Saturday 4 May 2019

|| महिला सशक्तिकरण एवं महिला अधिकार/Woman right Woman day

महिला सशक्तिकरण एवं महिला अधिकार  
Woman right
Woman day
womenright
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नारी तू दुख की मारी ,
कहां चली ए घनघोर घटा|

हमारे प्राचीन धर्म ग्रन्थों मे भी कहा गया है कि ---
"" यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते, रमन्ते तत्र देवता ||

नारी जीवन
 womenright ईश्वर की एक ऐसी कल्पना जो मानव ही नही बल्की सभी जीवों की अरदासी रही है। सभी को उसने प्रेम और सौहार्द दीया है। जब-जब भी मनुष्य हो या देवता संकट मे आये  हो तो उन्होने नारी के माध्यम से उससे मुक्ती पायी है। लेकिन आज भी उस देवी को हम सम्मान देने मे अपनी भूल समझते है। हम यही सोचते है कि पहला स्थान पुरूष का होना चाहिए जबकि  उसका हकदार भी वही नारी है जिसने उसक पुरूष को जन्म दिया है।

आज हमे यह गर्व है कि भारत तरक्की कर रहा है।womenright लेकिन महिला के प्रति उसकी भावना आज भी धुंधली ही दिखाई देती है। हम अपने मन से भ्रम नही निकाल पाल रहे है कि नारी अब वह न रही कि घूघंट डालकर पर्दे के पीछे छुपी रहे। बल्कि पहले भी और आज भी स्वछंद होकर जीने के लिए लालायित है। आज वह भी चाहती है। कि उसे जीवन जीने के लिए पुरूष की इजाजत की जरूरत न पडे वह पुरूष के नक्शे कदम या इशारों पर जीने वाली कठपुतली नकारात्मक रही। उसे भी अब अपने आप को निखारने के अवसर मिलना चाहिए।लेकिन कही न  कही पुरूष समाज आज उसे यह इजाजत नही देता। तो क्या फायदा है ऐसी तरक्की का जहां मानव ही मानव से गुलामी करता फिरता है।

              महिला की भूमिका--
हम यह भी मानते है कि महिलाओं का स्थान सर्वोपरि रहा है। हम जिन ग्रन्थों को अपना आदर्श मानते है। या जिन शास्त्रों की हम वन्दना करते है। यह बात उन शास्त्रों मे भी निहित है कि महिलाओं ने ही इस सृष्टि का लाज रखी है। इस भूमी को न जाने कितने  हीरा कष्टों से जूझना पडा कितने ही दुराचारी व दानवों ने यहां जन्म लिया वे इतने शक्तिशाली थे कि उन्होंने देवता को भी अपने वश मे कर दिया और जब वही दानव देवताओं का संघार करने लगा तो देवताओं मे हड़कम्प मच गया। उन्हे भी अपने स्वाभिमान को बचाने उसकी रक्षा करने की कोई राह न दिखी तो उन्होने देवी को ही इसके लिए उपयुक्त समझा उन्हे पता थै कि नारी वह शक्ति है जो प्रेम की देवी होती है दया उर प्रलय दोनो जिसके गोद मे खेलते है। वह आग्रह अपने असली स्वरूप मे आ जाये तो किसी का भी संघार कर सकती है। तो देवताओं ने भी इस काम के लिए नारी को ही उपयुक्त समझा और उसने अपना उग्र रूप धारण करके हर दैत्य दानव का संघार किया है

 लेकिन जब उसके सम्मान की बारी आती है तो हम उसे उसके योग्य नही समझते। इसे पुरूष की भूल समझे या फिर उसकी बहुत बडी भूल समझी जाये।

आज भी नारी अपने ( womenright) स्वाभिमान को बचाये रखने के लिए जूझ रही है। आज कोई भी नारी किसी क्षेत्र मे पीछे नही है। हर क्षेत्र मे पुरूष से बढ़कर कार्य कर रही है है।राम वो मान सम्मान भारत को दिला रही है जो कभी भी पुरुष लाख प्रयत्न के बाद भी इस भूमी कोई देने मे सक्षम नही है। लेकिन फिर भी हमारी वही मानसिकता बनी हुयी है कि यह तो नारी है इसे पुरूष से कमजोर ही होना चाहिए।या फिर यह कारण है कि पुरुष नारी की कामयाबी को सहन करने की छमता नही रख सकता।

आज का युग प्रजातंत्रीय प्रणाली का है। जो स्त्री व पुरूष को समान जीवन जीने वा उन्नति को चुनने का अधिकार देता है। इसी कारण वह अपने आप को थोड़ा निखारने मे सफल रही है। अन्यथा पहले जैसी दशा रहती तो आज भी नारी केवल घरों तक ही सीमित रह पाती। और इतना भी सत्य है कि पुरूष ने नारी के प्रेम को समझने की जो भूल की है। अब वह डर कार हथिया लेकर के आगे बडी है। यही हथिय ही उसकी कामयाबी का कारण बनेगी। आज किसी भी रहीस तथा सक्षम देशों की बात करलो लेकिन व्यवहार की दृष्टी से वहां आज भी महिलाओं की स्थिती संतोषजनक नही है।

नारी की सुदृढ व सम्मानजनक स्थिती एक उन्नत व सभ्य समाज का घोतक है। हमारे देश मे जहां एक तरफ नवरात्रों मे शक्ती के रूप मे नौ देवियों को पूजा जाता है। हम अनेकों रूपों मे उसकी उपासना करते है। लेकिन भावना वही है कि हम उन्हे परम्पराओं  के नाम पर बेडियों मे जकडने का प्रयास काया जाता है।

भारत व्यक्तिगत कानून की विविधता वाला देश रहा है। हर धार्मिक सम्प्रदाय  अपनी पृथक वैयक्तिक दवा शासित होता है। यद्यपि मताधिकार प्राप्त प्रत्येक नारी और पुरूष का समान महत्व हृ। लेकिन धर्म प्रथाओं और विवाह की आयु कुछ ऐसे प्रमुख कारक है जिनके कारण महिलाओ कायनात दर्जा नीचा होते जा रहा है।

हिन्दु धर्म मे नारी को पुरूष के आधीन रहने का आदेश दिया गया है। कुरान मे पुरूष व महिलाओं को बराबर माना गया है।  लेकिन मुस्लिम परम्परा और कानून महिलाओं को बराबरी
कान दर्जा नही देते हर धर्म मे केवल पुरूषों को ही महत्व दिया जाता है महिला बेचारी आज भी हर धर्म मे अपने स्वाभिमान के लिए लड़ रही है।

  नारी शिक्षा -women education
हमारे देश मे प्राचीन काल से महिलाओं को वैदिक साहित्य का अध्ययन करने की पूरी सुविधा थी उन्हे भी अधिकार था की वह भी अपने शास्त्रों की उपयोगिता को समझ सके और उन्हे अपने आचरण मे ढाल सके। प्रत्येक व्यक्ति चाहे स्त्री हो अथवा पुरूष दोनों को समान रूप से शिक्षा का अधिकार प्राप्त था।

मध्यकालीन भारत मे मुसलमानों के आक्रमण  और मुगलों की स्थापना के बाद नारी की स्थिती अत्यधिक सोचनीय हो गयी थी। स्त्रियों के समस्त अधिकार व स्वतन्त्रता समाप्त कर दी गयी। स्त्रियों को चार दिवारी के अन्दर रहने के लिए मजबूर खर्च दिया। ब्रिटिश काल मे पुरूषों की स्थिति नारियों से ऊंची थो। परन्तु विपरीत परिस्थियों मे भी कुछ स्त्रियों ने पुरूषों के साथ मिलकर के देश की स्वतन्त्रता के लिए प्रयास किया था।

हमारा देश कुरीतियों का शिकार हो गया इस देश को कयी आघात पे आघात दिये गये  जिससे उसका प्रभाव यह रहा कि जो देश नारी को पूजा करता था। वही आज अन्य देशों की तरह उसका विरोध करता है।  नही तो हमारा देश  ऐसा नही था। अगर आक्रमण न हुए होते तो आज यह देश नारी शक्ति के बल पर विश्व मे पहले स्थान पर होता ।  दुख तो इस बात का है कि आज भी हम आजाद तो गये प्रभु आजा भी हम उन्ही शासकों की गुलामी कर रहे है उन्ही के नक्शे कदम पर चल रहे है। हमारे अपनी भावना बदलनी होगी। तभी तह भारत पहले जैसा सक्षम हो पायेगा और नारियों को सम्मान मिल पायेगा।

 (महिलाओं के कानूनी अधिकार) womenright

आज का समाज परिवर्तित हो चुका है , महिला और पुरुष मे अब कोई अन्तर नही रहा है। बात करे अगर प्राचीन सभ्यता की तो भारत ही नही अपितु पूरे विश्व मे महिलाओं की भूमिका पुरूषों से बहुत आगे रही है। वर्तमान की महिला अब काफी आगे बढ चुकी है जो महिला पहले दबी हुयी तथा आवाज उठाने से भयभीत होती थी वही अब बेखौफ होकर के अपने अधिकार के लिए जी रही है। क्योंकि आज का समाज व महिलाए पुरानी सभ्यता और रूढ़िवादी भावना से उठ चुकी है। अब कयी ऐसे कानून बन चुके है , कि जो महिलाओं की स्थिती को सुधारात्मक कर सके। अब कोई भी महिला दबाव मे या मजबूरी मे जीवन यापन नही कर सकती वह अपने तरीके से अपने जीवन को निखार सकती है। और जो भी उसके विरूद्ध अपरिचायिक घटना या भावना को ठेस पहुंचाने की कोशिश करता है। तो वह  सजा के हकदार है।

आइए जानते है महिलाओ के अधिकार जिससे कोई भी महिला अब अपनी आवाज उठा सकती है।

(1)-- समान वेतन का अधिकार

equal wage पहले महिलाओ के साथ बहुत भेदभाव किया जाता था। यानी जहां महिला और पुरूष समान रूप से कार्य करने के बावजूद भी उन्हे वेतन समान नही दिया जाता था। लेकिन अब परिवर्तन का समय  आ चुका है। अब कोई भी लिंग भेदभाव नही कर सकता है।  चाहे वह किसी भी क्षेत्र मे काम करेगी तो उसे पद के अनुसार ही वेतन दिया जायेगा नाकी लिंग के आधार पर और अगर कोई ऐसा करते पाया गया तो उसे भारी भरकम जुर्माना  अदा करना होगा। इसीलिए महिलाओ का भी इसमे सहयोग अपेक्षित है।

(2)-- अगर किसी महिला के साथ किसी ऑफिस या विभाग मे कोई अन्य पुरूष जबरन उसका यौन शोषण या फिर मानहानि करता है। या फिर किसी भी प्रकार का उत्पीड़न करता है तो वह सजा के हकदार है।  वह महिला बिना किसी डर या झिझक से किसी भी सैन्य अधिकारी या फिर पुलिस से इसकी शिकायत कर सकती है। ऐसा करने से वह देश की उन्नति मे तथा अन्या महिलाओ के प्रति भी सजग कार्य कर सकती है।

(3)-- घरेलू हिंसा
घरेलू हिंसा महिलाओं के लिए आम बात है। लगभग 90% महिलाएं इसका शिकार होती है। लेकिन अब वह अपने प्रति सजग रह सकती ऐसे कई कानून बन चुके है जिससे वह अपना जीवन सुखमय बना सकती है , बस जरूरत है उसे आवाज उठाने की।

(4)-- मातृत्व सम्बन्धित अधिकार
 एक बच्चे तथा मां का सम्पूर्ण विकास के लिए मां को उचित आराम आवश्यक है ताकी वह सही प्रकार से शिशु की देखभाल कर सके। भारत सरकार ने यह लागू किया है कि कामकाजी महिलाओं के लिए उचित 6 माह का अवकाश बिना  किसी वेतन कटौती के दिया जाएगा। यह उसका पूर्ण अधिकार है।  और वह चाहे तो अपना काम घर से भी शुरू कर सकती है।

(5)--मान सम्मान का अधिकार
महिलाओं के लिए इसका भी अधिकार बनाया गया है। कि अगर कोई जानबूझकर या अन्य किसी प्रकार से किसी भी महिला को दबाव बनाकर उसके मान सम्मान को ठेस पहुंचाता है तो  उसके ऊपर शक्त कारवाई की जायेगी तथा आर्थिक डंड भी लिया जायेगा।

(6)-- बलात्कार के शिकार महिला को मदद
अब महिला हित के लिए  ऐसे कानून बनाए गए है कि अगर वह बलात्कार का शिकार होती है। तो  सरकार द्वारा  उसे पूरी मदद दी जाएगी तथा अगर किसी महिला के खिलाफ इंसाफ मे कमी रह रही उसे उचित इंसाफ दिला कर अपराधी के विरूद्ध शक्त कारवाई की जायेगी।

(7)-- महिला की गिरफ्तारी रात मे नही
महिला के लिए यह कानून बना है कि अगर कोई महिला अपराधी मानी जाती है तो उसे सूरज डूबने के बाद और सूरज उगने से पहले गिरफ्तार नही किया जा सकता।ऐसा करने के लिए पुलिस को प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट को सूचित करना होगा तभी कारवाई की जायेगी। अर्थात नही।

(8)--अपराधी महिला को भी गरिमा का अधिकार

महिला का चाहे जो भी जुर्म हो उस महिला को यह पूरा अधिकार है कि उसकी कार्यवाही कोई महिला पुलिस ही करे।क्योंकि एक महिला ही उसकी भावना को समझ सकती है। किसी भी जांच या चिकित्सा प्रक्रिया मे महिला अधिकारी का होना अति आवश्यक है।

(9)--महिला को सम्पति का अधिकार
आज के समाज मे महिला पुरूषों से कम नही है अतः हिन्दु उत्तराधिकार अधिनियम के तहत महिला को भी पुरूष के बराबर ही अधिकार मिलना चाहिए।किसी भी पैत्रिक सम्पति पर दोनों का समान अधिकार है जो दिया जाना चाहिए।

(10)-- कन्या भ्रूण हत्या
यह एक ऐसा कडवा सच्च है जो शायद ही कभी मिट सकेगा मनुष्य की भावना विकृत हो चुकी है। फिर भी इसके लिए कानून बनाया गया है। यानी गर्भधारण व प्रसव से पहले लिंग जांच कराना जुर्म है। अगर कोई भी ऐसा करवाता है या करता है तो दोनो सजा के हकदार है।और उनके विरूद्ध शक्त कारवाई की जायेगी।और उस डॉक्टर का लाईसेंस भी रद किया जायेगा।

(11)-- महिला का पिता की सम्पति पर अधिकार
वर्तमान समय मे यह नियम उर कानून पारित हुआ है, बेटी का भी पिता की सम्पत्ति पर उतना ही अधिकार है कि जितना बेटे का । अगर पिता ने खुद की सम्पत्ति की वसीयत नही कर रखी है तो दोनों का उसमे बराबर हिस्सा रहेगा तथा यह बेटी के शादी के बाद भी बरकरार रहेगा। जो भी इसके बिरूद्ध षड्यंत्र रचता है तो उसके प्रति शक्त कारवाई की जायेगी।

(12)-- यह कानून पारित हुआ है कि वैसे तो शादी के बाद पती की सम्पत्ति पर पत्नी का मालिकाना अधिकार नही होता परन्तु उसके गुजर बसर के लिए हैसियत के हिसाब से उसे गुजारा भत्ता देना होगा। पती के मृत्यु के बाद पती की खुद की सम्पत्ति पर उसका पूर्ण  अधिकार है शर्त यह है कि वह पुश्तैनी नही होनी चाहिए।

■ अगर पति-पत्नी मे सामंजस्य न हो
 महिला के हित के लिए यह भी अधिकार बनाये गये है। कि किसी कारण वश अगर पती पत्नि मे दरार पैदा होती है या समय कुछ इस तरह प्रवर्तित होते है कि दोनो का साथ रहना मुश्किल हो जाए तो ऐसे विकट समय मे पत्नी सीआरपीसी धारा 125 के तहत वह अपने तथा बच्चो के गुजारा भत्ता की मांग कर सकती है। और वह घरेलू हिंसा कानून के तहत पती पर कानूनी कार्रवाई कर सकती है। और अगर रिश्तों मे गहरी दरार आने के कारण बात तलाक तक पहुंच जाए तो हिन्दू मैरिज एक्ट धारा 24  के तहत मुआवजे की मांग कर सकती है।

महिला के लिए यह भी अधिकार है कि वह अपने हिस्से आयी या खुद की सम्पत्ति का जो चाहे कर सकती है।वह चाहे तो किसी को भी बेच सकती है या बच्चो की परवरिश के लिए भी प्रयोग कर सकती है। यह उसके विवेक पर निर्भर करती है।

■ आखिर क्या है घरेलू हिंसा
महिला के लिए जीवन को यापन करना बहुत दुश्वार है। क्योकि वह अपने स्वाभिमान के लिए हर समय जूझती रहती है। कयी प्रतारणाएं भी सहती है। घरेलू हिंसा का मतलब सिर्फ मारपीट ही नही है अपितु महिला को आर्थिक प्रतारणा मानसिक कष्ट या अन्य किसी प्रकार का कष्ट देना भी घरेलू हिंसा मे ही आता है। महिला को हर समय ताने मारना या अभद्र व्यवहार  करना गंदे इशारे करना या फिर भावात्मक पक्ष को ठेस पहुचाना भी एक हिंसा ही नही बल्कि बहुत बडा अपराध भी है।  महिला को दहेज के लिए बार-बार प्रेरित करना या उकसाना, या फिर उसकी सैलरी या तनख्वाह को जब्त करना या नौकरी के लिए दबाव बनाना या उसकी नौकरी को छीन लेना या उसके जरूरी दस्तावेजों को जब्त करना भी घरेलू हिंसा के तहत ही आता है जो सबसे बडा अपराध है।

अगर कोई महिला असहाय है तो वह अपने अधिकार को पाने के लिए सरकारी वकील के माध्यम से भी केस दर्ज कर सकती है तथा महिला पुलिसकर्मी या अधिकारी भी उसकी मदद करने के लिए इन्कार नही कर सकती है।

■ आखिर महिला कब कर सकती है केस

● ससुराल द्वारा अगर महिला को जबरन उत्पीड़न किया जाता है तो वह अपना केस दर्ज कर सकती है।

●महिला से शादी करने से पहले या रिश्ता होने के बाद अगर उसे या उसके परिवार को दहेज के लिए मजबूर किया जाता है तो वह उन पर केस दर्ज कर सकती है।

■ महिला अपनी शिकायत कहां कर सकती है।
महिलाओं की सुरक्षा के लिए कयी सारी प्रक्रिया बनाई गयी है और कयी सारे कानूनों के तहत महिला हेल्पलाइन नंबर भी दिये गये है। जिस पर वह आसानी से शिकायत कर सकती है। इसके लिए 100 या 1091 पर भी वह चौबीसों घण्टे काॅल कर सकती है। कयी जगह विमिन सेल अधिकारी भी नियुक्त किए गए है। विमिन सेल अधिकारियों को महिला की पूरी मदद करनी चाहिए तथा उसे उसके अधिकार दिलाने मे भरपूर सहयोग करना चाहिए। ताकी महिला का अहित न हो। पहले कोशिश यही की जाए की दोनो का कलह सुलझ सके और अगर मामला हाथ से निकलता दिखे तो पती और उसके परिजनों के खिलाफ केस दर्ज किया जा सकता है।

■ महिलाओं के अधिकार
Women's rights 
अभी भी कुछ लोग है जो लगातार महिलाओ की सुरक्षा के लिए गतिशील रहते है। उनका मानना है कि किसी भी महिला पे कोई जुर्म न हो उसे अपने Women's rights अपने अधिकार को पाने के लिए जूझना न पडे।

स्त्रियों के उत्पीड़न को रोकने के लिए तथा उन्हे हक दिलाने के लिए कयी ऐसे कानून बनाए गए है कि जिससे महिला  अपना अधिकार प्राप्त कर सकती है।लेकिन भारत वासियों की मानसिकता विकृत हो चुकी है अगर सचमुच मे इन कानून पर ध्यान दिया जाता तो भारत जैसे गणराज्य देश मे महिलाओं के उत्पीड़न तथा अत्याचार को अब तक जड से मिट जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा नही हुआ। हम सोचते या करना तो बहुत कुछ चाहते है परन्तु खुद ही पीछे हट जाते है जिस कारण यह लाचारी देश की तथा नारी की अमन शान्ति को भंग कर रही है। जिसका नतीजा यह है कि हमने महिलाओ की सुरक्षा के लिए कानून तो बहुत बना दिए है। परन्तु उसका पालन लेशमात्र भी नही हो पा रहा है।

अब तो यही अनुभव हो रहा है कि यह समाज अब भी पुरूष प्रधान ही है। (कथनी और करनी मे बहुत अन्तर् होता है।)
भारत मे महिलाओ के लिए काफी कानून बनाए गए है, जिसकी जानकारी उसे अवश्य होनी चाहिए।

1--अनुच्छेद 14 मे
कानूनी समानता,

2--अनुच्छेद 15 मे
जाती ,धर्म, लिंग एवं जन्म स्थान आदी के सम्बन्ध मे भेदभाव नही करना,

3--अनुच्छेद 16 मे
लोक सेवाओं मे बिना किसी भेदभाव के समान अवसर उपलब्ध कराना,

4--अनुच्छेद 19 मे
समान रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता,

5--अनुच्छेद 21 मे
इसमे स्त्री  तथा पुरूष को प्राण एवं दैहिक स्वाधीनता से वंचित न करना।

6--अनुच्छेद 23-24 मे
शोषण तथा अन्याय के विरुद्ध अधिकार समान रूप से प्राप्त ।

7-- अनुच्छेअन25-28 मे
धार्मिक स्वतन्त्रता दोनों का समान रूप से अधिकार।

8--अनुच्छेअन29-30 मे
शिक्षा तथा संस्कृति का अधिकार

9--अनुच्छेद 32 मे 
संवैधानिक उपचारों का अधिकार

10--अनुच्छेद 39 मे
पुरूषों एवं महिलाओ को समान कार्य व्यवसाय करने पर समान वेतन का अधिकार

11--अनुच्छेद 40 मे
पंचायती राज संस्थाओं मे 73 वें तथा 74 वें संविधान संशोधन के माध्यम से समान आरक्षण की व्यवस्था।

 12--अनुच्छेअन41- मे
बेकारी, लाचारी, बुढापे मे अभाव की दशाओं मे सहायता पाने का अधिकार।

13--अनुच्छेद 42 मे
महिलाओ हेतु प्रसूति सहायता की व्यवस्था का अधिकार।

14--अनुच्छेद 47 मे
पोषाहार जीवन स्तर एवं स्वास्थ जीवन का समान अधिकार

15--अनुच्छे 5 मे
भारत के सभी समुदाय के लीग ऐसी प्राचीन प्रथाओं का खण्डन करे, समाप्त करे जो नारियों के सम्मान के विरूद्ध हो।

16 अनुच्छेद 32 मे
पप्रस्तावित 84 वे संविधान संशोधन मे महिलाओ को आरक्षण की व्यवस्था।

महिला के अधिकार 
(डोमेस्टिक वाइलेंस एक्ट 2005)
■ अधिनियम घरेलू हिंसा ---

1-- शादी शुदा या अविवाहित महिला अपने साथ हो रहे घरेलू हिंसा या अनबन के चलते अगर घर से बर्खास्त किये जा रहे है तो आप इसके अन्तर्गत केस दर्ज करा करके उसी घर मे रहने का अधिकार प्राप्त कर सकते है।

2--इस कानून से महिला को यह सहूलियत मिलती है कि वह उसी घर मे बिना किसी भयभीत के रह सकती है , और उस घर मे रह रहे अन्य सदस्यों को उससे बात तक करने की इजाजत नही दी जाती है।

3--- यदी किसी महिला को भयभीत करके ,डरा धमकाके, या उसे बंदी बना करके उसके पैसे ,शेयर्स, बैंक अकाउंट का स्तेमाल करते है तो वह पीडि़त महिला उन पर केस दर्ज करा करके अपना अधिकार प्राप्त कर सकती है।

4-- घर मे हो रहे किसी भी प्रकार की घरेलू हिंसा या प्रताड़ना को चलते न्यायालय मे गुहार लगा सकती है और इसके लिए उसे वकील को लेकर जाना भी
जरूरी नही है वह सीधे अपनी समस्या का समाधान वकील प्रोटेक्शन ऑफिसर को साथ ले जाकरके या चाहे तो अपने आप ही अपना पक्ष रख सकती है।

5-- महिला अगर विवाहित होते हुए भी विवाहित नही रह पाती है तो वह अपने तथा अपने बच्चे की  कस्टडी एवं मानसिक, शारीरिक मुआवजा मांगने का भी उसे अधिकार है।

6-- महिलाओ के लिए भारतीय डंड संहिता 498 के तहत किसी भी शादीशुदा महिला को किसी भी प्रकार से प्रताड़ित करना कानूनी अपराध है। अब महिला को सहूलियत दी गयी है कि वह दोषी के खिलाफ केस दर्ज करा करके  उसे सजा दिलाने की अवधि आजीवन कर दी गयी है।

7-- भारतीय कानून के चलते गर्भपात कराना कानूनी अपराध है। लेकिन अगर गर्भ धारण के चलते महिला की जान को खतरा है तो वह गर्भ पात करा सकती है उसके लिए कानून भी उसके साथ है। और अगर कोई जबरन महिला को गर्भपात कराने के लिए प्रेरित करता है तो वह याचिका दायर कर सकती है।

8-- अगर किसी कारण वश पती की मृत्यु हो जाती है तो वह अपने बच्चो का संरक्षण करना सकती है।

9--भारतीय विवाह अधिनियम  1995 के तहत निम्न परिस्थितियो मे पती के खिलाफ याचिका दायर कर सकती है।
-पत्नी के होते हुये दूसरी शादी करने पर।
-परिणय सम्बन्धो की संतुष्टि न होने पर।
 -पती के 7 साल गायब रहने पर।
-मानसिक, शारीरिक, भावात्मक दृष्टि से प्रताड़ित करने पर।
-पती को गम्भीर या लाइलाज बिमारी होने पर।
-पती के त्यागे जाने पर उसकी कोई खबर न रखना।

10--अगर पती किसी कारण वश पत्नी से पहले कोर्ट के माध्यम से बच्चो को प्राप्त करले तो पत्नी याचिका दायर कर-करके अपने बच्चो को वापस प्राप्त कर सकती है।

11--सीआर. पी. सी के सेक्शन 125 के अन्तर्गत पत्नी को मेंटेनेंस,  या भरण पोषण के लिए जो भी जरूरत है उसे प्राप्त कर सकती है।

12--लिव इन रिलेशनशिप मे महिला पार्टनर को वही दर्जा प्राप्त है , जो किसी महिला को प्राप्त है। अगर वह चाहे तो केस दर्ज करा करके अपना अधिकार प्राप्त कर सकती है।

■ महिला को तलाक लेने का अधिकार 
Womenright भारतीय समाज मे महिला की भूमिका बहुत ही अहम तथा अग्रणी है वह अपने परिवार की रक्षा और उत्थान के लिए भरसक प्रयास करती रहती है। लेकिन जब उसके सम्मान को ठेस पहुंचती  है तो वह उस परिवार से मुक्ती चाहती है यानी वह अपने बल पर ही अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकती है ऐसे मे अगर बात तलाक तक पहुंच जाए तो उसके लिए जरूरी नही है कि वह ऐसे बन्धन मे बंधी रहे जिस रिश्ते की कोई अहमियत न हो। उसके लिए यही सही होगा कि उस रिश्ते से आजाद हो जाए।

""एक महिला निम्न परिस्थितियो मे अपने पती से तलाक ले सकती है। ""

●अगर कोई भी पुरूष बेवजह 2 साल तक छोड देता है तो उस पत्नी को पूरा अधिकार है कि वह अपने पती को तलाक दे सकती है।

● महिला को यह भी अधिकार है कि अगर तलाक के बाद उसकी शादी नही हो पाती है तो उसके गुजर बसर के लिए उसके पती को ही पैसे देने होंगे यह प्रक्रिया आजीवन चलेगी।

● अगर कोई भी शादी के बाद पत्नी के धर्म परिवर्तन की बात करता है तो पत्नी को पूर्ण अधिकार है कि वह पती से तलाक ले सकती है।

●अगर शादी के बाद पती को कोई गम्भीर बिमारी या कोड ,कैसर ,  लाइलाज बिमारी लग जाती है तो उसे पत्नि कोई बात अधिकार है कि वह उससे तलाक ले सकती है।

●अगर कोई पती पत्नी को शारीरिक मानसिक तथा भावात्मक पक्ष से परेशान करती है और उसका साथ रहना असम्भव हो जाए तो ऐसे रिश्ते का कोई मतलब नही है उससे छुटकारा पाने ही ठीक है।

नारी की  व्यथा 
नारी हमारे समाज का प्रतिनिधित्व करती है। और उसी से ही यह संसार टिका हुआ है। हमारे समाज मे पारम्परिक तौर पर महिलाओ को काफी उच्च स्थान प्राप्त नही हो पाया है ।हमारा समाज अभी भी रूढ़िवादी भावना से उपर नही हुआ है। महान परम्पराओं और मूल्यों के इस देश मे नारी का सदैव ही उच्च स्थान प्राप्त रहा है। परन्तु हम दूसरों को इंगित कर रहे है। कि वह नारी को स्थान नही देता है तो हम क्यों अपने ऋषि-मुनियों की बातों पर  अडिग रहे। हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने इसकी उपादेयता का मूल्यांकन करने के लिए नारी को  समाज के  प्रगति का आधार माना है। हमारी संस्कृति यह घोषित करती है कि जहां नारी कोे पूजा जाते है वहां देवता निवास करते है। लेकिन हमने ही इसका सही भाव स्थापित नही कर पाया।

मैथिली शरण गुप्त जी ने कहा है--- 
"" अबला जीवन ,हाय तुम्हारी यही कहानी,
        आंचल मे दूध और आंखो मे पानी" ।

अर्थात --नारी जहां समाज कोे जीवन देती है वही वह अपने अन्दर न जाने कितने ही दर्द छुपाए रहती है।  वह कसी से भी अपने दुख का प्रत्यर्पण न हो करती अपने मे ही उसे निबटाने की कोशिश करती रहती है। उसका हमेशा एक ही धेय रहता है। कि कभी उससे ऐसा कृत्य न हो कि उसके आंचल  पर कुछ दाग लगे और फिर उसे किसी विकट समस्या का सामना करना पडे। उसे यह मालूम है कि जब सतयुग हो या द्वापर युग हो जब वहां नारी को केवल कर्म स्वरूपा का दर्जा प्राप्त था तो ये तो कलियुग है यहां तो लोग उसे केवल कामवासना की तृप्ति  का  ही साधन मानते है।

नारी को मां के रूप मे व्याख्यायित करना तो सहज है। क्योंकि नारी मां के रूप मे ईश्वर से भी ऊपर दिखाई देती है शायद ही कोई अभागा मानव ही होगा जिसे मां की याद आने पर भी उसका हृदय श्रद्धा प्रेम करुणा से न भर आया हो उसकी ममता अमूल्य है उसके प्रेम का कोई कर्ज नहीं लौटा सकता दुनिया के सारे प्रेम  से स्वार्थ से संबंधित हैं  किन्तु  मां को अपवाद के रूप मे ही लिया जाता है।

 नारी की जंग 
नारी का जीवन भी एक जंग ही है। जिस प्रकार से एक सैनिक अपने वतन की रक्षा के लिए हर समय दुश्मनो से लडता रहता है। उसे एक ही चिन्त सताती रहती है कि कब दुश्मन उस पर जानलेवा हमला कर दे इसका कोई अन्दाजा नही है। उसी प्रकार नारी जीवन भी है। कब उसे किसी परीक्षा से होकर गुजरना पडे इसका कोई पता नही है। वह उस जंग के सैनिक की तरह हर समय तैयार रहती है। उसमे न जाने कितनी ही महान शक्ती उसमे निहित है जो इतने संघर्षपूर्ण जीवन के बाद भी उसे शक्ती का स्वरूप माना जाता है। लेकिन फिर भी हम उसे एक अबला और लाचार का नाम देकर पुकारते है। हम अपनी भावनाओं पर खुद ही काबू नही कर पाते है परन्तु वह हर दर्द को सहती हुयी भी दूसरों के दर्द को समझने का प्रयास करती है। नारी चाहे किसी भी देस की क्यों न हो लेकिन उसका वजूद एक ही है कि वह नारी है। और उसे हर मुश्किल राह को आशान बनाना है।

  दर्दों को सहने की छमता
हर सामान्य आदमी थोडे से ही दर्द को सहन नही कर पाता है। वह सोचता है कि दुनिया का सबसे भयानक दर्द का सामना उसे करना पड रहा है। जबकि  ऐसा नही है। कोयला भी दर्द इतना भयानक नही हो सकता या कोई भी आदमी मे इतने भयानक दर्द कोई सहने की छमता ना होगी कि जितनी नारी के अन्दर होती है। क्योकि कहा जाता है कि जब नारी गर्भ धारण करती है तो तब से लेकर और जब वह बच्चे कोई जन्म देती है तब तक उसे अनगिनत दर्दों का सामना करना पडता है। और सबसे भयावह दर्दे तो तो नारी कोई तब होता है जब वह बच्चे को जन्म देती है। कहा जाता है कि उस दर्द की कोई सीमा नही होती है। उस समय नारी को यह आभास होता है की मानों उसकी सभी हड्डियां टूट गयी हो गत्ते लेकिन वंश वृद्धि  उसी से होनी है इसीलिए दूसरों की खुशी के लिए वह उसकी दर्द को सहन कर लेती है। और हम कहते है कि नारी कमजोर होती है। अब आप ही बताइए कि कमजोर कौन है।

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