Tuesday 24 March 2020

दुर्गा का अथ कीलकम् मंत्र हिन्दी अर्थ सहित The meaning of Durga is the Keelakam mantra with Hindi meaning

दुर्गा का अथ कीलकम् मंत्र हिन्दी अर्थ सहित 
The meaning of Durga is the Keelakam mantra with Hindi meaning
Keelak mantra

विनियोगः 
 ॐ अस्य श्रीकीलकमन्त्रस्य शिव ऋषिः , अनुष्टुप् छन्दः , श्रीमहासरस्वती देवता , श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थं सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ।

 ॐ नमश्चण्डिकायै ॥ 
           मार्कण्डेय उवाच 

कीलकस्तोत्र
ॐ विशुद्धज्ञानदेहाय त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे । 
श्रेयःप्राप्तिनिमित्ताय नमः सोमार्धधारिणे ॥ १ ।। 

सर्वमेतद्विजानीयान्मन्त्राणामभिकीलकम् । 
सोऽपि क्षेममवाप्नोति सततं जाप्यतत्परः ॥ २ ।। 

सिद्ध्यन्त्युच्चाटनादीनि वस्तूनि सकलान्यपि । 
एतेन स्तुवतां देवी स्तोत्रमात्रेण सिद्धयति ॥ ३ ।।

हिन्दी भावार्थ
ॐ चण्डिकादेवीको नमस्कार है ।
 मार्कण्डेयजी कहते हैं --- विशुद्ध ज्ञान ही जिनका शरीर है , तीनों वेद ही जिनके तीन दिव्य नेत्र हैं , जो कल्याण - प्राप्तिके हेतु हैं तथा अपने मस्तकपर अर्धचन्द्रका मुकुट धारण करते हैं , उन भगवान् शिवको नमस्कार है ॥ १ ॥

मन्त्रोंका जो अभिकीलक है अर्थात् मन्त्रोंकी सिद्धि में विघ्न उपस्थित करनेवाले शापरूपी कीलकका जो निवारण करनेवाला है , उस सप्तशतीस्तोत्रको सम्पूर्णरूपसे जानना चाहिये ( और जानकर उसकी उपासना करनी चाहिये ) , यद्यपि सप्तशतीके अतिरिक्त अन्य मन्त्रोंके जपमें भी जो निरन्तर लगा रहता है , वह भी कल्याणका भागी होता है
॥ २ ॥
उसके भी उच्चाटन आदि कर्म सिद्ध होते हैं तथा उसे भी समस्त दुर्लभ वस्तुओंकी प्राप्ति हो जाती है ; तथापि जो अन्य मन्त्रोंका जप न करके केवल इस सप्तशती नामक स्तोत्र से ही देवीकी स्तुति करते हैं , उन्हें स्तुतिमात्रसे ही सच्चिदानन्दस्वरूपिणीदेवी सिद्ध हो जाती हैं ।।३।।


कीलकस्तोत्र
न मन्त्रो नौषधं तत्र न किञ्चिदपि विद्यते । 
विना जाप्येन सिद्धयेत सर्वमुच्चाटनादिकम् ॥ ४ ॥ 

समग्राण्यपि सिद्ध्यन्ति लोकशङ्कामिमां हरः । 
कृत्वा निमन्त्रयामास सर्वमेवमिदं शुभम् ॥ ५ ॥ 

स्तोत्रं वै चण्डिकायास्तु तच्च गुप्तं चकार सः । 
समाप्तिर्न च पुण्यस्य तां यथावन्नियन्त्रणाम् ॥ ६ ॥ 

सोऽपि क्षेममवाप्नोति सर्वमेवं न संशयः । 
कृष्णायां वा चतुर्दश्यामष्टम्यां वा समाहितः ॥ ७ ॥ 


हिन्दी भावार्थ
उन्हें अपने कार्यकी सिद्धिके लिये मन्त्र , ओषधि तथा अन्य किसी साधनके उपयोगकी आवश्यकता नहीं रहती । बिना जपके ही उनके उच्चाटन आदि समस्त आभिचारिक कर्म सिद्ध हो जाते हैं ॥ ४ ॥ 
इतना ही नहीं , उनकी सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुएँ भी सिद्ध होती हैं । लोगोंके मनमें यह शंका थी कि ' जब केवल सप्तशतीकी उपासनासे अथवा सप्तशतीको छोड़कर अन्य मन्त्रोंकी उपासनासे भी समानरूपसे सब कार्य सिद्ध होते हैं , तब इनमें श्रेष्ठ कौन - सा साधन है ? ' लोगोंकी इस शंकाको सामने रखकर भगवान् शंकरने अपने पास आये हुए जिज्ञासुओंको समझाया कि यह सप्तशती नामक सम्पूर्ण स्तोत्र ही सर्वश्रेष्ठ एवं कल्याणमय है ॥ ५ ॥

तदनन्तर भगवती चण्डिकाके सप्तशती नामक स्तोत्रको महादेवजीने गुप्त दया । सप्तशतीके पाठसे जो पुण्य प्राप्त होता है , उसकी कभी समाप्ति नहीं कतु अन्य मन्त्रोंके जपजन्य पुण्यकी समाप्ति हो जाती है । अतः भगवान् अन्य मन्त्रोंकी अपेक्षा जो सप्तशतीकी ही श्रेष्ठताका निर्णय किया , उस जानना चाहिये ॥ ६ ॥

अन्य मन्त्रोंका जप करनेवाला पुरुष भी यदि सप्तशतीके तो ताक स्तोत्र और जपका अनुष्ठान कर ले तो वह भी पूर्णरूपसे हा क और ता है , इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है । जो साधक ? । अथवा अष्टमीको एकाचिन्न होकर भगवतीकी सेवामें अपना सन । ह आर फिर उसे प्रसादरूपसे ग्रहण करता है , उसीपर भगवता यथार्थ ही जानना चाहिये ॥ ७ ।


कीलकस्तोत्र
ददाति प्रतिगृह्णाति नान्यथैषा प्रसीदति । 
इत्थंरूपेण कीलेन महादेवेन कीलितम् ॥ ८ ।।

यो निष्कीलां विधायैनां नित्यं जपति संस्फुटम् । 
स सिद्धः स गणः सोऽपि गन्धर्वो जायते नरः ॥ ९ ।।

न चैवाप्यटतस्तस्य भयं क्वापीह जायते । 
नापमत्यवशं याति मृतो मोक्षमवाप्नुयात् ॥ १० ।।

ज्ञात्वा प्रारभ्य कुर्वीत न कुर्वाणो विनश्यति । 
ततो ज्ञात्वैव सम्पन्नमिदं प्रारभ्यते बुधैः ॥ ११ ॥ 


हिन्दी भावार्थ
 प्रसन्न होती हैं । अन्यथा उनकी प्रसन्नता नहीं प्राप्त होती । इस प्रकार सिद्धिके प्र निबन्धकरूप कीलके द्वारा महादेवजीने इस स्तोत्रको कीलित कर वा ॥८।।

जो पर्वोक्त रीतिसे निष्कीलन करके इस सप्तशतीस्तोत्रका प्रतिदिन सा उच्चारणपूर्वक पाठ करता है , वह मनुष्य सिद्ध हो जाता है . वही देवीका और वही गन्धर्व भी होता है ॥ ९ ॥

सर्वत्र विचरते रहनेपर भी इस संसारमें सभी भय नहीं होता । वह अपमृत्युके वशमें नहीं पड़ता तथा देह त्यागनेके कर लेता है ॥ १० ॥
अतः कीलनको जानकर उसका परिहार सप्तशतीका पाठ आरम्भ करे । जो ऐसा नहीं करता , उसका नाश हो जाता तो कीलक और निष्कीलनका ज्ञान प्राप्त करनेपर ही यह स्तोत्र निर्दोष दान परुष इस निर्दोष स्तोत्रका ही पाठ आरम्भ करते हैं ॥ ११ ॥


कीलकस्तोत्र
सौभाग्यादि च यत्किञ्चिद् दृश्यते ललनाजने । 
तत्सर्वं तत्प्रसादेन तेन जाप्यमिदं शुभम् ॥ १२ ॥ 

शनैस्तु जप्यमानेऽस्मिन् स्तोत्रे सम्पत्तिरुच्चकैः । 
भवत्येव समग्रापि ततः प्रारभ्यमेव तत् ॥ १३ ॥ 

ऐश्वर्यं यत्प्रसादेन सौभाग्यारोग्यसम्पदः । 
शबहानिः परो मोक्षः स्तूयते सा न किं जनैः ॥ ॐ ॥ १४ ॥ 

इति देव्याः कीलकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।


हिन्दी भावार्थ
 स्त्रियोंमें जो कुछ भी सौभाग्य आदि दृष्टिगोचर होता है , वह सब देवीके प्रसादका ही फल है । अतः इस कल्याणमय स्तोत्रका सदा जप करना चाहिये ॥ १२ ॥
इस स्तोत्रका मन्दस्वरसे पाठ करनेपर स्वल्प फलकी प्राप्ति होती है और उच्चस्वरसे पाठ करनेपर पूर्ण फलकी सिद्धि होती है । अत : उचस्वरसे ही इसका पाठ आरम्भ करना चाहिये
॥ १३ ॥ 
जिनके प्रसादसे - ऐश्वर्य , सौभाग्य , आरोग्य , सम्पत्ति , शत्रुनाश तथा परम मोक्षकी भी सिद्धि होती है , उन कल्याणमयी जगदम्बाकी स्तुति मनुष्य क्यों नहीं करते ?
॥ १४ ॥

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