Thursday 9 May 2019

विवाह या व्यापार

    विवाह या व्यापार 
क्या शादी व्यापार बन कर रह गया है 

हमारे देश या समाज मे विवाह को अनिवार्य तथा पवित्र तथा आस्था व अटूट बन्धन माना जाता है। इसमे हमारे कयी सारी भावनाओं का समावेश निहित है। और यह हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा भी है क्योंकि हर मनुष्य को इससे रूबरू होना पडता है। विवाह एक ऐसा बन्धन है जिसमे मनुष्य की आशाऐ उम्मीदे तथा भरोसा छुपा हुआ है। मनुष्य इस दहलीज पर पहुंचते ही कयी सारे सपने बुनने लगता है। और कहा जाता है कि विवाह यानी जोड़ियों तो स्वर्ग से बनकर आती है। लेकिन कुछ लोग इस रिस्ते को इतना शर्मसार कर देते है कि मानव जैसे श्रेष्ठ प्राणी के पास उसका कोई जवाब नही होता।

आज क्या कारण है जिससे चलते हुये हमे इन मान्यताओं कोई झुठलाने पर मजबूर होना पडा है?   लोग इस सिर्फ व्यापार कार नाम दे रहे है। शादी सिर्फ एक व्यापारी की भूमिका  मे खडा हो गया है। रिस्ता बाद मे तय होता है लेकिन डिमांड और इच्छापूर्ति पहले ही सामने रखी जाती है। और हम भी इसे अपना भाग्य और प्रथा मानकर  इन अपवादों का सहयोग कर रहे है। बाजार मे उपभोग की वस्तुवें  उतनी नही बिकती कि जितना यह शादी का कारोबार बिकता है। कयी घर बर्बाद होता गये है कयी लोगो ने अपनी जमा पूंजी सब दाव पर लगा दी और कयी लोगों ने अपना फर्ज को पूरा करके अपना जीवन ही दाव पर लगा दिया। और कारण यही था कि हम मजबूर है ? हम लाचार है? हम बेबस है? और भगवान की भी यही मर्जी है। कोई उसका विरोध नही करता उसे डर है कि कहीं ऐसा न हो कि रिसता हाथ से चला जाये। और इन सभी मुसीबतों कार्रवाई एक ही कारण है 
दहेज प्रथा

ए सवाल मै हर मानव जाती से करता हू कि अगर वह सभी प्राणियों मे श्रेष्ठ है तो अपनी श्रेष्ठता क्यो स्वीकार नही कर लेता ऐसी तुच्छ और अपमान जनित बाते वह क्यो करता है। जो कि हमारे धर्म मे सर्वथा गलत माना गया है। आखिर क्यों यह कलंक मानव के दिमाग तथा हृदय मे घर कर रखा है कि मै लडके वाला हू मेरी श्रेष्ठता  अधिक है। क्या उसे जन्म देने वाली मां को भी कभी ए ख्याल नही आया कि वह भी कभी किसी लाचार पिता की बेटी रही है। लेकिन वह भी क्या करे आखिर वह भी इसी पहलू से होकर गुजरी है। वह भी उसी घुन की तरह है जो गेंहू के साथ पिस जाती है। उसकी मानसिकता भी वैसे ही हो रखी है। वह भी प्रचलन को नही बदलना चाहती जबकी उसे पता है किसी मै जो भी कर रही हू वह सब गलत है।

कहा  जाता है कि यह प्रथा पहले साहित्य के अनुसार सतयुग,त्रेतायुग, द्वापर युग मे विद्यमान थी। जो केवल सामंतों, राजाओं जमींदारों तक ही सीमित थी। इसका मतलब यह नही कि यह प्रथा सभी के लिए चलाई गयी थी। या सभी उसका अनुसरण करेंगे। पहले इसे केवल एक प्रथा के रूप मे या जीवन चर्या को षुधारने के लिए अपनाया जाता था। जिसमे  नवदंपति को नयी गृहस्थ जीवन चलाने के लिए जरूरत का सामान दान के रूप मे दिया जाता था। लेकिन आज हर कोई उस प्रथा को अपना रहा है। और जब जवाब मांगा जाता है तो एक ही उत्तर होता है कि शास्त्रों मे ऐसा कहा गया है। उसके अर्थ का ही अनर्थ कर दिया गया है। और उसे बेखौफ अपनाते जा रहे है।

आज यह दशा इस तरह हमारे मष्तिष्क मे घर कर चुकी है,यह हमारे विचारों को इतना धूमिल कर चुकी है कि सभी भोग्या वस्तुओं से सम्पन्न व्यक्ति भी उसी भूमिका का निर्वाह कर रहा है। छोटा है या बडा। ज्ञानी है या अज्ञानी। अमीर है चाहे गरीब सभी उसी लीक पर अपने आपको तोल रहे है। ये जानते हुये भी कि यह गलत है लेकिन फिर भी अपने मन को शान्तुना देकर कि ऐसा ही चलता है,चले जाने रहे है।

अब प्रश्न यह उठता है कि जब सभी इस कडी मे है तो आखिर दोशी कौन है। या दोशी किसे सिद्ध किया ज्ए।  लेकिन यह भी सत्य है किसी इसका प्रमुख दोशी खुद एक स्त्री ही है। क्योकि जो ऐसी दशा को जन्म देता है जिस घर मे उस नारी का सौदा होता है। उस घर मे भी एक स्त्री है। जो लडके की मां बहन को रोल अदा कर रही है। क्या उसके मन मे कभी ए सवाल नही आता कि जिस स्त्री के साथ यह दुर्व्यवहार हो रहा है वह भी उतनी ही दोशी है। क्या ऊसर अपने स्त्री होने का एहसास नही हो पाता। क्या वह उस स्त्री का दर्द न। महसूस कर पाती या फिर उसने भी इस समाज मे अपने अन्दर के स्त्रीत्व को खत्म कर दिया है। वह आंखों पर पट्टी बांधकर उस कुकृत्य का सहयोगी बन रही है।

सम्भवतः यह कार्य एक स्त्री के द्वारा ही प्रतिस्पर्धा की भावना से किया जाता है। कि जब मेरे साथ ऐसा हुआ तो किसी ने विरोध नही किया आज मै इसका लुप्त लेने के बजाय उसका विरोध क्यो करूं अगर बहू को सास के द्वारा सताया गया होगा तो उसका गुस्सा वह अपनी ही बहु प्रति निकालेगी क्योंकि स्त्री के अन्दर प्रतिस्पर्धा की भावना अधिक होती है। और उसके साथ-साथ  उनकी भावना मेरे भी काफी बदलाव  आ गया है। आज कोई भी शिक्षित स्त्री किसी गरीब से शादी करने से घबराती है।वह अपने पती के रूप मे किसी उंचे पद वाले को ही पसंद करती है इसका मतलब दोशी सिर्फ पुरूष ही नही बल्कि दोनो है।

अतः इस दहेज रूपी कलंक कोई अगर समाज से दूर करना है तो दोनो को इसका दोशी भी और इसे समाप्त करने का कारण मानते है। आज हर युवा कोई आगे आने की जरूरत है। क्योंकि युवा ही वह शक्ति है जो बदलाव ला सकती है।

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