Saturday 19 October 2019

लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहुर्त, धनतेरस का महत्व , किसकी खरीद होगी धनतेरस पर बहुत फायदेमन्द, क्यों मनाई जाती है नर्कचतुर्दशी, नर्कचतुर्दशी का महत्व,

 दीपावली उत्सव

Shubh deepawali


लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहुर्त,
धनतेरस का महत्व ,
किसकी खरीद होगी धनतेरस पर बहुत फायदेमन्द,
क्यों मनाई जाती है नर्कचतुर्दशी,
नर्कचतुर्दशी का महत्व,


दोस्तों यह ब्लाॅग gyan sadna का उद्येश्य यही है कि सभी पाठकों तक हम पूर्ण सही जानकारी से अवगत करा सके,आप इसमे धार्मिक,नारी जीवन,एक सोच,हिन्दी संस्कृत व्याकरण और कविताओं से सम्बन्धित जानकारी हासिल कर सकते है।

दीपावली-- प्रदोषव्यापिनी  कार्तिक अमावस्या के दिन दीपावली पूजन एवं कार्तिक त्रयोदशी के दिन धनतेरस तथा कार्तिक चतुर्दशी के दिन नरक चतुर्दशी का महत्व एवं विधान,पूजा पाठ।

धनतेरस--

Dhanteras

दोस्तों हिन्दू सम्प्रदाय ही नही अपितु पूरे भारत वर्ष मे यह त्यौहार धूम-धाम से मनाया जाता है।
कार्तिक मास कृष्ण त्रयोदशी के दिन धनतेरस पर्व मनाया जाता है। इसी दिन सांयकाल संध्या में दीपदान ,पूजा पाठ आदी किए जाते है। माना जाता है कि यह दिन यमराज को प्रसन्न करने का दिन है। इस दिन सांय काल मे लोग घरों के बाहर मुख्य दरवाजे पर  एक अनाज से भरा हुआ पात्र मे यम की प्रसन्नता के लिए दीपदान दक्षिण मुख होकर श्रद्धा-भक्ति के साथ करना चाहिए। विशेष पूठा पाठ करने के बाद सात्विक मन से प्रार्थना करनी चाहिए---

  ( मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह ।
त्रयोदश्यां दीप दाना त्सूर्यजः  प्रीयतामिति।।

अर्थात यह पर्व  भी प्रदोषकालव्यापनी त्रयोदशी तिथी के दिन किया जाता है। (संवत 2076--(2019) मे कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी प्रदोषकाल को वयाप्ति नहीं कर रही है,इसीलिए पूर्व दिन दिनांक 25-अक्टुबर 2019 को प्रदोषकाल मे त्रयोदशी प्राप्त होने से इसी दिन धनतेरस पर्व मनाया जाता है।

धनतेरस की कथा

दोस्तो हम इस त्यौहार के लिए कयी दिनों से योजना बनाते है और हम बरपूर मनोरंजन के साथ त्यौहार मनाते है। लेकिन किसी को इसका महत्व पता नहीं होता है, इसकी एक प्रचलित कहानी है।

शास्त्रों के अनुसार धनतेरस कार्तिक त्रयोदशी के दिन मनाया जाता है। इसी दिन भगवान धनवंतरी हाथों में स्वर्ण कलश लेकर समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए। धनवंतरी ने कलश में भरे हुए अमृत से देवताओं को पिलाकर अमर बना दिया। धनवंतरी के जन्म के दो दिनों बाद देवी लक्ष्मी प्रकट हुई इसलिए दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। लेकिन इसका आशय यह नही कि हम जमकर अनावश्यक वस्तुओं की खरीदारी करें।

शास्त्रों के अनुसार भगवान धनवंतरी देवताओं के वैद्य भी हैं। इनकी भक्ति और पूजा से आरोग्य सुख यानी स्वास्थ्य लाभ मिलता है। मान्यता है कि भगवान धनवंतरी विष्णु के अंशावतार हैं। संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धनवंतरी का अवतार लिया था। इस दिन हम अपने मन में शंकल्प ले सकते है कि हमारे अन्दर कोई ऐसा विकार न हो की हमे किसी औषधी की आवश्यकता पढे।

माता लक्ष्मी के ये नाम जिनके स्मरण मात्र से व्यक्ति धन वैभव से सम्पन हो जाता है। और दरिद्रता को दूर करता है। ये बहुत ही प्रभावशाली है इसका नित्य जाप करना चाहिए।
कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथी धनतेरस के शुभ मौके पर हम सभी कुछ न कुछ वस्तु खरीदकर घर लाते हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि ऐसा करने से धन संपत्ति में वृद्धि होती है। मन मे यह आशा जाग उठती है कि आज के दिन हमने अपनी कमाई को सही जगय स्थान दिया है। लेकिन धनतेरस में खरीदारी का एक खास तरीका है जिसका वर्णन शास्त्रों में मिलता है। अगर शास्त्रों में बताये गये नियमों के अनुसार धनतेरस के अवसर पर खरीदारी करें तो धनतेरस के अवसर पर की गयी खरीदारी आपके धन को तेरस यानी तेरह गुणा कर सकती है।

नए बर्तन खरीदने से घर में समृद्धि आती है। 
धनतेरस के अवसर पर नये बर्तन खरीदने की परंपरा है। इस परंपरा के पीछे यह मान्यता है कि इसी दिन अमृत कलश लेकर धन्वंतरी भगवान प्रकट हुए थे। इसलिए नए बर्तन खरीदने से घर में समृद्धि आती है। लेकिन बर्तन की खरीदारी करते समय बहुत से लोग मुहूर्त का ध्यान नहीं रखते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शुभ मुहूर्त में खरीदारी करने से धन संपत्ति में वृद्धि होती है।

ध्यान रखने योग्य बातें----
बरतन खरीदते समय एक बात का और ध्यान रखना चाहिए कि बर्तन खरीदकर उसमें कुछ मिठाइयां, खील, चावल अथवा बताशे जरूर भर लें। घर में भरा हुआ बर्तन का आना समृद्धि का प्रतीक होता है। बर्तन खरीदने के बाद बरतन बेचने वाले से बरतन में एक रूपये का सिक्का रखवा लें तो यह और भी उत्तम होता है।

स्वर्ण आभूषण
धनतेरस मे सोने चांदी से बनी धातुओं को खरीदना बहुत ही शुभ माना जाता है। इसका सीधा संबंध धन की वृद्धि से है इसलिए धनतेरस के मौके पर स्वर्ण और चांदी की खरीदारी का प्रचलन है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सोना गुरू का धातु है। गुरू को धन का कारक गया है। स्वर्ण की खरीदारी से गुरू का शुभ प्रभाव बढ़ता है जिससे धन में वृद्धि होती है। चांदी को शुक्र और चन्द्रमा से प्रभावित माना जाता है। शुक्र को सुख एवं वैभव प्रदान करने वाला ग्रह माना गया है। इसलिए धनतेरस के मौके पर चांदी एवं हीरा खरीदना भी शुभ माना जाता है।

चांदी के आभूषण--

बहुत से लोग धनतेरस के मौके पर चांदी के बर्तन और अन्य सामग्री खरीदते हैं। इन चीजों में अन्य धातु को मिलाया जाता है। इसी प्रकार सोने के गहनों में भी अन्य धातुओं को मिलाया जाता है। मिलावट वाले धातु खरीदने की बजाय शुद्ध सोना और चांदी खरीदें तो व्यवहारिक एवं ज्योतिषीय दृष्टि से लाभप्रद हो सकता है।

जमीन जायदात खरीदना

सामान्यतः आजकल लोग चमकदार या लुभावनी वस्तुओ को अधिक खरीदते है। इस मौके पर इलेक्ट्रॉनिक चीजों को खरीदने का प्रचलन इन दिनों बढ़ता जा रहा है। लेकिन शायद हमे यह मालूम नही हो पाता है कि जिन वस्इतुओं को हम खुशी समझ कर घर लेजा रहे है वह इलेक्ट्रानिक्स प्रोडक्ट से आयु कम होती है और इनकी कीमत समय के साथ कम होती जाती है। इसलिए धनतेरस के मौके पर इन चीजों की खरीदारी की बजाय शुद्ध धातुओं में निवेश करना चाहिए। जमीन एवं मकान खरीदना भी इस दिन शुभ होता है।

दीपावली-- कार्तिक अमावस्या के दिन दीपावली मे महालक्ष्मी पूजन विधान----
""इयं प्रदोषव्यापिनी ग्राहा,
     दिनद्वये सत्वाऽसत्वेपरा।""
लक्ष्मी पूजन --दीपावली के लिए प्रदोष का महात्म्य है। अतः प्रदोषकाल व्यापिनी अमावस्या लक्ष्मी पूजन के लिए शुभ है।
""प्रदोषसमये लक्ष्मीं पूजयित्वा तथाक्रमम् ।
दीपवृक्षास्त्तथा कारायाः शक्त्या देवगृहेषु च ।""
मनुष्य जीवन का आधार माना गया है धन वैभव को यानी पैसे से ही मनुष्य के जीवन की तमाम भौतिक जरुरतें पूरी होती हैं। धन, संपत्ती, समृद्धि का एक नाम लक्ष्मी भी है। लक्ष्मी जो कि भगवान विष्णु की पत्नी हैं। मान्यता है कि मां लक्ष्मी की कृपा से ही घर में धन, संपत्ती समृद्धि आती है। जिस घर में मां लक्ष्मी का वास नहीं होता वहां दरिद्रता घर कर लेती है। इसलिये मां लक्ष्मी का प्रसन्न होना बहुत जरुरी माना जाता है और उन्हें प्रसन्न करने के लिये की जाती है मां लक्ष्मी की पूजा। वैसे तो पूजा ,आराधना का कोई निश्चित समय या दिन नही होता है आप कभी भी अपने ईष्ट की पूजार्आचना कर सकते है। लेकिन कुछ प्रमु त्यौहारों पर इसका महत्व होता है,कि पूजा का निश्चित समय क्या है। हम आपको पूजा विधी भी बताने जा रहे है।

आपको हम बताते हैं कि क्या है लक्ष्मी पूजन की विधि और पूजा के लिये चाहिये कौनसी सामग्री?

कौन हैं लक्ष्मी,लक्ष्मी का स्वरूप
देवी लक्ष्मी को धन और सम्रद्धि की देवी कहा जाता है। सनातन धर्म के विष्णु पुराण में बताया गया है कि लक्ष्मी जी भृगु और ख्वाती की पुत्री हैं और स्वर्ग में यह वास करती थी। समुद्रमंथन के समय लक्ष्मी जी की महिमा का व्याख्यान वेदों में बताया गया है। लक्ष्मी जी ने विष्णु जी को अपने पति के रुप में वरण किया जिससे इनकी शक्तियां और प्रबल हुई मानी जाती हैं।

लक्ष्मी का अभिषेक दो हाथी करते हैं। वह कमल के आसन पर विराजमान है। लक्ष्मी जी के पूजन में कमल का विशेष महत्त्व बताया गया है। क्योकि यह फूल कोमलता का प्रतीक है इसलिए माँ लक्ष्मी जी की पूजा में इसका स्थान आता है। लक्ष्मी जी के चार हाथ बताये गये हैं। वे एक लक्ष्य और चार प्रकृतियों (दूरदर्शिता, दृढ़ संकल्प, श्रमशीलता एवं व्यवस्था शक्ति) के प्रतीक हैं और माँ लक्ष्मी जी सभी हाथों से अपने भक्तों पर आशीर्वाद की वर्षा करती हैं। इनका वाहन उल्लू को बताया गया है जो निर्भीकता का सूचक है।


लक्ष्मी पूजन के लिये सामग्री
कहा जाता है कि मन अगर पवित्र है तो सभी देव प्रसन्न हो जाते है ,क्योकि देव तो प्रेम के भूखे होते है। फिर भी अपनी सामर्थ्य के अनुसार सामग्री जुटा सकते हैं।
मां लक्ष्मी को हैं ये वस्तुएं बहुत प्रिय ---
1-- लाल, गुलाबी या फिर पीले रंग का रेशमी वस्त्र
2--  कमल और गुलाब के फूल
3-- श्री फल, सीताफल, बेर, अनार और सिंघाड़े 
4-- चावल, घर में बनी शुद्ध मिठाई, हलवा, शिरा का नैवेद्य 
5-- दिया जलाने के लिये गाय का घी, मूंगफली या तिल्ली का तेल

 लक्ष्मी पूजन सामग्री
●अलरोली,  ●कुमकुम,  ●पान, ●सुपारी,  ●लौंग,  ●इलायची, ● चौकी,  ●कलश, ● मां लक्ष्मी व भगवान श्री गणेश जी की प्रतिमा या चित्र,  ●आसन,  ●थाली, ●चांदी का सिक्का,  ●धूप, ●कपूर,  ●अगरबत्तियां,  ●दीपक,  ●रुई,  ●मौली, ●नारियल,  ●शहद,  ●दही ●गंगाजल,  ●गुड़,  ●धनियां, ●जौ,  ●गेंहू,   ●दुर्वा,   ●चंदन, ●सिंदूर,   ●सुगंध के लिये केवड़ा, गुलाब अथवा चंदन के इत्र ले सकते हैं।

पूजा की सरल विधि
सबसे पहले घर को साफ रख कर पूजा स्थान गाय के गोबर से लेपन कर दें,फिर जलपात्र से थोड़ा जल लेकर मूर्तियों के ऊपर छिड़कें इससे मूर्तियों का पवित्रकरण हो जायेगा, इसके पश्चात स्वयं को, पूजा सामग्री एवं अपने आसन को भी पवित्र करें। पवित्रीकरण के दौराण निम्न मंत्र का जाप करें-

ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।

य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: वाह्याभंतर: शुचि:।।

इसके बाद जिस जगह पर आसन बिछा है उस जगह को भी पवित्र करें और मां पृथ्वी को प्रणाम करें। इस प्रक्रिया में निम्न मंत्र का उच्चारण करें-

(पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग ऋषिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥)

"ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।

त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌॥"

पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः

अब पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और ॐ केशवाय नमः मंत्र बोलिये इसके बाद फिर एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और ॐ नारायणाय नमः मंत्र का उच्चारण करें इसी तरह तीसरी बूंद मुंह में डालकर ॐ वासुदेवाय नमः मंत्र बोलें। फिर ॐ हृषिकेशाय नमः कहते हुए हाथों को खोलें, अंगूठे के मूल से होठों पोंछ कर हाथों को धो लें। इस प्रक्रिया को आचमन कहते हैं इससे विद्या, आत्म और बुद्धि तत्व का शोधन हो जाता है। तत्पश्चात तिलक लगाकर अंग न्यास करें। अब आप पूजा के लिये पूरी तरह पवित्र हैं।

इसके बाद मन को एकाग्र व प्रभु में ध्यान लगाने के लिये प्राणायाम करें या आंखें बंद कर मन को स्थिर कर तीन बार गहरी सांस लें। पूजा के आरंभ में स्वस्तिवाचन किया जाता है इसके लिये हाथ में पुष्प, अक्षत और जल लेकर स्वतिन: इंद्र आदि वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए ईश्वर को प्रणाम किया जाता है। किसी भी पूजा को करने में संकल्प प्रधान होता है इसलिये इसके बाद संकल्प करें।

संकल्प के लिये हाथ में अक्षत, पुष्प और जल लें साथ में कुछ द्रव्य यानि पैसे भी लें अब हाथ में लेकर संकल्प मंत्र का जाप करते हुए संकल्प किजिये कि मैं अमुक व्यक्ति, अमुक स्थान एवं समय एवं अमुक देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं, जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हो।

संकल्प लेने के बाद भगवान श्री गणेश व मां गौरी की पूजा करें। इसके बाद कलश पूजें। हाथ में थोड़ा जल लेकर आह्वान व पूजन मंत्रों का उच्चारण करें फिर पूजा सामग्री चढायें। फिर नवग्रहों की पूजा करें, इसके लिये हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर नवग्रह स्तोत्र बोलें। तत्पश्चात भगवती षोडश मातृकाओं का पूजन करें। माताओं की पूजा के बाद रक्षाबंधन करें। रक्षाबंधन के लिये मौलि लेकर भगवान गणपति पर चढाइये फिर अपने हाथ में बंधवा लीजिये और तिलक लगा लें। इसके बाद महालक्ष्मी की पूजा करें।

लक्ष्मी जी के प्रभावशाली मंत्र--

माँ लक्ष्मी जी की पूजा के लिए वेदों में कई महत्वपूर्ण मन्त्र दिये गये हैं। ऋग्वेद में एक जगह माँ लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए निम्न मंत्र का उल्लेख किया गया है,आप नित्य इन मंत्रों का जाप करके अपने अभीष्ट कर्म से छुटकारा पा सकते है।

"ॐधनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः।"

"ॐधनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणं धनमस्तु ते।।"

"ॐअश्वदायै गोदायै धनदायै महाधने।"

"ॐधनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे।।"

"ॐमनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।"

"ॐपशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ।।"

लक्ष्मी देवी के 108नाम

1 प्रकृति       2 विकृति      3 विद्या       4 सर्वभूतहितप्रदा       5 श्रद्धा     6 विभूति    7 सुरभि स्वर्गीय     8 परमात्मिका     9 वाची    10 पद्मालया     11 पद्मा      12 शुचि   13 स्वाहा    14 स्वधा    15 सुधा     16 धन्या    17 हिरण्मयीं  18 लक्ष्मी     19 नित्यपुष्ट     20 विभा     21 अदिति    22 दीत्य        23 दीप्ता     24 वसुधा      25 वसुधारिणी     26 कमला      27 कांता    28 कामाक्षी     29 कमलसम्भवा    30 अनुग्रहप्रदा     31 बुद्धि     32 अनघा     33 हरिवल्लभी    34 अशोक     35 अमृता     36 दीपा    37 लोकशोकविनाशिनी     38 धर्मनिलया     39 करुणा    40 लोकमट्री      41 पद्मप्रिया      42 पद्महस्ता       43 पद्माक्ष्य   44 पद्मसुन्दरी     45 पद्मोद्भवा      46 पद्ममुखी     47 पद्मनाभप्रिया      48 रमा     49 पद्ममालाधरा      50 देवी      51 पद्मिनी     52 पद्मगन्धिनी     53 पुण्यगन्धा     54 सुप्रसन्ना     55 प्रसादाभिमुखी      56 प्रभा      57 चंद्रवंदना    58 चंदा      59 चन्द्रसहोदरी     60 चतुर्भुजा         61 चन्द्ररूपा       62 इंदिरा      63 इन्दुशीतला      64 अह्लादजननी      65 पुष्टि      66 शिव      67 शिवाकारी     68 सत्या     69 विमला      70 विश्वजननी     71 पुष्टि 
72 दरिद्रियनशिनी      73 प्रीता पुष्करिणी      74 शांता 
75 शुक्लमालबारा      76 भास्करि      77 बिल्वनिलया    78 वरारोहा     79 यशस्विनी    80 वसुंधरा    81                उदरंगा             82 हरिनी      83 हेमामालिनी      84 धनधान्यकी     85 सिद्धी      86 स्टरीनासौम्य      87 शुभप्रभा      88 नृपवेशवगाथानंदा     89 वरलक्ष्मी      90 वसुप्रदा।  91 शुभा    92 हिरण्यप्राका     93 समुद्रतनया।   94 जया    95 मंगला    96 देवी    97 विष्णुवक्षः    98 विष्णुपत्नी    99 प्रसन्नाक्षी     100 नारायण समाश्रिता     101 दरिद्रिया ध्वंसिनी     102 डेवलष्मी       103 सर्वपद्रवनिवर्णिनी    104 नवदुर्गा      105 महाकाली      106 ब्रह्मा-विष्णु-शिवात्मिका     107 त्रिकालज्ञानसम्पन्ना।  108 भुवनेश्वराय

नरक चतुर्दशी ---
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी जिस दिन प्रदोषकाल व्यापनी हो, उसी दिनी नरक चतुर्दशी पर्व मनाया जाता है। 

संवत २०७६ मे यह (26-अक्टुबर 2019) को होने से इसी दिन यह पर्व मनाया जायेगा।

नरक चतुर्दशी  को रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है, कहा  जाता है कि व्यक्ति को अगर मुक्ति पानी है तो इस दिन विशेष पूजन करना चाहिए। इस दिन सुबह स्नानादि करने के बाद निम्न श्लोक का जाप करना चाहिए--
"यमलोकदर्शनाभवकामोअहमभ्यंकस्नानं करिष्ये" , 

इसके बाद संकल्प करना चाहिए नरक चतुर्दशी के दिन तेल लगाना अति आवश्यक माना गया है,क्योकि कहा गया है-----
नरकस्य चतुर्दश्यां तैलाभ्यंगम् च कारयेत ।
अन्यत्र कार्तिकस्नायी तैलाभ्यंगम् विवर्जयेत् ।।

सूर्योदय से पूर्व नहाना आयुर्वेद की दृष्टि से अति उत्तम है। जो ऐसा हर दिन नही कर पाते है ,उन्हे कम से कम आज के दिन तो सूर्योदय के पूर्व अवश्य स्नान करना चाहिए। वरूण देवता को स्मरण करते हुए स्नान करना चाहिए।
नहाने के जल में हल्दी और कुमकुम अवश्य डालना चाहिए। अगर संभव हो तो नए वस्त्र पहनने चाहिए,फिर शाम को यम तर्पण करना चाहिए। शाम को यमराज के लिए दीपक अवश्य जलाना चाहिए, इस दिन कृष्ण भगवान ने राक्षस नरकासुर का वध किया था। और साथ ही ,राजा बलि को भगवान विष्णु ने वामन अवतार मे हर साल उनके यहां पहुचने का आशीर्वाद दिया था।
नरक चतुर्दशी का महत्व यह बताती है कि जो कथा है--- धर्मात्मा राजा रन्तिदेव से जुडी है।  उन्होने सदैव धर्म के अनुसार राज्य किया, लेकिन एक दिन उनके द्वार से एक गरीब आदमी अन्नदान न मिलने से भूखा ही लौट गया। इस बात का राजा को पता भी नही चला। फलस्वरूप जिस दिन उनकी मृत्यु हुई।


, उनके पास यमदूत खडे हो गये। राजा चौंक गये,पूछा कि जीवनभर  कोई पाप तो हुआ नही फिर आप क्यों आ गये, यमदूत से एक साल का समय मांगा । ऋषियों ने सलाह लेकर उन्होने नरक चतुर्दशी  का व्रत किया और भूखों को भोजन करा अपने अपराधों के लिए उनसे क्षमा मांगी। इससे राजा पापमुक्त होकर बिष्णु लोक मे गये। इस तरह पाप व नरक से मुक्ति दिलाता है नरक चतुर्दशी का व्रत।


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