Monday 13 April 2020

छत्रपति शिवाजी महाराज का संक्षिप्त जीवन परिचय, जीवनी एवं विस्तृत वर्णन ,veer Shivaji

छत्रपति शिवाजी महाराज का संक्षिप्त जीवन परिचय, जीवनी एवं विस्तृत वर्णन 
Brief introduction, biography and detailed description of Chhatrapati Shivaji Maharaj
Chatrpati shivaji

शिवाजी की संक्षिप्त जीवनी
A short biography of Shivaji

शासनावधि   =  १६७४–१६८०
राज्याभिषेक  = ६,जुन,१६७४
पूर्ववर्ती         =    शाहजी
उत्तरवर्ती       =  सम्भाजी
जन्म तिथी    =  १९ फरवरी, १६३०
                       शिवनेरी दुर्ग
निधन तिथि  =  ३ अप्रैल, १६८०
                       रायगढ़
समाधि स्थल   =  रायगढ़
संतान (पुत्र)    = सम्भाजी, राजाराम राणुबाई आदि।
घराना             =  भोंसले
पिता का नाम  =  शाहजी
माता का नाम  = जीजाबाई
पत्नी और पुत्र  = छत्रपति शिवाजी महाराज का विवाह सन् 14 मई 1640 में सइबाई निम्बालकर के साथ लाल महल, पुना में हुआ था। 
सम्भाजी जन्म तिथि = (14 मई, 1657
मृत्यु तिथि               = 11 मार्च, 1689) शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र और उत्तराधिकारी थे, जिसने 1680 से 1689 ई. तक राज्य किया।

शम्भुजी में अपने पिता की कर्मठता और दृढ़ संकल्प का अभाव था। सम्भाजी की पत्नी का नाम येसुबाई था। उनके पुत्र और उत्तराधिकारी राजाराम थे।

कुशल शासक व राजनीतिज्ञ थे शिवाजी
 शिवाजी एक महान योद्धा कुशल राजनीतिज्ञ, वीर नायक शिवाजी के पिता शाहजी और माता जीजाबाई के पुत्र थे। उनका जन्म स्थान पुणे के पास स्थित शिवनेरी का दुर्ग है। शिवाजी सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करते थे, वह जबरन धर्मांतरण के सख्त खिलाफ थे, उनकी सेना में मुस्लिम बड़े पद पर मौजूद थे. इब्राहिम खान और दौलत खान उनकी नौसेना के खास पदों पर थे, सिद्दी इब्राहिम उनकी सेना के तोपखानों का प्रमुख था।

सैन्य रणनीतिकार और व्यूह नीतिक
शिवाजी ने अपने सैनिकों की तादाद को 2 हजार से बढ़ाकर 10 हजार किया था। भारतीय शासकों में वो पहले ऐसे थे जिसने नौसेना की अहमियत को समझा, उन्होंने सिंधुगढ़ और विजयदुर्ग में अपने नौसेना के किले तैयार किए. रत्नागिरी में उन्होंने अपने जहाजों को सही करने के लिए दुर्ग तैयार किया था।

एक वीर योद्धा, वीर नायक
शिवाजी के अन्दर अदम साहस और कूटनीति के महानायक, उनकी सेना पहली ऐसी थी जिसमें गुरिल्ला युद्ध का जमकर इस्तेमाल किया गया, जमीनी युद्ध में शिवाजी को महारत हासिल थी, जिसका फायदा उन्हें दुश्मनों से लड़ने में मिला, पेशेवर सेना तैयार करने वाले वो पहले शासक थे।

सभी धर्मों व जीवों का सम्मान
 शिवाजी एक कठोर सासक ही नही एक मर्म हृदय वाला योद्धा था। सभी धर्मों की पीडा एवं समान भाव सभी जीवों मे प्रेम रखता था।वह एक धार्मिक हिंदू के साथ दूसरे धर्मों का भी सम्मान करते थे। वो संस्कृत और हिंदू राजनीतिक परंपराओं का विस्तार चाहते थे। उनकी अदालत में पारसी की जगह मराठी का इस्तेमाल किया जाने लगा। ब्रिटिश इतिहासकारों ने उन्हें लुटेरे की संज्ञा दी लेकिन दूसरे स्वाधीनता संग्राम में उनकी भूमिका को महान हिंदू शासक के तौर पर दिखाया गया। शिवाजी ने कई मस्जिदों के निर्माण में अनुदान दिया, इस वजह से उन्‍हें हिन्दू पंडि‍तों के साथ मुसलमान संतों और फकीरों का भी सम्मान प्राप्त था।

शिवाजी बालसाहित्यकार 
संभाजी को विश्व का प्रथम बालसाहित्यकार माना जाता है। इन्होने अपने साहित्य से विश्व को जीतकर अनोखा ज्ञान दिया।  14 वर्ष की आयु तक बुधभूषणम् (संस्कृत), नायिकाभेद, सातसतक, नखशिख (हिंदी) इत्यादि ग्रंथों की रचना करने वाले संभाजी विश्व के प्रथम बालसाहित्यकार थे। मराठी, हिंदी, फ़ारसी , संस्कृत, अंग्रेज़ी, कन्नड़ आदि भाषाओं पर उनका प्रभुत्व था। जिस तेजी से उन्होंने लेखनी चलाई, उसी तेजी से उन्होंने तलवार भी चलाई। शिवाजी की कई पत्नियां और दो बेटे थे, उनके जीवन के अंतिम वर्ष उनके ज्येष्ठ पुत्र की धर्मविमुखता के कारण परेशानियों में बीते।


वीर छत्रपति शिवाजी का जीवन परिचय 
Introduction of the life of hero Chhatrapati Shivaji

हिन्दू स्वराज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी का जन्म 16 अप्रैल 1627 को शिवनेरी दुर्ग में हुआ था । उनके पिताजी का नाम शाह जी भोंसले और माता का नाम जीजाबाई था । उस समय समर्थ स्वामी रामदास राष्ट्र के नवनिर्माण में संलग्न थे । शिवाजी के जन्म का समाचार सुनकर उन्होंने तुलजापुर की माँ भवानी से प्रार्थना की --" तुझ तू वाढवी राजा , शीघ्र अम्हांसी देवता " इसका अर्थ है - " माँ जगदम्बे , महाराष्ट्र के इस भावी राजा को तुम्ही बड़ा करो और वह भी शीघ्रातिशीघ्र हमारी आँखों के सामने

शिवाजी के पिता शाह जी बचपन में ही पुत्र शिवा और पत्नी जीजाबाई को दादाजी कोंडदेव को लालन - पालन के लिए सौंप दिया था । इसके लिए उन्होंने दादाजी कोंडदेव के साथ एक जागीर भी लिख दी थी । . दादाजी कोंडदेव के सानिध्य में शिवाजी का बचपन बीता । दादाजी ने पुणे के पास रहने वाले मावलों पर आधिपत्य स्थापित किया था ।

शिवाजी मावले युवकों के साथ याद्रि पर्वतों में , घने जंगलों में तथा भयावनी गुफाओं में घूमते तथा अस्त्र शस्त्र चलाना उन्होंने मावले युवकों को संगठित कर अपनी स्वयं की एक सेना बनाई और आधीन भारत को मुक्त कर , स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का स्वप्न देखने लगे । 16 में उन्होंने बीजापुर के दुर्गपति से तोरण का दुर्ग छीन लिया । इसके बाद उन्होंने न , कोडाना तथा पुन्दर दुर्गों पर भी सहज रूप से अधिकार कर लिया । तुर क सुल्तान ने शिवाजी की बढती हई शक्ति को कुचलने के लिए जा भोंसले को बन्दी बना लिया ।

पिताजी को मुक्त कराने के लिए आर कोंडाना के दुर्ग बीजापुर के सुल्तान को वापिस देकर सन्धि मुगलों के आधीन भारत का मुक्त बीजापुर के चाकन , कोंडाना तथा पुन बीजापुर के सुल्तान ने शिल उनके पिता शाह जी भोंसले का शिवाजी ने बंगलौर और कोंडाना के दुर्ग बीजापुर के सुल्तान को वापिस देकर सन्धि कर ली । लेकिन इस सन्धि से शिवाजी का राज्य विस्तार निरन्तर होता धीरे उन्होंने अपने पराक्रम और शौर्य तथा नीति के बल पर हिन्द साम्राज्य का संकल्प पूरा किया ।

1674 में वेद विहित विधियों से उनका राज्याभिषेक किया गया तथा छत्रपति की उपाधि से सम्मानित किया गया । शिवाजी न केवल कुशल प्रशासक थे अपितु वे कूटनीतिज्ञ , राजनीतिज्ञ भी थे । उन्होंने छापामार युद्ध की तकनीक अपनाकर अपने से कई गुना शक्तिशाली तथा विशाल मुगल साम्राज्य से लोहा लिया और बादशाह औरंगजेब तथा उसके सिपहसालारों को कड़ी शिकस्त दी । अपनी छापामार युद्धनीति के कारण ही वे बैरम खाँ को भागने को विवश कर सके तथा अफजल खाँ का वध करने में सफल हो सके ।

औरंगजेब ने धूर्ततापूर्वक उन्हें अपने दरबार में आमंत्रित कर कैद कर लिया पर शिवाजी बड़ी चालाकी से टोकरी में बैठकर कैसे छद्म वेष धारण कर पुत्र सहित भाग निकले , यह सर्वविदित है । छत्रपति शिवाजी माँ भवानी के परम भक्त थे । कहा जाता है कि माँ भवानी ने उन्हें दर्शन देकर एक तलवार आशीर्वाद के रूप में प्रदान की थी ।

इस तलवार के बल पर वे इतने विशाल हिन्दू साम्राज्य का निर्माण कर सके । एक प्रखर राष्ट्रभक्त होने के कारण शिवाजी ने सदैव यह प्रयास किया कि हिन्दुओं में एकता स्थापित हो और वे एक जुट होकर विदेशी आक्रान्ताओं के विरुद्ध हथियार उठाकर भारत माता को दासता से मुक्त कर सकें । इसीलिए राजा जयसिंह से युद्ध न कर तथा सुरक्षा का आश्वासन पाकर उनसे पुरन्दर की संधि कर ली थी । उन्होंने राजा जयसिंह को एक मार्मिक पत्र लिखकर हिन्दू एकता के लिए निवेदन भी किया था । नवनिर्मित राज्य शासन को सचारू रूप से चलाने के लिए शिवाजी ने अष्ट प्रथा की व्यवस्था की थी ।

यद्यपि उनका शासन एकतंत्रीय राजतंत्र था पर वे व्यवहार । जनतांत्रिक पद्धति का ही पालन करते थे । बिना अष्ट प्रधान की सलाह आर परामर वे कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय नहीं लेते थे ।

उनके ये अष्ट प्रधान थे ---
(1) पशवाजा 
(2) अमात्य ( लेखा परीक्षक ) , 
(3) वाक्यानवीस ( अभिलेखक ) , 
(4) शुरूनवास 
(5) दबीर ( विदेश सचिव ) , 
(6) सदर - ए - नौबल ( सेनापति ) , 
(7) सदर - ए - माहात राव ) , 
(8)  काजी - उल - कुजात ( न्यायाधीश ) । 

शिवाजी ने अपने राज्य को स्वराज्य की संज्ञा दी थी । यह चार था । जमींदारों , देशमखों पर नियंत्रण रखने के लिए उन्होंने प्रत्येक गाव नाप जोख करवाया तथा प्रत्येक बीघे की उपज का अनुमान लगाकर ' ' जाने वाला कर , उपज का 2/5 भाग निश्चित किया । छत्रपति शिवाजी अपने चरित्र बल , दृढ इच्छा शक्ति एवं प्रखर कारण महानता के चरम उत्कर्ष तक पहुँच पाए थे । उनकी धामक जहाँ भी वे युद्ध करने जाते वहाँ न तो किसी मस्जिद को उन्हीने , चार भागों में विभक्त 7 प्रत्येक गाँव के क्षेत्रफल का मान लगाकर , किसानों से लिए एव प्रखर राष्ट्रभक्ति के ही का धार्मिक नीति बडी उदार था । उन्होंने क्षति पहुँचाई और न कर ली । लेकिन इस सन्धि से शिवाजी का राज्य विस्तार निरन्तर होता धीरे उन्होंने अपने पराक्रम और शौर्य तथा नीति के बल पर हिन्द साम्राज्य की का संकल्प पूरा किया ।

इस तलवार के बल पर वे इतने विशाल हिन्दू साम्राज्य का निर्माण कर सके । एक प्रखर राष्ट्रभक्त होने के कारण शिवाजी ने सदैव यह प्रयास किया कि हिन्दुओं में एकता स्थापित हो और वे एक जुट होकर विदेशी आक्रान्ताओं के विरुद्ध हथियार उठाकर भारत माता को दासता से मुक्त कर सकें । इसीलिए राजा जयसिंह से युद्ध न कर तथा सुरक्षा का आश्वासन पाकर उनसे पुरन्दर की संधि कर ली थी । उन्होंने राजा जयसिंह को एक मार्मिक पत्र लिखकर हिन्दू एकता के लिए निवेदन भी किया था । नवनिर्मित राज्य शासन को सचारू रूप से चलाने के लिए शिवाजी ने अष्ट प्रथा की व्यवस्था की थी ।

उन्होंने तो गुरुदक्षिणा में सारा साम्राज्य गुरु समर्थ रामदास चरणों में अर्पित कर दिया था और स्वयं एक ( ट्रस्टी ) प्रबन्धक के रूप में निरपेक्ष भाव से शासन प्रबन्ध करते थे ।13 अप्रैल 1680 को यह महान देशभक्त स्वर्गवासी हुए ।

~~~~~~~~~~~~~~~~~
अन्य सम्बन्धित लेख साहित्य----

0 comments: