Saturday 12 October 2019

इन कामों से मिलेगी कामयाबी /अब मंजिल होगी आपकी

कुछ बातें जो है महत्वपूर्ण

इन कामों से मिलेगी कामयाबी

अब मंजिल होगी आपकी


 बातों को ध्यान  मे रखकर मिलती है कामयाबी 
(1)--अज्ञान या अधूरा ज्ञान
यह सत्य है कि अज्ञानी मनुष्य कभी भी कोई श्रेष्ठ कार्य नही कर सकता। उसकी सोचने समझने की शक्ति इतनी प्रबल नही हो पाती की वह कौन सा कार्य करे या न करे। कुछ लोग ज्ञानी होने का अर्थ सिर्फ पढा लिखा होना ही समझते है।लेकिन अस्ल मे सही ज्ञानी वही है जिसने अपने आप को जान लिया या किसी भी वस्तु का होने का महत्व समझ लिया वही ज्ञानी है।
अधूरा ज्ञान जो प्राप्त करता है वहीं न तो ज्ञानी मे गिना जाता है न अज्ञानी मे दुनिया उसे बेढंगे नामो से पुकारती है। चाहे कोई भी ज्ञान अर्जित करो परन्तु ज्ञानी होना बहुत जरूरी है, क्योंकि उसी से मनुष्य की छमता का विकास होता है वह सामाजिक तभी कहलाता है। अन्यथा उसमे और पशु मे कोई अन्तर नही रह जाता। और इस सीढ़ी को पार करने पर ही सफलता प्राप्त होती है।

(2)--अहंकार 

अहंकार, घमण्ड एक ऐसा अभिशाप है जो मनुष्य के अन्दर विराजमान हो करके उसका नाश कर देता है। जिस शरीर मे रहेगा उस उस लकडी के समान राख कर देगा क्योंकि लकडी मे भी अग्नि रूपी क्रोध होता है जो उसे जलाकर राख कर देता है। अहंकारी मनुष्य अपना तो नुकसान करता ही है सस्साले उस समाज का भी करता है जहां वह निवास करता है।
असे कहीं न कहीं यह लगता है कि मै ही सबसे श्रेष्ठ या ज्ञानी हूं बाकी सब अज्ञानी है जितना मै जानता हूं उतना कोई नही जान सकता। यही घमण्ड किसी भी व्यक्ति का पतन का कारण बन जाता है। और जो कभी घमण्ड नही करता उसी को सभी कामयाबी प्राप्त होती है।

(3)--अत्यधिक मोह 

अधिक मोह हमारे जीवन के तमाम पहलुओं को नष्ट कर देता है। हमारे अन्दर की सभी अच्छाइयों पर भी पर्दा गिर जाता है। फिर वह अगर कोई भी गलत कार्य ही क्यों न करे हम कहीं न कहीं उसे भी अच्छा ही मानने लगते हैं और यही भावना उसके जीवन को बर्बाद करे सकती फिर चाहे वह अपना पुत्र हो या कोई अन्य निकटी।
बुद्धि हमे उन्ही की विकसित होती हैं जो स्वछंद हो किसी भी प्रकार का बन्धन उसे घेरे हुए न हो , वही कामयाबी और सफलता को की प्राप्त करे सकता है।

(4)---क्रोध 
क्रोध भी मनुष्य का शत्रु माना गया है। क्योंकि यह भी जिस व्यक्ति के अन्दर आता है उसकी सोचने समझने की शक्ति पर भी काबू नही हो सकता। वह किसी को भी नुकसान पहुचा सकता है क्योंकि जब क्रोध आता है तो वह नतो अपने नुकसान की परवाह करता है और न दूसरे की।
जिस प्रकार से रावण ने क्रोध मे आकरके अपने भाई विभीषण को भगा दिया वही विभीषण उसका काल बना क्योकि उसके मौत का रहस्य सिर्फ विभीषण को ही पता था।कि रावण की नाभी मे अमृत है। क्रोध मे व्यक्ति ऐसा कार्य कर देता है की वह कभी सोच भी नही सकता। और जिसने क्रोध पर विजय प्राप्त कर लिया वही सफलता प्राप्त करता है।

(5)--असुरक्षा या डर 
डर एक ऐसा विषय है जो हमारे हौसले को भी प्रभावित करता है। किसी भी कार्य को सुरू करने से पहले जब डर उस कार्य के प्रति हमारे दिमाग मे बैठ जाता है। तो वह कार्य कभी भी सफल नही हो सकता। असफलता का करण भी यही है।
कयी उदाहरण भी ऐसे आते है कि जैसे पहले राजा महाराजाओं को भी असुरक्षा का भय सताता रहता था , जिस कारण वह उनकी कमजोरी बन जाती थी और दूसरा राजा उन पर अपना अधिकार जमा देता था

समाज मे अपमानित होने के 5 कारण 

(1)-'सन्तान की अनदेखी करना--
(3)--भागवत गीता पाठ--
(4)-सेवा करने वाला---
(5)---ज्ञान ---
(6)--इस उपाय से बडेगी आयु----

अक्सर यह होता है कि हम सोचते है समाज हमे प्रोत्साहन दे या वह हमे महत्व दे जबकी यह सिर्फ आपके कारण होना ही सम्भव नही है। आपके आश्रित के माध्यम से भी आपके सम्मान का अपमान हो सकता है।

हमे जरूरत है की हम सम मे रहकर कोई भी ऐसा अनुचित कार्य न करे जिससे हमे अपमानित होना पडे। हमे अपने बच्चों को भी ऐसा संस्कार वान बनाना है जिससे कि लोग हमारी प्रशंसा करे अगर बच्चे कुसंस्कारी निकले तो हमे अपमानित होना पडता है।

जिस प्रकार दुर्योधन गलत मार्ग पर चलने धृतराष्ट्र ने उसे रोका नही अंजाम यह हुवा कि कौरव वंश का नाश हो गया।

(1)लालच करना--
लालच करना यानी संकट को न्यौता देना।लालच ऐसी बला है जो मनुष्य को कुमार्ग पर ही ले जाती है। अक्सर हम लालच मे आ करके किसी का अहित होने से भी नही घबराते जिसका खामियाजा कहीं न कहीं हमारे परिवार को ही भुगतना पड़ता है।
जैसा कि हम देखते है , कोई भी जीव दाने के लालच मे मे आकरके शिकारी के कब्जे मे आ जाते है।

(2)--आय से अधिक दानी बनना--
दान करना बहुत अच्छी बात है क्योंकि दान करने से हमारे आगे का मार्ग सुखद बनता है। लेकिन एक कहावत है कि पांव उतना ही पसारने चाहिए कि जितना बिस्तर हो।यानी दान उतना ही करो जितना जितनी आपकी आय है नही तो परिवार संकट मे आ सकता है और फिर जग हंसी होना निश्चित है।
हरिश्चन्द्र अगर सबकुछ दान न करता तो उनका परिवार संकट मे न पडता।

(3)-दुष्ट लोगों की संगती --
हमारे साथ जो भी घटित होता है,उसके होने का कारण  हमारी दोस्ती या संगति भी होती है। जो हमे समाज मे अपमानित करता है। उसका दुष्प्रभाव या अवगुण हमारे अन्दर भी प्रवेश करते है।और हमारे वैसा ही वरताव करने लगते जिससे समाज स्वीकार नही करता।

जिस प्रकार दूध मे जहर मिला देने पर दूध भी जहरीला ही हो जाता है। उसी प्रकार अवगुणी के साथ रहने प्रकार हम भी अवगुणी बन जाते है।


(4)--दूसरे का अहित करना या सोचना--
अहित अपने आप मे एक बुराई है। जो सोचने मात्र से ही हमारी उसके प्रति भावना बदल देती है। अहित करने वाले मनुष्य का कहीं  सम्मान नही होता। हर मनुष्य उससे बचना चाहता है , या उसे घृणित भाव से देखता है।और उसके साथ भी एक दिन बुरा हो जाता है।

जिस प्रकार हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को कितना ही कष्ट देना चाहा परन्तु आखिर मे उसे मृत्यु ही स्वीकार करनी पडी।


ए काम बदल सकते है आपका भाग्य---
हमारे  अन्दर यह विश्वास है कि जब भी हम किसी संकट मे आते है तो हमभगवान् को याद करते है . और निश्चित ही वे हमारी किसी न किसी रूप मे मदद जरूर करता है।और यह भी सत्य है कि भगवान एक ऐसी शक्ति है जो असम्भव को भी सम्भव कर सकता है।इसीलिए कुछ ऐसी शक्तियां है , जिसकी कृपा पाकर आप अपना भाग्य बदल सकते है।

(1)--भगवान बिष्णु का पूजन--
भगवान् बिष्णु ही ऐसे देवता है जो अपने भक्तों पर प्रसन्न हो करके उन्हे मन चाहा फल प्रदान करते है। भगवान् के तीन स्वरूप मे से एक रूप है। बिष्णु भगवान ने इस सृष्टि के कल्याण के लिए न जाने कितने अवतार लिए उन्ही अवतारों की पूजा करके या स्मरण मात्र से धर्म, अर्थ, काम , मोक्ष की प्राप्ति होती है। श्रद्धापूर्वक पूर्वक स्मरण कीजिए फल अवश्य ही प्राप्त होगा।

(2)--एकादशी का व्रत ----
भगवान की भक्ति को प्रदान करने मे एक मार्ग व्रत या उपवास का भी है। यानी उस परमात्मा को असीम मानकर उसकी उपासना करना। यह व्रत भी बिष्णु भगवान को ही समर्पित होता है। एकादशी व्रत महीने मे दो बार आता है । एक शुक्ल पक्ष मे और दूसरा कृष्ण पक्ष मे करते है। यह व्रत सभी मनोकामना को पूर्ण करने वाला है। इसमे चावलों का परित्याग करना पडता है।

(3)-गीता
भागवत गीता जो हिन्दु धर्म का पवित्र ग्रन्थ माना जाता है। और जो विशेष कर कर्मता को प्रदान करता है। इस ग्रन्थ मे अथाह ज्ञान भरा हुआ है। जो भी इसका अनुसरण करता है फिर उसे किसी अन्य मार्गदर्शन की जरूरत   नही पडती। यह ग्रन्थ श्रीकृष्ण के साक्षात स्वरूप माना जाता है। और सच्ची श्रद्धा भाव से नित्य इसका पाठ करता है। श्रीकृष्ण की उस पर पूर्ण कृपा सदा बनी रहती है।इसमे अथाह ज्ञान भरा हुआ है। जो भी इसका अनुसरण करता है उसे सफलता निश्चित ही प्राप्त होती है।


(4)--तुलसी की उपासना तथा पूजा-पाठ---
यह सत्य है कि देवियों मे देवताओं से अधिक शक्ति होती है ।उनकी कृपा भक्तो पर पुत्रवत के समान बनी रहती है। तुलसी जहां खुशहाली प्रदान करने वाली है। वहीं विज्ञान ने भी यह माना है कि तुलसी स्वास्थ्य के लिए भी सर्वोत्तम औषधी है। इसे घर मे स्थापित करने से घर मे नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नही करती है। बल्कि सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव अधिक होता है जिससे घर मे खुशहाली आ जाती है।

इसकी पूजा करने से लक्ष्मी भी प्रसन्न होती है , और अन्य सभी देवी देवताओं का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है।

(5)--ब्राह्मण का सम्मान करना--
यह बात शास्त्रों मे भी कही गयी है कि कर्मी ब्राह्मण देव तुल्य माना जाता है। और देवता हमेशा ब्राह्मणों के साथ विचरण करते है। यानी अगर ब्राह्मण की सेवा करली मानो कि हमने देवता को प्रसन्न कर दिया। और जो इनका अपमान करते है उन्हे कभी मुक्ती प्रदान नही होती और नाही कोई सफलता मिलती है।अगर अपना जीवन को सुखमय बनाना है तो ब्राह्मणों की सेवा करो

ये होते है गुरू के समान इनसे भी लेना चाहिए ज्ञान -----
सेवा करने वाला भी एक गुरू के समान ही है क्योंकि वह भी हर सुख दुख मे हमारे साथ ही रहता है। कभी भी हमसे ऊंबता नही है।वह सिखाता है कि परिस्थिति कैसी भी हो हमे अपना कर्म हमेशा याद रखना चाहिए।

(2)गुरू का पुत्र -----
गुरू का पुत्र भी गुरू के समान ही होता है। क्योंकि अगर हमे गुरू के पुत्र से कुछ सीखने को मिलता है तो वह भी अवश्य ग्रहण करना चाहिए।क्योंकि उसमे भी गुरू का ही अंश विद्यमान है।

(3)---ज्ञान देने वाला अध्यापक ---
अध्यापक की परिभाषा है कि जो हमे वेद तथा ग्रन्थों की शिक्षा दे। क्योंकि शिक्षा वह नही जो हम प्रोन्नति के लिए अर्जन करते है बल्कि  असली शिक्षा तो वह जो आध्यात्म  और ग्रन्थों की शिक्षा ग्रहण करें उनके उपदेशों तथा आदर्शों को समझे। इसीलिए अध्यापक की अवहेलना नही करनी चाहिए।

(4)---धर्मात्मा पुरूष ---
धर्मात्मा का अर्थ है कि जो मानव धर्म को ही श्रेष्ठ मानता हो और उसी के अनुसार कार्य करता हो।भूलकर भी कभी किसी का दिल ना दुखाता हो किसी को कष्ट न देता हो जीवो पर दया करता हो। तथा नारियों का सम्मन करता हो। वह भी गुरू के ही समान है।

(5)---सत्कर्म करने वाला----
सत्कर्म करने वाला पुरूष वह है जिसके भाव मे भी कभी बुरे विचार न आता हो , जो दूसरों के कष्ट को अपना समझता हो तथा लोगो को जीवन की दिशा प्रदान करता हो।अगर ऐसा व्यक्ति  अगर सलाह दे तो उसे गुरू मानकर उसका अनुसरण करना चाहिए ।

(6)---सदा सत्य बोलने वाला---
ऐसे व्यक्ति भी पूजनीय है क्योंकि इनका मन एकदम पवित्र होता है। एक किसी के बारे मे कभी गलत नही सोच सकते हमेशा सद्विचारों का ही प्रयोग करते है।ये व्यक्ति अगर हमारा मार्गदर्शन करे तो उन्हे गुरू मानकर उनका अनुसरण करना चाहिए

इन चीजों को लेने मे कभी संकोच न करे----

(1) ज्ञान
 ज्ञान एक ऐसी चीज है जिसे लेने मे कभी संकोच नही करना चाहिए क्योंकि ज्ञान कभी छोटा नही होता। अगर हमे ऊम्र से काफी छोटे व्यक्ति से भी कोई ज्ञान प्राप्त हो रहा हो तो बेझिझक लेना चाहिए । यह संकोच नही करना चाहिए ।जो दूसरे के ज्ञान लेने मे संकोच करता है वह हमेशा अज्ञानी ही रह जाता है।

क्योंकि जरूरी नही है कि हर किसी का ज्ञान एक जैसा नही होता है। जरूरी नही कि जो आपके पास है वह दूसरे के पास होगा और जो दूसरे के पिस है वह  आपके पास होगा।

(2)----रत्न ----
रत्नों की कीमत हमेशा अधिक होती है। इनमे कुछ विशेष ग्रहों की शान्ति प्रदान करता है। हीरा भी एक बहु रत्न है जो कोयले की खुदान मे मिलता है। उसी प्रकार अन्य रत्न भी समुद्र की गहराईयों मे ही प्राप्त होते है। इसीलिए रत्न कही भी मिले उसे लेने मे कोई संकोच नही करना चाहिए।

(3)---विद्या ----
मनुस्मृति मे कहा गया है कि विद्या का हमे कभी अपमान नही करना चाहिए, जितना सम्मान विद्या का करोगे। उतनी ही तरक्की वह तुम्हे प्रदान करेगी।विद्या के के विना हम कुछ भी प्राप्त नही कर सकते। इसलिए कभी उसका अपमान नही करना चाहिए।

(4)---धर्म ---
धर्म संस्कृत के शब्द से बना है। जिसका अर्थ होता है। धारण करना,धर्म की कोई सीमा नही होती है, इसका विश्लेषण करना असम्भव है। लेकिन लोगो ने धर्म की परिभाषा अलग ही निकाल रखी है। उसे कयी भागों मे बांट दिया है। जबकी धर्म एक ही है और वह है मानवता का धर्म जिसने सभी जीवों का कल्याण करना है।  परोपकार की भावना मनुष्य की सोच ही बदल देती है उसमे सात्विक विचारों की अभिव्यक्तियो का समुन्दर उमड़े लगता है। यह जहां भी मिले उसे लेने मे संकोच नही करना चाहिए ।

(5)---पवित्रता ---
पवित्रता जिसके अन्दर है वह हमेशा पवित्रता को ही महत्व देता है। वह किसी भी चीज के प्रति बुरी भावना या अपवित्र विचार नही रखता है। जबतक हमारे विचार तथा मन पवित्र नही होगा कितनी ही मेहनत करने पर भी हमे सफलता प्राप्त नही हो सकती। क्योंकि प्रकृति भी एक पवित्र धरोहर है जो पवित्र लोगो के हृदय मे ही समायी रहती है । और लोग भी उन्ही के संगी साथी बनते है।

हमारे शास्त्रों मे कहा गया है कि अगर पवित्र ज्ञान कही से भी मिले तो उसे लेने मे संकोच नही करना चाहिए।

(6)---उपदेश----
उपदेश जो हमारे विचारों को परिवर्तित कर देते है। हमारे जीवन की दिशा ही बदल कर रख देती है। कही बार हम कुछ बातों से अनजान रहते है। क्योकि हमे कुछ पता नही होता है। लेकिन जब श्रेष्ठ व्यक्तियों के विचार या शास्त्रो के ज्ञान से हम अवगत होते है तो हमे पता चलता है कि हमे कहां है। लेकिन सोचने के बाद जब उसपर वह विचार करता है तो। तो उसकी दिशा और दशा दोनों बदल जाती है।

जब भी हमे जीवन मे समस्या का समाधान न मिले तो गीता को पढिये क्योंकि गीता ही एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमे समस्त ज्ञान तथा सभी प्रश्नो का उत्तर छिपा हुआ है। इसीलिए उपदेश कही भी मिले हमे उन्हे ग्रहण करने मे कभी संकोच नहीकरना चाहिए

खाना खाते समय विशेष ध्यान ----
अगर आप जीवन को बेहतरीन समझते है तो लम्बी उम्र के लिए खाना बहुत महत्वपूर्ण है। और उसके साथ अगर आपने खाने के नियमों का पालन भी किया तो आप सुखी एवं लम्बी उम्र जी सकोगे।

सबसे पहले खाने से पहले अच्छी तरह से हाथ मुँह को धोना चाहिए। इसके बाद ही भोजन करना चाहिए, क्योंकि शास्त्रों मे कहा गया है कि अगर भीगे हुए पैरों के साथ भोजन किया जाये तो यह बहुत शुभ माना जाता है और साथ मे पाचन क्रिया मे भी मदद मिलेगी।क्योंकि इससे शरीर का तापमान सन्तुलन मे रहता है। खासकर यह गैस की परेशानी वालों को मदद करता है।


(2)---भोजन करते समय रखे दिशा का धयान---
भोजन मनुष्य के महत्वपूर्ण है इसीलिए इसमे दिशा का भी ध्यान रखना चाहिए कि कौन सी दिशा भोजन के लिए उपयोगी है।

पूर्व दिशा और उत्तर दिशा की ओर भोजन के लिए उपयोगी है। इससे भोजन से मिलने वाली ऊर्जा हमे प्राप्त होती है। दक्षिण तथा पश्चिम दिशा भोजन के लिए अशुभ मानी जाती है।


(3)--कहां भोजन करना वर्जित है---
हमेशा ध्यान रखे कि कभी भी बिस्तर पर भोजन नही करना चाहिए।

कभी भी थाली उठाकर भोजन नही करना चाहिए।

भोजन हमेशा पालथी मारकर ही ग्रहण करना चाहिए क्योंकि यही स्थिति भगवान की भी हुआ करती थी।

थाली को कभी लकडी के ऊपर रखकर कभी भोजन नही करना चाहिए, यह अशुभ माना जाता है।

खाने के बर्तन साफ होने चाहिए तथा टूटे फूटे बर्तन मे भोजन करने से दरिद्रता आती है।

भोजन के बाद कभी भी थाली मे हाथ नही धोना चाहिए ।


(4)---भोजन ग्रहण करने से पहले उपाय---
भोजन करने से पहले उस परब्रह्म परमात्मा का स्मरण करने तथा अन्न माता का स्मरण करना चाहिए।

देवी देवताओं का स्मरण करना चाहिए।

भोजन से पहले एक ग्रास अपने ईष्ट के लिए निकालना चाहिए।

भोजन से पहले देवताओं से प्रार्थना करनी चाहिए कि जो भी भूखे हो उन्हे भी मेरी तरह ही भोजन मिल सके।

कभी भी भोजन की निन्दा नही करनी चाहिए ।


(5)---इन विचारों के साथ भोजन ग्रहण न करे---
भोजन करते समय नकारात्मक भाव मन मे न लाए तथा किसी के प्रति बुरी भावना न रखे।डरते हुए कभी भोजन नही करना चाहिए तथा क्रोध मे कभी भी भोजन नही करना चाहिए।

इन भावो के साथ किया गया भोजन मनुष्य को नष्ट कर देता है।

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