क्यों मनाई जाती है शिवरात्री,
शिव के 108 नाम
(अर्थ, महत्व,मुहूर्त,कथाएं,मान्यताएँ)

ॐ नमः शिवायः

ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारूचन्द्रावतंसं ,रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम् ।पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं ,विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम् ।।
शिवरात्रि का अर्थ
दोस्तों शिवरात्रि का तात्पर्य है कि शिव की रात्री मान्यताएँ कयी है किन्तु इस दिन शिवजी का विवाह हुआ था।इसलिए शिव रात्रि कहा जाता है। जो भी इस दिन शिव की चार पहर की पूजा करता है उसके सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते है। शिव ही सम्पूर्ण शक्तियों के देवता है और इस शिवरात्रि के दिन उनका ध्यान,उपासना करने से मनुष्यों के सभी कष्ट समाप्त हो जाते है।शिवरात्रि का समय व शुभ मुहूर्त-
- ``शिवरात्रि व्रतं नाम सर्वपापप्रणाशनम् ।
- आचाण्डालमनुष्याणाम् भुक्ति मुक्ति प्रदायकम् ।।
शिवरात्रि महापर्व निशीथव्यापिनी चतुर्दशी में मनाया जाता है।
इस बार चतुर्दशी तिथि व महाशिवरात्रि इस साल शुक्रवार, 21 फरवरी 2020 को मनाया जा रहा है। महाशिवरात्रि के दिन महादेव और माता पार्वती की पूजा शुभ काल के दौरान करनी चाहिए तभी इसका फल मिलता है। आपको यह भी बता दें कि महाशिवरात्रि की पूजा रात्रि में चार बार यानी चार पहर की शिव पूजन की परंपरा है। तभी शिव प्रसन्न होकर वरदान देते है।
सामान्यतः शिवरात्रि हर माह आती है, किन्तु फाल्गुन चतुर्दशी भगवान शिव की भक्ति को समर्पित है। शिवरात्रि पर महादेव की पूजा से विशेष फल मिलता है। और कयी शक्तियों को समर्पित यह विशेष दिन भगवान शिव के अलावा मां पार्वती की पूजा-आराधना के लिए भी सर्वेत्तम है।
महाशिवरात्रि का महत्व--
दोस्तों महादेव शिव शंकर को सभी देवताओं में सबसे सरल माना जाता है और उन्हें मनाने में ज्यादा जतन नहीं करने पड़ते। शिव भगवान सिर्फ सच्ची भक्ति से ही प्रसन्न हो जाते हैं। यही वजह है कि भक्त उन्हें प्यार से भोले नाथ बुलाते हैं। यह प्रचलित मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को भगवान शिव ने विश को अपने कण्ठ स्थापित कर लिया था। जिस कारण उन्हे नीलकण्ठ भी कहा जाता है। उस विष के कारण वे उनके शरीर मे उथल-पुथल होने लगी। उनके अन्दर तेज का प्रकोप अधिक होने लगा और उसी दिन से उनके तेज को शान्त करने के लिए शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है।हर साल में 12 या 13 शिवरात्रियां होती हैं। हर महीने एक शिवरात्रि पड़ती है, जो कि पूर्णिमा से एक दिन पहले त्रयोदशी को होती है। लेकिन इन सभी शिवरात्रियों में दो सबसे महत्वपूर्ण हैं- पहली है फाल्गुन या फागुन महीने में पड़ने वाली महाशिवरात्रि और दूसरी है सावन शिवरात्रि। हिन्दू धर्म को मानने वाले लोगों की शिवरात्रि में गहरी आस्था है। और शिव को ही शक्तियों का प्रयाग स्थल भी माना गया है। शिवरात्रि का यह त्योहार भोले नाथ शिव शंकर को समर्पित है। मान्यता है कि सावन की शिवरात्रि में रात के समय भगवान शिव की पूजा करने से भक्तों के सभी दुख दूर होते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही नहीं बुरी बलाएं भी उससे कोसों दूर रहती हैं। सोमवार को शिव का विशेष वार माना गया है लोग इस दिन भी शिव के लिए व्रत उपासना करते है।
महाशिवरात्रि पूजा विधि
शिव वैसे तो सबसे शान्त देवता माने जाते है ये भक्त की आस्था को ही स्वीकार करते है फिर भी शिव को कुछ चीजे बहुत प्रिय है जो उनके अभिषेक मे प्रयोग किया जाता है।इस दिन भगवान शिव की पूजा करते वक्त बिल्वपत्र, शहद, दूध, दही, शक्कर और गंगाजल,शक्कर,गन्ने का रस,भांग,धतूरा,से अभिषेक करना चाहिए। ऐसा करने से आपकी सारी समस्याएं दूर हों जाएगी,और मन की मुराद पूरी होगी। पूजा करते वक़्त शिव का सम्पुट मंत्र ओम नमः शिवाय का जाप करना चाहिए।
भगवान शिव के 108 नाम
अष्टोत्तरशतशिवनामपूजा
ध्यान--शान्ताकारं शिखरिशयनं नीलकण्ठं सुरेशं,विश्वाधारं स्फटिकसदृशं शुभ्रवर्णं शुभाग्गम् ।गौरीकान्तं त्रितयनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं,वन्दे शम्भुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ।।
सभी अनन्तर भगवान शिव के आगे लिखे नामों से शिवलिङ्ग पर बिल्वपत्र चढाएं और पुष्प आदी से शिवपूजन करें। शिवरात्रि के दिन यह विशेष कर शुभ माना गया है इससे अकारमृत्यु का भय नही रहता है और व्यक्ति सभी बन्धनों से मुक्त हो जाता है।
१,ॐ शिवाय नमः, २, ॐ महेश्वराय नमः, ३,ॐ शम्भवे नमः, ४,ॐ पिनाकिने नमः, ५,ॐ शशिशेखराय नमः, ६,ॐ वामदेवाय नमः, ७,ॐ विरूपाक्षाय नमः, ८,ॐ कपर्दिने नमः, ९,ॐ नीललोहिताय नमः, १०,ॐ शङ्कराय नमः, ११,ॐ शूलपाणिने नमः, १२,ॐ खट्वाङ्गिने नमः, १३,ॐ बिष्णुवल्लभाय नमः, १४,ॐ शिपिविष्टाय नमः, १५,ॐ अम्बिकानाथाय नमः, १६,ॐ श्रीकण्ठाय नमः, १७,ॐ भक्तवत्सलाय नमः, १८,ॐ भवाय नमः, १९,ॐ शर्वाय नमः, २०,ॐ त्रिलोकेशाय नमः, २१,ॐ शितिकण्ठाय नमः, २२,ॐ शिवाप्रियाय नमः, २३,ॐ उग्राय नमः, २४,ॐ कामारये नमः, २५,ॐ गङ्गाधराय नमः, २६,ॐ ललाटाक्षाय नमः, २७,ॐ कालकालाय नमः, २८,ॐ कृपानिधये नमः, २९,ॐ भीमाय नमः, ३०,ॐ परशुहस्ताय नमः, ३१,ॐ जटाधराय नमः, ३२,ॐ कैलासवासिने नमः, ३३,ॐ कवचिने नमः, ३४,ॐ कठोराय नमः, ३५,ॐ त्रिपुरान्तकाय नमः, ३६,ॐ वृषाङ्काय नमः, ३७,ॐ वृषभारूढाय नमः, ३८,ॐ भस्मोद्धूलितविग्रहाय नमः, ३९,ॐ सामप्रियाय नमः, ४०,ॐ स्वरमयाय नमः, ४१,ॐ त्रयीमूर्तये नमः, ४२,ॐ अनीश्वराय नमः, ४३,ॐ सर्वज्ञाय नमः, ४४,ॐ परमात्मने नमः, ४५,ॐ सोमलोचनाय नमः, ४६,ॐ सूर्यलोचनाय नमः, ४७,ॐ अग्निलोचनाय नमः, ४८,ॐ हविर्यज्ञमयाय नमः, ४९,ॐ सोमाय नमः, ५०,ॐ शञ्चवक्त्राय नमः, ५१,ॐ सदाशिवाय नमः, ५२,ॐ विश्वेश्वराय नमः, ५३,ॐ वीरभद्राय नमः, ५४,ॐ गणानाथाय नमः, ५५,ॐ प्रजाशतये नमः, ५६,ॐ हिरण्यरेतसे नमः, ५७,ॐ दुर्धर्षाय नमः, ५८,ॐ गिरीशाय नमः, ५९,ॐ गिरिशाय नमः, ६०,ॐ अनघाय नमः, ६१,ॐ भुङ्गभूषणाय नमः, ६२,ॐ भर्गाय नमः, ६३,ॐ गिरिध्निने नमः, ६४,ॐ गिरिप्रियाय नमः, ६५,ॐ कृत्तिवाससे नमः, ६६,ॐ पुरारातये नमः, ६७,ॐ भगवते नमः, ६७,ॐ प्रमथाधिपाय नमः, ६८,ॐ मृत्युञ्जयाय नमः, ६९,ॐ सूक्ष्मतनवे नमः, ७०,ॐ जगद्व्यापिने नमः, ७१,ॐ जगद्गुरवे नमः, ७२,ॐ व्यचमकेशाय पमः, ७३,ॐ महासेनजनकाय नमः, ७४,ॐ चारूविक्रमाय नमः, ७५,ॐ रूद्राय नमः, ७६,ॐ भूतपतये नमः, ७७,ॐ स्थाणवे नमः, ७८,ॐ अहिर्बुध्न्याय नमः, ७९,ॐ दिगम्बराय नमः, ८०,ॐ अष्टमूर्तये नमः, ८१,ॐ अनेकात्मने नमः, ८२,ॐ सात्विकाय नमः, ८३,ॐ शुद्धविग्रहाय नमः, ८४,ॐ शाश्वताय नमः, ८५,ॐ खण्डपरशवे नमः, ८६,ॐ अजपाशविमोचकाय नमः, ८७,ॐ मृडायनमः, ८८,ॐ पशुपतये नमः, ८९,ॐ देवाय नमः, ९०,ॐ महादेवाय नमः, ९१,ॐ अव्ययाय नमः, ९२,ॐ प्रभवे नमः, ९३,ॐ पूषदन्तभिदे नमः, ९४,ॐ अव्यक्ताय नमः, ९५,ॐ दक्षायध्वरहराय नमः, ९६,ॐ हराय नमः, ९७,ॐ भगनेत्रभिदे नमः, ९८,ॐ अव्यक्ताय नमः, ९९,ॐ सहस्त्राक्षाय नमः, १००,ॐ सहस्त्रपदे नमः, १०१,ॐ अपवर्गप्रदाय नमः, १०२,ॐ अनन्ताय नमः, १०३,ॐ तारकाय नमः, १०४,ॐ पयमेश्वराय नमः, १०५,ॐ कपालिने नमः, १०६,ॐ मृगपाणये नमः, १०७,ॐ त्रिलोकनाथाय नमः, १०८,ॐअन्धकासुरसूदनाय नमः
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