Saturday 1 June 2019

महाराणा प्रताप (The motivaitional ispeekar) राष्ट्रवादी विचारक/एवं व्यक्तित्व

 महाराणा प्रताप (The motivaitional ispeekar)राष्ट्रवादी विचारक/एवं व्यक्तित्व

Maharana partap
Maharana partap


भारत एक ऐसा देश है। जहां वीरों और योद्धाओं की कमी नही रही है। अपनी शक्ति तथा अद्वितीय विलक्षण बुद्धि के कारण उन्होने पूरे भारत ही नही बल्कि विश्व मे भी शौर्यता दिखाई है। उन्ही वीरों मे से एक महाराणा प्रताप जी भी है।  भारत माता के ऐसे वीर जो शक्ति, साहस , त्याग, एवं बलिदान के लिए हमेशा प्रेरणादायक रहा है।

मुगल सम्राट के झूठे आश्वासन ,भोग-विलास, बलिदान, पदाधिकार,आदी लोभो के कारण कई राजपूत राजाओं ने मुगल सम्राट के वशीभूत होकर उसका प्रभुत्व स्वीकार कर लिया, और उसी के आश्रित होकर उसके द्वारा दिये गये आदर्शो तथा आदेशों का पालन करने लगे। और उस समय ऐसा प्रतीत होता था कि मानो राजस्थान ही नही पूरा भारत अपना गौरव खो चुका होगा। सभी राजाओं ने मानो अपनी शक्ति को सम्राट के हवाले कर दी हो।

ऐसे विकट समय पर जब भारत मे गुलामी की लहर चल रही थी। उसी विकट समय मे मेवाड के महाराणा प्रताप का अपनी मातृभूमि भारत की रक्षा के लिए पदार्पण हुआ। उन्होने सम्राट के सामने घुटने नही टेके बल्कि  लडखडाते हुए भारत को एक नयी उर्जा प्रदान करने का प्रयत्न किया।

महाराणा प्रताप सिंह--

महाराणा प्रताप जी ( ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत १५९७ तदनुसार ९ मई १५४०–१९ जनवरी १५९७)
उदयपुर, मेवाड में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थे। उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है।यही नही पूरे विश्व मे उनकी शक्ति का दबदबा था। उन्होंने कई सालों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया। 

लेकिन अपने जीवन मे एक ही लक्ष्य रखा की कभी हार नही माननी है। महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलों को कईं बार युद्ध में भी हराया। उनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जयवंत कुंवर के घर हुआ था। इतिहासकार विजय नाहरके अनुसार राजपूत समाज की परंपरा व महाराणा प्रताप की जन्म कुंडली व कालगणना के अनुसार महाराणा प्रताप का जन्म पाली के राजमहलों में हुआ।१५७६ के हल्दीघाटी युद्ध में ५०० भीलो को साथ लेकर राणा प्रताप ने आमेर सरदार राजा मानसिंह के ८०,००० की सेना का सामना किया। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को झाला मानसिंह ने आपने प्राण दे कर बचाया ओर महाराणा को युद्ध भूमि छोड़ने के लिए बोला। शक्ति सिंह ने आपना अश्व दे कर महाराणा को बचाया। प्रिय अश्व चेतक की भी मृत्यु हुई। यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें १७,००० लोग मारे गए। मेवाड़ को जीतने के लिये अकबर ने सभी प्रयास किये। महाराणा की हालत दिन-प्रतिदिन चिंताजनक होती चली गई । २५,००० आदिवासीयो को १२ साल तक चले उतना अनुदान देकर भामाशाह भी अमर हुआ। इनकी शहादत के सामने कोई भी राजा टिक नही पाता था , उसे अपनी हार स्वीकार ही करनी पढती थी।

महाराणा प्रताप सिंह जी का प्रारम्भिक जीवन--(The early life of Maharana Pratap Singh Ji-)

 9 मई 1540 को महाराणा प्रताप जी का जन्म हुआ , मेवाड के राणा उदयसिंह  द्वितीय की  23 सन्तान थी।  उनमे से ये सबसे बड़े थे। माता जयवन्ता बाई उच्च संस्कारो की तथा आदर्श खयालों की महिला थी। ये स्वाभिमानी और सदगुणी थी , महाराणा प्रताप के बाल्यावस्था का अवलोकन करते हुए यह समझ गयी थी कि यह बहुत बढा प्रतापी होगा। पढाई के बजाय इनकी रूची खेलने कूदने तथा अस्त्र-शस्त्र चलाने मे अत्यधिक थी। उनका अधिकतम समय भाई  शक्ति सिंह के साथ जंगलों मे शिकार करने मे व्यतीत होता था।

महाराणा प्रताप - दो लाख सैनिकों का 22 हजार ने किया मुकाबला


 भारतीय इतिहास के अनुसार अकबर ने साल 1576 में महाराणा प्रताप से लड़ाई करने का फैसला लिया था। लेकिन ये लड़ाई उतनी भी आसान नहीं थी। क्योंकि सामने वाला प्रतिद्वंद्वी कमजोर नही था। मुगल शासक के पास दो लाख सैनिक थे, जबकि राजपूत  महाराणा प्रताप सिंह की सेना में महज 22 हजार सैनिक थे। फिर भी उन्होने हौसला नही हारा और युद्ध के लिए अग्रसर हुये।

महाराणा प्रताप सिंह को हथियारों से खेलने का शौक बचपन से ही था। और ये बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था। वह अपने माता-पिता की पहली संतान थे। राजमहल में पले-बढ़े महाराणा बचपन से ही बहादुर और अपने लक्ष्यों को पाने का हौसला रखते थे। वह कभी भी न तो अपने को कमजोर समझते थे और नाही विपक्षी को  जिस उम्र में बच्चे खिलौनों से खेलते हैं, उस उम्र में वह हथियारों से खेलते थे। और उनके करतब भी वीरों जैसे ही हुआ करते थे।

महाराणा प्रताप का मान-सम्मान सबसे ऊपर-


इतिहास कहता है कि महाराणा प्रताप को सबसे अधिक फिक्र मान-सम्मान की थी। वह कभी नही चाहते थे कि उनके चरित्र को  कोई दाग लगे। उन्हें धन-दौलत और गहनों की कोई परवाह नहीं थी। वह कभी धन-दौलत गंवाने में पीछे नहीं रहे। उसे वह सिर्फ व्यर्थ ही समझते थे , वे मान-सम्मान को ही सच्चा धन मानते थे। इसीलिए  उन्होने कभी  अपने मान-सम्मान को  झुकने नहीं दिया।

महाराणा प्रताप के युद्ध हथियार--War weapon of Maharana Pratap

 जी हां हम बात कर रहे है एक ऐसे योद्धा की जो अपने आप मे एक शक्तिशाली, वीर तथा पराक्रमी राजा थे। जिन्होने कभी भी किसी प्रस्थिती मे अपने आप को कमजोर नही समझा और युद्ध मे पीछे नही हटे। जो न सर कटाने से घबराता था और नाही अपनी हार स्वीकार करते थे ऐसे भारतीय वीर  महाराणा प्रताप सिह के कुछ तथ्य


  •  महाराणा प्रताप युद्ध के वक्त हमेशा एक भाला अपने साथ रखते थे, जिसका वजन 81 किलो था। वह इस भाले को एक हाथ से नजाते हुए दुश्मन पर टूट पड़ते थे। जोकी अपने आप मे एक अद्वितीय कला है।
  • युद्ध के वक्त महाराणा प्रताप अपने शरीर पर कम से कम  72 किलो का कवच पहनते थे।
  • इतिहासकारों के अनुसार महाराणा प्रताप के भाले, कवच, ढाल और दो तलवारों का वजन कुल मिलाकर 208 किलोग्राम होता था। यानी इनकी शक्ती का अन्दाजा आप लगा सकते है।
  • महाराणा प्रताप के हथियार इतिहास मे मात्र एक ऐसे योद्धा है जो सबसे भारी युद्ध हथियारों में शामिल हैं।


 महाराणा प्रताप के अविस्मरणीय तथ्य ----

इनके साहस और पराक्रम से हर कोई लाभान्वित होता है कि एक मनुष्य होते हुए भी कोई ऐसा अद्भुत कर्तव्य कर सकता है।

1. महाराणा प्रताप का जन्म 09 मई 1540 को राजस्थान के कुंभलगढ़ में हुआ था।

2. महाराणा प्रताप ने राजनैतिक वजहों से कुल 11 शादियां की थीं। और सभी रानियों को एक समान ही मानते थे।

3. महाराणा प्रताप के कुल 17 बेटे और 05 बेटियां थीं। जोकि इन्हे भी वह अपनी शक्ति का ही हिस्सा मानते थे।

4. महारानी अजाब्दे से पैदा हुए पुत्र अमर सिंह को महाराणा प्रताप का उत्तराधिकारी बनाया गया था।

5. अमर सिंह भी अपने पिता महाराणा प्रताप की तरह काफी बहादुर और पारक्रमी थे। क्योंकि पिता के साहस ने उन्हे भी कायल कर दिया था।

6. इतिहासकारों के अनुसार हल्दी घाटी युद्ध के वक्त अमर सिंह की आयु 17 वर्ष थी।और इसमे भी उन्होने एक सक्षम योद्धा की तरह ही युद्ध किया था।

7. मेवाड़ की रक्षा करते हुए महाराणा प्रताप की 19 जनवरी 1597 को मृत्यु हुई थी।अपनी प्रजा की रक्षा के खातिर सबकुछ न्यौछावर करने वाले योद्धा थे।

8. बताया जाता है कि महाराणा प्रताप की मौत पर मुगल शासक अकबर भी बहुत दुखी हुआ था। उन्हे भी इस योद्धा की मृत्यु का अपयश था।

9. अकबर दिल से महाराणा प्रताप के गुणों, उनकी बहादुरी और चरित्र का बहुद बड़ा प्रशंसक था।

महाराणा प्रताप के अमूल्य विचार --
Thots of maharana prtap


दोस्तो यह मनुष्य जीवन बहुत ही खास और लोकप्रिय है , इसकी सार्थकता और उपयोगिता को जिसने समझा है वही विश्व विजेता कहलाया है। हम देखते है कि जितने भी सफल लोग हुए है, या जितने लोगों ने भी अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की है। वह सामान्य होते हुए भी सामान्य नही है। क्योकि जब मनुष्य का जन्म होता है, तो वह एक समान ही होता है। वह सफल और असफल अपने कर्मो से ही बनता है। कोई तो राजाओं जैसा जीवन व्यतीत करता है, और कोई नगण्य के समान ही रह पाता है। लेकिन दोस्तो हम मे और उन मे फर्क सिर्फ इतना है कि हम मुसीबतों से घबरा जाते है और वे उसको चुनौती के रूप मे स्वीकार करते है। फर्क सिर्फ सोच का है। उनकी सोच सबसे अलग और कष्ट भरी होती है। लेकिन यह भी सत्य है कि जितने भी सफल लोग हुए है , उन्होंने काफी संघर्ष किया है और कठिनाई को स्वीकार करके ही आगे बडे है।


आज हम महाराणा प्रताप के व्यक्तित्व से अवगत करा रहे है। जो आपके जीवन को सफल बना सकता है।

1. समय की कीमत और समय की ताकत को कोई नही जान सकता। समय  इतना ताकतवर होता है कि एक राजा को भी घास की रोटी खिला सकता है।

2. इस दुनिया मे सब नश्वर है , धन दौलत भी नगण्य है। मनुष्य का गौरव व आत्म सम्मान उसकी सबसे बड़ी कमाई होती है। इसलिए इनकी सदैव रक्षा करनी चाहिए।

3. व्यक्ति हमेशा अपने परिवार के लिए ही चिन्तित रहता है , और उसी की रक्षा के लिए हर समय तत्पर रहता है। लेकिन अपने व अपने परिवार के साथ जो अपने राष्ट्र के बारे में भी सोचते हैं, वही सच्चे नागरिक होते हैं।

4. मनुष्य का अगर हौसला हार गया तो समझो सबकुछ समाप्त हो गया। इसीलिए तब तक परिश्रम करो, जब तक तुम्हे तुम्हारी मंजिल न मिल जाए।
(चरेवेती चरेवेती)

5. मनुष्य ही ऐसे है जो सबकुछ कर सकता है। लेकिन  अन्याय व अधर्म आदि का विनाश करना पूरी मानव जाति का कर्तव्य है।

6. हार और जीत कोई मायने नही रखती है। जो अत्यंत विकट परिस्थिति में भी हार नहीं मानते हैं, वो हार कर भी जीत जाते हैं।

7. सच्चा मानव वह नही है जो सुख में अतिप्रसन्न और विपत्ति में डर कर झुक जाते हैं, उन्हें न तो सफलता मिलती है और न ही इतिहास उन्हें याद रखता है।

8. प्रेम और सौहार्द मे वह ताकत है कि अगर सांप से प्रेम करोगे तो भी वह अपने स्वभाव अनुरूप कभी न कभी डसेगा ही।

9. शासक चाहे प्राचीन काल का हो या वर्तमान का शासक का पहला कर्तव्य अपने राज्य का गौरव और सम्मान बचाए रखना होता है।

10. सब चीज या वस्तु की कीमत चुका दोगे परन्तु  अपना गौरव, मान-मर्यादा और आत्म सम्मान के आगे जीवन की भी कोई कीमत नहीं है।

■ महाराणा प्रताप के  कुछ  रोचक किस्से जो आपको सफलता दिला सके---

1 प्रतापी राजा महाराणा प्रताप के सबसे प्रिय घोड़े का नाम चेतक था। महाराणा प्रताप की तरह उनका घोड़ा भी बहुत बहादुर और समझदार था। और वह उनके लिए बहुत खास था।

2.। महाराणा प्रताप को बचपन में उनकी मां तथा अन्य  प्यार से कीका कहकर बुलाया जाता था।

3. महाराणा प्रताप और मुगल शासक अकबर के बीच हल्दी घाटी का विनाशकारी युद्ध 18 जून 1576 को हुआ था। इतिहास में हल्दी घाटी के युद्ध की तुलना महाभारत के युद्ध से की गई है। जो शक्तिशाली योद्धा का प्रतिबिंब है।

4. इतिहासकारों के अनुसार हल्दी घाटी के युद्ध में न तो अकबर की जीत हुई थी और न ही महाराणा प्रताप हारे थे। इसकी वजह महाराणा प्रताप के मन में राज्य की सुरक्षा का अटूट जज्बा था। क्योंकि वह मानते थे कि उनकी प्रजा को कोई नुकसान नही है।

5. हल्दी घाटी के युद्ध को टालने के लिए अकबर ने छह बार महाराणा प्रताप के पास अपने शांति दूत भेजे, लेकिन राजपूत राजा ने हर बार अकबर के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। क्योंकि वह जानते थे कि युद्ध शांती का प्रतीक नही है।

6. हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप ने मात्र 20 हजार सैनिकों के साथ मुगल बादशाह अकबर के 80 हजार सैनिकों का डटकर सामना किया था। जो कि एक अद्भुत कर्तव्य का ही प्रतीक था। इसके बावजूद अकबर महाराणा प्रताप को झुका नहीं सका था।

7. महाराणा प्रताप के सबसे प्रिय और वफादार घोड़े ने भी दुश्मनों के सामने अद्भुत वीरता का परिचय दिया था। घोड़े ने भी समझ लिया था कि वह एक वीर योद्धा का वाहक है। हालांकि इसी युद्ध में घायल होने से उसकी मौत हुई थी।

8. चित्तौड़ की हल्दी घाटी में आज भी महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक की समाधि मौजूद है। और यह सबके मन मे वीरता को उदारता है।

9. चेतक ने अंतिम दम तक महाराणा प्रताप का साथ दिया।  युद्ध में मुगल सेना से घिरने पर चेतक महाराणा प्रताप को बैठाकर कई फील लंबा नाला फांद गया था। एक वीर ही दूसरे वीर की भावना समझ सकता है।

10. महाराणा प्रताप जितने बहादुर थे, उतने ही दरियादिल और न्याय प्रिय भी। एक बार उनके बेटे अमर सिंह ने अकबर के सेनापति रहीम खानखाना और उसके परिवार को बंदी बना लिया था। महाराणा ने उन्हें छुड़वाया था। क्योंकि वह अन्याय न करते थे और न होने देते थे।

महाराणा प्रताप सिंह का संक्षिप्त विवरण

--शासन १५७२ – १५९७,
--राज तिलक२८ फ़रवरी १५७२,
--पूरा नाममहाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया पूर्वाधिकारी उदयसिंह द्वितीय उत्तराधिकारी महाराणा अमर सिंह ,
--जीवन संगी(11 पत्नियाँ),
--संतानअमर सिंह
भगवान दास
(17 पुत्र)राज घराना सिसोदिया पिता उदयसिंह
----द्वितीय माता महाराणी जयवंताबाई
--धर्म -सनातन धर्म


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