Friday 3 April 2020

हिन्दी व्याकरण लिंग,वचन,कारकों का विस्तृत वर्णन (अर्थ,परिभाषा,भेद),Detailed description of Hindi grammar gender, word, factors

हिन्दी व्याकरण लिंग,वचन,कारकों का विस्तृत वर्णन 
(अर्थ,परिभाषा,भेद)
Detailed description of Hindi grammar gender, word, factors
 (Meaning, definition, distinction)
Karak,wachan


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लिंग 
परिभाषा 
शब्द की जाति लिंग कहलाती है । संज्ञा के जिस रूप से व्यक्ति या वस्तु के नर अथवा मादा जाति का पता चलता है , उसे ' लिंग ' कहते है ।

संस्कृत में संज्ञा के तीन भेद बताये गए हैं । 
ये हैं --
1- पल्लिग         
2- स्त्रीलिंग 
3-  नपंसक 

हिन्दी में शब्दों को दो लिगों में रखा गया है । यहाँ नपंसकलिंग नहीं है । हिन्दी में जड़ अथवा चेतन शब्द पुल्लिग तथा स्त्रीलिंग दो लिंगों में विभक्त हैं ।

हिन्दी में लिंगों की अभिव्यक्ति वाक्यों में होती है । वाक्य प्रयोग द्वारा संज्ञा शब्दों का भेद स्पष्ट होता है । वाक्यों में लिंग सर्वनाम , विशेषण , क्रिया तथा कारक की विभक्तियों में विकार से उत्पन्न होता है ।

लिंग - निर्णय--
(क) सर्वनाम में विकार से--
मेरी घड़ी सुन्दर है ।
( ' घड़ी ' स्त्रीलिंग के कारण सर्वनाम में विकार उत्पन्न हुआ )
मेरा मकान अच्छा है ।
( मकान ' पुल्लिंग है )

(ख) विशेषण में विकार से --
वह बड़ा मकान है ।
वह बड़ी घड़ी है ।

(ग) क्रिया में विकार से--
रोटी जली है ।
( जलना में विकार ' रोटी ' स्त्रीलिंग के कारण )
बुढ़ापा आ गया
( ' बुढ़ापा ' पुल्लिंग के अनुसार क्रिया )

(घ) विभक्ति में विकार से --
गुलाब का लाल रंग सुन्दर है ।
उसकी नाक कट गई ।

तत्सम शब्दों का लिंग - निर्णय--

1- तत्सम शब्द जिनके अन्त में ' त्र ' , ' न ' , ' ज ' , त्व , त्य , व , य होता है , पुल्लिग शब्द होते हैं । वैसे कई शब्द अपवाद स्वरूप हो सकते हैं ।
जैसे - पवन का प्रयोग दोनों लिंगों में होता है ।

2-  तत्सम शब्द जिनके अन्त में ' आर ' , ' आय ' तथा ' आस ' हो , वे भी पुल्लिग होते हैं ।
जैसे - समुदाय , अध्याय , विकास , विकार इत्यादि ।

3- अ - प्रत्ययान्त , त - प्रत्ययान्त तथा ख - प्रत्ययान्त वाले तत्सम शब्द भी होते हैं ।
जैसे - जय , पराजय , गणित , फलित , नख , मुख , लेख इत्यादि ।

4- तत्सम शब्दों में आकारान्त , नाकारान्त , उकारान्त , ईकारान्त , इकारान्त , तथा ' ता ' तथा इमा प्रत्ययान्त वाली भाववाचक संज्ञाएँ स्त्रीलिंग होती हैं । इसमें भी कतिपय अपवाद हैं , जो प्रयोग के आधार पर पुल्लिग शब्द बन गए । इकारान्त शब्द वारि , जलधि , पाणि , गिरि , बलि , आदि इत्यादि शब्द पुल्लिग हैं ।

5- उकारान्त शब्दों में मधु , अश्रु , तालु , मेरु , सेतु , हेतु इत्यादि पुल्लिग शब्द हैं ।

● तत्सम पुल्लिंग शब्दों के उदाहरण--
मित्र , गगन , पालन , कार्य , माधुर्य , प्रसार , प्रहार , विहार , कमल , व्यवसाय , क्रोध , मोद , य , अलंकार , यवन , रविवार , अपराध , विवाह , निबन्ध , अनुच्छेद , नाटक , आवास , तपदन , संकल्प , उत्पादन , संस्करण , शासन , विवाद , विरोध इत्यादि । 

● तत्सम स्त्रीलिंग शब्दों के उदाहरण 
माया , ममता , शोभा , प्रार्थना , प्रस्तावना , सुन्दरता , कला , गणना , परीक्षा , योग्यता , , समता , सेना , सूचना , कृति , स्थिति , विकृति , क्षति , हानि , नदी , मृत्यु , वायु , महिमा , . कालिमा , लालिमा , वस्तु , कुण्डली , अग्नि , शान्ति , क्रान्ति , इच्छा , भाषा , विधा ।

तद्भव शब्दों का लिंग - निर्णय--
● ऊनवाचक संज्ञाओं को छोड़कर सभी तदभव आकारान्त संज्ञाएँ पुल्लिग हैं ।
जैसे - कपड़ा , पहिया , आटा इत्यादि ।

● जिन तद्भव भाववाचक संज्ञाओं के अन्त में ना . आव , पन , वा , पा इत्यादि होता हैं , पुल्लिग शब्द होते है ।
जैसे - गाना , चढ़ाव , बुढ़ापा इत्यादि ।

● आन ' कृदन्तान्त संज्ञाएँ पुल्लिग होती हैं । जैसे - लगान , पठान , खान - पान इत्यादि । वैसे कतिपय अपवाद भी हैं ।
जैसे - उड़ान , चट्टान स्त्रीलिंग शब्द हैं । ईकारान्त , ऊनवाचक , याकारान्त , तकारान्त , ऊकारान्त , अनुस्वारान्त , सकारान्त , कृदन्त नकारान्त , कृदन्त अकारान्त , ख अन्त्य वाली तथा ट , वट , हट अन्त्य वाली भाववाचक संज्ञाएँ स्त्रीलिंग होती हैं , किन्तु इसमें कई अपवाद हैं ।

● ईकारान्त संज्ञाएँ घी , जी , दही , मोती , पानी इत्यादि पुल्लिग होते हैं ।

● तकारान्त संज्ञाओं में भात , खेत , गात , दाँत इत्यादि पुल्लिग हैं ।

अर्थ के अनुसार लिंग - निर्णय--
● शरीर के अधिकांश अंग पल्लिग होते हैं , किन्तु नाक , आँख , जीभ नस , हड्डी इत्यादि स्त्रीलिंग हैं ।

● रत्नों के नाम , धातुओं के नाम , अनाजों के नाम , पेड़ों के नाम , द्रव्य पदार्थ तथा भौगोलिक परिदृश्यों के नाम प्राय : पुल्लिग होते हैं ।
जैसे - मोती , हीरा , सोना , तांबा , गेहूँ , चावल , पीपल , आम , पानी , तेल , देश , नगर , समुद्र , पर्वत इत्यादि ।

●  इनमें कतिपय अपवाद भी हैं ।
जैसे — मणि , चाँदी , मक्का , मूंग , लीची , नारंगी , चाय , शराब , पृथ्वी , झील , घाटी इत्यादि स्त्रीलिंग शब्द हैं ।

● नदियों के नाम , नक्षत्रों के नाम , मसालों के नाम , खाने - पीने की चीजों के नाम प्रायः स्त्रीलिंग होते हैं ।
 जैसे - गंगा , यमुना , अश्विनी , रोहिणी , लौंग , इलायची , मिर्च , रोटी , कचौड़ी , दाल , खीर , खिचड़ी इत्यादि । इनमें भी कतिपय अपवाद हैं ।
जैसे – सिन्धु तथा ब्रह्मपुत्र नदी पुल्लिग हैं । धनिया , जीरा , नमक , परांठा , दही , रायता इत्यादि पुल्लिग हैं ।

वचन 
(परिभाषा, अर्थ)

संज्ञा , सर्वनाम . विशेषण तथा क्रिया के जिस रूप से संख्या का बोध होता है , उसे ' वचन ' कहते हैं । वचन संख्याबोधक विकारी शब्द होते हैं । 
वचन के दो भेद हैं--
1- एकवचन तथा 
2-  बहुवनन 

1-  एकवचन
शब्द के जिस रूप से एक व्यक्ति या वस्तु का बोध होता है , उसे ' एकवचन ' कहते हैं ।
जैसे - लड़का , पुस्तक , कलम , घड़ी इत्यादि ।

2- बहुवचन
शब्द के जिस रूप से - या दो से अधिक व्यक्ति या वस्तु का बोध होता हो , उसे बहुव कहते हैं ।
जैसे - लड़के , पुस्तकें , कलमें , घड़ियाँ इत्यादि ।

● आकारान्त पुल्लिंग शब्दों में ' आ ' को ' ए ' बनाकर बहुवचन बनाया जाता है
जैसे - लड़का - लड़के , घोड़ा - घोड़े , गदहा - गदहे इत्यादि ।

●  इकारान्त , इकारान्त , उकारान्त तथा ऊकारान्त पल्लिग शब्दों में बहुवचन मरूप परिवतित नहीं होता है तथा उनके वचन की पहचान किया के प्रयोग द्वारा काजाता है ।
जैसे--
साधु जाता है ( एकवचन ) 
साधु जाते हैं । ( बहुवचन ) 
डाकू जाता है ( एकवचन ) 
डाकू जाते हैं । ( बहवचन )

● आकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के अन्त में ' एँ ' या ' ये ' लगाकर बहुवचन के रूप में प्रयक्त किया जाता है , जैसे - कक्षा - कक्षायें , लता - लताएँ इत्यादि । ' या ' अन्त्य वाले स्त्रीलिंग संज्ञा - शब्दों में अन्तिम स्वर के ऊपर अनुनासिकता लगाकर बहुवचन रूप निर्माण किया जाता है ।
जैसे - चिड़िया - चिड़ियाँ , गुड़िया - गुड़ियाँ इत्यादि ।

● आकारान्त स्त्रीलिंग शब्द का बहुवचन में प्रयोग करने के लिए ' अ ' का ' ऐं ' किया जाता है ।
जैसे - किताब - किताबें , गाय - गायें , इत्यादि ।

● इकारान्त तथा ईकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों में ' ई ' को ' इ ' करके ' याँ ' लगाया जाता है । ' इ ' तथा ' ई ' को ' इयाँ ' कर दिया जाता है ।
जैसे - नदी - नदियाँ लड़की - लड़कियाँ

●  उकारान्त या ऊकारान्त शब्दों को बहुवचन बनाने के लिए ' ऊ ' को ' उ ' तथा अन्त में ' एँ ' का प्रयोग किया जाता है ।
जैसे - वस्तु - वस्तुएँ , बहू - बहुएँ इत्यादि ।

● संज्ञा के पुल्लिंग या स्त्रीलिंग शब्दों का बहुवचन में प्रयोग गण , वर्ग , जन , वृन्द आदि शब्द लगाकर भी किया जाता है ।
जैसे--  
श्रोता + गण = श्रोतागण
अधिकारी + वर्ग = अधिकारी वर्ग

●  कतिपय व्यक्तिवाचक तथा भाववाचक संज्ञाओं के भी परिस्थिति अनुसार बहुवचन के रूप में प्रयोग होते हैं । यह बात ध्यान रखने की है कि बह्वचन का सार्वत्रिक प्रयोग जातिवाचक संज्ञाओं का ही होता है ।

जैसे - जयचन्दों ने हमेशा देश की सुरक्षा को खतरे में डाला है ।

● विभक्ति के प्रयोग से बहुवचन निर्माण की प्रक्रिया में कतिपय परिवर्तन आते हैं । अ , आ , ए जिन शब्दों के अन्त में आते हैं , उनका अन्तिम स्वर ' ओ ' हो जाता है ।
जैसे - लड़कों ने पढ़ा ।
           पुस्तकों में लिखा है ।

● संस्कृत के आकारान्त , संस्कृत - हिन्दी की सभी उकारान्त , ऊकारान्त तथा औकारान्त संज्ञा शब्दों का बहुवचन में प्रयोग करने के लिए अन्त में ' ओं किया जाता है । यदि आगे किसी विभक्ति का प्रयोग हुआ है ।
जैसे - साधुओं को खाना खिलाओ ।
           घरों में लोग रहते हैं ।

●  इकारान्त तथा ईकारान्त शब्दों का बहुवचन के रूप में प्रयोग करने के लिए . यदि उसके बाद विभक्ति चिह्न प्रयुक्त हो तो ' यो ' लगा दिया जाता है ।
जैसे - मनियों का आश्रम जंगल में था ।
            नदियों का जल स्वच्छ है ।
            गाड़ियों में ईंधन डालो ।

● द्रव्यवाचक संज्ञा का प्रयोग हमेशा एकवचन में होता है । भाववाचक तथा गुणबोधक शब्दों का प्रयोग भी हमेशा एकवचन में होता है ।
जैसे - डाकू दुकान का सारा सोना ले गए ।
            उनकी सदाशयता के सभी कायल हैं ।

● हिन्दी में कुछ शब्द हमेशा बहुवचन में प्रयुक्त होते हैं ।
जैसे - प्राण , दर्शन , आँसू , समाचार , हस्ताक्षर इत्यादि ।

 कारक 
(परिभाषा,अर्थ, भेद)-- 
संज्ञा तथा सर्वनाम के जिस रूप से उसका वाक्य के अन्य शब्दों के साथ सम्बन्ध आता है ,उसे ' कारक ' कहते हैं ।
जैसे - 
रमेश ने महेश को जेब से पैसे निकाल है ।
इस वाक्य में ' रमेश ने ' महेश को ' , ' जेब से ' संज्ञा शब्दों में परिवर्तन है , जो की क्रिया से सम्बन्ध निर्धारित करता है । इन सम्बन्धों को संजा के । कारकीय रूप निर्धारण के लिए संज्ञा या सर्वनाम के बाद जो कारक रूप कहते हैं । कारकीय रूप निर्धारण के लिए " चिह्न ' आता है, उसे ' विभक्ति ' अथवा ' परसर्ग कहते है।

●  विभक्ति से बने शब्द - रूप को ' विभक्त्यन्त ' या ' पद कहते है।

● हिन्दी में कारक के आठ भेद हैं -- कर्ता , कर्म , करण सम्बन्ध , अधिकरण तथा सम्बोधन
हिन्दी कारक की विभक्तियों का प्रयोग इस रूप में होता हैं ।

कारक               विभक्ति (परसर्ग)
कर्ता                     ने
कर्म                     को
करण                   से
सम्प्रदान               को,के लिए
अपादान               से
सम्बन्ध                 का,के,की
अधिकरण             में, पर
सम्बोधन               हे, अरे

● हिन्दी में विभक्तियों की दो प्रवृत्तियाँ मिलती हैं --
( 1 ) विश्लिष्ट 
( 2 ) संश्लिष्ट 

● संज्ञा के साथ आने वाली विभक्तियाँ शब्द से पृथक् लगाई जाती हैं ।
जैसे - राम ने वृक्ष पर इत्यादि ।जबकि सर्वनाम के साथ आने वाली विभक्तियाँ शब्द से संय रहती हैं ।
जैसे — उसने , तमको इत्यादि ।

●  कर्ता कारक की विभक्ति ' ने ' का प्रयोग भूतकालिक वाक्यों में होता है ।

● करण तथा अपादान कारक की विभक्ति ' स ' समान लगती है , किन्तु इनका प्रयोग पृथक् अर्था में होता है । करण कारक में संज्ञा का क्रिया से सम्बन्ध का बोध होता है , जबकि अपादान में किसी वस्तु के अलग होने का भाव प्रकट होता है
जैसे - 
राम ने डण्डे से उसे पीटा ( करण कारक )
मोहन ने कुत्ते को घर से निकाला । ( अपादान कारक )

कारक की विभक्ति प्रयोग के उदाहरण--- 

1- कर्त्ता कारक-- 
राम ने रोटी खायी । 
मैंने उसे पढ़ाया । 
उसने लड़ाई लड़ी । 
सीता ने गीता पढ़ ली । 
उसने गीत गाया । 

2- कर्म कारक-- 
पिता ने पुत्र को डॉटा । 
राम ने श्याम को मारा । 
माता ने बच्चे को सुलाया । 

3- करण कारक-- 
वह चाकू से मारता है । 
उसने पेड़ को कुल्हाड़ी से काटा । 
सीता कलम से लिखती है । 

4- सम्प्रदान कारक-- 
उसने लड़के को मिठाइयाँ दीं । 
वह मुझको रुपये दे रहा था । 
श्याम ने मोहन को साइकिल दी । 

5- अपादान कारक-- 
हिमालय से गंगा निकलती है । 
वह छत से कूद गया । 
शोर सुन वह घर से बाहर आ गया । 
वह नदी से पानी ला रहा है । 
वह बाजार से सब्जी ला रही है ।

6-  सम्बन्ध कारक-- 
यह राम की किताब है । 
यह प्रेमचन्द का उपन्यास है ।

7- अधिकरण कारक--
तुम्हारे घर में दस लोग हैं । 
दुकान पर कोई नहीं

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