Saturday 2 November 2019

UGC-NET/SET Vedic Literature in Objective,वैदिक साहित्य जानकारी एवं प्रश्नोत्तर

UGC-NET/SET Vedic Literature in Objective
Hindi general knowledge questions - सामान्य हिंदी,संस्कृतिक के महत्वपूर्ण प्रश्न Important Questions of General Knowledge in Hindi

वैदिक साहित्य जानकारी एवं प्रश्नोत्तर


वेद भारतीय संस्कृति,सभ्यता और श्रद्धा के प्रतीक है,तथा भारतीय ज्ञान-विज्ञान के मुख्य स्त्रोत है। कोई भी ज्ञान-विज्ञान-दर्शन-चिंतन-धर्मवैदिक-वाङ्मय से अलग सत्ता नही रख सकता ।यहां तक कि नास्तिक दर्शनों का भी उद्गम स्थल यही है।इनके बिना चिंतन या विचार की किसी भी धारा मे सम्पूर्णता और प्रामाणिकता असंभव है।

आइए जानते है वैदिक साहित्य से सम्बन्धित कुछ मह्वपूर्ण रहस्य एवं जानकारी----

 1-- देवता  (Deities)
देवता शब्द यदि मूल रूप से समझा जाए तो यह दिविद्योतनात ,दानातदीपनात वा प्रकाशमान ,दान अर्थ मे तथा उद्घटित या अनावरित होने अर्थशवाली धातु से निष्पल होता है। लोकभाषा मे देवता की यह परिभाषा है ----- ऐसी दिव्य शक्ति जो बिना किसी प्रत्युपकार की कामना के उपासक को अनुगृहित करती है,वह देवता है।
पाश्चात्य विद्वानो के अनुसार वैदिक देवता भौतिक जगत के अधिष्ठता है। विभिन्न भौतिक घटनाओं की उत्पत्ति के लिए वही उत्तरदायी है।
स्थूल दृष्टि से वेद के मूलभूत सिद्धांत त्रिक के आधार पर तीन ही प्रधान देवता है।
अग्नि, वायु, , आदित्य 
ऋग्वेद के अनुसार कुल 33 देवता है । जो क्रमशः है---
क-- पृथवी से सम्बन्धित -----  11
ख-- अंतरिक्ष से सम्बन्धित-----   11
ग-- द्युलोक से सम्बन्धित------ 11
 इस प्रकार से संख्या तो बता दी है,लेकिन इनके भी भेद है---
वसु----- 8
रूद्र------ 11
आदित्य------ 12
इन्द्र--------- 01
प्रजापति---  01
नोट----- ऋग्वेद,शतपथ ब्राह्मण,तथा शांखायन मे देवताओं का ( 3339 ) होने का निर्देश है। पुरा साहित्य मे जो 33 कोटि देवताओं का उल्लेख है। उस प्रसंग में ध्यान देने योग्य बात यह है कि वहां शास्त्रकार (33 कोटि)  शब्द से 33 प्रकार के देवताओं की चर्चा कर रहे है न कि 33 संख्या वाले देवताओं की।

 कुछ प्रधान एवं महत्वपूर्ण देवताओं का वर्णन--

1-- अग्नि (agni)
अग्नि वैदिक वाङ्मय मे सर्वसिद्ध पृथ्वी स्थानी देवता है।ऋग्वेद मे इनकी स्तुती के लगभग  (200) संपूर्ण सूक्त पाए जाते है।

■ पुष्पाकार विग्रह मे, यज्ञ से संबंध होने के कारण इनका अंग-प्रत्यंग  घृतमय माना गया है।

■ ये स्वर्णीय और चमकीले दांतों वाले ,घृतचक्षु अर्थात घृत ही इनका नेत्र है।

■ इनका एक मस्तक ज्वालामय है अथवा सहस्त्र मस्तक है।

■ याज्ञिक देवता होने के कारण समिधा एवं घी ही इनका भोजन है।

■ अग्नि को दिन मे तीन बार भोजन दिया जाता है।

■ प्रत्येक घर मे इनका वास होने के कारण इन्हे, गृहपति,विश्पति एवं दमूनस् कहा जाता है।

■ अग्नि को त्वष्टा का पुत्र तो कहीं धावा-(पृथ्वी) का पुत्र भी कहा जाता है।

2-- सवितृ (savitri)
सवित्र या सविता प्रमुख रूप से द्यु- स्थानीय देवता है।

■ यह मुख्यरूप से स्वर्णिम रूप वाले है।

■ इनको स्वर्णहस्त ,स्वर्णपाद ,स्वर्ण जिह्व आदी नामों से जाना जाता है।

■ सविता स्वर्णिम रथ पर चलते है,जिन्हे सफेद पैरों वाले दो घोडे खींचते है।

■ सवितृ को देव सर्वप्कासक कहा गया है,जो पृथ्वि ,अंतरिक्ष और द्युलोक आदि को भी प्रकाशित करते है।

■ इनका स्वरूप उदीयमान सूर्य की भांती है।

■ गायत्री मंत्र का इनसे सीधा संबंध है।इन्ही की प्रेरणा से रात्री का आगमन होता है।

3--- विष्णु (vishnu)
विष्णु को भी द्यु स्थानीय देवता कहा गया है। इनकी स्तुती के मात्र 5 सूक्त ही पाए जाते है। अवतारी पुरूष के रूप मे विष्णु के तीन कदमों का उल्लेख है----
● विचक्रमाणस्त्रे धोरूगायः,
● यास्योरूषु त्रिषुविक्रमणेषु ,
● उरूक्रमस्य सहि बंधुरित्या ,
● सधस्थमेको त्रिभिरित्पदेभिः
इन्ही मंत्रों मे किया गया है।

■ विष्णु के परम धाम मे एक मधु का सरोवर है,तथा सहस्त्र सींग वाली गायें है।

■ वेद इनको इन्द्र का मित्र और पुराण उपेन्द्र कहते है।

■ पक्षियों का राजा गरूड इनका वाहन है।

■ यह देवता सर्वरक्षक ,उदार,दानी और विश्व का भरण-पोषण करने वाले हैं।

■ और्णवाभ के मतानुसार सूर्य के उदय, मध्याह्न व अस्त अर्थात तीनों दैनिक सवन विष्णु के तीन कदमों के प्रतीक है।

4--- इन्द्र (indra)
इन्द्र को अन्तरिक्ष स्थानीय देवता  कहा जाता है।ऋग्वेद मे अग्नि के अतिरिक्त इन्ही की स्तुती सर्वाधिक पायी जाती है।

■ इन्द्र के हाथों मे (वज्र) नामक शस्त्र है,जिसके कारण इनका नाम (वज्रिन) या (बज्रबाहु) भी पुकारा जाता है।

■ इनके होंठ सुन्दर होने के कारण इन्हे सुशिप्र कहा गया है।

■ इन्द्र को असुरों के विनाश के लिए देवताओं द्वारा समुद्रभूत बताया गया है।

■ इन्द्र ने चलायमान पर्वतों को स्थिर करके कांपती हुयी पृथ्वी को दृढता प्रदान की।

5-- रूद्र (rudra)
रूद्र अन्तरिक्ष के स्थानीय देवता है। ऋग्वैदिक सूक्तो मे इनसे मात्र तीन ही सूक्त संबंध है।

■ रूद्र का वर्ण भूरा होने के कारण इन्हें, बभ्रु कहा जाता है।

■ इनके होंठ सुन्दर होने के कारण इन्हें  सुशिप्र भी कहा जाता है।

■ रूद्र  को घोर (विनासकारी या संहारक) और अघोर (कल्याण कारक या पालनकर्ता) दोनों  रूपों मे वर्णित  है।

■ इनके हाथ उपासक को  सुख देने वाले होने के कारण इन्हे भृणयाकुः ,शीतलता प्रदान करने वाले होने के कारण इन्हे जलाष और आरोग्य प्रदाता होने के कारण इन्हे भेषज कहा जाता है।

■ देवताओं ने इन्हे वैद्य भी कहा है।

6-- वृहस्पति (brihaspati)
वृहस्पति को पृथ्वी स्थानीय देवता कहा जाता है। इनका स्तवन ऋग्वेद है,तथा इन्द्र के साथ भी पाया जाता है।

■इनको काली पीठ और तीखे सींगों वाला बताया गया है।

■ इनको सप्तमुख, सप्तरश्मि, सप्तजिह्व,नीलपृष्ठ, सैकडों पंखों वाला और तीक्ष्ण सींगों वाला बताया गया है।

■ इनके दिव्य रथ को लाल रंग के घोडे खींचते है।

■ ये दैत्यों का नाश करके गऊओं को मुक्त करते है।

■ वृहस्पति को शक्ति का पुत्र तथा अङ्गिरस भी कहा गया है ।

■ अग्नि की तरह ही वृहस्पति भी तीनों स्थानों के देवता और ग्रहों के पूज्य तथा आवासों के अधिपति या सदस्पति भी कहा जाते है।

7-- अश्विनौ (ashiwins)
अश्विन देवता युगल रूप मे है। ये द्युस्थानीय देवता है। ऋगवेद मे लगभग 50  सूक्त और अन्य देवताओं के साथ तो इनकी स्तुती अशेकों सूक्तो मे पायी जाती है।

■ इनके नामों मे दस्रा ,नासत्या ,हिरण्यवर्तन भी कहते हे।

■ इनके रथ और अंकुश भी मधुमय ही है।

■ इनकी उत्पत्ति ऊषा और सूर्योदय कृ बीच हुयी है।

■ इनके रथ मे कयी घोडे,बैल,घडियाल और  पक्षी जुते हुए दिखाई देते है।

■ इनको सूर्य का पति बताया गयै है।

■ इन्ही के द्वारा ऋषि च्यवन का उद्धार हुआ था।

8-- वरूण (varun)
वरून भी द्यु स्थानीय देवता कहे गये है। ऋग्वेद के लगभग 12 सम्पूर्ण सूक्त इन्हे समर्पित है। रूपविग्रह की दृष्टि से ये सुन्दर मनोहारी देवता है।

■ सूर्य को इनका नेत्र कहा गया है।

■ ये दूरदर्शी है,कहीं-कहीं इनके सहस्त्र नेत्रों का भी उल्लेख मिलता है।

■ इनका धाम ऊर्ध्वतय लोक मे एक हजार स्तम्भों और सहस्त्रों द्वारों वाला है ।

■ इनको गुप्तचर घेरे मे रखते है।

■ इनके नियम तथा अनुज्ञायें कठोर है, जिनके पालन के कारण ये धृतव्रत कहे जाते है।

9-- उषस् ( ushas)
उषस् देवता द्युस्थानीय है,इनका स्वरूप वर्णन और स्तुती लगभग 20 सूक्तों मे पाए जाते है। उषा शब्द वस् धातु से निष्पन्न हुआ है,जिसका अर्थ है प्रकाशमानया सुदीप्त है।

■ यह अपने नियमों का पालन करती हुयी भी देवाज्ञा का भी पालन करती है।

■ उषा के अन्य नामों मे ऋतावरी,रेवती(धनवाली) ,मधोनी (दानशीला),विश्ववारा (सभी के द्वारा वरणीय), गोमती, सुभगा, दुहितादिव:(आकाश से उत्पन्न), अमृत्यकेतुः (अमरत्व की पताका वाली) आदी है।

■ इनकी स्तुती धन,पुत्र,दीर्घायु तथा प्रकाश के लिए उपासना की जाती है।

10-- सोम (soma)
सोम पृथ्वी  स्थानीय देवता है। ऋग्वेद में अन्य देवताओं की स्तुती के लिए जहां सूक्तों का निर्धारण है वहीं सोम के लिए नवम मण्डल के सभी 144 सूक्तों तथा अन्य मण्डलों मे भी लगभग 6 सूक्त है।

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