नवरात्रों का महत्व
नवरात्र कथा
एवं राम नवमी
Fastwal of durga mata
卐 नवरात्रों का महत्व 卐
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दुर्गा नवरात्र |
""देवी प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य |
प्रसीद विशवेश्वरि पाहन विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य |
दुर्गा माता के सभी भक्तों को मेरा प्रणाम । आप सभी भक्तों को माता के नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाये,। माताराणी आपके परिवार मे खुशहाली बरते। आपके घर मे लक्ष्मी का वास हो । यह त्यौहार पूरे भारत मे तथा भारत के जितने भी प्रवासी अन्य देशों मे बैठे हुए है वे सभी इन दिनों को बडे हर्षोल्लास के साथ मिलकर मनाते है। भक्तों दुर्गा मां का प्रसिद्ध ग्रन्थ दुर्गा सप्तशती जो अपने आप मे पवित्र तथा कल्याणमयी मानी गयी है । इसमे भगवती की कृपा के सुन्दर इतिहास के साथ-साथ बडे-बडे गूढ साधन-रहस्य भरे हुये है। कर्म, भक्ति और ज्ञान की त्रिविध मंदाकिनी बहाने वाली यह देवी तथा यह पुस्तक भक्तों के लिए वांछाकल्पतरू के समान है ।
भक्तों नवरात्रि पर्व से हम सभी अभिभूत है। जिसका अर्थ है नौ देवियों की शक्ती या नौ देवियों का दिन। हर वर्ष मे नवरात्र चार बार आते है जो हिन्दू वर्षों के अनुसार (पौष,चैत्र,आषाढ,अश्विन) मास के शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तिथी तक मनाया जाता है यानी वर्ष मे चार बार हम देवी शक्ती की आराधना करते है। लेकिन इन चारों नवरात्रों मे गूढ रहस्य छुपा हुआ है। इसमे कई लोगों को सिर्फ दो ही नवरात्र की जानकारी होती है। जबकी इसमे खास बात यह है कि यह दो प्रकार के नवरात्र होते है । जिसमे दो गुप्त नवरात्र की संज्ञा दी गयी है।
1--गुप्त नवरात्र __ आषाढ और पौष मास मे मनाया जाता है ।
2--उजागर नवरात्र__चैत्र और अश्विन मास मे मनाया जाता है।
इसमे कोई शंका नही है सभी नवरात्रों का समान महत्व है। भक्त देवी के अलग-अलग रूपों का गुणगान करते है
--देवी मां दुर्गा के नौ रूप ----
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Ma durga |
""प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी ।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्मांडेति चतुर्थकम् ।।
पञचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरी चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ।।
अर्थात--
देवी की नौ मूर्तियां है , जिन्हें (नवदुर्गा )कहते है--
1- शैलपुत्री (2)-ब्रह्मचारिणी (3)-चन्द्रघण्टा (4)-कूष्मांडा (5)-स्कंदमाता (6)-कात्यायनी (7)-कालरात्रि (8)-महागौरी (9)-सिद्धिदात्री
देवी के ये नाम सर्वज्ञ महात्मा वेद भगवान के द्वारा ही प्रतिपादित हुये है।जो व्यक्ति अग्नि मे जल रहा हो या रण भूमी मे शत्रुओं से घिर गया हो या फिर विषम संकट में फंस गया हो तथा अनेक प्रकार के कष्टों में फंसे हुए व्यक्ति जब माता की सरण में जाते है तो माता अनेकों रूपों को दिखाकर भक्तों का कल्याण करते है
भगवती के 108 नाम है। जिसे शंकर जी ने पार्वती को बताया था । इन 108 नामों के श्रवण मात्र से ही सारी बाधाएं दूर हो जाती है। और दुर्गा प्रसन्न हो करके मन चाहा फल देती है। जो नित्य इसका पाठ करता है उसे कभी कोई कष्ट नही होता है।
श्री दुर्गा के 108 नाम---
1-सती 2-साध्वी 3-भवप्रीता 4-भवानी 5-भवमोचनी 6- आर्या 7-दुर्गा 8-जया 9--आद्या 10-त्रिनेत्रा 11-शूलधारिणी 12-पिनाकधारिणी 13-चित्रा 14-चण्डघण्टा 15-महातपा 16- मन 17-बुद्धि 18-अहंकारा 19-चित्तरूपा 20-चिता 21-चिति 22-सर्वमंत्रमयी 23-सत्ता 24-सत्यानंदनस्वरूपिणी 25-अनन्ता 26-भावना 27-भाव्या 28- भव्या 29-अभव्या 30-सदागती 31-शाम्भवी 32-देवमाता 33- चिन्ता 34-रत्नप्रिया 35-सर्वविद्या 36-दक्षकन्या 37-दक्षयज्ञविनाशिनी 38-अपर्णा 39-अनेकवर्णा 40-पाटला 41-पाटलावती 42-पट्टाम्बरपरीधानाम 43-कलमंजरीररंजिनी 44-अमेयविक्रमा 45- क्रूरा 46-सुन्दरी 47सुरसुन्दरी 48-वनदुर्गा 49-मातंगी 50-मतंगमुनिपूजिता 51-ब्राह्मी 52-माहेश्वरी 53-ऐन्द्री 54-कौमारी 55-वैष्णवी 56-चामुंडा 57-वाराही 58-लक्ष्मी 59-पुरूषाकृति 60-विमला 61-उत्कर्षिणी 62-ज्ञाना 63-क्रिया 64-नित्या 65-बुद्धिदा 66-बहुला 67-बहुलप्रेमा 68-सर्ववाहनवाहना 69-निशुम्भ-शुम्भहननी 70-महिषासुरमर्दनी 71-मधुकैटभहन्त्री 72-चण्डमुण्डविनाशिनी 73-सर्वासुरविनाशा 74-सर्वदानवघातिनी 75-सर्वशास्त्रमयी 76-सत्या 77-सर्वास्त्रधारिणी 78-अनेकशस्त्रहस्ता 79- अनेकशस्त्रधारिणी 80- कुमारी 81-एककन्या 82-कैशोरी 83-युवती 84-यती 85-अप्रौढा 86-प्रौढा 87-वृद्धमाता 88-बलप्रदा 89-महोदरी 90-मुक्तकेशी 91- घोररूपा 92-महाबला 93-अग्निज्वाला 94-रौद्रमुखी 95-कालरात्री 96-तपस्विनी 97-नारायणी 98-भद्रकाली 99-विष्णुमाया 100-जलोदरी 101-शिवदूती 102-कराली 103-अनन्ता 104-परमेश्वरी 105- कात्यायनी 106-सावित्री 107--प्रत्यक्षा 108-ब्रह्मवादिनी
देवी भगवती के अष्तोत्तरशतनाम का जो प्रतिदिन पाठ करता है उसके तीनों लोको मे कुछ भी असाध्य नही होता।
नवरात्रों में श्रीराम चरित्रमानस का महत्व
रामचरित मानस के कुछ रोचक तथ्य
● लंका में राम जी = 111 दिन रहे।
● लंका में सीताजी = 435 दिन रहीं।
● मानस में श्लोक संख्या = 27 है।
● मानस में चोपाई संख्या = 4608 है।
●मानस में दोहा संख्या = 1074 है।
●मानस में सोरठा संख्या = 207 है।
● मानस में छन्द संख्या = 86 है।
● सुग्रीव में बल था = 10000 हाथियों का।
● सीता रानी बनीं = 33वर्ष की उम्र में।
● मानस रचना के समय तुलसीदास की उम्र = 77 वर्ष थी।
● पुष्पक विमान की चाल = 400 मील/घण्टा थी।
● रामादल व रावण दल का युद्ध = 87 दिन चला।
● राम रावण युद्ध = 32 दिन चला।
● सेतु निर्माण = 5 दिन में हुआ।
● नलनील के पिता = विश्वकर्मा जी हैं।
● त्रिजटा के पिता = विभीषण हैं।
● विश्वामित्र राम को ले गए = 10 दिन के लिए।
● राम ने रावण को सबसे पहले मारा था = 6 वर्ष की उम्र में।
● रावण को जिन्दा किया = सुखेन बेद ने नाभि में अमृत रखकर।
श्री राम के दादा परदादा का नाम क्या था?
नहीं तो जानिये-
● ब्रह्मा जी से मरीचि हुए,
● मरीचि के पुत्र कश्यप हुए,
● कश्यप के पुत्र विवस्वान थे,
● विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए.वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था,
● वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था, इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुलकी स्थापना की |
● इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए,
● कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था,
● विकुक्षि के पुत्र बाण हुए,
●- बाण के पुत्र अनरण्य हुए,
● अनरण्य से पृथु हुए,
● पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ,
● त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए,
● धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था,
● युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए,
● मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ,
● सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित,
● ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए,
● भरत के पुत्र असित हुए,
● असित के पुत्र सगर हुए,
● - सगर के पुत्र का नाम असमंज था,
● - असमंज के पुत्र अंशुमान हुए,
● अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए,
● दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए, भागीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतारा था.भागीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे |
● ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए, रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया, तब से श्री राम के कुल को रघु कुल भी कहा जाता है |
● रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए,
● प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे,
● शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए,
● सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था,
● अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए,
● शीघ्रग के पुत्र मरु हुए,
● मरु के पुत्र प्रशुश्रुक थे,
● प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए,
● अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था,
● नहुष के पुत्र ययाति हुए,
● ययाति के पुत्र नाभाग हुए,
● नाभाग के पुत्र का नाम अज था,
● अज के पुत्र दशरथ हुए,
●दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए |
इस प्रकार ब्रह्मा की उन्चालिसवी (39) पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ |
नवत्रों मे रामनवमी का महत्व
राम नवमी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है, आज के दिन हम मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का जन्म दिन के रूप मे मनाते है। पूरे भारत और भात के अनुयायी जहां भी रहते होगे वहां पर बडे उत्साहित होकर हर्षोल्लास के साथ मिलकर इस त्यौहार को मनाते है। यह दिन मानव जाति के लिए प्रेरणा का दिन भी है।क्योंकि यह दिन हमे सिखाता है कि किस तरह से बुराईयो के तले दबे अच्छाई को जीता जा सकता है। यानी बुराई पर अच्छाई की जीत अवश्य होती है, भले ही उसमे थोड़ा समय और कठिनाई जरूर महसूस होती है। परन्तु बुराई जादा देर तक टिकी नही रहती है।
भगवान राम का जन्म नवमी तिथि को पुष्य नक्षत्र मे हुआ था।और इन्हे भगवान बिष्णु का अवतार माना जाता है।हिन्दु शास्त्रों के अनुसार त्रेता युग मे रावण के अत्याचारों से भयभीत मनुष्यों को तारने के लिए भगवान ने धरती पर अवतार लिया।श्री राम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न मे कौशल्या के गर्भ से राजा दशरथ के घर मे हुआ था। जन्म होते ही अयोध्या मे खुशहाली छा गयी।जैसा कि हर मानव समझ गया था कि अब उनके दुखों का निवारण हो सकेगा।
दशरथ के बडे पुत्र श्री राम के रूप मे इनका जन्म अपने आप मे अलौकिकता था।अयोध्या मे यह दिन हर्षोल्लास से मनाया जाता है ।लोग सरयू नदी मे स्नान करके भगवान श्री राम की पूजा पाठ करते है।राज्य नवमी से पहले लोग माता की सात्विक रूप से पूजा-अर्चना उपवास तथा भक्ति मे रमे रहते है।
राम नवमी के साथ ही चैत्र नवरात्रि का समापन भी होता है। लोग नौ दिनों तक हरियाली जमा करके आदी शक्ति माता की आराधना करते है। तथा अपने जीवन को धन्य समझते है।
भगवान राम का जन्म का जन्म बिष्णु के सबसे पुराने अवतारों मे से एक है जो मानव के रूप मे है।भगवान राम नवमी के दिन सूर्य की आराधना से शुरू होता है क्योंकि यह शक्ति का स्वरूप माना जाता है।
रामनवमी का पूजन शुद्ध और सात्विक रुप से भक्तों के लिए विशष महत्व रखता है इस दिन प्रात:कल स्नान इत्यादि से निवृत हो भगवान राम का स्मरण करते हुए भक्त लोग व्रत एवं उपवास का पालन करते हैं। इस दिन लोग उपवास करके भजन कीर्तन से भगवान राम को याद करते है. इसके साथ ही साथ भंडारे और प्रसाद को भक्तों के समक्ष वितरित किया जाता है। भगवान राम का संपूर्ण जीवन ही लोक कल्याण को समर्पित रहा। उनकी कथा को सुन भक्तगण भाव विभोर हो जाते हैं व प्रभू के भजनों को भजते हुए रामनवमी का पर्व मनाते हैं।
राम जन्म की पौराणिक कथा
राम का जन्म अयोध्या धाम मे हुआ जहां कलकल करती हुयी मां सरयू के किनारे विद्यमान है, जो पवित्रता तथा पावन मानी जाती है।उसी तट पर एक बार राजा दशरथ बैठे हुए थे, मन मे शंकोच और ग्लानि थी कि उसके राज पाठ को सम्भालने वाला कोई उत्तरदायी नही।
मां सरयू से अपनी व्यथा प्रस्तुत की तथा उसके बाद अपने कुल गुरू के पास गये और विनती की कि हे गुरू देव मेरी कोई सन्तान क्यों नही है , गुरु जी ने उन्हे शान्तुना देते हुए कहा तुम्हारी एक नही बल्कि चार सन्ताने होगी जो पूरे विश्व मे अपना परचम लहरायेगे।
इसीलिए लिए इस धरती पर इस चैत्र नवरात्रों से सबकुछ परिवर्तन हो जाता है , युग परिवर्तित होता है , संवत्सर परिवर्तित होता है , ऋतुवें परिवर्तित होती है।और इसके साथ-साथ मनुष्य की भावनायें भी परिवर्तित हो जाती है, इसलिए इस दिन को पावन माना जाता है। भगवान राम ने दोपहर के 12 बजे अभिजीत समय अयोध्या मे जन्म लिया।
कहा भी गया है ---
नवमी तिथि मधुमास पुनीता,
शुक्ल पक्ष अभिजित हर प्रीता,
मध्य दिवस अरू शीत न घामा,
पावन काल लोक विश्रामा,।
इसी प्रकार कुमार के नवरात्रों की दशमी तिथि को भगवान राम ने रावण का वध किया था।जिसके लिए भगवान राम ने अवतार लिया था।इसी दिन बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी ।
नवरात्र कथा शक्ति का स्वरूप
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Durga mata |
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