बदलते मानव के विचार (कविता)Changing Human Thoughts (Poems

Badalte manav ke vichar
रिसते-रिसते जिन्दगी का तवज्जु मालूम हुआ,
तडप उठता है मन देख वीरान गांव गलियारों को।
जहां कीमत हो सिर्फ अपने सपनों की,
इस धरती का दर्र आखिर कौन समझ पायेगा।
न कदर उस बेबस मां की जिसने तेरा पालन किया,
कदर तो यहाँ रह गयी है सिर्फ सानो-शौकत की।
ऐ बेदर्दी जाने वाले बस इतना बता जा,
क्यों तु मुझे बेपनाह छोड गया,
तेरी गली चौवारों की रौनक महफूज रहे,
मेरी सूनी गली गांव तेरा,
हर वक्त दीदार करेगी,
हर वक्त इन्तजार करेगी।
चंद पैसों के लिए तू अपनो से दगा कर बैठा,
वर्षों के त्याग उपकारों को पल-भर में लुटा कर बैठा।
गैरों की माया तुझे कहां रास आयेगी ,
लौट के आजा मै आज भी तेरी हिफाजत करूंगी ।
आंखों से बहुत दूर चले गये हो तुम,
मै आज भी आस लगाए बैठी हूं।
एक अजीब सा मंजर था जब,
बगिया मेरी हरी-
भरी सी दिखती थी,
वक्त का पैगाम भी देखो यारों,
उसी बगिया में आज काटों भरी,झाडियाँ उग आयी है।
वर्षों से जगी है मेरी आंखे,
जिनको पानी भी अब नसीब न है,
माना कि अब नही तुमको मेरी जरूरत,
फिर भी लौटकर इन आंखों की प्यास बुझा दो।
जिन्दगी में किसी से हिफाजत की ख्वाहिश न करना,
दर-बदर मुझ सा न कोई और मिलेगा।
जब आए जिन्दगी की राहों में अटकलें,
लौट के आना मै फिर से तेरी हिफाजत करूंगी।
लौट के आना मै तुझको सहारा दूंगी।
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