Sunday 12 April 2020

गुरू नानक जी का जीवन परिचय जीवनी व प्रेरणादायक विचार गुरू नानक जयंती

गुरू नानक जी का जीवन परिचय जीवनी व प्रेरणादायक विचार 

गुरू नानक जयंती
Biography and inspirational thoughts of Guru Nanak's life

Guru Nanak Jubilee
Gurunanak jublee


गुरु नानक त्रेतायुग में भगवान रामचन्द्र ने रावण एवं उसकी आसुरी शक्तियों का संहार कर मर्यादा पुरुषोत्तम का अनुपम आदर्श स्थापित किया था । उनके पुत्र थे कुश । वेदाध्यायी होने के कारण कुश के कुल को वेदी कहा जाने लगा । सूर्यवंशियों के इस महान कुल में संवत् 1526 वैशाख सुदी तृतीया अर्थात् 15 अप्रैल , 1469 के दिन , पंजाब के तलवंडी ग्राम में गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ । आज - गरु नानक देव जी का जन्म हुआ ।
आजकल " ननकाना " नाम से जाना जाने वाला यह नगर पाकिस्तान में है । इनके पिता कल्याण दास मेहता काल खत्री के नाम से जाने जाते थे । इनकी माताश्री का नाम तृप्ता देवी था । बड़ी बहन का नाम बाकी था ।

अत : नानकी के छोटे भाई होने के कारण नवजात बालक का नाम नानक रखा गया । नौ वर्ष की अवस्था में उनका यज्ञोपवीत संस्कार किया गया । इस समय उन्होंने जनेऊ को परिभाषित करते हुए कहा - " दया की कपास , सन्तोष का सूत , संयम की गाँठ वाला जनेऊ यदि आपके पास हो तो मैं उसे धारण करने के लिए तैयार हूँ ।

गुरू नानक देव की संक्षिप्त जीवनी--
A brief biography of Guru Nanak Dev
Guru nanak ki jeevni

नाम                  =  गुरु नानक
पूरा नाम            = गुरु नानक देव
अन्य नाम          = गुरु नानक
जन्म दिवस        = 15 अप्रैल, 1469
मृत्यु दिवस        = 22 सितंबर, 1539
मृत्यु स्थान          = भारत
जन्म भूमि          = तलवंडी, पंजाब, भारत
पिता का नाम     = कालू,
माता का नाम     = तृप्ता देवी
पति/पत्नी          = सुलक्खनी
संतान               = श्रीचन्द, लक्ष्मीदास
कर्म भूमि          = भारत वर्ष
कर्म-क्षेत्र           = समाज सुधारक, समाज सेवी
मुख्य रचनाएँ    = जपुजी,तखारी'राग के बारहमाहाँ
मुख्य भाषा       = फारसी, मुल्तानी, पंजाबी,सिंधी                            ब्रजभाषा, खड़ीबोली
                         प्रसिद्धि सिक्खों के प्रथम गुरु
नागरिकता         = भारतीय
उत्तराधिकारी गुरु =  अंगद देव

विशेष पहचान--
1- गुरु नानक अपने व्यक्तित्व में पैगम्बर, दार्शनिक, राजयोगी, गृहस्थ, त्यागी, धर्म-सुधारक, समाज-सुधारक, कवि, संगीतज्ञ, देशभक्त, विश्वबन्धु आदि सभी के गुण उत्कृष्ट मात्रा में समेटे हुए थे।

2- नानक देव जी ने सिख धर्म की स्थापना की थी, वे सिखों के प्रथम गुरू हैं। वे अंधविश्वास और आडंबरों के सख्त विरोधी थे।

3- नानक देव जी एक दार्शनिक, समाज सुधारक, कवि, गृ​हस्थ, योगी और देशभक्त थे।

4- नानक जी जात-पात के खिलाफ थे। उन्होंने समाज से इस बुराई को खत्म करने के लिए लंगर की शुरुआत की। इसमें अमीर-गरीब, छोटे-बड़े और सभी जाति के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं।

गुरु नानक" बचपन से ही बालक नानक साधू - संतों की सेवा में तत्पर रहते तथा गरीबों की सहायता करते थे । एक बार उनके पिता ने कुछ धन देकर उन्हें सौदा करने भेजा तो उन्होंने वह धन मार्ग में मिलने वाले भूखे साधू - संतों को भोजन कराने में व्यय करके कहा -
" भूखे साधुओं को भोजन कराना ही सच्चा सौदा है । "

नानक की प्रवृत्ति प्रारंभ से ही वैराग्य की ओर थी । अत : इनको घर गृहस्थी के बन्धन में बांधने के लिए इनका विवाह सुलक्षिणी देवी से करा दिया गया । इस समय इनकी अवस्था केवल 15 - 16 वर्ष की थी । सुलक्षिणी देवी से इनको श्रीचन्द और लखमी दास दो पुत्रों की प्राप्ति हुई । पर संसार के बंधन इनको न बांध सके । कहा जाता है कि एक बार नदी में स्नान करने के लिए उन्होंने डुबकी लगाई तो तीन दिन बाद ही बाहर निकले । यहीं से उन्हें सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ । तब उन्होंने मानवता की सेवा के लिए गृह त्याग किया और भक्ति गीत गायक मरदाना तथा उसके एक संवक वाला को लेकर ईश्वर भक्ति तथा धर्म के प्रचार के लिए निकल पड़े ।

ईसा की पन्द्रहवीं शताब्दी भारत वासियों के लिए एक काली शताब्दी थी । मुसलमानों के अत्याचार के कारण पूरे भारत में फैली अराजकता एवं लूट - खसोट के कारण जन - जीवन असुरक्षित हो गया था । हिन्दू धर्म कर्मकाण्ड तथा कुप्रथाओं की जटिलता में उलझ गया था । भय के कारण अनेक हिन्दू अपना धर्म त्यागकर विधर्मी होते जा रहे थे । धर्म एवं मानवता से लोगों की आस्था समाप्त हो गई थी । इसी समय बाबर का भारत पर आक्रमण हुआ । उस समय नानक सैदपुर में थे । नगरवासी भाग गए मुगलों की सेना ने नानक और मरदाना को बन्दी बना लिया । उनके सिर पर बोझ लाद दिया गया पर नानक इससे तनिक भी विचलित नहीं हारा । उन्होंने बाबर के घोर अत्याचारों की निन्दा करते हुए भगवान से कहा कि मौत का दूत बनकर बाबर हिन्दुस्तान पर चढ़ आया है , इतने अत्याचारों को देखकर भी तुझे मानवता पर तरस नहीं आया । वे ईश्वर भजन करते हुए आगे बढ़ने लगा नानक और अन्य बंदियों को भारी भरकम चक्कियाँ पीसने के लिए कहा गया । नानक ने अब अपना चमत्कार प्रकट किया । चक्कियाँ अपने आप चलने लगीं । यह समाचार बाबर तक पहुँचा ।

वह महान सन्त के दर्शन करने गया और उसने अपने अपराध के लिए क्षमा माँगी । गुरु नानक देव की आज्ञा से बाबर न सभी बन्दियों को मुक्त कर दिया । नानक धर्म प्रचार के लिए तिब्बत , मानसरोवर तथा चीन तक गए । चीन में गुरु के आगमन पर एक शहर का नाम नानकिंग रखा गया है ।

उन्होंने सउदी अरब , फिलस्तीन , ईराक , अफीका तथा बगदाद की यात्रएं कीं । बगदाद में जाकर उन्होंने मुसलमानों के धर्म गुरु खलीफा को उपदेश दिए । ये उपदेश “ नसीहत नामा " में संग्रहित हैं । उन्होंने मक्का की भी यात्रा की और इस्लाम के प्रमुख प्रचारकों से उसकी चर्चा की । कहा जाता है कि नानक जी उपासना स्थल की ओर पैर पसार कर सो गए । उपासना स्थल के अधिकारियों ने इसका विरोध करते हुए कहा - " आप कैसे सन्त हैं जो परमेश्वर की ओर पैर पसारकर सो रहे हो ।
" इस पर नानक ने हँस कर कहा - " 

अच्छा आप मेरे पैर उस ओर कर दीजिए जिस ओर परमात्मा का निवास नहीं है । " गुरु नानक ने पीड़ित और शोषित व्यक्तियों में आत्मविश्वास का संचार किया और मानवता के प्रति आशा एवं आस्था उत्पन्न की ।

इन्होंने अपने शिष्यों को सत्य , भाईचारा , त्याग , बलिदान एवं सेवा करने के लिए प्रेरित किया । उनका जीवन एक सच्चे कर्मयोगी का आदर्श था । उन्होंने यह शिक्षा दी कि असली संन्यास संसार में रहकर मानवता की सेवा करने में है , न कि घर द्वार त्यागकर जंगल जाने में । वे स्वयं अपने खेतों में काम करते थे । ' किरत करो तथा मिलकर खाओ ' उनके यह उपदेश श्रम का स्वाभिमान और सहभागिता का भाव जाग्रत करते हैं । सामाजिक समरसता के लिए लंगर की परम्परा भी उन्होंने चलाई । नानक जी ने अपने जीवन का अन्तिम समय करतारपुर में व्यतीत किया । भाई लहणा जी उनके परम प्रिय शिष्य थे । नानक जी ने कई बार लहणा जी की गुरु भक्ति की परीक्षा ली । ये भाई लहणा जी ही आगे चलकर गुरु अंगद के नाम से सिख पंथ के दूसरे गुरु कहलाए ।

7 सितंबर 1539 , विक्रम संवत् 1596 की आश्विन शुक्ल दसमी को गुरु जी ने अपनी देह विसर्जित का महाप्रस्थान किया । वे रचनाकार भी थे ।

उनकी रची प्रमुख कृतियाँ हैं - 
जपुजी , आसा दी वार , रहीरास और कीर्तन सोहिला । उनके सबद् , साखी और सलोग ( श्लोक ) गुरु ग्रन्थ साहिब में संग्रहित हैं ।

वे एकात्मता के प्रतीक थे । उनके अनुसार आदर्श व्यक्ति वही है " जिसमें ब्राह्मणों की आध्यात्मिकता , क्षत्रियों की आत्मरक्षा भावना , वैश्यों की व्यवहार कुशलता एवं शद्रों की लोक - सेवा भावना का समन्वित रूप विद्यमान हो । " उन्होंने विदेशी भाषा का परित्याग कर मातृभाषा सीखने का आदेश देते हुए कहा " खत्रीआ तू धरम छोड़िया मलेच्छ भारवा गद्दी " जाति पाँति को त्यागकर समरसता के सिद्धांत का प्रतिपादन करते हए कहा जाति का गरब न कर मूरख गँवारा । इस गरब ते चलई बहुत विकारा । ।

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