Sunday 9 February 2020

ऐसे प्रश्न जो जीवन की दिशा बदल दे?, यक्ष/युधिष्ठिर प्रश्न संवाद ज्ञानवर्धक प्रश्न,शायरी,सुविचार

ऐसे प्रश्न जो जीवन की दिशा बदल दे?युधिष्ठिर ने यक्ष को दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या बताया? 
ज्ञानवर्धक प्रश्न,शायरी,सुविचार

Informative question shayari, precious words


दोस्तों महाभारत से तो हम सभी पचित है ही, जिसमेें ऐसे कई प्रश्न है जो हमेें दिशा दिखा सकती है, ऐसे प्रश्न जो कामयाबी का माध्यम बनते है,ऐसे  प्रश्न जो हमें आध्यात्म से जोडने का  प्रयास करता है और सभी को ज्ञान प्रसारित कर रहा है।Can show direction, questions that become the medium of success, questions which try to connect us with spirituality and are spreading knowledge to all.
उसी में यक्ष और युधिष्ठिर का संवाद भी बहुत परिचित है जिसमें जीवन से सम्बन्धी ऐसे प्रसन्न है जो जीवन को नयी दिशा प्रदान करने मे बहुत सहायक है। और हमे प्रेरित करने के लिये अहम भूमिका निभाता है।

युधिष्ठिर अपने भाइयों की ढूंढ मे जाता है लेकिन देखता है कि उसके सभी भाई तालाब के किनारे मृत अवस्था मे पढे है। प्यास से व्याकुल होकर वह भी पानी पीने के लिये उद्यत होता है,लेकिन तालाब से आवाज आती है कि पहले मेरे सवालों का जवाब दो। युधिष्ठिर ज्ञानी तो था ही उसने कहा ठीक है प्रश्न पूछो।

दोस्तों यह वही प्रश्न है जिसको समझ करके हम प्रेरित हो सकते है। हम अपने जीवन में उसे उतार सकते है। यह कोई सामान्य प्रश्न नही है,और कोई इसे महसूस भी नही कर सकता है।जीवन का सार समझना है तो तो इनका अध्ययन एवं मनन करना आवश्यक है।
यह बत सत्य है कि हमारे अन्दर बहुत सारी खूबियां दबी हुयी है,We have a lot of strengths buried in it,
जिसे बाहर निकालने के लिए कोई न कोई माध्यम होना आवश्यक है। क्या पता हमारे अन्दर भी कोई महान व्यक्ति छुपा हो ।
ऐसे वचन ही हमे प्रेरित करते है कुछ अलग करने को भाव को समझे और आत्मसात करने का प्रयास करे। आशा है आपके जीवन को नयी दिशा जरूर मिलेगी और आप अपने लक्ष्य को पा सकेंगे। सफलता आपके कदमों मे होगी।

प्रस्तुत है कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न जिनका जवाब शायद मनुष्य के पास भी नही होगा जो जीवन को व्यर्थ समझता है। इनका अध्ययन ही समस्त ज्ञान को अग्रेषित हो सकता है।

 यक्ष प्रश्न- मनुष्य का साथ कौन देता है?

उत्तर- धैर्य -- (Patience) 
जी हां यह सत्य है कि इस दुनियां मे कोई किसी का साथ नही देता है। केवल व्यक्ति का धैर्य ही उसका साथ देता है। व्यक्ति इस भ्रम में जी रहा होता है कि उसका परिवार या उसकी पत्नी ही उसका साथी है,लेकिन यह मनुष्य  के सम्भव में नही है,अगर ऐसा होता तो उसके मरने के बाद उसके चाहने वाले भी इस दुनिया को छोड जाते लेकिन ऐसा नही होता है। कोई भी मनुका साथी नही होता है सभी स्वार्थ से बंधे हुए है।

मनुष्य का साथी धैर्य ही होता है, जो हर संकट से उसको उभरने मे सहायता करता है,और जो धैर्य को अपनाता है,या धैर्य से कार्य करता है उसे जीवन मे कोई कष्ट नही होता है।

Patience is the companion of a human being, who understands this, is born successful
धैर्य ही मनुष्य का साथी होता है,जो यह समझ लेता है उसका जन्म लेना सफल हो जाता है।

यक्ष प्रश्न- कौन सा शास्त्र (विद्या) है, जिसका अध्ययन करके मनुष्य बुद्धिमान बनता है?

उत्तर- महान लोगों की संगति--

अक्सर मनुष्य सोचता है कि कोई तो ऐसी विद्या होगी जिसके अध्ययन से वह विद्वान बन सकता है,जबकि ऐसी कोई भी विद्या नहीं है। और ना ही ऐसा सम्भव है पूर्ण ज्ञानी तो कोई बन ही नही सकता। लेकिन वह समस्त ज्ञान का कुछ अंश प्राप्त करना चाहे तो उसे महान लोगों की संगति अपनानी होगी। महान लोग भी ऐसे जिनके विचार बहुत ही उत्कृष्ट हो। अगर हम उनकी संगति मे रहते है तो, जादा न सही कुछ न कुछ उनके गुणों का प्रभाव हमारे अन्दर जरूर विकसित होगा जिससे हमारा मनुष्य होने की सार्थकता स्पष्ठ हो सकेगी।

लेकिन दुर्भाग्य है कि हमें महान लोगों की संगति रास नहीं आती है,और जो मनुष्य ऐसी संगति अपनाता है,वह जीवन की सार्थकता को भांप लेता है और अमरत्व प्रदान हो जाता है।
इसलिए हमें महान लोगों की संगति अपनाना चाहिए, इससे जीवन में बदलाव अवश्य आयेगा और सुख की प्राप्ति भी होगी।(The association of great people should be adopted, it will definitely bring changes in life and happiness will also be achieved.)

यक्ष प्रश्न- भूमि से भारी चीज क्या है?

उत्तर- सन्तान को कोख में धारण करने वाली माता।

मां के आंचल में वह खुशबू है,मां के आंचल में वह शक्ति और भक्ति है,मां बच्चे की उम्मीद है,आशा है, ज्योति है,मां का आंचल बच्चे का संसार है,सफलता है,त्याग और तपस्या है,मां का आंचल ममता है,भावना है,बलिदान है । न जाने मां की कोख में क्या-क्या समाया हुआ है,जिसकी हम कल्पना भी नही कर सकते।

मां की महानता से तो हम सभी परिचित है,कि किस तरह मां अपने बच्चों के लिए परित्याग करती है।उसकी छमता धरती से बडकर होती है, मां वह हर समस्या से निपट सकती है जिससे निपटने की छमता कोई नही रखता है। मां कयी अवतारों में जन्म लेकर बच्चे की परवरिश करती है। जीवन में कोई भी संकट क्यों न आये,जीवन किसी भी राह पर क्यों न जाये वह बच्चे को हमेशा फूलों की तरह रखती है। शास्त्रों में कहा गया है कि--धरती का आखिरी किनारा हो सकता है लेकिन मां के आंचल का कोई किनारा नही होता है।,धरती कभी-कभी क्रोध भी कर लेती है परन्तु मां कभी भी अपने बच्चे पर क्रोध नही करती, धरती का प्यार धोका हो सकता है,किन्तु माता का प्यार न तो धोका होता है और न ही वह कभी कम होता है।

(Earth may have the last edge but there is no edge to the mother's lap., Earth sometimes rages but mother never rages on her child, the love of the earth can be deceitful, but mother's  Love is neither deceit nor is it ever diminished.)

जीवन मे कितने ही मोड क्यों न आजाए, मां का प्यार बच्चे के लिए बचपन में भी वही होता है और पचपन में भी वही।बेटे की झोली कम पढ जाएगी किन्तु मां का प्यार कभी कम नहीं पडता है।
कहा भी गया है----
मां की दुआ कभी खाली नही जाती,टालना भी चाहो तो नहीं टाली जाती।मेहनत मजदूरी करके मां बच्चे को पाल लेती है,लेकिन उसी बच्चे से ओ मां कभी पाली नही जाती।

Mother's prayers never go empty,Even if you want to postpone it is not avoided.The mother raises the child by working hard,But o mother never raises from the same child.

यक्ष प्रश्न- आकाश से ऊंचा कौन है?

उत्तर पिता--(Father)

शायद हम कुछ देर तक यह मान लें कि आकाश की दूरी कोई नही नाप सकता, आकाश सबसे ऊंचा होता है,लेकिन दोस्तों इस धरती पर आकाश को टक्कर देने वाला आकाश की ऊंचाइयों को भी चुनौती देने वाला पिता होता है।
कहा भी गया है---

''मत कर गुरूर ऐ आशमां खुद की ऊंचाईयों पर,धरती पर भी आशमां जैसा पिता है,तेरी ऊंचाइयों का तो हिसाब है जहां में,पिता का समर्पण तो बेहिसाब है यहां ।,,

जी हां पिता का समर्पण अपने परिवार और बच्चे के लिए बेहिसाब होता है। पास कुछ भी नही होता फिर भी जुबान पर कभी ना नही होता है।(A father's dedication is unique to his family and child.  There is nothing near, yet there is never on the tongue.)

पिता हर समय अपने परिवार,बच्चों के लिए गतिशील रहता है,खुद इच्छा कभी जाहिर नही करता और परिवार की अनसुना नही करता,बस मे हो न हो,फिर आखिरी दम तक प्रयास करता है, पिता की थकान मिट जाती है,जब वह परेशान अपनों को देखता है।पिता की ऊम्र गुजर जाती है लेकिन जिम्मेदारी का बोझ नही उतरता, बच्चा कितना ही बडा क्यों न बन जाए किन्तु उसकी फिक्र करना नही भूलता,बेटा अगर भूल भी जाए किसी कारणवश पिता को किन्तु मरते दम तक नही भूलता, पिता खाना छोड दे तो बेटा समझता है, उमर का तकाजा है, लेकिन बेटा खाना छोड दे तो पिता को चिंता न सोने देती है और न बैठने। सच मे पिता का दिल आशमां से भी बडा होता है जो न कभी थकता है,और न कभी झुकता है।
कहा भी गया है कि---
पिता है तो पूरा बाजार अपना है,
पिता है तो सारे सपने अपने है,
पिता है तो हर खुशी अपनी है,
पिता है तो हर मंजिल अपनी है,
पिता चलने का सहारा होता है,
पिता उम्मीद की एक किरण होता है,
पिता है तो दुख हल्का होता है,
पिता है तो कंटरीले राह भी फूलों के लगते है।
पिता समन्दर है,पिता आकाश से भी ऊंचा है,पिता के त्याग की कोई सीमा नही होती, पिता गुरू है,पिता दोस्त है,पिता ममता का दरिया है, पिता न जाने किसरूप में है।

If the father is there then the whole market is his own,
 If you are a father, all dreams are yours,
 If the father is there, every happiness is his,
 If the father is there, every destination is his own
 The father has the support of walking,
 Father is a ray of hope,
 If the father is there then the misery becomes mild,
 If there is a father, then the narrow road also starts with flowers.
 The father is salamander, the father is higher than the sky, there is no limit to the father's renunciation, the father is the teacher, the father is a friend, the father is the lover of Mamta, the father is in a clueless state.

यक्ष प्रश्न-- हवा से भी तेज चलने वाला कौन है?
उत्तर-- मन 
अर्थात-- हम मानते है कि हवा की गति सबसे तीव्र होती है। लेकिन यह सत्य नही है। क्योंकि हवा से तीव्र चलने वाला हमारा मन होता है, जो एक सेकेण्ड में कितनी ही जगहों की यात्रा कर कसता है। मन को हराना सम्भव नही है, और यह एक ही जगह पर स्थिर नही रह सकता है। जिसने अपने मन पर काबू कर पाया है, वही विजेता कहलाता है।मन को जीतना उतना ही आवश्यक है, जितना लक्ष्य का पीछा करना,। तभी आप एक सक्षम आदमी सकते हो ।

यक्ष प्रश्न--  घास से भी तुछ (बेकार) कौन सी चीज है?
उत्तर-- चिन्ता( Care)

अर्थात-- आपने सुना होगा कि चिन्ता चिता के समान होती है। हम यह मानते हैं कि घास किसी काम की नही होती है,जबकि वह मनुष्य तथा अन्य जीव-जन्तुओं के लिए बहुत ही उपयोगी है। इस दुनियां मे सबसे बेकार चिन्ता को माना गया है,जो किसी काम की नही होती है,उल्टा व्यक्ति को कष्ट में डालता है। जो चिन्ता की आघोश में आता है, उसका वर्तमान,भूत,भविष्य कुछ नही होता है,और उसका शरीर भी दीमक खाई हुयी लकडी के समान नष्ट हो जाता है। व्यर्थ की चिन्ता समय-मन-शरीर-बुद्धि का नाश करती है।

चिन्ता नही करनी चाहिए यह एक बार आने से वापस नहीं जाती है, यह ऐसी बीमारी है जिसकी न कोई दवा है और न कोई इलाज। चिन्ता करने से समस्या बडती है न कि घटती है।
One should not worry, it does not go back once it is coming, it is such a disease which has no medicine and no treatment.  Worrying causes problems and does not decrease.

यक्ष प्रश्न-- विदेश जाने वाले का कौन साथी होता है?
उत्तर- विद्या (ज्ञान)

अर्थात--  यह बात बहुत ही सटीक बैठती है --(सा विद्या या विमुक्तये) यानी विद्या ऐसी होनी चाहिए जो मुक्ति को दिलाने वाली हो। मुक्ति का तात्पर्य है कि उसे समस्त ज्ञान प्राप्त हो पाए उसके सामने जो भी प्रश्न उठे उनका जवाब उसके पास हो। और यही ज्ञान विदेश मे उसका साथी होता है,क्योंकि विदेश मे सभी चीजें अपरिचित रहती है,चाहे लोग हो,भाषा हो,या स्थान हो। अपरिचित जगह पर वह अपने ज्ञान से लोगों को आकर्षित कर सकता है। अन्यथा उसकी कोई पहचान नही रह पाएगी।

विद्या ही वह माध्यम है,जिसके द्वारा हम दुनियां मेंअपनी मान प्रतिष्ठा स्थापित कर सकते है। विद्य ही सर्वश्रेष्ठ धन है जो न चोरी किया जा सकता है,और न नष्ट हो सकता है।


Knowledge is the medium through which we can establish our honor in the world.  It is the best wealth that can neither be stolen, nor destroyed.

यक्ष प्रश्न-- घर में रहने वाले का कौन साथी होता है?
उत्तर- पत्नी(wife)

अर्थात-- इस संसार में कोई अपना मित्र (साथी) नही हैं,उनका स्वार्थ आपसे है इसलिए वह आपका मित्र है,क्योंकि चाहे बेटा हो, भाई हो, या अन्य सम्बन्धी हो वे सभी तभी तक आपके मित्र है जब तक आपमें शक्ति है या आप से स्वार्थ जुडा हुआ है।
लेकिन पत्नी (अर्धांगनी) ही एक ऐसी सच्ची साथी है। जो आजीवन आप का साथ देती है।उसका कोई स्वार्थ नहीं छुपा होता है,वह बिना स्वार्थ के ही पती पर समर्पित रहती है।



पत्नी भरती है जीवन में रंग,
वह मूरत देवी की होती है।
मोड आये जिन्दगीं में कभी भी कोई,
दामन न पती का वो छोडती है।


Wife consents color in life,
She is the idol of the goddess.
Anyone ever came in life,
She leaves her husband without any help


यक्ष प्रश्न-- मरणासन्न में वृद्ध का मित्र कौन होता है?

उत्तर-- दान-क्योंकि वही मृत्यु के बाद अकेले चलने वाला जीव के साथ-साथ चलता है।(Dan - because the same person moves along with the organism after death.)

अर्थात-- यह कहावत तो हमने सुनी होगी कि आदमी खाली आया था और खाली ही जायेगा। जी हां यही सत्य है। यह मनुष्य का भ्रम है जो वह इस माया संसार में बन्धनों में फसकर इतना मोहित हो जाता है कि वह कुछ दान पुन्य नही कर पाता है,वह चाहता है,कि उसके आश्रितों के लिए वो कितना जमा पूंजी एकत्रित कर सके। जबकि यह दुनियां तो मिथ्या है।अपवाद है। दान-पुण्यं ही मुक्ति का एकमात्र द्वार है,और वह भी वो अपने जीवन में नही कर पाता है। लेकिन यह भी सत्य है कि व्यक्ति को इसका एहसास मृत्यु के कुछ पहले कराया जाता है।उसे मालूम पढता है कि वह किस भ्रम में जी रहा था। यहां कौन अपना है और कौन पराया, कुछ साथ नहीं जाने वाला है,जो साथ जाने वाला था वह तो उसने किया ही नहीं। लेकिन तब तक समय गुजर जाता है।

इसीलिए कहा है कि मृत्यु के समय अगर व्यक्ति से कुछ दान-पुण्यं कराया जाय तो वही उसके साथ जाता है।वरना उसका मनुष्य जीवन बेकार ही गुजर जाता है।

दान-पुण्य है मुक्ति का द्वार,
इस अवसर को न कभी गंवाना तुम।
जिसकी कीमत इस दुनियां मे है,
वक्त रहते हे मानव पहचानों तुम।


Charity is the door to liberation,
 You should never miss this opportunity.
 Which cost in this world,
 You live with human identities



यक्ष प्रश्न-- बरतनों में सबसे बडा कौन होता है?
उत्तर-- भूमि ही सबसे बडा बरतन है जिसमें सबकुछ समा सकता है।

अर्थात-- भूमि को माता का रूप माना गया है, वही माता जो अपने बच्चे के लिए सपने बुनती है ,और उसके हर कर्मों,कुकर्मों को माफ कर देती है, इस धरती में ही सब कुछ समाया हुआ है। पापी भी यहीं है,और पुण्य आत्मा भी यहीं है इस माता ने किसी का तिरस्कार नहीं किया है।इससे बडा बरतन और कोई नहीं हो सकता है।

धरती मां का दिल है बडा,
कितने जख्मों को ये सहती है।
घाव दे मनुष्य चाहे कितना भी,
इसका हृदय न कभी बदलता है।


Mother Earth's heart is big,
 She suffers so many injuries.
 No matter how much the person wounds,
 Its heart never changes.


यक्ष प्रश्न-- सुख क्या है?

उत्तर-- सुख वह चीज है , जो शील व सच्चरित्रता पर स्थित है।
Happiness is that which is based on modesty and truthfulness.

अर्थात-- हम सभी इसी खोज में लगे रहते है कि सुख की परिभाषा क्या होगी, हम संसार में सुख को ढूंढते है। जबकि यह हमसे ही बना है, हममें और हमारे आचरण से ही इसका सम्बन्ध है। जिसका जितना अच्छा शीतल स्वभाव और चरित्रवान आचरण होगा वह इस भवसागर में धनी भी होगा,और सुखी भी होगा। सुख को हम धन से नही तोल सकते।नाही हम इसे भाग्य मान सकते है। यह तो हमारे कर्मों की गति से ही हमें प्राप्त होता है।
इसीलिए अपने कर्म अच्छे रखिए वही मुक्ति का माध्यम भी है ,और सुख का साधन भी है ।अगर आप संसार में सुख की ढूंढ में निकलोगे तो फिर कयी जीवन गुरजर जाएगा परन्तु सुख को नहीं प्राप्त कर पाओगे।

सुख की ढूंढ मे मत निकल रे बन्दे,
यह तेरे मन में है अनुराग छुपा।
शील,चरित्रता,परोपकार है,चाबी इसकी,
इसको तू जग में रमता जा
इसको तू जग में भजता जा।


Don't stop looking for happiness,
 This is hidden in your heart.
 Modesty is character, philanthropy, the key is,
 Let it shine in the world
 You can worship it in the world.

यक्ष प्रश्न- किसके छूट जाने से मनुष्य सबसे प्रिय बनता है?

उत्तर-- अहंभाव (अहंकार) के छूट जाने पर।
अर्थात-- दोस्तों क्रोध ही वह शत्रु है जो हमें आगे बढने नही देता है,क्रोध हमारे सभी इन्द्रियों को सुस्त कर देता है। क्रोध जिस शरीर में होगा उसमें ज्ञान नही होगा क्योंकि ए दोनों एक साथ कभी नही रह सकते। और बिना ज्ञान के जीवन यापन करना पशु के समान है। (ज्ञानेन हीनः पशुभिः समाना) अहंकार आने पर हमारे अन्दर सोचने समझने की शक्ति कमजोर हो जाती है। और इसका सबसे बडा कारण यह है कि हम अपने आप को तथा दूसरे को नुकसान पहुचाने में देरीनही करते। और यह कभी कम नही होता है दिनो-दिन यह बढता ही जाता है।

क्रोध मनुष्य को उस अनुत्थान में लेकर जाता है,जिसकी वह कल्पना भी नही कर सकता,वह न अपना हित देखता है ना ही दूसरे का,क्रोध उस पर इस तरह हावी होया है,कि उस पर काबू पाना असम्भव हो जाता है।

Anger leads a human being into an environment which he cannot even imagine, he neither sees his own interest nor that of another, anger is so dominated over him that it becomes impossible to overcome it.


यक्ष प्रश्न- किस चीज को खोने से मनुष्य धनी बनता है?

उत्तर- लालच
अर्थात-- जी हां लालच (लालसा,दूसरे की वस्तु पाने की इच्छा)  यह मनुष्य की अवनति का सबसे बडा बाधक है। हम सभी का मानना यही है कि धनवान वही है जिसके पास सबसे जादा धन-दौलत है। जबकि यह सत्य नही है ,धन के अभाव में अगर कोई गुणवान है तो वही सबसे बडा धनी है।
धन की लालसा व्यक्ति को इस तरह अपने वश में कर देता है कि वह हित और अहित की नही सोचता है। उसका मन व शारीरिक क्रिया ही बदल जाती है।
लालच बुरी बला है इस वचन को हमें आत्मसात करने की आवश्यकता है,अन्यथा वह व्यक्ति न तो समाज में मानप्रतिष्ठा प्राप्त कर सकता है और ना ही अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।

लालच के आघोश में आकर,
क्यूं मानव तू ये भूल गया।
करम,धरम,नियति सब मिट जावें,
जोग जुगति भावे न मन को।

Fearing greed,
 Why man, you forgot it.
 Karam, dharam, destiny will all disappear,
 Jog jugti bhave neither to mind


यक्ष प्रश्न- मनुष्य सभी से प्रेम क्यों नहीं करता?

उत्तर- जो स्वयं को सभी में नहीं देख सकता वह सभी से प्रेम नहीं कर सकता।

अर्थात- प्रेम की परिभाषा ही अलग है यह बांटने से ही बढता है। प्रे की दो परिभाषाएं है। एक जो निस्वार्थ वस किया जाता है।और दूसरे में स्वार्थ छुपा होता है।निस्वार्थ प्रेम लोग बहुत कम करते है ,और जो करता है,वह सभी से प्रेम करता है। और स्वार्थ वाला प्रेम परिवार, सगे सम्बन्धी में होता है,उसकी आसक्ति इतनी बढ जाती है कि उन्हें दूसरे के दुख का एहसास नहीं हो पाता है।


यक्ष प्रश्न-  आसक्ति क्या है?

उत्तर-  प्रेम में मांग, अपेक्षा, अधिकार आसक्ति है।

अर्थात- आसक्ति का अर्थ है कि दूसरे की समस्त कृया पे न्यौछावर हो जाना। मनुष्य जिससे प्रेम करता है या जिससे उसका स्वार्थ रहता है,उसी की सुख शान्ति के लिए ही व्यस्त रहना,या कार्य रत रहना।


यक्ष प्रश्न- नशा क्या है?

उत्तर- आसक्ति।

अर्थात-- नशा कोई बीमारी नहीं है यह भी आसक्ति ही है,जब कोई भी व्यक्ति नशे की आघोश में आ जाता है तो उसकी आसक्ति उस व्यसन (नशे) पर इतनी हो जाती है कि वह उससे दूर नहीं रह सकता,चाहे वह नशा उसको कितना ही कष्ट क्यों न दे दे।


यक्ष प्रश्न- मुक्ति क्या है?

उत्तर– अनासक्ति (आसक्ति के विपरित) ही मुक्ति है।

अर्थात-- मुक्ति का अर्थ मुक्त हो जाना या स्वतन्त्र हो जाना नही है, मुक्ति से तात्पर्य है कि सांसारिक बन्धनों से परे हो जाना किसी भी प्राणीमात्र पर लालसा न रहना समस्त सृष्टि को ही निमित्त मात्र मानकर उस परमात्मा स्वरुप के आदर्शों का पालन करना।


यक्ष प्रश्न- बुद्धिमान कौन है?

उत्तर- जिसके पास विवेक है।

अर्थात- बुद्धिमान का अर्थ समस्त विद्या या शास्त्रों का ज्ञान होने से नही है। बल्कि इनके रहते या न रहते जिसके पास विवेक है,जो समस्त जीवों मे उस परमात्मा को देखकर उस जीव को पूजता है। और जो सभी जीवों को अपने प्राणस्वरूप देखता है और उसी के अनुसार कार्य करता है,वही सबसे बडा बुद्धिमान है ।


यक्ष प्रश्न- चोर कौन है?

उत्तर- इन्द्रियों के आकर्षण, जो इन्द्रियों को हर लेते हैं चोर हैं।

अर्थात-- चोरी करना जन्मजात प्रक्रिया नही है ,और ना ही वह वह वंशानुक्रम है,यह हमें तब प्राप्त होती है जब हम अपनी इन्द्रियों पर वश नही कर पाते है। अक्सर लोग कहते है,संगति का असर होता है जबकी ऐसा नही है। कमल भी कीचड में खिलता है लेकिन वह अपनी चारित्रिक गुणों  के कारण अपनी इन्द्रियों को वश मे रखता है। हमारी संगति या वातावरण कैसा भी हो अगर हम खुद पर काबू कर पाते है तो वह कभी भी कुमार्ग पर नही जाता चोर बनना इसके बिमुख जाना ही है।



यक्ष प्रश्न- नरक क्या है?

उत्तर- इन्द्रियों की दासता नरक है।

अर्थात- स्वर्ग या नर्क कोई ऐसी जगह नही है, मनुष्य सबकुछ यहीं प्राप्त करता है, अगर वह अच्छे कर्म करता है तो उसके साथ भी अच्छा ही घटित होता है,उसे सब अच्छा मानने लगता है और सबका चहेता बनता है,तो उसे अपना जीवन स्वर्ग जैसा लगने लगता है। और जब मनुष्य की हर क्रिया पापों से युक्त होती है तो उसके साथ भी वैसा ही घटित होता है,लोग उससे बचने की कोशिश करते है, कोई भी उसे देखना नही चाहता है, तो उसे अपना जीवन नर्क लगने लगता है।
यानी कहने का तात्पर्य है कि, नर्क वह स्थिति है जब हमें खुद अपना जीवन बोझ लगने लगे या हमें खुद में ग्लानी होने लगे।



यक्ष प्रश्न- जागते हुए भी कौन सोया हुआ है?

उत्तर- जो आत्मा को नहीं जानता वह जागते हुए भी सोया है।

अर्थात- मनुष्य कहता है मैं पूर्ण ज्ञानी हूं। जबकी वह बहुत ही गलत है, एक संत अपना पूर्ण जीवन न्यौछावर करके बाल्यकाल में ही ईश्वर की ढूंढ में निकल पढता है,पूरा जीवन तपस्या और ध्यान में गुजार देता है,लेकिन फिर भी उसे ईश्वर की प्राप्ति नही होती है। जबकि कहा गया है कि ईश्वर तो पल भर की तलाश में ही मिल जाते है,तो फिर उसे क्यों प्राप्त नही हुआ। ईश्वर तपस्या से नही बल्कि हमारे अन्दर ही विद्यमान है हम उस बात से अनजान है और ईश्वर को बाहरी दुनियां में ढूढते हैं। अगर खुद के अन्दर झांका होता तो ईश्वर पल भर में ही प्राप्त हो जाते। इसे हि कहते है,जागते हुए भी सोया रहना।



यक्ष प्रश्न-- कमल के पत्ते में पड़े जल की तरह अस्थायी क्या है?

उत्तर-  यौवन, धन और जीवन।

अर्थात- जीवन,जवानी,और धन यह तीनों चीज भी कमल के पत्ते में पडे जल के समान अस्थाई है। जवानी भी हमेशा नही रहती,धन भी कभी आता है जात है,जीवन का भी कोई ठिकाना नही होता है कब मृत्यु आ जाये।



यक्ष प्रश्न-  दुर्भाग्य का कारण क्या है?

उत्तर- मद और अहंकार।

अर्थात- मनुष्य जीवन मिलना बढे सौभाग्य की बात है, लेकिन मनुष्य लोभ और अहंकार में पडकर इस जीवन को दुर्भाग्य बना देता है। इन दोनों परिस्थितियों में पढकर वह शुभ और अशुभ की परवाह भी नही करता है। उसे सिर्फ अपना ही हित दिखाई देता है।



यक्ष प्रश्न- सौभाग्य का कारण क्या है?

उत्तर-  सत्संग और सबके प्रति मैत्री भाव।

अर्थात- सौभाग्य मनुष्य खुद के कर्मों से ही प्राप्त करता है कोई भी भगवान की विशेष देन नही होती है। शुभ और अशुभ हमसे ही प्राप्त् होता है। सबसे प्रेम करना तथा भगवत् भकति करने से ही,सौभाग्य संतुष्टि प्राप्त होती है।



यक्ष प्रश्न-  सारे दुःखों का नाश कौन कर सकता है?

उत्तर- जो सब छोड़ने को तैयार हो।

अर्थात- संसार ही दुखों का कारण है मनुष्य रिस्तों और माया बन्धनों में पडकर अपने आप ही दुखों को मोल लेता है,जब आप किसी से अधिक प्रेम करते है तो आप उसके बिना एक पल भी चैन से नही रह सकते आपको उसकी आसक्ति बार-बार अपनी खींचती है। और जो इससे परे रहता है अपने को भगवान का नाथ मानकर ईश्वर के ध्यान में लीन रहता है, उसी के सभी दुखों का नाश होता है।



यक्ष प्रश्न-  मृत्यु पर्यंत यातना कौन देता है?

उत्तर- गुप्त रूप से किया गया अपराध।

अर्थात- हमें गरूड पुराण में यह बताया जाता है कि मरने के बाद कैसी कैसी यातनाएं दी जाती है, जबकी ऐसा नही है, यह सब मनुष्य को गलत कर्म करने से बचने के लिए बताया गया है। मृत्यु के बाद आपके द्वार उजागर न किया गया अपराध ही यातना बनती है। आप उससे खुद ही दूर नही हो पाते है।



यक्ष प्रश्न- दिन-रात किस बात का विचार करना चाहिए?

उत्तर- सांसारिक सुखों की क्षण-भंगुरता का।

अर्थात- मनुष्य को अपने सुखों का नही बल्कि यह सुख छण भंगूर है, जिसका कोई अस्तित्व नही है। उसका ध्यान करना चाहिए। सुख स्थाई नही होता है, दुख भी उसके साथ-साथ कलता है,और यह कर्मों से ही प्राप होता है। जैसा कर्म होगा वैसा ही वह स्वतः प्राप्त हो जायेगा इसलिए सुख की परवाह न करते हुए, आंतरिक मन आत्मा और परमात्मा का ही ध्यान करना चाहिए।



यक्ष प्रश्न- संसार को कौन जीतता है?

उत्तर-  जिसमें सत्य और श्रद्धा है।

अर्थात- जग को जीत पाना संभव नही है, इस संसार को वही जीत पाता है, जो सत्य मार्ग पर चलकर,परमात्मा की दी हुई सभी चीजों पर श्रद्धा का भाव रखता है।

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