नारी जीवन पर साहित्यिक कवितायें
Literary poem on women's life
1 - हे नारीहे नारी तेरा रूप निराला,
किस रूप की अवतरण हो तुम।
यह भेद न कभी बयां हुआ।
कभी विरह मे तपती हो तुम,
सभी विश्वासों मे जकडी हो तुम।
दुख प्रकट न होने देती,
चाहे जीवन भर दबिश जियेगी।
तू खिले तो प्रकृति मुस्कराये,
तू रोवे तो भर जाये सागर।
हे नारी तेरा रूप निराला ।
भूखे रहकर भी खुश होती,
जब पेट पराये का भर जाये।
भाव भरा है हृदय मे इतना,
कर दे उसको सब पर न्यौछावर ।
पास नही कुछ भी फिर भी लुटावे
होता पास तो क्या कर देती।
अगर धरा पर हृदय मानुष का,
नारी का प्रतिबिंब बन जाये।
द्वेष, घृणा,क्रोध का अंश मिट जाता।
लज्जा है नारी का गहना,
यह उपकार सिर्फ तुम पर है।
गर लुट जाये लज्जा तो ,
नारी का स्वरूप ही मिट् जाये।
हे नारी तेरा रूप निराला ।
2 - नारी का जीवन (Woman's life)
हे नारी तू स्वर की देवी,
हे नारी तू ललित कली सी।
संस्कारों की तू है जननी,
तेरा रूप निराला है।
वर्षो से तूने बलिदान दिया,
हर वर्ण को तूने सम्मान दिया ।
जहां अधर्म का वेग बड़ा,
वहां तूने शक्ति का अवतार लिया ।
सतयुग, द्वापर,त्रेता, कलियुग,
हर युग मे तूने है परीक्षा दी।
तुझे पुरूष जाती ने तिलिस्म दिया,
फिर भी कभी न घबरायी तुम।
तुम हो तो जग का है मान,
तुम हो तो हर वर्ग की शान,
तुझको न हरा सका न ईश्वर ।
ये जग वाले क्या हरायेंगे ।
तू देवी इस अमृत धरा की,
तू हर शक्ति की पुजारी है।
हे नारी तू स्वर की देवी,
हे नारी तू ललित कली सी ।
3- भारतीय नारी Indian woman
नारी है सम्मान तेरा,
तू है इस जग की रखवाली,
स्नेह छुपा है हृदय मे तेरे,
दूं मै हृदय का दान तुझे ।
नव रसों की शक्ति हो तुम,
नव दुर्गा का अवतार तुमे,
तुम मे है विश्वास भरा,
हर सांसो पर अधिकार तेरा,
तू है इस जग की रखवाली ।
ऐसा कोई कोप नही,
जो तुझको पिघला सके,
ऐसी कोई शक्ति नही ,
जो तेरी भक्ति मिटा सके।
तेरा बलिदान न समझे कोई,
तू किस रूप की काया है ।
इस पुरूष प्रधान समाज मे रहना,
कुछ प्रचलित प्रथा सी चली आई।
कम आंका जाता है तुझको,
जब बारी समता की आती ।
कई परीक्षों से गुजरती ,
बर्षो से तूने है तप किया ।
धन्य है नारी तुझको तेरे अनेक रूप हुए ।
नारी है सम्मान तेरा,
तू है इस जग की रखवाली ।
तू है इस जग की खुशहाली ।
4- स्त्रियां Women
स्त्रियां हर समाज की,
दीपक बनती चली गयी।
लोग सोचते रहे कि ये बनी है,
पुरूषों दासी सिर्फ दासी।
कोई उपभोग करता उसका,
कोई उपयोग ही कर पाता है।
एक वस्तु बनकर रह गयी है,
स्त्रियां एक शोक बनकर जीती रही।
स्त्रियों का दर्द बयां कौन करे,
यहां तो बस खूबसूरती ही बिकती है।
उपयोग करते है उसका जैसे,
करता है कोई पराई वस्तुओं का।
फिरती है मारी मारी स्त्रियां,
अपने दामन मे छुपाये वसूलों को।
पर मालूम नही उसे शायद,
यहां वसूल नही बिका करता।
यहां तो बिकती है वेश्यावृति,
यहां बिकती है मानवता पल-पल ।
नही कद्र है जहां स्त्रियों की,
उस निर्जन वन को भी अभिमान रहा।
तू वजूद सम्भाले रखना,
यहां बसते सपेरों के डेरे है
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