Sunday 9 June 2019

स्वामी विवेकानंद Motivational speekar

स्वामी विवेकानंद

 Motivational speekar 

{भारतीय हिन्दू ,महान दार्शनिक, संन्यासी }

Swami vivekanand
Swami vivekanand 


स्वामी विवेकानन्द एक ऐसे भारतीय जिन्होने भारत ही नही बल्कि पूरे विश्व को अपने ज्ञान से परिपूर्ण किया है। उनके स्वामी विवेकानन्द के विचार ने पूरे विश्व सोच ही बदल कर रख दी। ऐसे महान दार्शनिक तथा सन्यासी केवल इसी भारत भूमी पर ही जन्म ले सकते है। ऐसे  {Motivational spaker} जिन्होने अपने ज्ञान से पूरे विश्व की दशा और दिशा ही बदल दी।

इन महान नायक का जन्म  (जन्म: 12 जनवरी,१८६३ - मृत्यु: ४ जुलाई,१९०२) वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। स्वामी विवेकानन्द का शिकागो भाषण सन् १८९३ में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिकाऔर यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे।

 उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत "मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों" के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।


स्वामी विवेकानंद जी  कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली परिवार में जन्मे विवेकानंद आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। वे अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे जिनसे उन्होंने सीखा कि सारे जीव स्वयं परमात्मा का ही एक अवतार हैं; इसलिए मानव जाति की सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है। रामकृष्ण की मृत्यु के बाद विवेकानंद ने बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया और ब्रिटिश भारत में मौजूदा स्थितियों का पहले हाथ ज्ञान हासिल किया। बाद में विश्व धर्म संसद 1893 में भारत का प्रतिनिधित्व करने, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए कूच की।

 विवेकानंद के संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में  हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रसार किया , सैकड़ों सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन किया। भारत में, विवेकानंद को एक देशभक्त संत के रूप में माना जाता है और इनके जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। ऐसे महात्मा का जन्म इस पावन धरती पर एक वरदान के रूप मे है। इनके आदर्शो को हमे आत्मसात करने की जरुरत है, ताकी सभी की भावना इस धरती को पावन करने मे जुट जाए।

■ स्वामी विवेकानंद का प्रारम्भिक जीवन 
Motivational speekar 

इनके बचपन का नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। इनके पिता जी विश्वनाथ दत्त  कलकत्ता हाईकोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे। इनके दादा जी दुर्गाचरण दत्ता जी संस्कृत और फारसी के प्रकांड विद्वान थे , इन्होने अपने परिवार को आदर्श वादी तथा संस्कारी बनाने मे अहम भूमिका का निर्वाह किया। इन्होने केवल 25 वर्ष की उम्र मे त्याग कर सन्यास धारण कर लिया। इनकी माता भुवनेश्वरी देवी भी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी , और अपने बच्चो को  धर्म के प्रति दृढ और उद्धत किया।

माता का अधिक समय परिवार को संस्कार वान तथा शिव की पूजा-अर्चना  करने मे ही व्यतीत होता था। नरेन्द्र ने माता को धार्मिक तथा निष्ठावान देखकर के अपने जीवन को सफल बनाया तथा माता के आदर्शो को अपने जीवन मे ढाल करके माता को अपना आदर्श बनाया। माता के आदर्श पूर्ण रवैया को अपना मार्ग दर्शक बनाया और उसी पथ पर अग्रसर हुए

बचपन से ही विवेकानंद  (नरेन्द्र) कुशाग्र बुद्धि Motivational Quotes in hindi  वाले तथा खोजी प्रवृति के थे , वे जो भी वस्तु स्थान देखते थे। उसके होने का तात्पर्य समझने का प्रयास करते थे। उन्होने बचपन मे अपने बाल्यावस्था को बहुत ही अच्छे तरीके से जिया है , वे साथी बच्चो के साथ खूब मजाक व मस्ती किया करते थे। और साथ-साथ अपने गुरू जनो के साथ भी मस्ती किया करते थे।

उनको पुराण और महाभारत की कथाओं को सुनना बहुत ही पसंद था क्योंकि उनकी माता अपने बच्चो को पूजा-पाठ के साथ-साथ आत्मविश्वास बडाने के लिए कहानियां भी सुनाया करती थी ताकी ओ खूब ओजस्वी बन सके। घर मे हमेशा भजन कीर्तन भी हुआ करता था जिसका नरेन्द्र के जीवन पर गहरा प्रभाव पडा और उनका जीवन धार्मिक प्रवृत्ति का हो गया। वो बचपन न से ही जीवों पर्व दया किया करते थे।पूरा परिवार धार्मिक प्रवृत्ति का होने के कारण बालक नरेन्द्र को भगवान को जानने के इच्छा जागृत हुयी।  ईश्वर को जानने की इच्छा उनके अन्दर इतनी तीव्र हो गयी कि कभी-कभी उनकी माता और गुरूजन भी उनके सवालो का जवाब नही दे पाते थे।


■ स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षा 
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स्वामी विवेकानंद का बचपन से तीव्र बुद्धि वाले थे उन्हे पढने का बहुत शौक था। सन 1871 से वे स्कूल जाने लगे। 1879  मे मात्र एक ऐसे छात्र थे जिन्होंने प्रेसीडेंसी कालेज प्रवेश परीक्षा मे प्रथम डिविजन अंक प्राप्त किए।

स्वामी जी दर्शन ,धर्म, विज्ञान, कला , इतिहास, सामाजिक,  साहित्य विषयों मे उत्साही व्यक्ति थे। नरेन्द्र जी को भारतीय शास्त्रों मे गहन रूची थी , और पुराणों ग्रन्थों का अध्ययन किया करते थे। क्योकि उनकी माता ने घर मे सभी धर्म ग्रन्थ तथा साहित्य रखे थे। जिनका अध्ययन वे करते रहते थे। इन्होने शास्त्रीय संगीत का भी अध्ययन किया और इसमे इन्होने ने काफी प्रशंसा हासिल की।  विवेकानंद जी योग को अपना हिस्सा मानते थे तथा नित्य प्रति दिन व्यायाम किया करते थे। 1881 मे इन्होने ललित कला हासिल की और
1884 मे स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की।


विवेकानंद जी ने सपेंसर की किताब  एजुकेशन  (1860) का बंगाली मे अनुवाद किया।  ये हर्बर्ट सपेंसर के विकास वाद से काफी मोहित थे। पश्चिमी दार्शनिक  अध्ययनों के साथ इन्होने संस्कृत ग्रन्थों और बंगाली साहित्यों को भी सीखा। नरेन्द्र जी को अनेक बार श्रुतिधर यानी ( विलक्षण बुद्धि वाला भी कहा गया।)

स्वामी विवेकानंद कर्तव्य निष्ठा 

स्वामी  विवेकानंद अपने कर्म के प्रति दृढ विश्वास तथा कर्तव्य निष्ठ  होकर ही कार्य करते थे। वे कभी भी किसी कार्य को छोटा या बडा नही समझते थे। उनका मानना था कि मनुष्य का सबसे बडा कार्य है कि परहित भावना रखना तथा जीवों पर दया करना। और इसी उदेश्य को उन्होंने साकार किया।

एक बार की बात है कि किसी शिष्य ने गुरूजी की सेवा करते हुए लज्जित महसूस की तो विवेकानंद जी को क्रोध आ गया। क्योंकि वे अपने गुरु के प्रति सच्ची निष्ठा रखते थे। गुरू जी की सेवा को ही अपना परम कर्तव्य मानते थे। वे उनके शरीर की सफाई से लेकर सभी कार्य को प्रेम से पूर्ण किया करते थे फिर भी वे कभी अपमानित महसूस नही करते थे। इसी वजह से आज विवेकानंद खुद गुरु मे समाए हुए है और पूरी दुनिया उन्हे आदर्श गुरू के रूप मे पूजते है। वे चाहते थे कि गुरू की सेवा को ही ओ अपना धेय समझे क्योंकि  गुरू के ही चरणों मे समस्त सांसारिक तथा आध्यात्मिक जगत का ज्ञान समाया हुआ है। और वे खुद आध्यात्म जगत के महान दार्शनिक बन गये उनकी भक्ति ने ही उन्हे ज्ञान का मार्ग दिखाया और वह अलौकिक ज्योति उनमे समाहित हो गयी।


स्वामी विवेकानंद  एक ऐसे उत्कृष्ट कोटी के समाज सेवी थे , जिन्होंने समाज मे फैली कुरीति को बदल के रख दिया। वे एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहते थे जिसमे किसी भी प्रकार की जाती पाती तिमाही अन्य कोई भी प्रथा या भेदभाव से आदमी जकडा हुआ न रहे। वे समाज को मुक्त करना चाहते थे। क्योकि जितना मनुष्य इन अडचनो तथा आडम्बरों से मुक्त रहेगा उसका उतना ही अधिक मानसिक विकास हो सकेगा।

■ विवेकानंद जी पर ब्रह्म समाज का प्रभाव 
Motivational Quotes in hindi 
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विवेकानंद जी ब्रह्म समाज के संस्थापक तथा प्रचारक के रूप मे भी उभर कर आए है। 1880 विवेकानंद जी ईसाई से हिन्दू धर्म मे रामकृष्ण के प्रभाव से परिवर्तित हुए। विवेकानंद के पश्चिमी आध्यात्मिकता के साथ परिचित हो गया था। उनके प्रारम्भिक विश्वासों को ब्रह्म समाज ने जो एक निराकार ईश्वर मे विश्वास और मूर्ति पूजा का प्रतिवाद करता था।  इन्होने इसे प्रभावित किया और सुव्यवस्थित,  सत्संगति,  अदवैतवादी अवधारणाओं , धर्मशास्त्र, उपनिषद, वेदान्त का चयनात्मक और आधुनिक ढंग से अध्ययन और प्रोत्साहित किया। जिसका विवेकानंद जी के जीवन मे गहरा प्रभाव पडा।

■ स्वामी विवेकानंद के उत्कृष्ट भाषण 
स्वामी विवेकानंद एक ऐसे समाज सेवी तथा विचारक थे जिन्होने समाज मे फैली कुरीति को दूर किया और लोगों को जागरूक किया। वे जब कही खडे होते थे तो लोग उनके विचार को सुनने के लिए जुट जाते थे। यहीं नही वे विदेशों मे भी भाषण दिया करते थे। विवेकानंद जी ने एक बार अमेरिका मे सम्बोधित करते हुए कहा---
(मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहिनों) आपने जिस आदर सत्कार से हमारा स्वागत और अतिथि सत्कार किया है। उसके लिए मै आप सब का सौहार्द तथा भाव पूर्ण दिल से आभारी हूं। संसार की सबसे पुरानी परम्परा सन्यासियों के प्रति जो आपकी है उसका भी मै आभारी हूं। धर्मो की माता की ओर से धन्यवाद देता हूं। सभी हिन्दुओं और भारत भूमी की ओर से धन्यवाद देता हूं।

विवेकानंद नंद ने कहा कि मै पूरी अमेरिका वासियों का धन्यवाद करता हू। मै एक ऐसे धर्म का अनुयायी हूं जिसने पूरे संसार को सहिष्णुता और सार्वभौमिकता दिलाई है जिसे पाकर मै भी धन्य हो गया। और हमारी यही परम्परा है कि हम सभी धर्मो मे सहिष्णुता ही नही बल्कि सच्चा मान-सम्मान स्वीकार करते है। मै आपको सम्बोधित करते हुए गर्व महसूस कर रहा हूं कि हमने अपने हृदय मे उन यहूदियों को भी स्थान दिया जिन्होने दक्षिण भारत आकर शरण ली थी। जिस वर्ष उनका पवित्र मंदिर रोमन जाती के अत्याचारों से नष्ट हो गया था।
मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं जिसने पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और लगातार अब भी उनकी मदद कर रहा है.


मैं इस मौके पर वह श्लोक सुनाना चाहता हूं जो मैंने बचपन से याद किया और जिसे रोज़ करोड़ों लोग दोहराते हैं. ''जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकली नदियां, अलग-अलग रास्तों से होकर आखिरकार समुद्र में मिल जाती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा से अलग-अलग रास्ते चुनता है. ये रास्ते देखने में भले ही अलग-अलग लगते हैं, लेकिन ये सब ईश्वर तक ही जाते हैं।मौजूदा सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, वह अपने आप में गीता में कहे गए इस उपदेश इसका प्रमाण है: ''जो भी मुझ तक आता है, चाहे कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं. लोग अलग-अलग रास्ते चुनते हैं, परेशानियां झेलते हैं, लेकिन आखिर में मुझ तक पहुंचते हैं।सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसके भयानक वंशजों के धार्मिक हठ ने लंबे समय से इस खूबसूरत धरती को जकड़ रखा है. उन्होंने इस धरती को हिंसा से भर दिया है और कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हो चुकी है. न जाने कितनी सभ्याताएं तबाह हुईं और कितने देश मिटा दिए गए।यदि ये ख़ौफ़नाक राक्षस नहीं होते तो मानव समाज कहीं ज़्यादा बेहतर होता,मानव का अस्तित्व स्थिरता पा लेता। जितना कि अभी है। लेकिन उनका वक़्त अब पूरा हो चुका है. मुझे उम्मीद है कि इस सम्मेलन का बिगुल सभी तरह की कट्टरता, हठधर्मिता और दुखों का विनाश करने वाला होगा. चाहे वह तलवार से हो या फिर कलम से। मनुष्य की भावना बदलनी भुतहा जरूरी है क्योंकि जब मनुष्य दया और भावो से परिपूर्ण होगा तो ही समस्त सांसारिक सुखमय जीवन व्यतीत करेगा।

■ स्वामी विवेकानंद के दार्शनिक विचार 
Motivational Quotes in hindi 
Vivekanand of philosophyear

जी हां हम बात कर रहे है उस भारत की जहां समय-समय-समय पर ऐसे विचारक उभर कर आये है जिन्होंने इस दुनिया को जीने की राह सिखाई है। उन्ही मे से भारत के एक ऐसे विचारक स्वामी विवेकानंद भी है ,एक ऐसा नाम है, जिन्होंने न सिर्फ पश्चिमी दुनिया में भारतीय दर्शन के वेदांत और योग का सूत्रपात किया, बल्कि उन्होंने अपने श्रेष्ठ विचारों को एक समान रूप से ---
“(सबसे गरीब और मध्य स्तर वाले लोगों के सामने)”
 प्रस्तुत भी किया। दुनिया उन्हें वर्ष 1893 में शिकागो में आयोजित हुई विश्व के धर्मों की संसद में अपने तारकीय भाषण के लिए याद करती है, जहाँ उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया था। और दुनिया को दिखा दिया कि हम उस देश के हीरे है है जहां पग-पग पर ज्ञान की ज्योति झलकती है। और विश्व गुरु के नाम से जाना जाता है। और वह सिर्फ भारत ही हो सकता है।

स्वामी विवेकानंद जी एक दार्शनिक, एक वक्ता, एक कलाकार और व्यापक रूप से यात्रा करने वाला भिक्षु, स्वामी विवेकानंद के बारे में अक्सर यह कहा जाता है कि “उनके विचार पूर्णतयः सकारात्मक है”। उन्होंने ‘विचार को केंद्रित’ करने का समर्थन किया और अपने शिष्यों से आग्रह किया कि “एक विचार धारण करें, उसी विचार को अपना जीवन बनाएं, उसी के बारे में सोचे, उसी के सपने देखें व अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों व नसों के साथ-साथ शरीर के हर हिस्से को उस विचार में लिप्त कर दें और जब तक उसकी प्राप्ति न हो जाए, तब तक अन्य विचारों को त्याग दें।” क्योंकि जितने अच्छे विचार मनुष्य के होंगे उतनी ही अच्छी उसकी ख्याति होगी और वह जग प्रसिद्ध हो जाएगा। और यह भी कहा है, शुद्ध विचार धारण करने वाले मनुष्य का आचरण और सभ्यता भी शुद्ध ही होता है और वह इस सृष्टि को सकारात्मक भाव से देखता है।

■  कैसे करे मन को एकाग्र 
-- मन नियंत्रण के लाभों पर विवेकानंद के विचार

स्वामी विवेकानंद ने बताया कि एक अनियंत्रित मन हमें जीवन में नकारात्मकता की ओर ले जाता है  और हमारे सोचने समझने की शक्ति को प्रभावित करता है ? हमारा ध्यान गलत भावों की ओर अग्रसर होता है।  और एक नियंत्रित मन हमें इस नकारात्मकता से बचाता है और हमें इस तरह के विचारों से भी मुक्ति दिलाता है। और हम जितना भी सोचते है वह सभी शुद्ध तथा उदेश्य पूर्ण होता है तथा किसी को क्षति नही पहुचाता है। उन्होंने इस विचार को प्रसारित किया कि ‘(आत्म जागरूकता)’ एक मन को नियंत्रित करने का सबसे अच्छा तरीका है। इच्छा शक्ति और दृढ़ संकल्प भी मन को भटकने से रोक सकता है।

 हम अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होते है। और हमारे साथ अच्छा ही घटित होता है। हालाँकि, उनके उपदेश चेतावनी से परिपूर्ण हैं, क्योंकि उनके अनुसार, मन को नियंत्रण में रखने के लिए एक ही विचार की बार-बार साधना करें। मन को नियंत्रित करने की साधना दिन में दो बार विशेष रूप से सुबह और शाम के समय की जानी चाहिए, क्योंकि मन जितना उस परम परमात्मा उस असीम शक्ती की ओर उन्मुख होगा हमारा ध्यान एकाग्र होगा तभी हमारा अपनी शक्ति पर काबू पा सकते है। क्योंकि ये दिन के सबसे शांत पहर हैं। उनका मानना था कि, इससे मन में होने वाले उतार-चढ़ाव में कमी आएगी। मन को नियंत्रित करने के बारे में विवेकानंद ने कहा कि एक एकाग्रता ही मनुष्यों को जानवरों से पृथक करती है मनु श्रेष पराणी है और यह उसकी श्रेषठता को बरकरा रखता है।और एकाग्रता में अंतर होने के कारण ही एक मनुष्य दूसरे से भिन्न होता है। वही उसको एक अलग निखारने मे सहयोग करता है।

■ नैतिकता और मन को नियंत्रण करने में विवेकानंद के उपदेश

परमात्मा से मिलाप और जन विकास का संदेश यह वह सामान्य उपदेश है, जो सभी दार्शनिक प्रवचनों का संयोजन करता है।

उनके अनुसार, नैतिकता सीधे मन के नियंत्रण से संबंधित है नैतिकता जिसमे समाहित है वही सभी मे स्वः को देखता है। और एक मस्तिष्क जो मजबूत और नियंत्रित है, वह परोपकारी, शुद्ध और बहादुर ही होगा।

■ स्वामी विवेकानंद का बहुआयामी योगदान

विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता, भारत में हुआ था। हर साल उनकी जयंती ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में मनाई जाती है। संत रामकृष्ण के योग्य शिष्य ने हमेशा गहन और साधारण तथ्य का प्रसार करने की कोशिश की। उन्होने कहा कि “प्रत्येक आत्मा परम दिव्य है और लक्ष्य, बाहरी और आंतरिक स्वरूप को नियंत्रित करके इस दिव्यता को प्रकट किया जा सकता है।” उनके मार्मिक शब्दों ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस, अरविन्द घोष और बाल गंगाधर तिलक सहित स्वतंत्रता संग्रामियों की पीढ़ियों को काफी प्रेरित किया। उन्होंने अपने ज्ञान से सभी  सुशोभित किया और सभी को आदर्श जीवन जीने की नसीहत प्रदान की।

■ मन को नियंत्रित करने वाले विवेकानंद के बुद्धिजीवी वचन

मन को नियंत्रित करना एक दिन का काम नहीं है,यह तो सतत प्रक्रिया है, जो कर्मो से बंधी हुयी है जितने अच्छे कर्म होगे उतने ही अच्छे उसका व्यवहार तथा आचरण होगा।  इसके लिए नियमित और व्यवस्थित साधना की आवश्यकता होती है। जब यह नियंत्रित हो जाता है, तो अंदर से ऐसा महसूस होता है जैसे की परमात्मा की प्राप्ति हो गई है। वह परमात्मा जो समस्त ब्रह्मांड का तथा सृष्टि का घोतक है।

आपका शरीर एक हथियार है और इसे अधिक मजबूत बनाने पर विचार करना चाहिए। आप केवल अपने मन और शरीर को मजबूत बनाने का विचार कीजिए, इससे आप जीवन के महासागर को पार करने में सक्षम होंगे। अपने आप में एक मजबूत विश्वास आपको धार्मिक बनाएगा। इससे आपको काफी खुशी का आभास होगा और आपका मन नियंत्रित रहेगा।

मन को काबू में रखें, क्योंकि मन एक झील की तरह है, इसलिए इसमें गिरने वाला हर एक पत्थर लहरों को जन्म देगा। ये लहरें नहीं देखती हैं कि हम क्या हैं।

चुपचाप बैठो और मन को भटकने दो, जहाँ वह जाना चाहता है। परंतु आप अपने आप पर एक दृढ़ विश्वास रखें कि आप अपने मन को सभी यादृच्छिक दिशाओं में देख रहे हैं। अब भगवान से मिलाप करने की कोशिश करें, लेकिन सभी संसारिक मोह माया या रिश्तों को त्यागकर। कुछ समय बाद आप देखेंगे कि आपका मन शांत झील की तरह शांत हो रहा है। यह मन की भटकने की गति को धीमा कर देगा। प्रत्येक दिन इसकी साधना करें और अपने आप को पहचानें। समय के साथ-साथ आपका मन आपके नियंत्रण में होगा। और आप अपनी छवी को निखार सकते है। आप एक ज्योति के समान चमकने लगोगे और आप पूरे विश्व मे परिचित हो जाओगे।

मन को प्रफुल्लित लेकिन शांत रहने दें। कभी भी इसे ज्यादा न भटकने दें, क्योंकि इससे ध्यान भ्रमित होगा।

ध्यान का अर्थ है कि आपने अपने मन पर काबू कर लिया है। वह मन सभी आने वाली विचार-तरंगों और दुनियाभर की मोह-माया से निजात दिलाता है। इससे आपकी चेतना का विस्तार होता है। हर बार जब आप ध्यान करेंगे, तो आप अपने विकास के पथ पर अग्रसर होंगे।

हमें इस अस्थिर मन पर काबू पाना होगा और इसे भटकने से रोककर एक विचार पर केंद्रित करना होगा। इसे बार बार और कई बार किया जाना चाहिए। इच्छा शक्ति के द्वारा हमें अपने मन को काबू करना चाहिए और इस पर नियंत्रण पाकर ईश्वर की महिमा की स्तुति करें।

इससे मन के निरंतर नियंत्रण का प्रवाह स्थिर हो जाता है, क्योंकि जब आप दिन-प्रतिदिन साधना करते हैं, तो मन निरंतर एकाग्रता की शक्ति प्राप्त कर लेता है।

बाहरी और आंतरिक सभी इंद्रिया, मनुष्य के नियंत्रण के अधीन होनी चाहिए। कड़ी साधना के जरिए ही वह उस मुकाम को हासिल करता है, जहाँ वह प्रकृति के आदेशों व इंद्रियों के खिलाफ अपने मन को एकाग्रचित कर सकता है। वह अपने मन को यह कहने में सक्षम होना चाहिए कि “आप मेरे हो, मैं आपको आदेश देता हूँ कि कुछ भी न देखो और न सुनो” और मन भी कोई स्वरुप या ध्वनि प्रतिक्रिया किए बिना न कुछ सुनेगा और न ही देखेगा।

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■ स्वामी विवेकानंद के अमूल्य विचार
 (Motivational Quotes in hindi )

"चाहे हमारे देश की बात करे या अन्य किसी भी देश की वर्तमान शिक्षा प्रणाली केवल क्लर्क पैदा करने की मशीनरी मात्र है, यदि केवल यह इसी प्रकार की होती है तो भी मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ।"

● " किन्तु इस दूषित शिक्षा प्रणाली द्वारा शिक्षित भारतीय युवक अपने पिता, अपने पूर्वजों, अपने इतिहास एवं अपनी संस्कृति से घृणा करना सीखता है।"

● "उसका अहम यहां तक हावी हो जाता है यहाँ तक की पवित्र वेदों, पवित्र गीता को थोथा एवं झूठा समझने लगता है।"

● "अपने अतीत, अपनी संस्कृति पर गौरव करने के बदले वह उनसे घृणा करने लगता है और विदेशियों की नकल करने में ही गौरव का दुष्प्रभाव करता है।"


● "हम अभी तक सफल नही हो पाये क्योंकि वर्षों की इस दूषित शिक्षा प्रणाली का दुष्प्रभाव स्पष्ट दिखता है कि यह शिक्षा एक भी यथार्थ व्यक्त्तिव के निर्माण में सफल नहीं रही है।"



● "ऐसी शिक्षा का महत्व ही क्या जो हमें केवल परतन्त्र बनने का मार्ग दिखाती है। जो हमारे गौरव, स्वावलंबन एवं आत्म-विश्वास का हरन करती है।"

● "ऐसी शिक्षा का क्या महत्व जिसे पाकर हम स्वतन्त्र रूप से कुछ भी करने में असमर्थ रहते हैं।" और जिसे पाकर हमें नौकरियों के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं।  चाहे फिर बी.ए. , एम. ए.,बी. एस.सी, इंजिनियरिंग व मास्टर डिग्री तक प्राप्त करने के बाद भी युवक स्वतन्त्र रूप से अपनी आजीविका नहीं कमा सकता।"



● "शिक्षित होने का अभिप्राय  परीक्षायें पास कर लेना या धुआंधार व्याख्यान देने की शक्ति प्राप्त कर लेना ही शिक्षित हो जाना नहीं कहलाता।शिक्षा वह है जिसके बल से लोगों को जीवन संग्राम के लिए समर्थ किया जा सके।"



● " अक्सर हम सोच लेते है कि हमने किताबी ज्ञान बहुत प्राप्त कर लिया।लेकिन  पोथियाँ पढ़ लेना शिक्षा नहीं है। न ही अनेक प्रकार का ज्ञान प्राप्त करने का नाम शिक्षा है। शिक्षा तो वह है जिसकी सहायता से इच्छा शक्ति का वेग और स्फूर्ति अपने वश में हो जाये और जिससे अपने जीवन के उद्देश्य पूर्ण हो सकें।"



● "शिक्षा का मतलब अपने दिमाग में सूचनाओं एवं जानकारियों को भरना नहीं है। बल्कि जानकारियों को सही उपयोग करना ही शिक्षा है।शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को व्यावहारिक बनाना है। जो शिक्षा व्यावहारिक नहीं है वह व्यर्थ है।"



● "कुछ शब्दों को पढ़ लिखना शिक्षा नहीं है। शिक्षा का मतलब व्यक्तियों को इस तरह से संगठित करने से है जिससे उनके विचार अच्छाई, व लोगों की भलाई के लिए दौड़े और वे अपने कार्य को पूर्ण कर सकें।"



● जो वर्तमान शिक्षा हमें चरित्र-बल, आत्म-विश्वास, संघर्ष-शक्ति और सिंह के समान सहास प्रदान करने में असमर्थ हैं तो वह शिक्षा व्यर्थ है।

 ● सच्ची शिक्षा वह प्रशिक्षण है जिसके द्वारा विचारधारा एवं भावाभिव्यक्ति को नियोजित, नियमित एवं कल्याणकारी बनाया जा सके ।

● सच्ची शिक्षा तो वह है जो मनुष्य बुद्धि एवं दृष्टिकोण को विकसित कर व्यापक बना सके ।

● सच्ची शिक्षा का लक्ष्य ही मनुष्य के व्यक्त्तिव व यथार्थ मानव का निर्माण करना होता है।


● हमें ऐसी शिक्षा की जरूरत है जिससे चरित्र निर्माण हो, मानसिक शक्ति बढ़े, बुद्धि विकसित हो और मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा होना सीखे।

● हमें ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है जिससे की व्यक्ति अपनी आर्थिक जरूरत पूरी कर सके । ऐसी शिक्षा जो दूसरों के बारे में अच्छा सोचने और करने को कहती है


● आज हमारे देश के युवाओं को सबसे अधिक किसी चीज की आवश्यकता है तो वह है लोहे की मांसपेशियां और स्टील की नर्व्स (फौलाद के स्नायु ।



● एसी सोच और दृण विश्वास की जो संसार के हर गुप्त तथ्यों और रहस्यों को भेद सके और जिस उपाय से भी हो अपने लक्ष्य की पूर्ती करने में समर्थ हो, फिर चाहे समुद्र की अथह गहराई में ही क्यों न जाना पड़े या फिर साक्षात मृत्यु का ही सामना ही क्यों न करना पड़े।



● हमें अपने देश की आध्यात्मिक शिक्षा और सभी प्रकार की ऐतिहासिक शिक्षा अपने हाथ में लेनी होगी और उस शिक्षा में भारतीय शिक्षा की सनातन गति स्थिर रखनी होगी।



● अगर आप चाहते हो कि आपके बेटे भी महान बनें तब आपके घर में महिलाओं का शिक्षित होना अति आवश्यक है।



● वर्तमान शिक्षा प्रणाली मनुष्यत्व की शिक्षा नहीं देती है, गठन नहीं करती और बस वह तो एक बनी बनाई चीज को तोड़ना-फोड़ना जानती है। ऐसी शिक्षा जो अस्थिरता और नेतिभाव को फैलाती है किसी काम की नहीं है।

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