Sunday 26 May 2019

विनायक दामोदर सावरकर (वीर सावरकर) The motivaitnal speekar

विनायक दामोदर सावरकर (वीर सावरकर)

Vinayak Damodar Savarkar

 (Veer Savarkar)
The motivaitnal speekar 
Veer savirkar
Veer savirkar Quotes 


 Veer savirkar airport 
वीर सावरकर एक ऐसे पुरुष जिसने भारत वर्ष की तकदीर ही बदल दी जिन्होने मानव मात्र को जीने की कला दी और मानव धर्म का प्रतिरूप बनकर सबका हित चाहा। ऐसे महान वीर सावरकर का   (जन्म: २८ मई १८८३ - मृत्यु: २६ फ़रवरी १९६६)  भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। हौसला इतना सशक्त था कि दुश्मन की रूह कांपने लगती थी। और उनकी वीरता तथा साहस ने ही  उन्हें प्रायः स्वातंत्र्यवीर , वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित किया जाता है।

लोग उन्हे अपना सहृदयी मानते थे और भरोसा करते थे कि जबतक ऐसे महान मातृभूमि के सपूत है तबतक कोई भी इसे भंग नही कर सकता और कोई भी इसे ललकार नही सकता। हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा (हिन्दुत्व) को विकसित करने का बहुत बडा श्रेय सावरकर को जाता है। आज अगर हिन्दु की उपमा जीवित है तो इन्ही नायक के बल पर है। क्योंकि इन्होंने  (हिन्दुत्व ) बचाने के उसकी ख्याति बडाने के लिए खूब परीश्रम किया है और लोगों कोई भी जागरूक किया।

सावरकर जी  न केवल स्वाधीनता-संग्राम के एक तेजस्वी सेनानी थे अपितु महान क्रान्तिकारी, चिन्तक, सिद्धहस्त लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता तथा दूरदर्शी राजनेता भी थे। जो     भी कार्य इन्होने किया है उसमे उन्होंने प्रशस्ति प्राप्त की और लोगों के दिलों पर राज किया।    वे एक ऐसे इतिहासकार भी हैं जिन्होंने हिन्दू राष्ट्र की विजय के इतिहास को प्रामाणिक ढँग से लिपिबद्ध किया है। हिन्दु को हिन्दुत्व होने का एहसास कराया। 

हिन्दी जगत के एक महान लेखक की भूमिका का निर्वाह करते हुए इन्होंने कयी ऐसे साहित्य, इतिहास लिखे है जो हिन्दी भाषा के लिए गौरव पूर्ण विषय है। उन्होंने १८५७ के प्रथम स्वातंत्र्य समर का सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिखकर ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया था। लोग इन्हे जानने लगे और इनकी बातों का अनुसरण करने लगे। एक ऐसे गुरू के रूप मे एक उभरे है जो अन्धकार की तमिस को दूर कर प्रकाश की लौ जला देते है।

वे एक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार थे। इन्होने समाज और खासकर हिन्दु मे आगे बढ़ने कि  ललक पैदा की। उन्हे अपने रंग मंचों के माध्यम से बताया की हमारी संस्कृति और सभ्यता की पूरे विश्व मे पहचान है। और लोगों को जागरूक भी किया कि हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से कुछ नही होता लोग तुम्हे कमजोर करने पे लगे हुए है।

  उन्होंने परिवर्तित हिंदुओं के हिंदू धर्म को वापस लौटाने हेतु सतत प्रयास किये एवं आंदोलन चलाये। लोगो मे आश बांधी और खुद ही सावरकर ने भारत के एक सार के रूप में एक सामूहिक "हिंदू" पहचान बनाने के लिए हिंदुत्व का शब्द गढ़ा। उनके राजनीतिक दर्शन में उपयोगितावाद, तर्कवाद और सकारात्मकवाद, मानवतावाद और सार्वभौमिकता, व्यावहारिकता और यथार्थवाद के तत्व थे।  veer savirkar muvie  सामने वाला दुश्मन भी उनकी बातों को टाल नही सकता था उनके पास भी उनकी बात का कोई जवाब नही होता था।  सावरकर एक नास्तिक और एक कट्टर तर्कसंगत व्यक्ति थे जो सभी धर्मों में रूढ़िवादी विश्वासों का विरोध करते थे। उनका मानना था कि हम अपने पुराने रिवाजों के तले नही दब सकते। अगर विरोधी से विजयी पानी है तो नयी सोच का निर्माण करना होगा तभी जाकर हम अपना वर्चस्व स्थापित कर सकते है।



सावरकर का जीवन चरित्र आरंभिक जीवन

विनायक सावरकर का जन्म महाराष्ट्र यानी बम्बई प्रान्त में नासिक के निकट भागुर गाँव में हुआ था। इनकी माता जी का नाम राधाबाई तथा पिता जी का नाम दामोदर पन्त सावरकर था। इनके दो भाई गणेश (बाबाराव) व नारायण दामोदर सावरकर तथा एक बहन नैनाबाई थीं। Veer savirkar Quotes   ये बचपन से ही साहसी तथा वीर थे। और देश प्रेम की भावना इन मे पहले से ही जागृत थी। वे केवल नौ वर्ष के थे तभी हैजे की महामारी में उनकी माता जी का देहान्त हो गया। इनके जीवन मे मानो दुखों का पहाड टूट पड़ा।

 इसके सात वर्ष बाद सन् १८९९ में प्लेग की महामारी में उनके पिता जी भी स्वर्ग सिधार गये। अब तो माता पिता दोनों का सहारा सर से उड चुका था। इसके बाद विनायक के बड़े भाई गणेश ने परिवार के पालन-पोषण का कार्य सँभाला। दुःख और कठिनाई की इस घड़ी में गणेश के व्यक्तित्व का विनायक पर गहरा प्रभाव पड़ा। वह अपने भाई का अनुसरण करने लगा उन्ही को अपना आदर्श मानते थे।  विनायक ने शिवाजी हाईस्कूल नासिक से १९०१ में मैट्रिक की परीक्षा पास की। बचपन से ही वे जिज्ञासु प्रवृति के थे और उन्ही  दिनों उन्होंने कुछ कविताएँ भी लिखी थीं। क्योकि परिस्थिति मनुष्य को सब कुछ सिखा जाती है। उनके विचार बदलने लगे और सरस्वती उनके मष्तिष्क मे विराजमान हो गयी। आर्थिक संकट के बावजूद बाबाराव ने विनायक की उच्च शिक्षा की इच्छा का समर्थन किया। इस अवधि में विनायक ने स्थानीय नवयुवकों को संगठित करके मित्र मेलों का आयोजन किया। शीघ्र ही इन नवयुवकों में राष्ट्रीयता की भावना के साथ क्रान्ति की ज्वाला जाग उठी।उनके भाई ने उन्हे कभी  पिता की कमी न होने दी और उसे एक सफल नागरिक बनाने मे हि लगे रहे।

सन् १९०१में रामचन्द्र त्रयम्बक चिपलूणकर की पुत्री यमुनाबाई के साथ उनका विवाह हुआ। अब सायद उनके पास जिस प्रेम की कमी थी वह पूरी हो गयी। फिर भी वे शादी के बाद रूके नही उन्होने आगे पढना चाहा। उनकी प्रतिभा को देखते हुए  उनके ससुर जी ने उनकी विश्वविद्यालय की शिक्षा का भार उठाया। १९०२ में मैट्रिक की पढाई पूरी करके उन्होने पुणे के फर्ग्युसन कालेज से बी०ए० किया।
सत्य कहा है किसी ने---
(जब किसी के अन्दर सीखने की या कुछ कर गुजरने की ललक होती है तो उसे कोई भी प्रस्थिती रोक नही सकती।कुछ हासिल करने के लिए जरूरी नही कि आपके पास धन दौलत की कमी नही है बल्की आत्मविश्वास अगर भरपूर है तो सबकुछ पीछे छूट जाता है।

सावरकर जी के विचार(Veer savirkar Quotes )

वीर सावरकर एक ऐसे विचारक थे जो सभी के प्रेरणा प्रदान रहे है। जिन्होने माना है कि हम अपने लिए न जिए बल्कि उस समाज के लिए जिए जिस समाज ने हमे पहचान दी है। ये 20वीं शताब्दी के सबसे बड़े हिन्दूवादी रहे। विनायक दामोदर सावरकर को बचपन से ही हिंदू शब्द से बेहद लगाव था।  और हिन्दु की उपमा मे कमी आते दिखती तो वे उसकी उपयोगिता को सिद्ध करने के लिए उतर पडे। वीर सावरकर ने जीवन भर हिंदू हिन्दी और हिंदुस्तान के लिए ही काम किया।

उनका मानना था कि जो अपनी भाषा उसकी जीवता को बचाए रखने के लिए प्रयत्न नही करता वास्तव मे नेहरू तो उसका कोई धर्म है और न ही उसका कोई वजूद है। वीर सावरकर को 6 बार अखिल भारत हिंदू महासभा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। 1937 में उन्हें हिंदू महासभा का अध्यक्ष चुना गया, जिसके बाद 1938 में हिंदू महासभा को राजनीतिक दल घोषित कर दिया गया। और हिन्दुओं को एक नयी पहचान दिलाई।

हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय सावरकर को जाता है। उनकी इस विचारधारा के कारण आजादी के बाद की सरकारों ने उन्हें वह महत्त्व नहीं दिया जिसके वे वास्तविक हकदार थे। सायद इस देश की यही परम्परा रही है कि जो अपने को न्यौछावर कर गये वे डूबता हुआ सूरज बन कर रह गये। लेकिन आज जरूरत है कि वीर सावरकर क संघर्षमय जीवन को नयी पीढी से रूबरू कराई जाए।

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