प्रमाणित करती है।

●सच कहा जाए तो माँ की आंतरिक शक्ति अतुलनीय है| यद्यपि हमारे पुरष-प्रधान समाज में पुरुषों को अधिक अधिकार प्राप्त हैं, परन्तु माँ के बिना परिवार की कल्पना नही की जा सकती,और नाही सृष्टि की रचना सम्भव है।


●एक पुरुष काम-धंधे के लिए कठोर परिश्रम कर सकता है, परन्तु घर-परिवार और  बच्चों को सम्भालने की योग्यता उस  पुरुष में नही होती वह खूबी केवल मां को प्राप्त है।

 मां की वेदना 

इस दुनिया मे कम ही लोग होंगे जो अपनी मां से सच्चा प्रेम न करता होगा , जिसे उसके दर्द का एहसास नही होता है । कितनी मासूमियत होती है मां की ममता मे जो इसकी छांव मे पलता है उसका जीवन कभी दुखद नही कटता क्योंकि वह मां अपने बच्चे का हर कष्ट अपने मे समा  देती है। उसे इतने लाजो से वह पालती है कि उसकी राह मे कभी दुख के बादल नही आ पाते हैं। जिसने ममता की छांव नही देखी उसका जीवन भी मानो बेकार ही गया  क्योकि इसकी छांव मे वह मिलता है जो लाख जतन करके भी मनुष्य हासिल नही कर पाता है।

मां की ममता को जो बेकार समझता है उसका जीवन भी एक बेकार ही गुजरता है वह सबकुछ हासिल करते हुए भी कुछ हासिल नही कर पाता। यह एक ऐसा कल्प वृक्ष हैं जो अपने बच्चो को सबकुछ दे देती है। भले ही भूखी रहेगी पर उसे कभी भूख का एहसास नही होने देगी।

मां की ममता का वर्णन करना शायद मै भी अपने आप को पूर्ण नही समझता लेकिन इतना जरूर महसूस कर सकता हू कि ---
मां है तो जीवन है , 
मां है तो होने का असली मकसद है।

   ●चीख-चीख कर कहता है अंबर ,                                        उसकी करुणा का जो आलम है !
          किलकारी के स्वर नादो से ,
              गूंजा था जिसका आंगन !


    ●इस धरती का हर जर्रा जर्रा फिर ,
         पल पल थर थर कांप रहा !
            देख कसक दिनकर हर मां की !
               खुद को वारिद में ढाक रहा !
             
   ●चली पवन जब वेग समा मे,
        हर कण-कण भी इठलाया था ।
           तेरे ही दामन ने मुझको ,
              वो अमृत पिलाया था।

      ● अंबुद का घनघोर सलिल अब ,
            कैद वहीं रह  जाएगा !
              तप्त तेज ज्वाला अब मन की ,
                 शांत नहीं कर पायेगा !

      ●तेरा मर्म बडा सुखदायी ,
           तुम ही जीवन की आधार शिला।
             तुम हो तो हर ख्वाब है पूरे,
               तुममे है  विश्वास भरा।

       ●जीने की हर राह तुम्ही से,
           पथ चलना तुम्ही ने सिखाया ।
              मै तो था अनभिज्ञ जहां मे,
                वो जहां तुम ने ही दिखलाया।

      ●क्यों तूने ममता की देवी?
          रक्त स्वेद में गवा दिया !
             क्यों उस नन्हे से पौधे को ?
                वृहद वृक्ष यो बना दिया !

    ●सारे जहां की खुशियां देती,
         खुद दुखों की राह पर निकल पडी ।
           क्यों लुटा देती हो मुझ पर,
              अपने हिस्से की सब खुशियां।

   ●दर्द सहे तुमने लाखों ,
      जबसे मुझको तुमने बोया।
         पता था सब कुछ समझती थी ,
         

     ●  क्यों पोषित करती थी उसको ,
           अपने खून पसीने से ?
              क्यों  रखा निशि वासर उसको ,
                  लगा  के अपने सीने से ?

   ●हे नारी तेरा रूप निराला,
       किस रूप की अवतरण हो तुम ।
          यह संसार है मिथ्या लालच का,
             फिर भी तुमने सब लुटा दिया ।
                 
      ●व्यर्थ गई तेरी वह सांसे  ,
            नौ महीने जो उसे दिया !
               अपने हिस्से के कौर नेवाले                                                  देखकर क्यों उपवास किया ?

                    निष्कर्ष
हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि माँ देवतुल्य  के समान पूजनीय होती है. वास्तव में माँ परिवार में सर्वाधिक सम्मान की अधिकारी है. माँ का महत्व सबसे बड़ा है. उसके गुणों को कोई भी चुका नही सकता वह सबकुछ न्यौछावर कर देती है लेकिन कभी भी अपना दुख प्रकट नही होने देती। कहा जाता है कि---
वह जीवन का सार भी है।
वह जी मार्ग भी है।
वह खुशी की खान भी है।
वह हर दुख की छांव भी है।
वह हर मुश्किल की नाव भी है।
वह हर सपनों की शान भी है।
वह करूणा की देवी है।
वह ममता की पूंजी है।
वह हृदय की मोती भी है।
वह हर दर्द की दवा भी है।
वह हर मर्ज की औषधी भी है।
वह हर सांसो की सांस भी है।
वह हर बेदना की अनुकरणीय है।
वह इस धरा की शान भी है।
वह इस धरा की मान भी है।
वह बच्चों की शोभा भी है।
वह बच्चों की हंसी भी है।
वह परिवार की मर्यादा भी है।
वह संस्कारों की देवी भी है।
मां तेरा रूप अलौकिक है।
मां तेरा स्वरूप निराला है।

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