Sunday 23 February 2020

12-प्रेरणादायक एवं शिक्षाप्रद कहानियाँ

12-प्रेरणादायक एवं शिक्षाप्रद कहानियाँ 

12-Motivation and instructive stories


Motivational stori in hindi
दोस्तों हिन्दी कहानियाँ  एक ऐसी विधा जो जीवन को, परिस्थितियों को अपने में लेकर उलझी हुई समझ को, सुलझा देती हैं जीवन में नयी दिशा जगा देती है।Inspirational story हिंदी कहानी हमारे व्यक्तित्व को एक दर्पण की भांति हमारे सामने प्रेषित करती हैं; हमे ज्ञान से ओतप्रोत करती है। कहानियाँ जीवन का दर्पण है,कहानियाँ हमें प्रेरणा देती हैं। Success stori in hindi जिनसे हमें अपने कर्मो का बोध होता हैं, जो हमारे लक्ष्य प्राप्ति का माध्यम बनता है।Motivational story माना कि कहानियाँ काल्पनिक होती हैं पर कल्पना परिस्थिती के द्वारा ही निर्मित होती हैं, कहीं न कही यह हमें जीवन में बडा संदेश देती है। Motivational story in hindi पाठको को लुभाने एवं बांधे रखने के लिए कई बार भावों की अतिश्योक्ति की जाती हैं लेकिन अंत सदैव व्यवहारिक होता हैं, यथार्थता से परिपूर्ण होता हैं।Inspirational moral story
आइए हम आपको ऐसी कुछ कहानियाँ दिखाते है जो आपके जीवन  को नयी दिशा प्रदान करेगी। और आपकी सफलता का माध्यम बनेगी।
ऐसी कयी प्रेरणादायक कहानियाँ Motivational story in hindi ज्ञानवर्धक कहानियाँ Inspirational story



Motivational story in hindi
Inspirational story

विषय वस्तु 
1- विद्या का सदुपयोग (Good use of learning) 2- छोटी शुरूवात बडी कामयाबी (Small start big success) 3- सही सीच का नतीजा (Right thinking result) 4- विश्वास की जीत (Victory of trust) 5- सोच का फर्क (Difference of thinkin) 6- चुनौतियों में छुपा होता है,बडा अवसर (There is hidden in      challenges, big opportunities) 7- सकारात्मक सोच (Positive thinking) 8- अच्छे चरित्र का निर्माण (Build good character) 9- बडी सोच (Big thinking) 10- शिष्टाचार कैसा हो (How is courtesy) 11-सच्ची गुरू भक्ति (True guru devotion) 12- भगवान कल्कि अवतार (Lord kalki avatar)

(1)- विद्या का सदुपयोग 
        Good use of learning


कहा जाता है कि विद्या मे वह ताकत होती है कि वह इनशान की तकदीर बदल दे। लेकिन उस विद्या का उपयोग और दुरुपयोग हमी करते है। विद्या छोटी बडी नही होती।

एक बार एक गांव मे एक  व्यक्ति रहता था वह पशु पक्षियों का व्यापार किया करता था। उसे मालूम हुआ कि उसके गुरू को पशु पक्षियों की बोली लगाने की अच्छी विद्या आती है।और की सारी विद्या आती थी।

वह पहुंच गया गुरू के पास और जाते ही गुरू की सेवा करने लगा तो उसने कहा कि मुझे पशु पक्षियों के व्यापार करने की विधी बता दो जिससे मुझे अच्छा मुनाफा हो सके।

गुरू कहते है कि ठीक है परन्तु एक बात ध्यान रखना कि कभी भी इस विधी का प्रयोग अपने फायदे के लिए मत करना। वह कहता है ठीक है।
वह जैसे ही घर पहुंचा कबूतर उससे कहता है कि दो दिन बाद बैल मरने वाले है। वह सुनते ही बैलों को बेच देता है। उसे अच्छा मुनाफा होता है। दूसरे दिन एक चिड़िया कहती है कि मुर्गियां मरने वाली है। उसने सारी मुर्गियां अच्छे दामों पर बेच दी।

एक बार बिल्ली ने कहा कि तुम मरने वाले है। तो वह परेशान हो जाता है और गुरू के पास जाता है और कहता है कि मै मरने वाला हूं। तो गुरू कहते है कि मैने पहले कहा था कि इस विद्या का प्रयोग कभी खुद की भलाई के लिए मत करना। खुद के मुनाफे के लिए कभी मत करना।

विद्या की हमेशा एक खासियत होती है , उसे कभी अपने लिऐ नही प्रयोग किया जाता। और नाही दूसरों की बुराई के लिए उसका प्रयोग करना है।



(2)- छोटी शुरूवात बड़ी कामयाबी
      Small start big success


कहते है कि छोटी सुरूवात से ही बडी कामयाबी हासिल होती है। अगर हम एक दम बडा फायदा काम सोचोगे तो जो हमारे पास है वो चला जायेगा। इसीलिए लिए छोटी कामयाबी को ही बडी खुशी मानकर हमे अपना हौसला बनाना चाहिए। तभी हमारा बडे मुकाम तक पहुंच सकते है।

एक बार एक गांव मे निर्धन परिवार रहता था। परिवार की हालात इतनी तंगी थी कि उसके खाने पीने के भी लाले पडे हुए थे। परिवार सिर्फ तीन ही लोगों का था। पती पत्नि और बेटा ।

पती को कोई काम नही देता था। क्योंकि वह बीमारी के कारण सुस्त भी रहता था। इसीलिए उसे काम नही देते थे। उसकी पत्नी थोडा बहुत घरों मे काम करती थी तो थोडा ही खर्च निकल पाता था। बेटे की पढ़ाई के लिए नही बच पाता था।इसीलिए वह स्कूल नही जाता था।

अचानक एक दिन उसकी मृत्यु हो जाती है । पत्नी बेचारी अब अकेली हो चुकी थी। लोगों ने उसे अपसगुनी मानकर काम से निकाल दिया। अब उसकी आजीविका का कोई सहारा न था। जहां काम मांगने जाती लोग मना कर देते थे। घर मे भी कुछ न बचा था। बेटे को तड़पते देख उसे कुछ नही सूझ रहा था।

एक दिन उसके दिमाग मे आया कि उसे आचार बनाना आता है। उसके पास कुछ पैसे थे।उसने आम और मसाले लाये और आचार बनाना शुरू किया। आचार दो दिन मे तैयार हो गया , फिर उसने बाजार मे बेचने के लिए ले गया उसे थोडा बहुत पैसे मिल गये थे। दूसरे दिन वह उससे उसने खाने के लिए नही लाया बल्की भूखे ही रहे। लेकिन उन पैसों से उसने और आम लाये और आचार बनाकर दूर गांव मे बेचने गयी।

धीरे-धीरे उसकी इन्कम बड़े लगी उसका बेटा स्कूल जाने लगा। वह और मेहनत करने लगी अब उसने बाजार मे दुकान भी खोल ली जिससे काफी ग्राहक उसके बन गये , अब उसका अपना गांव मे सबसे बडा घर था। उसने काफी फैक्ट्री भी खोल दी औ लोगों को रोजगार देने लगी। धीरे-धीरे वह शहर की सबसे रहीस बन गयी।

इसीलिए कहा काम छोटा नही होता आदमी उसे छोटा बना देता है।




 (3)- सही सोच का नतीजा
       Right thinking result


कहा जाता है कि जितनी बडी सोच हमारी होगी उतना ही ज्ञान का विस्तार भी होगा। यानी हमारी सोचने समझने की शक्ति अन्य लोग से अधिक होगी। जिससे हम हर समस्या को आसानी से पार कर सकते है।

एक बार एक गांव मे एक सरपंच जी रहते थे उनकी प्रखर बुद्धि से उन्हे जाना जाता था। पूरा गांव उनका सम्मान करता था। तथा गांव की खुशहाली के लिए सरपंच जी खूब मेहनत करते थे। यही नही दूर दूर से भी लोग उनके पास न्याय मांगने आते थे।

एकबार दूर गांव से उनको मिलने एक व्यक्ति आता है और कहता है कि मैने किसी मुसाफ़िर को रात मे रहने के लिए जगह दी थी। किन्तु वह कीमती चीज लेकर भाग गया।

सरपंच जी कहते है कि उस व्यक्ति को और जिसने उसे पकड़ा  उसे यहां पेश करो। दूसरे दिन दोनों को पेश किया जाता है । सरपंच जी पहले अतिथि से पूछते है।कि क्या तुमने चोरी की है। वह कहता है नही मै तो आराम से कमरे मे सो रहा था मैने चोरी कीमत आवाज सुनी तो उसके पीछे भागा और मुझे ही दोशी बताया गया।

फिर दूसरे कैदी से पूछते है जो की गांव का ही चौकीदार था। वह कहता है कि  मैने इसे भागते हुए देखा तभी मैने इसको पकडा। सरपंच की कुछ समझ मे नही आ रहा था। उन्हे दूसरे दिन आने को कहा लेकिन दूसरे दिन भी कुछ न हुआ।

फिर सरपंच जी ने तरीका सोचा और कहा कि गांव के बाहर एक बक्सा पडा है तुम दोनों उसे मेरे पास लादो तो तुम दोनों का गुनाह माफ हो जायेगा। दोनों दौड़ते हुए जाते है और दोनो चले जाते है बक्सा लाते समय दोनो बाते करते है कि तू गांव का चौकीदार है तो फिर चोरी क्यों करता है।
तबतक चौकीदार कहता है कि मै तो चोरी कर रहा था तो तुमने मुझे पकडा क्यों फिर दोनों पहुच जाते है और कहते है इसमे इतना भारी क्या है।

सरपंच जी बक्सा खोलते है, तो उससे एक आदमी निकलता है । वह आदमी सबकुछ कहता है जो उसने सुना था। आखिर चौकीदार को सजा होती है और अतिथि को सम्मानित किया जाता है।

आखिर सरपंच जी की सोच ने एक सही फैसला सुनाया जिससे वह अतिथि निर्दोष साबित हुआ।

इसीलिए कहा गया है कि सोच बडी होनी चाहिए उससे हर समस्या के हल निकल जाता है


         

(4)- विश्वास की जीत
Victory of trust


हमे मालूम है कि अगर हमारा किसी के प्रति सच्चा विश्वास है तो जीत निश्चित होती है। विश्वास मे वह शक्ती है जो बडा से बड़ा कार्य भी सफलता दिलाती है।

एक बार एक गांव मे एक सज्जन पुरूष रहते थे, वे बहुत ही दयालू तथा हृदय ग्राही थे , किसी को भी कभी अपशब्द नही कहते थे। जोभी उनके घर आता वे अच्छे से उसका आथित्य सत्कार करते।  लोग उनसे सलाह मसहोरा लेने आया जाया करते थे।

एक बार एक कैदी जेल से भाग जाता है पुलिस उसके पीछे लगी रहती है। वह जब गांव के बीच पहुंचता है तो उसे एक घर का दरवाजा खुला दिखता है। वह घर उसी सज्जन पुरूष का था। वह बिना इजाजत के अन्दर प्रवेश करता है।

जैसे ही वह कैदी अन्दर पहुचता है तो वह सज्जन पुरूष बडी सौम्यता से कहते है , आइए महाराज आपका स्वागत है। उसे आराम से बिठाता है और कहता है कि तुम कौन हो और कहां से आ रहे हो। वह कैदी कहता है कि मै रास्ता भटक गया हूं , क्या आप मुझे आज रात रहने की जगह दे सकते है। आपका बडा एहसान होगा।

वह पुरूष  कहता है क्यों नही आप आराम से यहां रहिए आप नहा लो मै आपके लिये खाने सोने की व्यवस्था करता हूं। जब तक वह कैदी नहाता है तब तक वह सज्जन पुरूष उसके लिए सब व्यवस्था करता है। खाने के बाद सब सो जाते है। लेकिन उसकी नियत खराब हो जाती है और वह वहां से सोने की चीजे चुरा लेता है। और फिर भाग जाता है।

रास्ते मे पुलिस उसे पकड़ लेती है। और जब पूछताछ करती है तो वहा कहता है कि मैने उस सज्जन पुरूष के यहां से यह चुराया है। उस कैदी को उस पुरूष के सामने लाया छाता है। लेकिन वह पुरूष कहता है कि यह सोने की वस्तु मैने ही इसे दान मे दी है।

उस कैदी की आंखे खुल जाती है और उस पुरूष से माफी मांगता है। और कहता है कि जब भी तुम्हे किसी चीज की जरूरत हो तो मांग लेना चाहिए ना की चुराना।

इसीलिये कहा गया है कि विश्वास रखो तो सब कुछ सही हो जाता है।


(6)- सोच का फर्क
Difference of thinking


कहते है कि अगर इन्सान की सोच सही हो तो सबकुछ सही हो ही जाता है। अगर आप दुनिया मे बुराई देखोगे तो पूरी दुनिया आपको बुरी नजर आयेगी और दुनिया मे सभी चीजों का महत्व समझकर सभी को सम्मान दोगे तो आपको हर चीज मे अच्छाई ही नजर आएगी।

एक कहानी ऐसी ही है। एक बार एक गांव का मुखिया अपने आंखों की बिमारी से बहुत परेशान था। और साथ-साथ उसे बहुत घमंड भी था। क्योंकि उसके पास पैसा भी बहुत सारा था। और अपने आप को सबसे समझदार और बुद्धिमान समझता था। और दूसरों को बेवकूफ समझता था।
उसके आंखो की परेशानी दिन प्रतिदिन बढ़ती ही गयी। उसने सभी वैधों तथा डाक्टरों को भी दिखाया पर कोई आराम न मिला किसी को अपने पास भी नही आने देता था , क्योंकि सबकी उसके बराबर हैसियत नही थी।

अंत मे वह एक विदेशी डाक्टर के पास गया। उस डाक्टर ने सलाह दी कि आपको सिर्फ हरा रंग ही देखना है इसके अलावा कुछ और देखोगे तो पूरी आंखे हमेशा के लिए खराब हो जाऐगी।

फिर क्या था उस सेठ ने पूरे घर से लेकर गांव तक पूरा हरा रंग पुतवा दिया जिसमे उसका पूरा पैसा समाप्त हो गया।एक बार एक दरिद्र व्यक्ति ने उससे पूछा कि आप यह क्या कर रहे है, इस तरह से आप पूरी प्रकृति का रंग नही बदल सकते। उस सेठ ने कहा तुम चुप रहो और मेरे पास मत आओ , वह व्यक्ति कहता है की सेठ जी आपका सारा धन चला गया पर घमंड न गया। वह सेठ कहता है निकल जा यहां से।

वह व्यक्ति कहता है , मै तो चला जाऊँगा परन्तु मेरी एक बात याद रखना आपको दुनिया बदलने की जरूरत नही है बल्की आप हरा रंग का चश्मा ही खरीद लो। उस सेठ आंखे खुल जाती है किये मै क्या कर रहा हू ये व्यक्ति तो सही बोल रहा है। उसका घमंड भी चूर हो जाता है। और वह सेठ उस व्यक्ति को उचित इनाम भी देता है।

इसीलिये कहा गया है कि सोच सोच मे फर्क होता है। हर किसी की एक जैसी सोच नही रहती हमे सबकी सोच का सम्मान करना चाहिए।



(6)- चुनौतियों मे छुपा होता है बडा अवसर
       Big opportunity is hidden in challenges


एक कहानी के माध्यम से मै आपको समझाना चाहता हू कि आखिर किस तरह चुनौती को पास या स्वीकार करने पर सफलता  आपको ही मिलती है और उसी मे आपकी जीत छुपी होती है।

एक बार एक गांव का श्रेष्ठ पुरूष था। जिसने सोचा कि गांव वालो की परीक्षा ली जाये। उस पुरूष को आजकल के नौजवानों की चिन्ता सताए रहती थी क्योंकि आज के युवा कोई भी चुनौति स्वीकार किए बिना आसानी से सब कुछ हासिल करना चाहते है।

उस श्रेष्ठ पुरूष ने एक बार गांव के बाहर रास्ते पर एक बडा सा पत्थर रख देता है। अब सभी गांव के लोग उसको हटाए बिना ही रास्ता तय कर रहे थे जो भी उस रास्ते से गुजरता वह रास्ता बदलकर या फिर उस पर चढकर ही रास्ता पार करता। कोई भी उस पत्थर को चुनौती समझ कर उसे हटाने की कोशिश नही करता।

जो भी धनाढ्य लोग उस श्रेष्ठ पुरूष से मिलने के लिए बाहर गांव से आते वे भी उसे हटाने की कोशिश नही करता बल्कि  उस श्रेष्ठ पुरूष को ही दोशी मानते कि उन्होने इसे हटाने की कोशिश नही की।ऐसा सिलसिला दिन भर चलता रहा।परन्तु किसी ने उस पत्थर रूपी चुनौती को हटाने की कोशिश नही की बल्कि एक दूसरे को ही दोशी ठहराने लगे।

सांय के समय एक व्यापारी सर पर गठरी लेकर वहां से गुजर रहा था। उसे पार करने मे परेशानी हो रही थी। उसने उस पत्थर को हटाने की बहुत कोशिश की आखिर कार वह उसे हटाने मे सफल होता है। लेकिन वह देखता है कि पत्थर के नीचे एक पोठरी है उसे खोल कर देखता है तो उसमे बहुत सारे सोने के सिक्के है। और एक पत भी लिखा हुआ है कि पोठरी पाने वाले को मेरा सला।उस व्यापारी की किस्मत बदल जाती है।

अर्थात कहने का तात्पर्य यही है की जो चुनौती से जूझकर सामना करता है उसे हमेशा कुछ न कुछ जरूर प्राप्त होता है। और जो उससे भागने या बचने की कोशिश करता है वह जीवन मे कुछ भी हासिल नही कर पाता।



(7)- सकारात्मक सोच
       Positive thinking


सकारात्मक सोच होना मनुष्य के लिए उतना ही जरूरी है कि जितना सांस लेना। अर्थात जब मनुष्य मे नकारात्मक सोच का प्रभाव उसकी सोचने समझने की शक्ति को प्रभावित करके उसका जीवन व्यर्थ बना देता ।इसीलिए  हमे अपने अन्दर सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव रखना है तभी हमारा जीवन मे  सभी कार्य सफल हो सकते है। अन्यथा कोई भी कार्य हमारे सोचने पर ही उसका गलत परिणाम देते है।क्योकि हम पहले ही उसमे बुराई ढूढने लगते है।

इसी का एक छोटा सा उदाहरण है। दो सगे भाई थे , लेकिन दोनो की सोचने  की विधी अलग थी। एक हर चीज मे सकारात्मक प्रभाव देखता था , और दूसरा नकारात्मक।

एक बार एक ऋषि ने उन्हे दोनो की परीक्षा हेतु उन्हे वन मे ले गया । और वन मे जाते ही ऋषि ने एक जामुन का पेड दिखाया। जिसमे रसीले मीठे जामुन लगे हुए थे। ऋषि ने कहा कि इस पेड मे तुमे क्या दिखता है । जो सकारात्मक सोच वाला शिष्य था वह कहता है कि  इस पेड पर रसीले जामुन लगते है। लोग इसे पत्थर मारते है तथा अनेकों कस्ट देते है। फिर भी यह पेड मनुष्य को मीठे फल देते रहता है। मनुष्य को भी इन्ही पेडों की तरह होना चाहिए निस्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा करनी चाहिए ।

तभी ऋषि दूसरे शिष्य से पूछता है तुम्हे इस पेड़ पर क्या दिखता है। वह कहता है यह पेड़ कितना दुष्ट होता है। तभी तो लोग इसे पत्थरों से मारते है , इसके साथ यही होना चाहिए ।
ऋषि पहले शिष्य की बातों को सम्मान देता है और दूसरे को सीख लेने के लिए कहता है।

इसीलिए कहा है कि कोई भी वस्तु स्थान बुरा नही होता मनुष्य के सोचने के नजरिए पर वह निर्भर करता है , हमेशा सकारात्मक सोच रखे अपने आप सब कुछ अच्छा लगने लगेगा।



(8)- अच्छे चरित्र का निर्माण
       Build good character


आज के युग मे चरित्र का निर्माण करना बहुत संकट का विषय बन चुका है। भारत वर्ष चरित्रों से ही पहचाना जाता है । हमारा खान पान, भेष-भूसा, हाव-भाव ये सब हमारी पूंजी रही है। लेकिन युग परिवर्तित होते होते हम अपनी सभ्यता भी बदल रहे है। पाश्चात्य संस्कृति को देखकर हम भी उसके रंग मे रंगमत हो चुके है। हमे खुश देखकर दुश्मन देश हमारा उपहास कर रहे है।लेकिन किसी को कोई परवाह नही। अगर अपने भारत वर्ष की गरिमा वा मान-सम्मान बचाना है तो हमे पाश्चात्य को छोड़कर  अपनी वास्तविक सभ्यता को अपनाना पडेगा अन्यथा हमारा अहित होने से कोई नही रोक सकता।

एक छोटी सी कहानी आपके सामने प्रस्तुत है,  अगर आपको अच्छी लगे तो अपने ऊपर ढालने की छोटी सी कोशिश जरूर कीजियेगा ।

एकबार एक चरित्रवान पुरूष की परीक्षा हेतु राजा ने एक सुंदर नारी को रात्री के समय उसके सामने प्रस्तुत किया । जैसे ही वह नारी उस पुरूष के सयन कक्ष मे पहुंची उस पुरूष ने प्रेम भाव से उस नारी से पूछा। हे बहिन! ! हे बेटी ! आप कृपा करके बाहर जाइये । अपने कुल का मान- मत मिटाइये। जिसके लिए तुम्हारे पूर्वजों ने बहुत मेहनत की है। नारी का जीवन आसान नही है , अगर एकबार बदनामी का दाग लग गया तो वह आजीवन उसका पीछा नही छोडती । तुम आखिर मेरी बहिन जैसी हो। कोई भी पिता अपनी बेटी की बदनामी सहन नही कर सकता । और आपके राजा का भी अहित होगा। कोई भी राजा अपनी प्रजा को बदनाम होते नही देख सकता । या वह कुछ ऐसा करदे कि तुमे प्रजा से बाहर कर दे । वह पुरूष बार- उसे जाने के लिए कहते है। लेकिन वह वही रहती है  । वह पुरूष बाहर चले जाता है। वह नारी भी बाहर आती वह पुरूष जब परेशान होता है तो नारी कहती है । हे श्रेष्ठ पुरूष मुझे राजा ने आपकी परीक्षा हेतु भेजा था । लेकिन  आप एक चरित्रवान पुरूष हो। धन्य है आप।


(9)- बड़ी सोच
         Big thinking


कहा जाता है कि मनुष्य जितना बड़ा  सोचता है वह वैसा न सही पर कुछ न कुछ प्रभाव उसका उस व्यक्ति पर जरूर पढता है। सोचने की कोई सीमा नही होती है, मनुष्य पल भर मे कहीं कहीं की सोच लेता है। लेकिन उसके अनुसार कार्य करना सायद ही कोई कर पाता है।

जब आप सोचना सुरू करते है, तो आपके भीतर सवालों का सागर उमड जाता है । अच्छे अच्छे विचार आने शुरू हो जाते है ।आपका चीजों को देखने का नजरिया ही बदल जाता है।

एक छोटी सी कहानी है , बहुत ही गरीबी की हालात मे जी रहा एक व्यक्ति  अपने परिवार की चिन्ता को देखकर नौकरी की तलाश मे निकल पड़ा। घर की हालत बहुत ही तंग थी कभी ठीक प्रकार से भोजन नसीब नही हो पाता था। सूखी रोटी से ही काम चलाना पडता था।इसीलिए जब वो शहर जा रहा था तो उसने खाने के लिए सूखी रोटी ही रखी थी । गाडी मे कयी सारे लोग बैठे हुए थे।वह नही चाहता था ।कि कोई उसकी गरीबी का मजाक उडाये, इसलिए वह रोटी का टुकड़ा उठाता और खाली टिफिन मे घुमाता।वह जताना चाहता था कि लोग सोचे कि वह टिफिन से कुछ खा रहा है ।

लेकिन लोग समझ जाते है, और हैरान रहते है , कि यह व्यक्ति  आखिर कर क्या रहा है ।आखिर एक व्यक्ति पूछ ही लेता है, कि जब तुम्हारे पास सब्जी है ही नही तो फिर ऐसा क्यो कर रहे हो ।उस व्यक्ति ने फिर जवाब दिया कि इस टिफिन मे सब्जी तो नही है , मै अपने मन मे ये सोचकर रोटी खा रहा हूं कि इस टिफिन मे अचार है , इसीलिए मैंने अचार के साथ रोटी खा रहा हूं।

फिर वह व्यक्ति पूछने लगा कि जब तुम ऐसा कर रहे हो तो क्या तुम्हे आचार का स्वाद आ रहा है।युवक ने जवाब दिया हां क्यों नही आ रहा है इसीलिए तो मै बडे प्यार से रोटी खा रहा हूं।

इतना कहते दूसरा व्यक्ति ने पूछा अगर सोच के ही खाना था तो मटर पनीर सोच के खा लेते उसमे क्या खर्चा आता।है। सोचने मे कोई झिझक नही होनी चाहिए जितना ज्यादा सोचोगे उतना ही अधिक ज्ञान प्राप्त होगा ।

इसीलिये कहा गया आदमी कितना ही छोटा या गरीब क्यों नही हो पर वह सोचने मे गरीब नही होना चाहिए  उसकी छोटी सोचे न ही उसे छोटा बना देती है ।आदमी कभी छोटा नही होता उसकी सोचे  ही उसे छोटा बनाती  है।



(10)- शिष्टाचार कैसा हो
         How is courtesy


अधिकतर लोग ऐसे है जिनके अन्दर साहस और समस्या से जूझने की हिम्मत नही होती इसीलिये वे लोग जीवन भर परेशान रहते है । और आजीवन कुछ नही कर पाते है।

बडे -बडे-बडे ऋषि-मुनि हमारे ऐसे आदर्श रहे है जिनकी सीख हमे समय समय-समय पर मिलती रहती है । उन्हीं मे से एक स्वामी विवेकानंद जी भी है उनके बराबर ज्ञानी और आदर्शवादी शायद ही कोई होगा।वो जो भी सोचते थे उसे धरातल पर आजमाने की कोशिश करते थे। अपने आध्यात्मिक ज्ञान से उन्होने भारत ही नही विश्व भर मे लोगो को जीवन जीना सिखाया है।
शिकांगो की एक घटना है जिससे उन्होंने भारत का गौरव हासिल किया।

1893 मे शिकागो मे विश्व हिन्दू धर्म सम्मेलन चल रहा था। विवेकानंद जी भी उसमे भाग लेने गये हुये थे।क्योंकि उन्होने पहले से ही भारत का सम्मान पराकाष्ठा तक पहुचा दिया था। हो सोचते थे कि अब जरूरत  है हिन्दू की अलग पहचान बनाना उसे विश्व मे सम्मान दिलाना।लेकिन जैसे ही विवेकानंद बोलने के लिये खडे हुए ,उनकी नजर नोटिस बोर्ड पर पड़ी । जहां लिखा था [ हिन्दु धर्म, मुर्दा धर्म ] एक ऐसा शब्द जिसको देखकर हर हिन्दुस्तानी का खून खौल उठे उन्हे उसका जवाब दे सके। लेकिन विवेकानंद ने ऐसा नही किया क्योकि वह तो बोलने के लिए गए हुये थे।

(लेकिन कहते है न कि जो तलवार न कर सके,वो काफिला मुख से निकले शब्द करते है)

क्योंकि शब्दो मे वो ताकत है जो शक्तिशाली रियासत को भी मिटा सकती है । विवेकानंद जैसे ही स्टेज पर पहुंचे उन्होने कहा अमेरिका भाई-बहनों को मेरा प्रणाम। इस शब्दो को सुनकर जनता ने तालियों से उनका स्वागत किया।

जहां हर कोई भारत के शिष्टाचार संस्कृति को मान्यता न देकर उपहास करते थे । वहीं विवेकानंद ने विदेशी धरती पर जाकर उसके गुणों को बिखेरते रहे। ताज्जुब की बात यह थी कि लोग उन्हे बडी गौर से सुन रहे थे।समय कब व्यतीत हुआ पता ही नही चला।लेकिन तभी अध्यक्ष कार्डिनल गिबन्स उनसे अनुरोध किया कि आप थोडी देर और बोलिए । लेकिन जो तब विवेकानंद जी बोला उसने सबकी आंखे खोल दी कि भारतीय संस्कृति कि उपयोगिता क्या है लोग उसे मानने के लिए आतुर हुए और भारतीय शास्त्रों को खंगालने लगे।
उस सम्मेलन ने अमेरिका मे भारतीय संस्कृति की धूम मचाने लगे लोग विवेकानंद जी से मिलने के लिए आतुर हुए जा रहे थे । और हजारों लोग उनके शिष्य बन गये।

अपनी सूझबूझ और व्याख्यान से उन्होने यह सिद्ध कर दिया की भारती संस्कृति की बात ही कुछ और है जो उसमे तपा है , उसने संसार को तपाया है। जिसमे कई धर्म, संस्कृति, सभ्यता, आदर्श, रंगरूप, भेष-भूसा समायी हुयी है जो सभी जीवों पर दया करना सिखाती है। जो इस धरती को मां का स्वरूप मानती है । इस प्रकार उन्होने सिद्ध करवाया कि जिसका समाज उपहास कर रहा है, दरसल वही श्रेष्ठ है।


(11)-सच्ची गुरू भक्ति
       True guru devotion


एकलव्य  एक ऐसा उदाहरण है जिसने अपने गुरू के प्रति वह भक्ति भाव दर्शाया है जिसे कोई भी शिष्य बयां नही कर सकता । आजकल के शिष्य  अपने गुरू के प्रति वो भाव सम्मान नही रखते।गुरू को साक्षात  ईश्वर का स्वरूप मानते है । जिस प्रकार ईश्वर की विनम्र भक्ति से ही उनकी शक्ती हमे प्राप्त होती है।उसी प्रकार गुरू की सच्ची भक्ति से ही हमे ज्ञान प्राप्त हो सकता है।

लेकिन गुरु के प्रति शिष्य की उदारता उदासीनता मे प्रवर्तित हो चुकी है ।उन्हे सिर्फ नौकर के रूप मे ही देखा जाता है, तो उसका असर भी उसी प्रकार से होगा।

एकलव्य का वर्णन महाभारत मे आया है। जोकि एक बहुत बड़ा धनुर्धर है।जिसने अपनी धनुर्विद्या से वो महारत हासिल किया कि शायद ही किसी अन्य ने किया होगा।

एकलव्य निषाद का पुत्र था।एकलव्य  अप्रतिमा गुरू यानी गुरू के पुतले से सीखी गयी विद्या प्राप्त की जिसने सभी लोकों मे गुरू भक्ति की मिसाल कायम की है।लेकिन पिता की मृत्यु के बाद वह श्रृगबेर का शासक बना अपनी जिम्मेदारी को भली प्रकार से निभाने लगे। लेकिन प्रजा की सुरक्षा अब उनके ही हाथों मे थी , इसीलिए वे चाहते थे कि वे ऐसी धनुर्धर बने जो अकेले ही शत्रुओं को परास्त कर सके। लेकिन वह विद्या सीखने के लिए गुरू का होना आवश्यक है।क बिना गुरु के कोई भी ज्ञान प्राप्त नही किया जा सकता ।उस समय द्रोणाचार्य बहुत ही अच्छी धनुर्विद्या सिखाते थे।
एकलव्य ने निश्चित किया कि अब मै द्रोणाचार्य से ही धनुर्विद्या सीखूंगा। वह द्रोणाचार्य जी के आश्रम जाते है और गुरु जी से विनम्र  आग्रह करते है वे उसे धनुर्विद्या सिखा दे ताकी वे अपनी प्रजा की सुरक्षा कर सके।लेकिन कुलीन जाती के होने के कारण द्रोणाचार्य एकलव्य को धनुर्विद्या सिखाने से मना कर देते है ।

एकलव्य यह सुन कर उदास हो जाता है ।उसकी आखरी आशा समाप्त हो जाती है।लेकिन कहते है कि जब मन किसी कार्य के प्रति दृढ निश्चय कर लिया हो तो फिर उसे पूरा होने से कोई नही रोक सकता।

एकलव्य ने हार नही मानी और द्रोणाचार्य जी को ही अपना गुरू मानकर निश्चय किया कि धनुर्विद्या तो मै आप से ही सीखूंगा।और फिर वन मे चला जाता है।

 वह वहा पर द्रोणाचार्य जी की प्रतिमा स्थापित करता है , और पूरी मेहनत व लगन के साथ खुद ही गुरू को साक्षी  मानते हुए धनुर्विद्या सीखता है।और वह कुछ ही दिनों की मेहनत से विद्या ग्रहण कर लेता है , और एक महान धनुर्धर बन जाता है।
एक बार पांडव अपने गुरू के साथ उसी वन मे विचरण कर रहे थे। जहां एकलव्य ने आश्रम बना रखा था। वह अपनी धनुर्विद्या मे लीन थे। किन्तु पाडवों का कुर्ता अचानक एकलव्य के आश्रम मे पहुंचता है, और भौंकने लगता जिससे एकलव्य की तपस्या मे बाधा पहुंचती है। एकलव्य अपना धनुष उठाता है, और उस कुत्ते का मुह बाणों से भर देता है।

लेकिन एकलव्य ने बाण इस प्रकार से चलाए कि कुत्ते को कोई नुकसान न पहुंचे । कुत्ता जब वापस आता है तो द्रोणाचार्य और शिष्य सभी चौंक जाते है। कि ऐसी धनुर्विद्या विद्या कौन सिखा सकता है ।किसमे इतनी प्राग क्षमता है। इतने बाणों की वर्षा से भी जिसका कुछ नही हुआ।

उस व्यक्ति से द्रोणाचार्य की मिलने की इच्छा प्रकट हुयी और ढूड मे निकल पढते है। कुछ ही देर बाद सभी वहां पहुंच जाते है। लेकिन वहां जाकर सभी चौंक जाते है। कि आखिर एक पुतले को माध्यम मानकर ऐसी शिक्षा प्राप्त करना आशान नही है। यह काम कोई दिव्य पुरूष ही कर सकता है।
लेकिन द्रोणाचार्य जी चाहते थे कि उन्ही के शिष्य धनुर्धर बने। द्रोणाचार्य ने अपनी गुरु दक्षिणा मे अंगूठा मांगा तो एकलव्य ने अपना अंगूठा दान कर दिया।
तभी से एकलव्य की शिक्षा पूरे विश्व मे प्रचलित हो गयी।


(12)- भगवान कल्कि अवतार
          Lord kalki avatar


जी हां दोस्तों कहा जाता है पाप का बर्तन अधिक भर जाता है, तो उसको समाप्त करने के लिए अवतार लेते है भगवान् ।

कहा गया है कि----धर्मों रक्षति रक्षकः,
अर्थात जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है, यह हम सब की भावना रही है तभी आज तक हम सिर्फ बुरा सोच सकते है लेकिन किसे के साथ बुरा करने के लिए दश बार  सोचते है , लेकिन वह भी समय आयेगा जब ना तो मनुष्य शास्त्रों की कही हुयी बातों का अनुसरण करेगा। ना कोई धर्म को मानेगा और ना ही कोई किसी मनुष्य पर दया करेगा उस समय सब अपने लिए जायेगे और पापी युक्त भावना का अधिक प्रचलन होगा। तब ही इस महा प्रलय को रोकने के लिए भगवान्  अवतरित होगे।

भगवान् बिष्णु कल्कि के रूप मे कलियुग के आखरी चरण मे जन्म लेंगे , क्योंकि बिष्णु भगवान ही सबका तारणहार है , जीवो पर दया करना उनका परम कर्तव्य है।बिष्णु पुराण मे भी यह कि भगवान कैसे अवतार लेंगे और दुष्टों का संघार करेगें।

पुराण कर्ताओं के अनुसार जब धरती पाप से कांपने लगेगी तब मनुष्य तथा जीवों के उद्धार के लिए भगवान् कल्कि के रूप मे अवतार लेगे। कल्कि नामक एक पुराण भी है जिसमे भगवान कल्कि का वर्णन विस्तार रूप से दिया गया है । जब कलियुग प्रारम्भ हुआ तो सभी देवता बिष्णु के सम्मुख जाकर कहते है कि प्रभु आपके अवतरण का समय आ गया है।भगवान कल्कि सम्भल गांव मे जन्म होता है , तथा उसके साथ भगवान कल्कि का सुन्दर वर्णन विस्तार से है साथ ही अन्य विचित्र घटनाये कल्कि पुराण को रोमांचित करती है।

भगवान कल्कि विवाह करने सिंहल द्वीप जाते है जहां राजकुमारी पद्मावती से उनका मिलन होता है।राजकुमारी का विवाह कल्कि से ही होगा ऐसा वे निश्चित कर लेते है।और कोई उसका पात्र नही होगा ऐसा भगवान कल्कि संकल्प लेते है ।
बाद में शशिध्वज का कल्कि से युद्ध और उन्हें अपने घर ले जाने का वर्णन है, जहां वह अपनी प्राणप्रिय पुत्री रमा का विवाह कल्कि भगवान् से करते हैं। उसके बाद इसमें नारद जी, आगमन् विष्णुयश का नारद जी से मोक्ष विषयक प्रश्न, रुक्मिणी व्रत का प्रसंग और अंत में लोक में सतयुग की स्थापना के प्रसंग को वर्णित किया गया है। वह शुकदेव जी की कथा का गान करते हैं। अंत में दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी और शर्मिष्ठा की कथा है।

 इस पुराण में मुनियों द्वारा कथित श्री भगवती गंगा स्तव का वर्णन भी किया गया है। पांच लक्षणों से युक्त यह पुराण संसार को आनन्द प्रदान करने वाला है। इसमें साक्षात् विष्णु स्वरूप भगवान् कल्कि के अत्यन्त अद्भुत क्रियाकलापों का सुन्दर व प्रभावपूर्ण चित्रण है।

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