Saturday 25 January 2020

अथः देव्याः कवचम् (अर्थ सहित) ,अथ दुर्गा कवच

अथः देव्याः कवचम् (अर्थ सहित)
अथ दुर्गा कवच
Durga kawach in hindi


देवी कवच का परिचय (Introduction of durga kawach)

दोस्तों हमारे शास्त्रों मे अट्ठारह प्रमुख पुराणों में से एक मार्कंडेय पुराण है,जिसके अंदर देवी कवच यानी (दुर्गा कवच) के श्लोक अंतर्भूत है और यह अद्भुत दुर्गा सप्तशती का हिस्सा है। यह सभी दुखों को दूर करती है तथा अद्भुत रहस्य व शक्तियां इस कवच में छुपी हुयी है। देवी कवच को भगवान ब्रह्मा ने ऋषि मार्कंडेय को सुनाया और इसमें ४७ श्लोक शामिल है, इसके बाद ९ श्लोकों में फलश्रुति लिखित है। फलश्रुति का मतलब है, इसको सुनने या पढ़ने से क्या फल प्राप्त होता है यह बताया गया है । इसमें भगवान ब्रह्मा देवी पार्वती माँ की नौ अलग-अलग दैवीय रूपों में प्रशंसा करते हैं। भगवान ब्रह्मा प्रत्येक को देवी कवच को पढ़ने और देवी माँ का आशीर्वाद मांगने के लिए अनुरोध करते हैं। जो भी इस कवचं का नित्य पाठ करता है वह माँ दुर्गा से आशीर्वाद प्राप्त करता है। तथा उस हमेशा माता दुर्गा का आशीर्वाद रहता है वह कभी किसी संकट या रोगों से नही घिरता है।

देवी कवच का महत्व  (Significance of Devi Kavacham in hindi)


दोस्तों देवी को सर्व शक्ति सम्पन्न माना गया है, यह जितनी क्रोधी स्वभाव की है, भक्तों के लिए यह उतनी ही ममता व प्यार न्यौछावर करती है । आपके चारों ओर नकारात्मकता को खत्म करने के लिए एक शक्तिशाली मंत्रो का संग्रह देवी कवच के रूप में है। इसमे तमाम ओ मंत्र है तो विघ्नों को दूर करती है, यह किसी भी बुरी आत्माओं से रक्षा करने में एक कवच के रूप में कार्य करता है।

शास्त्रों मे यह कहा जाता है कि वह व्यक्ति जो ईमानदारी से भक्ति और सही उच्चारण के साथ नियमित रूप से देवी कवचम को पढ़ता है, वह सभी बुराइयों से संरक्षित रहता है। नवरात्रों के दिनों में देवी कवचं का पाठ करना बहोत शुभ माना जाता है। आप इसे श्रद्धा भाव के साथ सुरू कीजिए आपको फल स्वतः ही प्राप्त हो जाएगा।

अथ देव्याः कवचम्
विनियोग--

ॐ अस्य श्रीचण्डी कवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, चामुण्डा देवता , अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठङ्गत्वेन जपे विनियोगः।

ॐ नमश्चण्डिकायै ।।

        मार्कण्डेय उवाच
ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम् ।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह ।।१।।

          ब्रह्मोवाच
अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम् ।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने ।।२।।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी ।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।३।।
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।४।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।५।।

भावार्थ---
ॐ चण्डिदेवी को नमस्कार है ।
मार्कण्डेय जी ने कहा----
पितामह ! जो इस संसार मे परम गोपनीय तथा मनुष्यों की सब प्रकार से रक्षा करने वाला है और जो अबतक आपने दूसरे किसी के सामने प्रकट नहीं किया हो, ऐसा कोई साधन मुझे बताइये ।।१।।
ब्रह्मा जी बोले---
ऐसा साधन तो एक देवी का कवच ही है, जो गोपनीय से भी परम गोपनीय है, पवित्र तथा सम्पूर्ण प्राणियों का उपकार करने वाला है। महामुने ! उसे श्रवण करो ।।२।।
देवी की नौ मूर्तियां है, जिन्हे (नवदुर्गा) कहते है। उनके पृथक-पृथक नाम बतलाए जाते है। पहला शैलपुत्री है। दूसरी मूर्तिका नाम ब्रह्मचारिणी है। तीसरी चन्द्रघण्टा है। चौथी मूर्ति का नाम कूष्माण्डा है। पांचवीं दुर्गा का नाम स्कन्धमाता है। छठी देवी कात्यायनी है। सातवीं कालरात्रि है। आठवीं महागौरी है। और नवीं सिद्धिदात्री है। ये सब नाम सर्वज्ञ महात्मा वेदव्यास भगवान के द्वारा ही प्रतिपादित हुए है ।।३-५।।

श्लोक---
अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे ।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः ।।६।।
न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे ।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुखभयं न हि ।।७।।
यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते ।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः ।।८।।
प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना ।
ऐन्द्री गजसमारूढा वैष्णवी गरूडासना ।।९।।
माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना ।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया ।।१०।।

भावार्थ---
जो मनुष्य अग्नि में जल रहा हो , रण भूमी में शत्रुओं से घिर गया हो, विषम संकट में फंस गया हो,तथा इस प्रकार भय से आतुर होकर जो भगवती दुर्गा की शरण में प्राप्त हुए हों, उनका कभी कोई अमंगल नहीं होता है। युद्ध के समय संकट में पढने पर भी उनके ऊपर कोई विपत्ति नहीं दिखाई देती। उन्हें शोक, दुख और भय की प्राप्ति नही होती है ।।६-७।।
जिन्होने भक्ति पूर्वक देवी का स्मरभ किया है,उनका निश्चय ही अभ्युदय होता है। देवीश्वरी ! जो तुम्हारा चिन्तन करते हैं, उनकी तुम निसन्देह रक्षा करती हो। चामुण्डा देवी प्रेत पर आरुढ होती है। वाराही भैंसे पर सवारी करती है। ऐन्द्री का वाहन ऐरावत हाथी है। वैष्णवी देवी गरुड पर ही आसन जमाती है । माहेश्वरी बृषभ पर आरुढ होती है कौमारी का वाहन मयूर है। भगवान बिष्णु की प्रियतमा लक्ष्मी देवी कमल पर विराजमान है और हाथों मे कमल धारभ किए हुए हैं ।।८-९-१०।।

श्लोक---
श्वेतरूपधरा देवी ईश्वरी वृषवाहना ।
ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वयोगसमन्विताः ।।११।।
इत्येता मातरः सर्वा सर्वयोगसमन्विताः ।
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः ।।१२।।
दृश्यन्ते रथमारूढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः ।
शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम् ।।१३।।
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च ।
कुन्तायुधं त्रिशूलं  च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम् ।।१४।।
दैत्यानाम् देहनाशाय भक्तानामभयाय च ।
धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै ।।१५।।
नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे ।
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि ।।१६।।
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि ।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता ।।१७।।
दक्षिणेऽवतु वाराही नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी ।
प्रतीच्यां वारूणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी ।।१८।।
उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी ।
ऊर्ध्व॔ ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद् बैष्णवी तथा ।।१९।।
एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना ।
जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः ।।२०।।

भावार्थ---
वृषभ पर आरूढ ईश्वरी देवी ने श्वेत रूप धारण कर रखा है। इस प्रकार ये सभी माताएं सब प्रकार की योगशक्तियों से सम्पन्न है। इनके सिवा और भी बहुत सी देवियां है, जो अनेक प्रकार के आभूषणों की शोभा से युक्त तथा नाने प्रकार के रत्नों से सुशोभित है ।।११-१२ ।।
ये सम्पूर्ण देवियां क्रोध में भरी हुयी है और भक्तों की रक्षा के लिए रथ पर बैठी दिखाई देती है। ये शंख ,चक्र , गदा, शक्ति, हल, और मुसल , खेटक और तोमर , परशु तथा पाश, कुन्त और त्रिशूल एवं उत्तम शार्ङ्गधनुष आदि अस्त्र शस्त्र अपने हाथों मे धारण करती है। दैत्यौं के शरीर का नाश करना, भक्तों को अभयदान देना और देवताओं का कल्याण करना यही उनके शस्त्र-धारण का उद्देश्य है ।।१३-१४।। 
कवच आरम्भ करने से पहले इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए----महान् रौद्ररूप, अत्यन्त घोर पराक्रम, महान बल और महान उत्साह वाली देवी तुम महान भयका नाश करने वाली हो, तुम्हे नमस्कार है ।।१५-१६।।
तुम्हारी ओर देखना भी कठिन है।शत्रुओं का भय बढानेवाली जगदम्बिके ! मेरी रक्षा करो। पूर्व दिशा में ऐंद्री मेरी रक्षा करें। अग्निकोण में अग्निशक्ति,दक्षिण दिशा में वाराही तथा नैर्ऋत्यकोण में खड्गधारिणी मेरी रक्षा करे। पश्चिम दिशा में वारूणी और वायव्यकोण मे मृग पर सवारी करनेवाली देवी मेरी रक्षा करे ।।१७-१८।।
उत्तर दिशा में कौमारी और ईशान कोण में शूलधारिणी देवी रक्षा करे। ब्रह्माणि ! तुम ऊपर की ओर से मेरी रक्षा करो और बैष्णवी देवी नीचे की ओर से मेरी रक्षा करो । इसी प्रकार शव को अपना वाहन बनाने वाली चामुण्डा देवी दशों दिशाओं मे मेरी रक्षा करो । जया आगे से और विजया पीछे की ओर से मेरी रक्षा करे ।।१९-२०।।

श्लोक---
अजिता वामपर्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता ।
शिखामुद्योतिनी रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता ।।२१।।
मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी ।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके ।।२२।।
शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवाशिनी ।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शांकरी ।।२३।।
नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका ।
अधरे चामृताकला जिह्वायां च सरस्वती ।।२४।।
दत्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका ।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च ताकुले ।।२५।।
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला ।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी ।।२६।।
नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी ।
स्कन्धयोः खड्गिनी रक्षेद् बाहु मे वज्रधारिणी ।।२७।।
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च ।
नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी ।।२८।।
स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी ।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी ।।२९।।
नभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा ।
पूतना कामिका मेढृं गुदे महिषवाहिनी ।।३०।।

भावार्थ---
वामभाग में अजिता और दक्षिण भाग में अपराजिता रक्षा करे। उद्योतिनी शिखा की रक्षा करे। उमा मेरे मस्तक पर विराजमान होकर रक्षा करे ।।२१।।
ललाट में मालाधरी रक्षा करे। और यशस्विनी देवी मेरी भौंहों की रक्षा करे। भौंहों के मध्य भाग मे त्रिनेत्रा और नथुनों की यमघण्टा देवी मेरी रक्षा करे ।दोनों नेत्रों के मध्य भाग में शंखिनी और कानों मे द्वारवासिनी रक्षा करे। कालिका देवी कपालों की तथा भगवती शांकरी कानों के मूलभाग की रक्षा करे । नासिका में सुगन्धा और ऊपर के ओठ में चर्चिका देवी रक्षा करे । नीचे के ओठेथ अमृतकला तथा जिह्वा में सरस्वती देवी रक्षा करे ।।२२-२३-२४।।
कौमारी दांतों की और चण्डिका कण्ठ प्रदेश की रक्षा करे। चित्रघण्टा गले की घांटी की और महामाया तालु मे रहकर रक्षा करे। कामाक्षी ठोढी की और सर्वमंगला मेरी वाणी की रक्षा करे। भद्रकाली ग्रीवा में और धनुर्धरी पृष्ठवंश में रहकर रक्षा करे ।।२५-२६।।
कण्ठ के बाहरी भाग में नीलग्रीवा और कण्ठ की नली में नलकूबरी रक्षा करे। दोनों कंधों मे खड्गिनी और मेरी दोनों भुजाओं की वज्रधारिणी रक्षा करे। दोनों हाथों में दण्डिनी और अंगुलियों में अम्बिका रक्षा करे। शूलेश्वरी नखों की रक्षा करे। कुलेश्वरी कुक्षि मे रहकर रक्षा करे ।।२७-२८।।
महादेवी दोनों स्तनों की रक्षा और शोकविनाशिनी देवी मन की रक्षा करे। ललिता देवी हृदय में और शूलधारिणी उदर में रहकर रक्षा करें। नाभि में कामिनी और गुह्य भाग की गुह्येश्वरी रक्षा करे। पूतना और कामिका लिंग की और महिषवाहिनी गुदा की रक्षा करे ।।२९-३०।।

श्लोक---
कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवाशिनी ।
जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी ।।३१।।
गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी ।
पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी ।।३२।।
नखान् द्रष्टाकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा ।।३३।।
रक्तमञ्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती ।
अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तंच मुकटेश्वरी ।।३४।।
पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा ।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु ।।३५।।
शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा ।
अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी ।।३६।।

भावार्थ----
भगवती कटिभाग में और विन्ध्यवासिनी घुटनों की रक्षा करें। सम्पूर्ण कामनाओं को देने वाली महाबलादेवी दोनों पिण्डलियों की रक्षा करे। नारसिंही दोनों घुट्ठियों की और तैजसी देवी दोनों चरणों पृष्ठभाग की रक्षा करे। श्रीदेवी पैरों की अंगुलियों की और तलवासिनी पैरों के तलुओं में रहकर रक्षा करें ।।३१-३२।।
अपनी दाढों के कारण भयंकर दिखाई देने वाली दंष्ट्राकराली देवी नखों की और ऊर्ध्वकेशिनी देवी केशों की रक्षा करे। रोमावलियों के छिद्रों मे कौबेरी और त्वचा की वागीश्वरी देवी रक्षा करे। पार्वती देवी रक्त,मज्जा,वसा,मांस,हड्डी और मेदकी रक्षा करे। आंतों की कालरात्री और पित्त की मुकुटेश्वरी रक्षा करे ।।३३-३४।।
मूलाधार आदी कमल-कोशों में पद्मावती देवी और कफ में चूढामणि देवी स्थित होकर रक्षा करे। नख के तेज की ज्वालामुखी रक्षा करे। जिसका किसी भी अस्त्र से भेदन नही हो सकता वह अभेद्या देवी शरीर की समस्त संधियों में रहकर रक्षा करे। ब्रह्माणी आप मेरे वीर्य की रक्षा करें । छत्रेश्वरी छाया की रक्षा करे। तथा धर्मधारिणी अहंकार की रक्षा करे ।।३५-३६।।

श्लोक---
प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम् ।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना ।।३७।।
रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी ।
सत्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा ।।३८।।
आयु रक्षतु वाराही धर्म रक्षतु वैष्णवी ।।
यशः कीर्ति च लक्ष्मीं च धनं विद्या च चक्रिणी ।।३९।।
गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके ।
पुत्रान रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवीं ।।४०।।
पन्थानं  सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता ।।४१।।
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु ।
तत्सर्वं रक्ष मे देवी जयन्ती पापनाशिनी।।४२।।
पदमेकं न गच्छेत्तु तदीच्छेच्छुभमात्मनः ।
कवचेनावृतो नित्यंयत्र यत्रैव गच्छति ।।४३।।
तत्र तत्रार्थलाभाश्च विजयः सार्वकामिकः ।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम् ।।४४।।
निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामे अवपराजितः ।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान ।।४५।।
इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम् ।
यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः ।।४६।।
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः ।
जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः ।।४७।।

भावार्थ---
हाथ में वज्र धारण करने वाली वज्रहस्ता देवी मेरे प्राण, अपान, व्यान,उदान,और समान वायु की रक्षा करे। कल्याण से शोभित होने वाली भगवती कल्याण शोभना मेरे प्राण की रक्षा करें । रस ,रूप, गंद , शब्द और स्पर्श इन विषयों का अनुभव करते समय योगिनी देवी रक्षा करें तथा सत्त्व गुण, रजोगुण और तमोगुण की रक्षा सदा नारायणी देवी करें ।।३७-३८।।
वाराही आयु की रक्षा करें। वैष्णवी धर्म की रक्षा करें तथा चक्रिणी देवी यश, कीर्ति, लक्ष्मी ,धन तथा विद्या की रक्षा करें । इंद्राणी आप मेरे गोत्र की रक्षा करें। चंडी के तुम मेरे पशुओं की रक्षा करो । महालक्ष्मी पुत्रों की रक्षा करें । और भैरवी पत्नी की रक्षा करें । मेरे पथ की सुपथा तथा मार्ग के क्षेमकरी रक्षा करें । राजा के दरबार में महालक्ष्मी रक्षा करें । तथा सब ओर व्याप्त रहने वाली विजया देवी संपूर्ण भयों से मेरी रक्षा करें ।।३९-४०-४१।।
 देवी जो स्थान कवच में नहीं कहा गया है, अतएव रक्षा से रही है, वह सब तुम्हारे द्वारा सुरक्षित हैं, क्योंकि तुम बिजयाशालिनी और पापनाशिनी हो, यदि अपने शरीर का भला चाहे तो मनुष्य बिना कवच के कहीं एक पग भी न जाए कवच का पाठ करके ही यात्रा करें कवच के द्वारा सब ओर से सुरक्षित मनुष्य जहां-जहां भी जाता है, वहां वहां उसे धन लाभ होता है तथा संपूर्ण कामनाओं की सिद्धि करने वाली विजय की प्राप्ति होती है। वह जिस- जिस अभीष्ट वस्तु का चिंतन करता है उस -उसको निश्चय ही प्राप्त कर लेता है, वह पुरुष इस पृथ्वी पर तुलना रहित महान ऐश्वर्या का भागी होता है ।।४२-४३-४४।।
 कवच से सुरक्षित मनुष्य निर्भय हो जाता है । युद्ध में उसकी पराजय नहीं होती है । तथा वह तीनों लोगों में पूजनीय होता है । देविका यह कवच देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। जो प्रतिदिन नियम पूर्वक तीनों संध्या के  समय श्रद्धा के साथ इसका पाठ करता है उसे देवी कला प्राप्त होती है तथा वह तीनों लोकों में कहीं भी पराजित नहीं होता है इतना ही नहीं वह अपमृत्यु से रहित हो सौ से भी अधिक वर्षों तक जीवित रहते हैं ।।४५-४६-४७।।

श्लोक---

नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः ।
स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम् ।।४८।।
अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले ।
भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः ।।४९।।
सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा ।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः ।।५०।।
ग्रहूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः ।
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः ।।५१।।
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते ।
मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम् ।।५२।।
यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले ।
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा ।।५३।।
यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम् ।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी ।।५४।।
देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम् ।
प्राप्नोति पुरूषो नित्यं महामायाप्रसादतः ।।५५।।
लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते ।।ॐ।।५६।।

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