Tuesday 28 May 2019

धर्म नगरी हरिद्वार हरकीपैडि The naisnal siti of haridwar

धर्म नगरी हरिद्वार 
हरकीपैडि
The naisnal siti of haridwar
haridwar
hari ki pauri  haridwar


 Haridwar भारत एक ऐसा देश है जो अन्य देशों से खास है यानी यहां आकर सभी मनुष्य चाहे वो किसी भी धर्म का हो या किसी भी देश का क्यों न हो वह जब भारत की इस पावन भूमी पर कदम रखता है , तो उसे आभास होता है कि सच मे यहां स्वर्ग है यहां जो आनन्द है और जो सुकून है वह उन्हे कही प्राप्त नही हो सकता। क्योंकि इस धरती को स्वर्ग माना गया है। जिसे देवताओं ने और अन्य ऋषि-मुनियो अपनी तपस्थली माना है। यहां अनेकों ऐसे तीर्थ है जहां का स्पर्श मात्र से ही मनुष्य मुक्ती प्राप्त कर लेता उसकी आत्मा पवित्र हो जाती है। वैसे तो भारत मे ऐसे न जाने कितने ही तीर्थ स्थल होगे लेकिन बात कर रहे है। उत्तराखंड की जो एक पवित्र स्थान है और देवताओं का धाम माना गया है।

 हम बात कर रहे है पावन धरती harI ki puri haridwar  हरिद्वार, की जो उत्तराखण्ड के हरिद्वार जिले का एक पवित्र नगर तथा हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थ है। यह धार्मिक स्थल कयी मान्यताओं से ओतप्रोत है। यह नगर निगम बोर्ड से नियंत्रित है। यह बहुत प्राचीन नगरी है। हरिद्वार हिन्दुओं के सात पवित्र स्थलों में से एक है। जहां मोक्ष का द्वार भी माना गया है।३१३९ मीटर की ऊंचाई पर स्थित अपने स्रोत गोमुख (गंगोत्री हिमनद) से २५३ किमी की यात्रा करके गंगा नदी हरिद्वार में मैदानी क्षेत्र में प्रथम प्रवेश करती है, इसलिए हरिद्वार को 'गंगाद्वार' के नाम से भी जाना जाता है; और गंगा का अनुपम रूप देखने को मिलता है।जिसका अर्थ है वह स्थान जहाँ पर गंगाजी मैदानों में प्रवेश करती हैं। हरिद्वार का अर्थ "हरि (ईश्वर) का द्वार" होता है। यानी गंगा नदी अनेकों पहाडों से गुजरती हुयी अब मैदानी भाग मे प्रवेश कर रही है। अब वह अपने स्वरूप और प्रेम से सभी को शोभित करेगी और सभी के पापों का क्षय करेगी।

हरिद्वार की मान्यता--
haridwar
haridwar

एक मान्यता के अनुसार हरिद्वार वह स्थान है,जहाँ पर अमृत की बूंदें गिरी थीं ,और इसी कारण उसे हर की पौड़ी पर ब्रह्म कुण्ड माना जाता है। 'हर की पौड़ी' यानी भगवान हरी नारायण की पीठ स्थली।  जो हरिद्वार का सबसे पवित्र घाट माना जाता है और पूरे भारत से भक्तों और तीर्थयात्रियों के जत्थे त्योहारों या पवित्र दिवसों के अवसर पर स्नान करने के लिए यहाँ आते हैं। यहाँ स्नान करना मोक्ष प्राप्त करवाने वाला माना जाता है। इस स्थान पर पूर्ण कुम्भ और अर्ध कुम्भ भी लगता है जिसमे कयी श्रद्धालु अपने श्रद्धा भाव से पूजा-अर्चना तथा पश्चाताप करने आते है। यहां आकर सभी यह महसूस करते है कि मानो उनको मुक्ती प्रदान हो गयी हो। अब सीधे उन्हे मोक्ष प्राप्त हो गया है। यही खास मान्यता इस पवित्र तथा पुण्य धाम की है।

हरिद्वार जिले का गठन--
हरिद्वार जिला, सहारनपुर डिवीजनल कमिशनरी के भाग के रूप में २८ दिसम्बर १९८८ को अस्तित्व में आया।२४ सितंबर १९९८ के  दिन उत्तर प्रदेश विधानसभा ने 'उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक, १९९८' पारित किया, अंततः भारतीय संसद ने भी 'भारतीय संघीय विधान - उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम २०००' पारित किया और इस प्रकार ९ नवम्बर २०००, के दिन हरिद्वार भारतीय गणराज्य के २७वें नवगठित राज्य उत्तराखंड (तब उत्तरांचल), का भाग बन गया।

आज, यह अपने धार्मिक महत्त्व के अतिरिक्त भी, राज्य के आर्थिक का भी जरिया है।  एक प्रमुख औद्योगिक केन्द्र के रूप में, तेज़ी से विकसित हो रहा है।  औद्योगिक एस्टेट, राज्य ढांचागत और औद्योगिक विकास निगम, SIDCUL (सिडकुल), भेल (भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड) और इसके सम्बंधित सहायक इस नगर के विकास के साक्ष्य हैं।

■ हरिद्वार की प्राचीन मान्यता

प्राचीन काल मे हिंदू धार्मिक कथाओं के अनुसार, हरिद्वार वह स्थान है जहाँ अमृत की कुछ बूँदें भूल से घड़े से गिर गयीं जब धन्वन्तरी उस घड़े को समुद्र मंथन के बाद ले जा रहे थे। कुम्भ या महाकुम्भ से सम्बद्ध कथा का उल्लेख किसी पुराण में नहीं है। प्रक्षिप्त रूप में ही इसका उल्लेख होता रहा है। मान्यता है कि चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरी थीं। वे स्थान हैं:- उज्जैन, हरिद्वार, नासिक और प्रयाग। इन चारों स्थानों पर बारी-बारी से हर १२वें वर्ष महाकुम्भ का आयोजन होता है। एक स्थान के महाकुम्भ से तीन वर्षों के बाद दूसरे स्थान पर महाकुम्भ का आयोजन होता है। इस प्रकार बारहवें वर्ष में एक चक्र पूरा होकर फिर पहले स्थान पर महाकुम्भ का समय आ जाता है।  हर मनुष्य अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए यहाँ आता है , और गंगा नदी के तट पर शास्त्र विधि से स्नान इत्यादि करते हैं। यह स्थान अपने पूर्वजों की मुक्ती का मार्ग भी बताया गया है, यानी जितनी मान्यता गया की है उतनी ही मान्यता हरिद्वार की है। जो भी श्रद्धा भाव से यहां अपने पित्रों का तर्पण करता है उसके पितर बैकुंठ लोक को प्राप्त हो जाते है।

■ हरिद्वार का इतिहास और धार्मिक महत्व--

  धर्म नगरी  हरिद्वार का इतिहास बहुत ही समृद्ध और प्राचीन है। पौराणि‍क कथाओं के अनुसार हरिद्वार को मायापुरी, मोक्षद्वार, कपिलस्थान और गंगाद्वार के नाम से भी जाना जाता हैं।
यह उत्तराखंड के पवित्र चारधाम यात्रा का  जब कोई भी कही का भी व्यक्ति करता है तो वह इसी स्थान से यात्रा की शुरुआत करता है यानी यहां स्नान किए बिना वह अपनी यात्रा का आरम्भ नही करता है। इसे यात्रा का प्रवेश द्वार भी कहा जाता हैं। हरिद्वार भगवान शिव और भगवान विष्णु की भूमि भी है, इसलिए इसका नाम "गेटवे ऑफ़ द गॉड्स" भी है। यह पवित्र शहर भारत की जटिल संस्कृति और प्राचीन सभ्यता का खजाना हैं। जिसने        भारत की गरिमा को बढाया है।  हरिद्वार शिवालिक पहाडियों के कोड में बसा हुआ हैं। जिसके चारोथ तरफ आआच्छादित वन है। जिसकी सुन्दरता देखने से ही बनती है।और इसकी उपयोगिता के बारे मे यह भी कहा जाता है कि, पौराणिक समय में जब समुन्द्र मंथन हुआ था तब अमृत की कुछ बुँदे हरिद्वार में भी गिरी थी। इसी कारण हरिद्वार में कुम्भ का मेला भी आयोजित किया जाता हैं। 12 वर्षों में मनाये जाने वाला "कुम्भ के मेले " के कारण भी हरिद्वार एक महत्वपूर्ण स्थान हैं। और करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र भी बना हुआ है। लोग इसकी आराधना करते है। तथा इसके नाम मात्र लेने से ही मनुष्य को सुख शांती प्रदान होती है। और वह अपने को मुक्त समझने लगता है।

हरिद्वार के पवित्र स्थल
वैसे तो हरिद्वार खुद एक पवित्र स्थल है लेकिन इसकी पवित्रता को यहां के अन्य छोटे-छोटे तीर्थ स्थल इसकी उपमा बढा देते ह। और श्रद्धालु यहां खर्चा आने को मजबूर हो जाता है।  यहां अन्य कयी देव स्थल है। जिनकी महिमा वेदों मे भी वर्णित है और पुराणों मे भी मान्यता है। आइए जानते है उन तीर्थ स्थलों,  धार्मिक स्थानों के बारे मे।----
(1)-हर की पौड़ी,
(2)-चंडी देवी मंदिर,
(3)-शांति कुंज/गायत्री शक्तिपीठ,
(4)-माया देवी मंदिर,
(5)-मनसा देवी मंदिर,
(6)-वैष्णों देवी मंदिर,
(7)भारत माता मंदिर,
(8)दूधाधारी बर्फानी मन्दिर,
(9)-चिल्ला अभयारण्यसप्तऋषि आश्रम/सप्त सरोवरपारद,
(10)- शिवलिंगदिव्य कल्पवृक्ष वन,
(11)- दक्ष प्रजापति मन्दिर,
(12)- वैकुण्ठ धाम श्री नारायण शिला मन्दिर,
इत्यादी कयी ऐसे मन्दिर है जहां भक्तों की भीड लगी रहती है और उनकी आस्था का केन्द्र भी है।

हरिद्वार का धार्मिक महत्व

हरिद्वार की कयी सारी मान्यताएं है। इसके बारे चिंतन करना शायद सम्भव भी नही है।परन्तु मान्यता है कि हरिद्वार मे गंगा नदी और कई तीर्थ स्थल होने से वहां पर धार्मिक महत्व बहुत ज्यादा हैं। यहाँ आने वालों का मन एक दम पवित्र और शांत हो जाता हैं।  उनके जीवन की सभी बाधाएं दूर हो जाती है।  हरिद्वार का शांत वातावरण देखकर भगवान की भक्ति में लीन हो जाने का मन करता है। और वह भक्त भी शिव मय हो जाता है।  यहां बहती शांत गंगा नदी जिसमें हर वर्ष कई श्रद्धालु यहाँ आकर स्नान करते हैं और ऐसा माना जाता है कि, यहाँ डूबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं। और उस भक्त को सुकून पहुचता है। कि उसने अब तक के सभी पापों का क्षय कर लिया है। गंगा नदी में स्नान करना मोक्ष को पाने जैसा माना जाता हैं। हरिद्वार में बहुत सारे मंदिर और आश्रम हैं और यहां के दर्शन मात्र से ही मनुष्य को मुक्ती मिल जाती है।

■ हरिद्वार पहुंचने का मार्ग --
हरिद्वार पहुंचने के लिए पर्यटक वायुमार्ग, रेलमार्ग और सड़क मार्ग द्वारा या अनय किसी भी साधन से हरिद्वार पहुँच सकते हैं। यहाँ पास में ही जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है, जो शहर से करीब 20 कि.मी दूर स्थित है। यह दिल्ली के एयरपोर्ट के उड़ानों से जुड़ा हुआ है। हरिद्वार के पास ही रेलवे स्टेशन है, जो भारत के लगभग  सभी शहरों से जुड़ा हुआ है। सड़क मार्ग के द्वारा भी हरिद्वार देश की मुख्य सड़कों से जुड़ा हैं। यहां सभी महीनो मे आप आनन्द दायक यात्रा कर सकते है। हरिद्वार में गर्मियों में बहुत अधिक गर्मी और सर्दियों में बहुत अधिक ठंड रहती हैं। यहां के मौसम को परिवरतन होने मे समय नही लगता है। हरिद्वार में सितंबर से जून तक मौसम सुहावना होता है ये महीने यहाँ घूमने के लिए सबसे बेस्ट हैं। और खास कर यहां अमावस्या तथा अन्य सभी परमु तिथियों पर जाना व स्नान करना शुभ माना जाता है।

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