Monday 30 December 2019

हनुमान चालीसा अर्थ सहित (Lord Hanuman) ,संकटमोचन हनुमानाष्टक, बजरंग बाण, सूर्य के बारह नमस्कार व मंत्र

हनुमान चालीसा अर्थ सहित (Lord Hanuman)

संकटमोचन हनुमानाष्टक

बजरंग बाण

सूर्य के बारह नमस्कार व मंत्र

   (Lord Hanuman)

दोस्तो हनुमान जी कलयुग के देवता माने गये है और वही अपने भक्तो का तारण करने वाले है। हनुमान चालीसा को महा शक्तिशाली माना गया है,जिसके निरन्तर जाप से सारी भय बाधा दूर हो जाती है। और हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) पढ़ने के साथ इसका अर्थ जानना भी बेहद जरूरी है।

हनुमान चालीसा को डाउनलोड करे (Download Hanuman Chalisa in PDF, )आप इस चालीसा को पीडीएफ में डाउनलोड (PDF Download), ज्ञान साधना रूप में (Hanuman Image Save) या प्रिंट (Print) भी कर सकते हैं। इस चालीसा को सेव करने के लिए ऊपर दिए गए बटन पर क्लिक करें। आइये जानें हनुमान चालीसा का अर्थ, और महत्व---

                   ||दोहा ||

श्रीगुरू चरन सरोज रज,निजमन मुकुर सुधारि ।
वरनउं रघुवर विमल जसु, जो दायकु फल चारि ।।
बुद्धिहीन तनु जानिके,सुमिरौं पवन कुमार ।
बल बुधि विद्या देहुं मोहिं हरहु कलेस विकार ।।

                       अर्थात--
श्री गुरू के चरणो मे चरणो मे प्रणाम करके अपने मन रूपी दर्पण मे उनकी धूली को विराजमान करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का मै वर्णन करता हूं ,जो चारों फल, धर्म ,अर्थ,काम और मोक्ष देने वाला है।
हे पवन कुमार मै आपको याद करता हूं। आप तो जानते है कि मै शरीर व बुद्धी से निर्बल हूं। मुझे सद्बुद्धि एवं तज्ञान प्रदान कीजिए और मेरे दुखों का नाश कीजिए।

                चौपाई
१- जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, 
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।
राम दूत अतुलित बल धामा, 
अञ्जनि पुत्र पवनसुत नामा ।।

               अर्थात
हे श्री हनुमान जी आपकी जय हो । आप तो ज्ञान के अथाह सागर हो। हे कपीश । आपकी जय हो ।तीनो लोकों ,स्वर्ग-पृथ्वी-पाताल मे आपकी कीर्ति है।
हे पवन सुत अंजनी नंदन आपके जैसा बलवान और कोई नही है।
               चौपाई
२- महावीर विक्रम बजरंगी,
कुमति निवार सुमति के संगी ।
कंचन वरन विराज सुवेसा,
कानन कुंडल कुंचित केसा ।।

            अर्थात
हे बजरंगबली। आप विशेष पराक्रम वाले हो। आप दुर्बुद्धि को सही करते हो। और अच्छी बुद्धि वालों के साथी हो।
आप सुनहरे रंग,सुन्दर वस्त्रों ,कानो मे कुण्डल और घुंघराले बालों से शोभयमान हो।

               चौपाई
३- हाथ बज्र और ध्वजा विराजै,
कांधे मूंज जनेऊं साजै।
संकर सुवन केसरी नन्दन ,
तेज प्रताप महा जग वन्दन ।।

                अर्थात
आपके हाथ मे बज्र और ध्वजा है और कन्धे पर मूंज के जनेऊ धारण है।आप शंकर के अवतार हो। हे केशरी नंदन आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर मे वन्दना होती है।
                चौपाई
४- विद्यावान गुनी अति चातुर,
राम काज करिबे को आतुर ।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया,
राम लखन सीता मन बसिया ।।
         
                अर्थात
आप प्रकाण्ड विद्यावान हो। गुणवान और कार्य कुशल होकर श्रीराम के काम करने को आतुर रहते हो।
आप श्रीराम चरित सुनने मे आनन्द लेते हो। आपके हृदय मे श्रीराम-सीता और लक्ष्मण बसे हुए है।

                चौपाई
५- सूक्ष्म रूप धारि  सियहिं दिखावा, 
बिकट रूप ऋरि लंक जरावा ।
भीमरूप धरि असुर संहारे, 
रामचंद्र के काज संवारे ।।

            अर्थात
आपने अपना बहुत छोटा रूप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके लंका को जलाया।
आपने विकराल रूप धारण करके राक्षसों को मारा और श्रीराम चन्द्र जी के कार्य को सफल किया।
            
             चौपाई
६- लाय संजीवन लखन जियाए,
श्रीरघुबीर हरषि उर लाए । 
रघुपति कीन्ही बहुत बडाई,
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ।।
           
             अर्थात
आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जिलाया जिससे श्री लघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया। श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा कि तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो।

             चौपाई
७- सहस बदन तुम्हरो जस गावै,
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै । 
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ,
नारद सारद सहित अहीसा ।।

             अर्थात
श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी ,शेषनाग जी सब आपका गुण गान करते है।

              चौपाई
८- जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कवि कोबिद कहि सके कहाँ ते ।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा,
राम मिलाय राज पद दीन्हा ।।
         
             अर्थात
यमराज और कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।
आपने सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बने।

           चौपाई
९- तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना
लंकेश्वर भये सब जग जाना ।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु, 
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ।।

           अर्थात
आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इसको सब संसार जानता है।
जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है कि उस पर पहुंचने के लिए हजार युग लगे। हजार युग योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया।

          चौपाई
१०- प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं
जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं ।
दुर्गम काज जगत के जेते,
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ।।

              अर्थात
आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुंह में रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।
संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते है।

          चौपाई
११- राम दुआरे तुम रखवारे
होत ना आज्ञा बिनु पैसारे ।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना,
तुम रक्षक काहू को डरना ।।

                अर्थात
श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप रखवाले है, जिसमें आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नहीं मिलता
अर्थात् आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।
जो भी आपकी शरण में आते है, उस सभी को आनन्द प्राप्त होता है, और जब आप रक्षक है, तो फिर किसी का डर नहीं रहता।

              चौपाई
१२- आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक तै कापै ।
भूत पिसाच निकट नहीं आवै,
महावीर जब नाम सुनावै ।।

                अर्थात
हे महावीर आपके सिवाय आपके वेग को कोई नहीं रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक कांप जाते है।जहां महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है वहां भूत ,पिशाच भी नही आते है।

                चौपाई
१३- नासै रोग हरै सब पीरा, 
जपत निरंतर हनुमत बीरा।
संकट ते हनुमान छुडावै,
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ।।

            अर्थात
हे वीर हनुमान  जी। आपका निरंतर जप करने से सब रोग दूर हो जाते है। और पीडा भी मिट जाती है। हे हनुमान जी विचार करने मे ,कर्म करने मे और बोलने मे जिनका ध्यान आप मे रहता है उनको सब संकटों से छुडाते हो।

                 चौपाई
१४- सब पर राम तपस्वी राजा, 
तिनके काज सकल तुम साजा ।
और मनोरथ जो कोई लावै,
 सोई अमित जीवन सुख पावै ।।

              अर्थात
 तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यों को आपने सहज में कर दिया।
 जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करे तो उसे ऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन में कोई सीमा नहीं होती।

                चौपाई
१५- चारों जुग परताप तुम्हारा, 
है परसिद्ध जगत उजियारा ।
साधु संत के तुम रखवारे, 
असुर निकंदन राम दुलारे।।

           अर्थात
हे हनुमान जी चारों युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग में आपका यश फैला हुआ है, जगत में आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है। हे श्री राम के दुलारे ! आप सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है।

                  चौपाई
१६- अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता , 
अस बर दीन जानकी माता।
राम रसायन तुम्हरे पासा ,
सदा रहो रघुपति के दासा ।।

                अर्थात
हे हनुमान जी आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और नौ निधियां दे सकते है। आप निरंतर  श्रीरघुनाथ जी के शरण मे रहते हो जिससे आपके पास बुढापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।

                 चौपाई
१७- तुम्हरे भजन राम को पावै , 
जनम जनम के दुख बिसरावै ।
अंत काल रघुबर पुर जाई,
जहां जन्म हरि भक्त कहाई ।।

                अर्थात
हे हनुमान जी आपका भजन करने से श्रीराम जी प्राप्त होते है,और जन्म-जन्मांतर के दुख दूर  हो जाते है। और अंत समय मे श्रीरघुनाथ जी के धाम को जाते है,और फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति कर श्रीराम भक्त कहलाएंगे।

              चौपाई
१८- और देवता चित्त न धरई,
हनुमत सेई सर्ब सुख करई ।
संकट कटै मिटै सब पीरा ,
जो सुमिरै हनुमत बलवीरा ।।

                 अर्थात
आपकी सेवा करने से सभी तरह से सब प्रकार के सुख मिलते ह। फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता ही नहीं रहती।हे वीर हनुमान जी । जो आपका सुमिरन करता रहता है,उसके सब कष्ट-संकट दूर हो जाते है।

                 चौपाई
१९- जै-जै-जै हनुमान गोसाईं ,
कृपा करहु गुरू देव की नाईं ।
जो सत बार पाठ कर कोई,
 छूटहि बंदि महा सुख होई ।।

              अर्थात
हे स्वामी जी। आपकी जय हो,जय हो,जय हो ।आप मुझ पर गुरू के समान कृपा कीजिए। जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा। वह सब बंधनों से छूट जाएगा और उसे परमानन्द मिलेगा।

                 चौपाई
२०- जो यह पढै हनुमान चालीसा, 
होय सिद्धि साखी गौरीसा ।
तुलसी दास सदा हरि चेरा,
कीजै नाथ हृदय महं डेरा ।।

                   अर्थात
भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है,कि जो इसे पढेगा उसे निश्चित ही सफलता मिलेगी। हे नाथ हनुमान जी । तुलसीदास सदा ही श्रीराम के दास है। इसलिए आप उनके हृदय मे निवास कीजिए।

               ।।  दोहा  ।।

पवन तनय संकप हरन,मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित ,हृदय बसहु सुर भूप ।।

                    अर्थात
हे संकट मोचन पवन कुमार । आप आनंद मंगलों के स्वरूप हैं हे देवराज आप श्रीराम,सीता,और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय मे निवास कीजिए।


  !!  ॐ संकटमोचन हनुमानाष्टकम् !!

बाल समय रवि भक्षि लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारो ।
ताहि सो त्रास भयो जग को ,
यह संट काहु सो जात न टारो ।।
देवन आनि करी विनती तब ,
छाडि दियो रबि कष्ट निवारो ।
को नहि जानत है जग मे कपि , 
संकटमोचन नाम तिहारो ।।
को नहि •••••••••••••••• नाम तिहरो ।।1।।

बालि कि त्रास कपीस बसै,
गिरि जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महामुनि शाप दियो तब , 
चाहिये कौन विचार बिचारो ।।
कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु ,
सो तुम दास के शोक निवारो ।।
को नहिं•••••••••••••••••••••••• नाम तिहारो ।।2।।

अंगद के संग लेन गये सिय ,
खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो ,
जु बिना सुधि लाए इहां पगु धारो ।।
हेरि थके तट सिंध सबै ,
तब लाय सिया सुधि प्रान उबारो ।
को नहिं••••••••••••••••••••••• नाम तिहारो ।।3।।

रावण त्रास दई सीय को ,
सब राक्षसि सो कहि सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु ,
जाय महा रजनीचर मारो ।
चाहत सिय अशोक सों अगि सु ,
दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो ।।
को नहीं••••••••••••••••••••नाम तिहारो ।।4।।

बाण लग्यो उर लछिमन के ,
तब प्राण तजे सुत रावण मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेण समेत ,
तबै छिरि द्रोण सुबीर उपारो ।।
आनि संजीवनि हाथ दई ,
तब लछिमन के तुम प्राण उबारो ।।
को नहिं•••••••••••••••••••••नाम तिहारो ।।5।।

रावन जुद्ध अजान कियो तब,
नाग की फांस सबै सिर डारो ।
श्री रघुनाथ समेत सबै दल ,
मोह भयो यह संकट भारो ।।
आनि खगेस तबै अहिरावण ,
जु बन्धन काटि सुत्रास निवारो ।।
को नहिं •••••••••••••••••• नाम तिहारो ।।6।।

बन्धु समेत जबै अहिरावण ,
लै रघुनाथ पाताल सिधारो ।
देवहिं पूजि भली विधि सों, बलि,
देउं सबै मिलि मंत्र बिचारो ।।
जाय सहाय भये तब ही,
अहिरावण सैन्य समेत सहारो ।।
को नहिं •••••••••••••••••••नाम तिहारो ।।7।।

काज किये बड देवन के तुम,
बीर महाप्रभु देखि विचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को ,
जो तुमसो नहिं जात है टारो ।।
बेगि हरो हनुमान म।प्रभु,
जो कछु संकट होय हमारो ।।
को नहिं ••••••••••••••••••नाम तिहारो ।।8।।

               !! दोहा !!
लाल देह लाली लसे, अरू धरि लाल लंगूर ।
बज्र देह दानव दलन ,जय जय जय कपि सूर ।।


!! अथः बजरंग बाण !!

                !! दोहा !!
निश्चय प्रेम प्रतीत ते ,विनय करें सनमान ।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करें हनुमान ।।

जय हनुमंत सन्त हितकारी । 
सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।।
जन के काज बिलम्ब न कीजै ।
आतुर दौरि महा सुख दीजे ।।
जैसे कूदि सिन्धु बहि पारा । 
सुरसा बदन पैठि बिस्तारा ।।
आगे जाई लंकिनी रोका । 
मारेहु लात गई सुर लोका ।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा । 
सीता निरखि परम पद लीन्हा ।।
बाग उजारि सिंधु महं बोरा । 
अति आतुर यम कातर तोरा ।।
अक्षयकुमार को मारि संहारा । 
लूम लपेटि लंक को जारा ।।
लाह समान लंक जरि गई ।
जय जय धुनि सुरपुर में भई ।।
अब विलम्ब केहि कारन स्वामी । 
कृपा करहु उर अन्तर्यामी ।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता । 
आतुर होई दुःख करहु निपाता ।। 
जै गिरिधर जै जै सुख सागर । 
सुर समूह समरथ भट नागर ।।
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हटीले । 
बैरिहिं मारु बज्र के कीले ।।
गदा बज्र लै बैरिहिं मारौ। 
महाराज प्रभु दास उबारो ।।
ॐकार हुंकार महावीर धावो । 
बज्र गदा विलम्ब न लावो ।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमन्त कपीसा ।
ॐ हुं हुं हुं हनु अरिउर शीशा ।।
सत्य होउ हरि शपथ पाय के । 
राम दूत धरू मारु धाय के ।।
जय जय जय हनुमन्त अगाधा । 
दुःख पावत जन केहिं अपराधा ।।
पूजा जप तप नेम अचारा । 
नहिं जानत कछु दास तुम्हारा ।।
बन उपवन मग गिरि गृहमांही । 
तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ।।
पांय परौं कर जोरि मनावौं । 
यहि अवसर अब केहि गौहरावौं ।।
जय अन्जनी कुमा बलवन्ता । 
शंकर सुवन वीर हनुमन्ता ।।
बदन कराल काल कुल घालक । 
राम सहाय सदा प्रति पालक ।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर । 
अग्नि बैताल काल मारीमर ।।
इन्हें मारु तोहि शपथ राम की । 
राखु नाथ मर्याद नाम की ।।
जनक सुता हरि दास कहावो । 
ताकी शपथ विलम्ब न लावो ।।
जय जय जय धुनि होत आकाशा । 
सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा ।।
चरण शरण करि जोरि मनावौं । 
यहि अवसर अब केहि गोहरोवौं ।।
उठु उठु चलु तोहिं र दोहाई । 
पांय परौं कर जोरि मनाई ।।
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता । 
ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता ।।
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल । 
ॐ सं सं सहम पराने खल दल ।।
अपने जन को तुरत उबारो । 
सुमिरत होय आनन्द हमारो ।।
यह बजरंग बाण जेहि मारो । 
ताहि कहो फिर कौन उबारो ।।
पाठ करैं बजरंग बाण की । 
हनुमत रक्षा करैं प्राण की ।।
यह बजरंग बाण जो जापै । 
ताहि भूत प्रेत सब कांपे ।।
धूप देय अरु जपै हमेशा । 
ताके तन नहिं रहै कलेशा ।।

              !! दोहा !!
प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान ।।
तेहि के कारज सकल  उभ, सिद्ध करैं हनुमान ।।

सूर्य के बारह नमस्कार
सूर्य-नमस्कार मंत्र

सूर्य की पूजा एवं वन्दना भी नित्यकर्म मे ही आती है। शास्त्र मे इसका बहुत महत्व बताया गया है। देध देने वाली एक लाख गायों के दान का जो फल प्राप्त होता है। उससे भी बढकर फल एक दिन की सूर्य पूजा से मिलता है। पूजा की तरह सूर्य के नमस्कारों का भी महत्व है। सूर्य के बारह नामों के द्वारा होने वाले बारह नमस्कारों की विधि इस प्रकार है। प्रणामों मे से साष्टाङ्ग प्रणाम का अधिक महत्व माना गया है। यह अधिक उपयोगी है। इसे शारीरिक व्यायाम भी कहा जाता है।
भगवान सूर्य के एक नाम का उच्चारण कर दण्डवत करे। फिर उठकर दूसरा नाम लेकर दूसरा दण्डवत करे। इस तरह बारह साष्टाङ्ग प्रणाम हो जाते है
इसे सीघ्रतः न करे भक्ति भाव से करे।

विधि--- ताम्रपात्र मे लाल चन्दन, अक्षत , फूल,डालकर हाथों को हृदय के पास लाकर निम्नलिखित मंत्र से सूर्य को अर्घ्य दे----
एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशो जगत्पते ।
अनुकम्प्य मां भक्त्या गृहणार्घ्य दिवाकरः ।।

अब सूर्य मण्डल मे स्थित भगवान् नारायण का ध्यान करें।

ध्येयः सदा सवितृ -मण्डल मध्य वर्ती ।
नारायणः सरसिजासन-सन्निविष्टः ।।
केयूरवान् मकर -कुंडलवान् किरीटि ।
हिरी हिण्यमय वपुर्धृत शंख-चक्रः ।।
१- ॐ मित्राय् नमः ।
२- ॐ रवये नमः ।
३- ॐ सूर्याय नमः ।
४- ॐ भानवे नमः ।
५- ॐ खगाय नमः ।
६- ॐ पूष्णे नमः ।
७- ॐ हिरण्यगर्भाय नमः ।
८- ॐमरीचये नमः ।
९- ॐ आदित्याय नमः ।
१०- ॐ सवित्रे नमः ।
११- ॐ अर्काय नमः ।
१२- ॐ भास्कराय नमः ।
१३- ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय  नमः ।

आदित्यस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने-दिने ।
दीर्घ आयुर्बलं वीर्यम् ,तेजस तेषां च जायते ।।
अकाल मृत्युहरणं सर्व व्याधिविनाशनम् ।
सूर्यस्य नमस्कारान्, हृदये धारयाम्यहम् ।।

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