पाप का प्रायश्चित कैसे करे
पाप क्या है
पाप अपने आप मे वह कुकृत्य है जिससे मनुष्य बुरी से बुरी गती प्रदान करता है। मनुष्य कभी नही सोचता कि जो कर्म वह कर रहा है, वह उसे किस मार्ग पर ले जायेगा। जबकि उसे यह भी मालूम होता है किसी जिस कर्म को वह कर्म रहा है वह सही है या गलत है। या फिर उसकी परवाह करे बगैर उसके अंजाम के बगैर वह बुरे कर्म करता रहता है। उसके मन मे यह बात घर कर रखी है कि कर्मो का फल तो अगले जन्म मे भोगना पडता है। और अगला जन्म किसने देखा है। इस की फिक्र न करते हुए वह कर्म करते रहता है।
गरूड पुराण के अनुसार ---
गरूड पुराण मे कहा गया है कि यमराज और चित्रगुप्त के बिकराल तथा दिव्य स्वरूप को देखकर वह आत्मा भयभीत होने लगते है। और उस जीव से सवाल करते है कि हे जीव तुझे ईश्वर ने जिस प्रयोजन हेतु संसार मे भेजा था , तूने उसके विपरीत ही कार्य किया है। तुझे तनिक मात्र भी संदेह न हुवा कि जो कर्म तू कर रहा है उसका हर एक हिसाब वह ईश्वर रख रहा है। उसके पास कोई भी माफी नही है। वह नेहरू तो ये देखता है कि यह गरीब है या अमीर है। ऊंची जाती का है या नीच जाती का। वह सिर्फ मनुष्य के कर्म देखकर ही उसके साथ वैसा ही सलूक करता है। वह कभी भेदभाव नही करता या कभी अन्याय का कार्य नही करता वह न्याय के सिंहासन पर विराजमान है। फिर भी तू बुरे कर्म करता है।
तब जीव को एहसास होता है कि सच मे मैने अपना जीवन केवल सांसारिक भोगों मे ही व्यतीत किया है। उस परमपिता परमेश्वर का एक भी चिंतन नही किया और ना ही कोई ऐसा कर्म किया कि जिससे वह इस मृत्यु लोक से तर सके।
यमराज किसी भी जीव के साथ अन्याय नही करता और पहले उससे उसके कर्मो की गिनती कराता है अगर कर्म सही हुए तो स्वर्ग का द्वार दिखा देता है और अगर कर्मो मे कुटिलता हो या पाप की अग्रसर हो तो उसे भारी यातनाएं देता है जिसे देखकर उस जीव की रूह कांपने लगती है। और वह बार-बार पश्चाताप करता है कि जिस परिवार या सगे सम्बन्धियों के लिए उसने वो कर्म किये वे तो मजे मे है लेकिन मै यहां बहुत कष्ट झेल रहा हूं। तब उसे एहसास होता है कि अगर थोडे भी अच्छे कर्म किये होते तो कष्ट न झेलना पड़ता ।
यह भी सत्य कहा गया है कि मनुष्य जब भी बुरे कर्म करता है तो उसे उस समय बहुत आनन्द का अनुभव होता है लेकिन समय की गती कोई नही जान सकता वह जब आता है तो उसकी दशा ही बदलकर रख देता है और तब उसे एहसास होता है कि वह गलत था। अगर वह पहले ही सम्भल जाता तो उसके सभी जीवन खुसमय व्यतीत होते और वह परम धाम को प्राप्त हो जाता।
यमराज के सवाल जीव से--
इन सभी यातनाएं से पहले यमराज उस जीव से सवाल करता है जिसका उसके पास कोई जवाब नही होता।
1-- हे पापी दुराचारी जीव तुम अहंकार वश विवेकरहित हो तुमने पाप रूप धन का संचय किया है।
2--- पापी पुरूषों की संगति करके तू पाप मे ही लीन रहा। ऐसे दुख देने वाले कर्म तुमने यह किसके लिए किए।
3-- तुमने जितने परश्नचित होकर पाप ग्रह का भोग किया है अब उसके दण्ड के लिये क्यों रोता है।
4-- हे दुष्ट जीव ऐसे नीच कर्म क्यों किए क्या संसार मे कोई उपयुक्त वस्तु न मिल सकी।
5--- तुम पाप कर्म मे ही लगे रहे तुमने कभी भी कोई दान पुण्य नही किया।
6- तुमने कभी किसी लाचार की असहाय की तथा दरिद्र की मद्य नही की बल्कि अपने ही सुख को देखते रहे।
7--- तुमने कभी किसी साधु संत या अतिथि का सत्कार नहि किया बस अपने मे ही मगन रहे।
8--तुमने गृहस्थ धर्म मे रहकर भी कभी तीर्थ यात्रा नही की।
ऐसी कई यातनाए जब वह जीव सुनता है तो वह बार-बार अपने कर्मों की माफी मांगता है पर उसे माफ नही किया जाता वह कहता है की अब के जन्म मे मै सिर्फ प्रभू की ही भक्ति करूगा परन्तु उसे माफ नही किया जाता। क्योंकि यमराज को पता है कि संसार एक ऐसा मार्ग है जहां जाकर मनुष्य सबकुछ भूल जाता है और पाप कर्म करते रहता है।
पुराणों के अनुसार वर्जित है ए काम----
(1)--इन तिथियों पर न करे ये काम--
हमारे शास्त्रों के अनुसार कुछ ऐसी तिथियां निश्चित है जिसका बहुत महत्व है। इन तिथियों पर भूल से भी ये काम न करे।
पूर्णिमा, अमावस्या, चतुर्दशी, एकादशी, और अष्टमी तिथी को स्त्री के साथ कामवासना तथा तेल मालिश और मांसाहारी भोजन नही करना चाहिए, अन्यथा आपका मन वचन कर्म तीनो प्रभावित हो सकता है।
(2)--इन चीजों को कभी भी जमीन पर न रखें---
दीपक , शालिग्राम, शिवलिंग, मणि ,और देवी-देवताओं की मूर्तियां , सोना तथा शंख इनको बिना साफ कपडा बिछाए नीचे रखने से सत्य कर्म भी पाप मे बदल जाते है, और दुष्प्रभाव घर पर पडता है।
(3)--दिन के समय कभी भी न करे कामवासना---
जो भी लोग ऐसा करते है उन्हे सचेत होनी की आवश्यकता है। क्योंकि दिन तथा शुबह शाम के समय कामवासना यानी सेक्स करना शास्त्रों मे भी वर्जित माना गया है। कारण यह है कि हमारे बाह्य मंडल मे दिन के समय कयी सारी शक्तियां विचरण करती है। तथा सूर्य भगवान की तपिश का भी दुष्प्रभाव पडता है। इससे मनुष्य की पौरूस्ता मे भी असर आता है।तथा घर मे लक्ष्मी का समागम नही हो पाता है और घर कयी परेशानियों से घिरा रहता है।
(4)--- पुरूषों के ध्यान रखने योग्य बातें---
पुरूषों को हमेशा यह बात ध्यान रखना चाहिए कि पराई स्त्रियों पर बुरी नजर न डाले तथा कभी मल मूत्र को भी नही देखना चाहिए शास्त्रों के अनुसार ए कार्य विनाश की ओर ले जाता है और मन भी नकारात्मक भाव की ओर अधिक जाता है।
(5)--स्त्रियों को ध्यान रखने योग्य बातें--
स्त्रियों को हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि कभी भी अपने पती के प्रति बुरी भावना न रखे तथा पती को डांटे नही सताए नही तथा जो आज्ञा का पालन नही करती है। शास्त्रों के अनुसार उसके सभी पुण्य कर्म पाप मे बदल जाते है तथा जो अपने पती को कष्ट पहुचाते है उन्हे अगले जन्म मे कौवे का जन्म लेना पडता है। पती के साथ हिंसा करने से उसे सुवर का जन्म लेना पडता है।
(6)---शुबह उठते करे ये काम---
शुबह उठकर ही सबसे पहले अपने ईष्ट देव का ध्यान करना चाहिए तथा अपने हथेली को देखना चाहिए क्योंकि हथेली मे ही सभी देवता निवास करते है। तथा नहा धोकर साफ वस्त्र धारण करने से विचारों मे शुद्धता तथा घर मे समृद्धि आती है।
(7)इनका अनादर नही करना चाहिए ----
वैसे तो हमेशा ध्यान रखे कि आप से किसी का अनादर न हो परन्तु कुछ विशेष है जिनका हमे भूल कर भी अनादर नही करना चाहिए। जैसे पिता ,माता , पत्नी, पुत्र, पुत्री, पतिव्रता नारी ,श्रेष्ठ पुरूष, गुरू ,अनाथ स्त्री, बहिन, तथा देवी-देवताओं का इनके अपमान करने से धनाढ्य व्यक्ति भी कंगाल बन जाता है तथा कोडी जैसा जीवन व्यतीत करता है।
जानिए तीन शक्तियों का प्रभाव"""
शरीर ईश्वर की एक अद्भुत रचना है जो भी कुछ इस संसार में निहित है वह सभी मनुष्य के अंदर विद्यमान है जितनी भी शक्तियां है वह मनुष्य को कहीं ना कहीं श्रेष्ठ बनाने में अहम योगदान देती है उसी प्रकार से मनुष्य को एक दिव्य शक्ति प्रदान करने के लिए उसके अंदर तीन शक्तियों का वास है जो मनुष्य महसूस नही कर पाता और उन शक्तियो को बाहरी जगत मे ढूंडता है अपने अन्दर की शक्ति को जगाइये और ध्यान केन्द्रित कीजिये आपका जीवन सफल हो जायेगा । वो तीन शक्तियां इस प्रकार है।
(1) ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश -- जो कि मनुष्य को आध्यात्मिक, मानसिक तथा भावात्मक पक्ष का विकास करती है यह तीनों शक्तियां हमारे अंदर विद्यमान है जो हम महसूस नहीं कर पाते।
(2)-स्वर्ग लोक,पृथ्वी लोक, पाताल -- लोक -ए तीनों शक्तियां मनुष्य के अंदर विद्यमान है जो हमें जड़ चेतन तथा अचेतन अवस्था को जागृत करने के लिए प्रेरित करती हैं ।
(3)- अलौकिक,अलौकिक और पारलौकिक ये हमारे अंदर विद्यमान हैं जो हमारे अंदर छिपे हुए ज्ञान को विस्तृत करके मनुष्य को अंतरिक्ष की ऊंचाइयों तक पहुंचा देता है।
(4)- माता, पिता और गुरु- ये हमारे अंदर विद्यमान है जो इस संसार में एक आशीर्वाद के रूप में समस्त कर्मों को श्रेष्ठ बनाने का आशीर्वाद प्रदान करती है ।
(5)- जीवन, मृत्यु,अमृत्यु- ये हमे जीने की कला सिखाता है और हर चुनौतियां को पार करने की शक्ति हमारे अन्दर निहित करता है ।
(6)-गंगा ,जमुना ,सरस्वती --- ये मनुष्य को परिश्रम करने के लिए प्रेरणा देती है कि सतत गतिशील रहना है परहित के लिए तत्परता रहना है।
(7)- सत्य,अहिंसा,झूठ - ये हमे ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरणा देती है कि हम कभी भी गलत कार्य करें जिससे हम इस संसार में श्रेष्ठ कर्मो से वंचित रहे ।
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पाप क्या है
पाप अपने आप मे वह कुकृत्य है जिससे मनुष्य बुरी से बुरी गती प्रदान करता है। मनुष्य कभी नही सोचता कि जो कर्म वह कर रहा है, वह उसे किस मार्ग पर ले जायेगा। जबकि उसे यह भी मालूम होता है किसी जिस कर्म को वह कर्म रहा है वह सही है या गलत है। या फिर उसकी परवाह करे बगैर उसके अंजाम के बगैर वह बुरे कर्म करता रहता है। उसके मन मे यह बात घर कर रखी है कि कर्मो का फल तो अगले जन्म मे भोगना पडता है। और अगला जन्म किसने देखा है। इस की फिक्र न करते हुए वह कर्म करते रहता है।
गरूड पुराण के अनुसार ---
गरूड पुराण मे कहा गया है कि यमराज और चित्रगुप्त के बिकराल तथा दिव्य स्वरूप को देखकर वह आत्मा भयभीत होने लगते है। और उस जीव से सवाल करते है कि हे जीव तुझे ईश्वर ने जिस प्रयोजन हेतु संसार मे भेजा था , तूने उसके विपरीत ही कार्य किया है। तुझे तनिक मात्र भी संदेह न हुवा कि जो कर्म तू कर रहा है उसका हर एक हिसाब वह ईश्वर रख रहा है। उसके पास कोई भी माफी नही है। वह नेहरू तो ये देखता है कि यह गरीब है या अमीर है। ऊंची जाती का है या नीच जाती का। वह सिर्फ मनुष्य के कर्म देखकर ही उसके साथ वैसा ही सलूक करता है। वह कभी भेदभाव नही करता या कभी अन्याय का कार्य नही करता वह न्याय के सिंहासन पर विराजमान है। फिर भी तू बुरे कर्म करता है।
तब जीव को एहसास होता है कि सच मे मैने अपना जीवन केवल सांसारिक भोगों मे ही व्यतीत किया है। उस परमपिता परमेश्वर का एक भी चिंतन नही किया और ना ही कोई ऐसा कर्म किया कि जिससे वह इस मृत्यु लोक से तर सके।
यमराज किसी भी जीव के साथ अन्याय नही करता और पहले उससे उसके कर्मो की गिनती कराता है अगर कर्म सही हुए तो स्वर्ग का द्वार दिखा देता है और अगर कर्मो मे कुटिलता हो या पाप की अग्रसर हो तो उसे भारी यातनाएं देता है जिसे देखकर उस जीव की रूह कांपने लगती है। और वह बार-बार पश्चाताप करता है कि जिस परिवार या सगे सम्बन्धियों के लिए उसने वो कर्म किये वे तो मजे मे है लेकिन मै यहां बहुत कष्ट झेल रहा हूं। तब उसे एहसास होता है कि अगर थोडे भी अच्छे कर्म किये होते तो कष्ट न झेलना पड़ता ।
यह भी सत्य कहा गया है कि मनुष्य जब भी बुरे कर्म करता है तो उसे उस समय बहुत आनन्द का अनुभव होता है लेकिन समय की गती कोई नही जान सकता वह जब आता है तो उसकी दशा ही बदलकर रख देता है और तब उसे एहसास होता है कि वह गलत था। अगर वह पहले ही सम्भल जाता तो उसके सभी जीवन खुसमय व्यतीत होते और वह परम धाम को प्राप्त हो जाता।
यमराज के सवाल जीव से--
इन सभी यातनाएं से पहले यमराज उस जीव से सवाल करता है जिसका उसके पास कोई जवाब नही होता।
1-- हे पापी दुराचारी जीव तुम अहंकार वश विवेकरहित हो तुमने पाप रूप धन का संचय किया है।
2--- पापी पुरूषों की संगति करके तू पाप मे ही लीन रहा। ऐसे दुख देने वाले कर्म तुमने यह किसके लिए किए।
3-- तुमने जितने परश्नचित होकर पाप ग्रह का भोग किया है अब उसके दण्ड के लिये क्यों रोता है।
4-- हे दुष्ट जीव ऐसे नीच कर्म क्यों किए क्या संसार मे कोई उपयुक्त वस्तु न मिल सकी।
5--- तुम पाप कर्म मे ही लगे रहे तुमने कभी भी कोई दान पुण्य नही किया।
6- तुमने कभी किसी लाचार की असहाय की तथा दरिद्र की मद्य नही की बल्कि अपने ही सुख को देखते रहे।
7--- तुमने कभी किसी साधु संत या अतिथि का सत्कार नहि किया बस अपने मे ही मगन रहे।
8--तुमने गृहस्थ धर्म मे रहकर भी कभी तीर्थ यात्रा नही की।
ऐसी कई यातनाए जब वह जीव सुनता है तो वह बार-बार अपने कर्मों की माफी मांगता है पर उसे माफ नही किया जाता वह कहता है की अब के जन्म मे मै सिर्फ प्रभू की ही भक्ति करूगा परन्तु उसे माफ नही किया जाता। क्योंकि यमराज को पता है कि संसार एक ऐसा मार्ग है जहां जाकर मनुष्य सबकुछ भूल जाता है और पाप कर्म करते रहता है।
पुराणों के अनुसार वर्जित है ए काम----
(1)--इन तिथियों पर न करे ये काम--
हमारे शास्त्रों के अनुसार कुछ ऐसी तिथियां निश्चित है जिसका बहुत महत्व है। इन तिथियों पर भूल से भी ये काम न करे।
पूर्णिमा, अमावस्या, चतुर्दशी, एकादशी, और अष्टमी तिथी को स्त्री के साथ कामवासना तथा तेल मालिश और मांसाहारी भोजन नही करना चाहिए, अन्यथा आपका मन वचन कर्म तीनो प्रभावित हो सकता है।
(2)--इन चीजों को कभी भी जमीन पर न रखें---
दीपक , शालिग्राम, शिवलिंग, मणि ,और देवी-देवताओं की मूर्तियां , सोना तथा शंख इनको बिना साफ कपडा बिछाए नीचे रखने से सत्य कर्म भी पाप मे बदल जाते है, और दुष्प्रभाव घर पर पडता है।
(3)--दिन के समय कभी भी न करे कामवासना---
जो भी लोग ऐसा करते है उन्हे सचेत होनी की आवश्यकता है। क्योंकि दिन तथा शुबह शाम के समय कामवासना यानी सेक्स करना शास्त्रों मे भी वर्जित माना गया है। कारण यह है कि हमारे बाह्य मंडल मे दिन के समय कयी सारी शक्तियां विचरण करती है। तथा सूर्य भगवान की तपिश का भी दुष्प्रभाव पडता है। इससे मनुष्य की पौरूस्ता मे भी असर आता है।तथा घर मे लक्ष्मी का समागम नही हो पाता है और घर कयी परेशानियों से घिरा रहता है।
(4)--- पुरूषों के ध्यान रखने योग्य बातें---
पुरूषों को हमेशा यह बात ध्यान रखना चाहिए कि पराई स्त्रियों पर बुरी नजर न डाले तथा कभी मल मूत्र को भी नही देखना चाहिए शास्त्रों के अनुसार ए कार्य विनाश की ओर ले जाता है और मन भी नकारात्मक भाव की ओर अधिक जाता है।
(5)--स्त्रियों को ध्यान रखने योग्य बातें--
स्त्रियों को हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि कभी भी अपने पती के प्रति बुरी भावना न रखे तथा पती को डांटे नही सताए नही तथा जो आज्ञा का पालन नही करती है। शास्त्रों के अनुसार उसके सभी पुण्य कर्म पाप मे बदल जाते है तथा जो अपने पती को कष्ट पहुचाते है उन्हे अगले जन्म मे कौवे का जन्म लेना पडता है। पती के साथ हिंसा करने से उसे सुवर का जन्म लेना पडता है।
(6)---शुबह उठते करे ये काम---
शुबह उठकर ही सबसे पहले अपने ईष्ट देव का ध्यान करना चाहिए तथा अपने हथेली को देखना चाहिए क्योंकि हथेली मे ही सभी देवता निवास करते है। तथा नहा धोकर साफ वस्त्र धारण करने से विचारों मे शुद्धता तथा घर मे समृद्धि आती है।
(7)इनका अनादर नही करना चाहिए ----
वैसे तो हमेशा ध्यान रखे कि आप से किसी का अनादर न हो परन्तु कुछ विशेष है जिनका हमे भूल कर भी अनादर नही करना चाहिए। जैसे पिता ,माता , पत्नी, पुत्र, पुत्री, पतिव्रता नारी ,श्रेष्ठ पुरूष, गुरू ,अनाथ स्त्री, बहिन, तथा देवी-देवताओं का इनके अपमान करने से धनाढ्य व्यक्ति भी कंगाल बन जाता है तथा कोडी जैसा जीवन व्यतीत करता है।
जानिए तीन शक्तियों का प्रभाव"""
शरीर ईश्वर की एक अद्भुत रचना है जो भी कुछ इस संसार में निहित है वह सभी मनुष्य के अंदर विद्यमान है जितनी भी शक्तियां है वह मनुष्य को कहीं ना कहीं श्रेष्ठ बनाने में अहम योगदान देती है उसी प्रकार से मनुष्य को एक दिव्य शक्ति प्रदान करने के लिए उसके अंदर तीन शक्तियों का वास है जो मनुष्य महसूस नही कर पाता और उन शक्तियो को बाहरी जगत मे ढूंडता है अपने अन्दर की शक्ति को जगाइये और ध्यान केन्द्रित कीजिये आपका जीवन सफल हो जायेगा । वो तीन शक्तियां इस प्रकार है।
(1) ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश -- जो कि मनुष्य को आध्यात्मिक, मानसिक तथा भावात्मक पक्ष का विकास करती है यह तीनों शक्तियां हमारे अंदर विद्यमान है जो हम महसूस नहीं कर पाते।
(2)-स्वर्ग लोक,पृथ्वी लोक, पाताल -- लोक -ए तीनों शक्तियां मनुष्य के अंदर विद्यमान है जो हमें जड़ चेतन तथा अचेतन अवस्था को जागृत करने के लिए प्रेरित करती हैं ।
(3)- अलौकिक,अलौकिक और पारलौकिक ये हमारे अंदर विद्यमान हैं जो हमारे अंदर छिपे हुए ज्ञान को विस्तृत करके मनुष्य को अंतरिक्ष की ऊंचाइयों तक पहुंचा देता है।
(4)- माता, पिता और गुरु- ये हमारे अंदर विद्यमान है जो इस संसार में एक आशीर्वाद के रूप में समस्त कर्मों को श्रेष्ठ बनाने का आशीर्वाद प्रदान करती है ।
(5)- जीवन, मृत्यु,अमृत्यु- ये हमे जीने की कला सिखाता है और हर चुनौतियां को पार करने की शक्ति हमारे अन्दर निहित करता है ।
(6)-गंगा ,जमुना ,सरस्वती --- ये मनुष्य को परिश्रम करने के लिए प्रेरणा देती है कि सतत गतिशील रहना है परहित के लिए तत्परता रहना है।
(7)- सत्य,अहिंसा,झूठ - ये हमे ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरणा देती है कि हम कभी भी गलत कार्य करें जिससे हम इस संसार में श्रेष्ठ कर्मो से वंचित रहे ।
Tag:: karmon ka fal/ karm ki pradhanta/मृत्यु के बाद क्या होता है?/ जीवन सफल कैसे करे/कौन सा कर्म श्रेष्ठ है/ सफल जीवन का सूत्र
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