शब्द रचना हिन्दी-संस्कृत प्रत्यय का विस्तृत वर्णन
Detailed description of Hindi-Sanskrit suffixes
(परिभाषा,अर्थ कृत्-तद्धित-संस्कृत-हिन्दी-उर्दू-प्रत्यय)
नए शब्द की रचना करने के लिए शब्दों के अंत में जोड़े जाने वाले शब्दांश या अक्षर को ' प्रत्यय ' कहते हैं । जो प्रत्यय संज्ञा , सर्वनाम , विशेषण और अविकारी शब्दों में जोडे जाते हैं , उन्हें तद्धित ' प्रत्यय कहा जाता है , परंतु जो प्रत्यय क्रियाओं में जुड़ते हैं , वे ' कृत प्रत्यय ' कहलाते हैं ।यहाँ यह ध्यान दिए जाने योग्य है कि शब्दों के अंत में जो कारक विभक्तियों के चिह्न ( ने , को , से , के , के लिए , में , पर आदि ) लगाए जाते हैं तथा इसी तरह क्रियाएँ बनाते समय धातुओं के आगे ( आ , या , इया आदि ) शब्दांश जोड़े जाते हैं उन्हें क्रमशः ' कारक प्रत्यय ' और ' क्रिया प्रत्यय ' कहा जाता है ।
इसी प्रकार जो शब्द या शब्दांश पुल्लिग शब्दों के अंत में जुड़कर उन्हें स्त्रालिंग में बदल देते हैं , उन्हें ' स्त्री प्रत्यय ' कहा जाता है ।
कृत् प्रत्यय
क्रिया के मूल धातु के अंत में जुड़कर जो प्रत्यय उस मूल धातु को संज्ञा या विशेषण के रूप में बदल देते हैं , उन्हें ' कृत् प्रत्यय ' कहा जाता है । कृत् प्रत्यय से बनने वाले शब्द ' कृदंत ' कहलाते हैं ।
जैसे - लिख = लिखाई , सज = सजावट , पठ = पठनीय इत्यादि ।
कृत् प्रत्यय मुख्य रूप से पाँच प्रकार के होते हैं ---
1-कर्तृवाचक कृत् प्रत्यय ---
जिन प्रत्ययों के जोड़ने से क्रिया से कर्ता का बोध होता है , उन्हें कर्तृवाचक कृत् प्रत्यय कहते हैं । हार , सार , इयल , अक्कड़ , आका , आकू . आरी , आड़ी , आलू , एरा , आक , क , ऐया , आऊ , ओड़ , आवना , ओड़ा , ओरा आदि ऐसे ही प्रत्यय हैं ।
प्रत्यय -- मूल धातु -- कृदंत प्रत्यय
हार-- पाल,हो -- पालनहार,होनहार
सार--- मिल ----- मिलनसार
इयल --- मर ,अड,सड----मरियल,अडियल
अक्कड़--भूल,पी---भुलक्कड़,पियक्कड़
आका -- लड़------ लड़ाक
आकू--- उड़,लड़,पढ़ ---लड़ाकू,पढ़ाकू आड़ी-आरी-- खेल,काट-- खिलाडी कगरी
आलू-- झगड-- झगड़ालू
एरा-- लूट,बस-- लुटेरा,बसेरा
आक-- तैर-- तैराक
क--- पाल,लिख,गा-- पालक,लेखक, गायक
ऐया -- खे,गा -- खिवैया,गवैया
आऊ -- टिक,जड़,कमा,बेच-- टिकाऊ, जड़ाऊ,कमाऊ,बिकाऊ
ओड़ा,ओरा-- भाग,चाटना -- भगोड़ा,चटोरा
ओड़ा-- हँस--- हंसोडा
आवना---डर,सुहा -- डरावना,सुहावना
2-कर्मवाचक कृत् प्रत्यय --
जो प्रत्यय मूल धातु के साथ जुड़कर कर्म का बोध कराते हैं , उन्हें कर्मवाचक कृत् प्रत्यय कहा जाता है ।
जैसे--
प्रत्यय -- मूल धातु -- कृदंत प्रत्यय
औना-- बिछ,खेल -- बिछौना,खिलौना
नी-- कर,कतर,ओढ़-- करनी,कतरनी,ओढ़नी
आ-- झूल,घेर,ठेल-- झूला,घेरा,ठेला
ई-- फाँस,खाँस-- फाँसी,खाँसी
नी-- कतर,चट,सूंघ -- कतरनी,चटनी, सूंघनी
ऊ-- झाड़ -- झाडू
न-- बेल,ढक-- बेलन,ढक्कन
औटी-- कस-- कसौटी
आवा-- भूल,दिख,बुला -- भुलावा,दिखावा,बुलावा
आव -- घिर,चढ़,बह,बच-- घिराव,चढ़ाव,बहाव,बचाव
आई-- पढ़,चढ़,सिल,लिख-- पढ़ाई, चढ़ाई,लड़ाई,
आन-- उठ,मिल,उड़-- उठान,मिलान, उड़ान
ई-- बोल,हँस,कह,सुन-- बोली,हँसी, कही,सुनी
आवट - बन,गिर,मिल,सज- बनावट,गिरावट,मिलावट
आहट-- घबरा,मुसकरा,जगमगा-- घबराहट,मुसकराहट
ती-- गिन,भर,बढ़,चढ़ -- गिनती, भरती,बढ़ती
ओति-- कट,चुन,फिर, --कटौती, चुनौती,फिरौती
आ-- झगड़ा,झटक,जोड़-- झगड़ा झटका,।
न-- चल,ले,दे,गा -- चलन,लेना,देना, गाना
नी-- कर,भर -- करनी,भरनी
अंत -- गढ़ भिड़ -- गढ़त,भिड़त
त -- बच,खप-- बचत,खपत
आन -- लग,चढ़,उठ -- लगान,चढ़ान, उठान
3-क्रियावाचक कृत् प्रत्यय --
जिन प्रत्ययों को जोड़ने से धातुएँ विशेषण रूप में प्रयुक्त होती हैं उन्हें क्रिया - वाचक कृत् प्रत्यय कहते हैं ।
इसके दो भेद हैं ---
( क ) वर्तमानकालिक(At present)
मूल धातु के साथ ता , ते , ती जोड़कर वर्तमानकालिक कृदंत विशेषण बनते हैं । कभी - कभी लिंगानुसार हुआ , हुए , हुई का भी प्रयोग होता है ।
जैसे - ता , ते . ती , चल , गा , हँस , बह , दौड़ , चलता , गाता , हँसता हुआ , बहता हुआ , दौड़ती हुई . बहती हुई आदि ।
( ख ) भूतकालिक (Past time)
मूल धातु के साथ ' आ ' या ' या ' प्रत्यय जोड़ने पर भूतकालिक कृदंत विशेषण बनते हैं ।
जैसे - ' आ ' कभी - कभी हुआ , हुई लिंगानुसार प्रयुक्त होते हैं । जैसे - पढ़ = पढ़ा , पढ़ा हुआ , सुन = सुना हुआ . पढ़ी = पढ़ी हुई , सुनी हुई ।
ध्यान देने योग्य बातें ----
1-धातुओं के आगे प्रत्यय जोड़ते समय मूल धातु के रूप में कुछ विकार भी हो जाता है । कभी - कभी हस्व स्वर को दीर्घ या दीर्घ स्वर को ह्रस्व कर दिया जाता है ।
जैसे - काट - कटौती , मान - मनौती , पूज - पुजापा , सूझ - सुझाव ।
2-कभी - कभी ' ई ' के स्थान पर ' ए ' तथा ' ए ' के स्थान पर ' ई ' कर दिया जाता है ।
जैसे - मिल - मेला , घेर - घिराव ।
3- कुछ मूल धातुएँ बिना प्रत्यय के ही भाववाचक कृदंत का रूप धारण कर लेती है ।
जैसे - लूट , खेल , चमक , दौड़ , खोज , पुकार , हार , पकड़ ।
संस्कृत के कुछ कृत् प्रत्यय--
1-अन = भवन ,जलन ,चलन ,गमन ।
2-अना - भावना ,वंदना ,कामना , रचना ।
3-आ,या = पूजा ,इच्छा ,प्रथा ,विद्या, कथा ।
4- ति = गति ,मति ,नीति ,शक्ति ।
5- अक = सेवक ,पाठक ,गायक, चालक ।
6- उक = भिक्षुक ,भावुक ।
7- ता = दाता ,कर्ता ,धर्ता ,वक्ता, नेता ,विधाता ।
8- य = देय ,गेय ,पेय ।
तद्धित प्रत्यय --
क्रिया को छोड़कर शेष सभी ( संज्ञा , सर्वनाम , अव्यय ) शब्दों में जुड़ने वाले शब्दांश या अक्षर को तद्धित प्रत्यय कहते हैं । इनके योग से बनने वाले शब्दों को तद्धितांत शब्द कहते हैं ।
( क )कर्तृवाचक (कर्ता का बोध कराने वाले शब्द)
1- आर = सुनार ,लुहार ,चमार, कुम्हार ।
2- आरा = बनजारा ,हत्यारा ।
3-आरी ,आड़ी = जुआरी ,पुजारी, भिखारी ,खिलाड़ी ।
4-:एरा = चितेरा ,सँपेरा ,अँधेरा ,लुटेरा ।
5- हार ,हारा = सिरजनहार ,होनहार, लकड़हारा ।
6- ऐत = लठैत ,टिकैत ,डकैत ।
7- इया = मुखिया ,दुखिया ,बिचौलिया,आढ़तिया ।
8- कार ,कारी = गीतकार ,कलाकार, जानकार ,गुणकारी ,हितकारी , ।
(ख)भाववाचक(भाववाचक संज्ञा का बोध कराने वाले शब्द)
1- पन = बचपन ,लड़कपन, पागलपन ।
2- आहट = चिकनाहट ,कड़वाहट, लिखावट ,बनावट ।
3- त्व = मनुष्यत्व ,देवत्व ,अपनत्व, ममत्व ।
4- ई = बुराई ,भलाई ,महँगाई, अच्छाई ,गरमी ,नरमी ।
5-आस = मिठास ,खटास ,भड़ास ।
6- कार = जयकार ,अहंकार, तिरस्कार ,हाहाकार ।
7- ता = मानवता ,दानवता ,पशुता, लघुता ।
8- त = रंगत ,संगत ।
9- क = ठंडक ,कड़क ।
( ग ) लघुतावाचक (कमी या छोटेपन का बोध कराने वाले शब्द)
1- ई = टोकरी ,खुरपी ,रस्सी ,कोठरी , प्याली।
2- डी = टुकड़ी ,पंखुड़ी ,संदूकड़ी, गठड़ी ।
3- इया = खटिया ,बछिया ,बिटिया ।
( घ ) संबंधवाचक (व्यक्ति या वस्तु के संबंध दर्शाने वाले शब्द)
1- हाल ,आल = ननिहाल ,ससुराल ।
2- औती = बपौती ,मनौती ,कटौती ।
3- एरा = फुफेरा ,ममेरा ,चचेरा ।
4- इक = धार्मिक ,आर्थिक ,नैतिक , सामाजिक ।
5- ई = बंगाली,मद्रासी ,गुजराती, लखनवी ।
( ङ ) क्रमवाचक (जिनमें क्रम का बोध हो)
1- वां = आठवाँ ,पाँचवाँ ,दसवाँ ।
2- सरा = दूसरा ,तीसरा ।
(च) स्थानवाचक (जिनसे स्थान का बोध हो)
1- वाला = शहरवाला ,गाँववाला, दिल्लीवाला ।
2- ई = शहरी ,देहाती ,परदेशी, पंजाबी ,गुजराती ।
3- वी = देहलवी ,लखनवी, लुधियानवी ,हरियाणवी ।
4- इया = अमृतसरिया ,जयपुरिया, जौनपुरिया ।
(छ) गुणवाचक (जिनसे गुण का बोध हो)
1- ई = पापी ,त्यागी ,जंगली ,धनी, मानी ।
2- आ = प्यासा ,भूखा ,ठंडा ,पगला, प्यारा ।
3- लु = दयालु ,कृपालु ।
4- आलू = झगड़ालू ।
5- ऊ = बाजारू ,पेटू ।
6- ईला = चमकीला ,पथरीला, रंगीला ,रसीला ।
7- आरी = पुजारी ,भिखारी ।
( ज ) अपत्य चावक (संतान का बोध कराने वाले शब्द)
1- ऊ = वासुदेव, पांडव ( पांड की संतान )
2- इय = गांगेय, कौंतेय (कुंती की संतान राधेय ( राधा की संतान ) ।
3- य = आदित्य (अदिति की संतान )
4- ई = दाशरथी , मारुति ।
शैव , वैष्णव , शाक्त , जैन , बौद्ध शब्द भी क्रमशः शिव , विष्णु , शक्ति , जिन , बुद्ध - साथ संस्कृत के क्त अथवा अनुयायी - अर्थक तद्धित प्रत्ययों के योग से बनते हैं । हिन्दी में इस अर्थ में ' ई ' प्रत्यय आता है ।
जैसे - कबीरपंथी , आर्यसमाजी , सनातनधर्मी शब्द सी प्रकार बनते हैं ।
संस्कृत के तद्धित प्रत्यय --
1-इमा = महिमा, कालिमा ,लालिमा , गरिमा ,लघिमा ।
2- नीय = पूजनीय ,वंदनीय , आदरणीय ,मानवीय ।
3- वान = गुणवान ,बलवान ,धनवान , ज्ञानवान ।
4- मान = गतिमान ,श्रीमान, मूर्तिमान ,बुद्धिमान ।
5- य = साम्राज्य ,काव्य ,धैर्य ,सभ्य, आलस्य ।
6- ल = मांसल ,शीतल ,ऊर्मिल ।
7- इल = जटिल ,फेनिल ,पंकिल ।
8- ता = कोमलता ,तरलता ,चपलता, चंचलता ।
9- त्व = कवित्व ,देवत्व ,मातृत्व ।
10- आलु = दयालु ,कृपालु ।
11- ईय = शासकीय ,भारतीय , राजकीय ,विद्यालयीय ।
12- व = लाघव ,शैशव ,गौरव , वैष्णव, मानव ,दानव ।
उर्दू के प्रत्यय --
1- आना = सालाना ,मेहनताना, रोजाना ।
2- ई = जवानी ,रोशनी ।
3- दान = कलमदान ,पानदान ,पीकदान ।
4- वान = गाड़ीवान , बागवान ,कोचवान ।
5- मंद = मतिमंद ,अक्लमंद ,दौलतमंद ।
6- बाज = धोखेबाज ,चालबाज, मुकदमेबाज ।
7- इश = कोशिश ,फरमाइश, आजमाइश ।
शब्द-- उपसर्ग / शब्द -- प्रत्यय
असामाजिक-- अ / समाज -- इक
अधार्मिक-- अ / धर्म -- इक
बेचैनी-- बे / चैन-- ई
उपकारक-- उप / कार-- अक
अपमानित -- अप / मान -- इत
अनुदार-- अन / उदार--- ता
निर्दयता--- निर् / दय-- ता
दुस्साहसी--- दुस् / साहस --- ई
बेकारी-- बे / कार-- ई
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