Friday 17 April 2020

गुरू तेगबहादुर जी का व्यक्तित्व ,जीवन परिचय व प्रेरणादायक विचार व गुरू तेगबहादुर जयंती, Guru Tegh Bahadur Jayanti

गुरू तेगबहादुर जी का व्यक्तित्व ,जीवन परिचय व प्रेरणादायक विचार व गुरू तेगबहादुर जयंती 
Guru Tegh Bahadur's personality, life introduction and inspirational thoughts and Guru Tegh Bahadur Jayanti
Guru Tegbahadur Jayanti 

गुरु तेग बहादुर गोविंद जी की पत्नी गरु तेग बहादुर का जन्म 1 अप्रैल 1621 को छठवें गुरु श्री हरगोविंद जी । जानकी देवी के गर्भ से हुआ था । वे पदाय के नौवें गुरु था गुरु ने इनका नाम त्यागमल रखकर उन्हें आशीर्वाद दिया था । 

हिन्दी अर्थ, संस्कृत भावार्थ सहित समाहित करने का छोटा सा प्रयास किया गया है।Hindi Quotes ,संस्कृत सुभाषितानीसफलता के सूत्र, गायत्री मंत्र का अर्थ आदि शेयर कर रहा हूँ । जो आपको जीवन जीने, समझने और Life में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्व पूर्ण भूमिका निभाते है,आध्यात्म ज्ञान से सम्बंधित गरूडपुराण के श्लोक,हनुमान चालीसा का अर्थ ,ॐध्वनि, आदि Sanskrit sloks with meaning in hindi धर्म, ज्ञान और विज्ञान के मामले में भारत से ज्यादा समृद्धशाली देश कोई दूसरा नहीं।gyansadhna.com

बालक के त्याग की कीर्ति उसे आग बालक त्यागमल का उनके पिता उसे अर्ति उसे अमर बनाए । लिए ले गए । भाई बुड्ढा विधिवत शिक्षा दी तथा प्रत्येक में त्यागमल ने धर्मशास्त्रों का भी भाई बुड्ढा और भाई गुरदास के पास शिक्षा प्राप्त करने के ने त्यागमल को इतिहास , कला एवं शस्त्र शास्त्रों को विधिवत विषय में निपुण बना दिया । भाई बुड्ढा के सानिध्य में त्यागमल ने गहन अध्ययन किया । ग्यारह वर्ष की अवस्था में त्यागमल का विवाह सम्पन्न उभा नाम गजरी देवी था । वे अम्बाला के निकट लखनौर के खत्री लाल यह परिवार करतारपुर जाकर बस गया था ।

त्यागमल का विवाह हुए दो ही वर्ष हुए थे कि मुगलों की सेना के के नेतत्व में सिखों पर आक्रमण किया । गुरु हरगोविन्द ने आक्रमण का के लिए तेरह वर्षीय किशोर त्यागमल को नियक्त किया । साल का विवाह सम्पन्न हुआ । उनकी पत्नी का नाम भावनौर के खत्री लाल चन्द की पुत्री थीं । बाकि मगलों की सेना ने , काले खाँ  किशोर त्यागमल को नियुक्त किया । त्यागमल ने वीरता पर्वक काले खाँ को परास्त किया । इनके शौर्य एवं पराक्रम से प्रभावित होकर गुरु हरगोविंद ने इनका नाम तेगबहादुर रख दिया । कुछ समय पश्चात गुरु हरगोविन्द का देहावसान हो गया ।

तब तेगबहादुर अपनी माँ के साथ बाकला में रहने लगे । बाकला कठोर तपस्या तथा ध्यान के माध्यम से आध्यात्मिक सिद्धियाँ प्राप्त की । गरु हरगोविन्द के पश्चात गुरु हरकिशन गुरु गद्दी पर आसीन हुए पर 1664 में दिल्ली यात्रा करते समय , चेचक से उनकी मृत्यु हो गई । गुरु हरकिशन ने बाबा बाकला को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया । यह घोषणा बड़ी अस्पष्ट थी । पर । अगस्त 1669 का दिल्ली से एक सिख संगत बाकला पहुँची , जिसका नेतृत्व दीवान दुर्गामल कर रहे थे और उनकी घोषणा के कारण अन्ततः गुरु तेग बहादुर ही गुरु पद पर प्रतिष्ठित हुए ।

गुरु तेगबहादुर का स्वभाव अन्यन्त सौजन्य पूर्ण तथा सरल था । गुरु पद पर आसीन होने के उपरान्त उन्होंने सम्पूर्ण भारत का भ्रमण कर धर्म प्रचार किया । अत्याचारी शासन के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए जनमत जागृत किया । यह समय भारतीय संस्कृति तथा हिन्दु धर्म के लिए अत्यन्त संकट तथा संघर्ष का समय था । दिल्ली में मुगल शासक औरंगजेब का शासन था ।

वह प्रबल हिन्दू  विरोधी तथा धर्मान्ध शासक उसने तरह - तरह के अत्याचा था तह धर्मान्ध शासक था । हिन्दुओं का बल पूर्वक धर्म परिवर्तन कराने के लिए रह के अत्याचार प्रारंभ किए थे । हिन्दुओं से जजिया कर वसूला जा रहा प्रसिद्ध मंदिरों को क्रूरता पूर्वक ध्वंस किया जा रहा था । मोर के पंडितों का धर्म परिवर्तन कराने के लिए औरंगजेब विशेष रूप से था । उसका विश्वास था कि यदि पंडित और ब्राह्मण अपना धर्म परिवर्तन लो तो शीघ्र हिन्दू समाज को मुसलमान बनाने में उसे कोई कठिनाई नहीं होगी । कर औरंगजेब के अत्याचारों से त्रस्त होकर काश्मीरी पंडितों का एक समूह सहायता के लिए गुरु तेग बहादुर के पास पहुँचा ।

एक पंडित ने कहा - औरंगजेब के अत्याचार अब असह्य हो उठे हैं । गुरुदेव ! हम सब आपकी शरण में आए हैं । हमारी रक्षा कीजिए । गरुतेगबहादुर ने उनकी बातें ध्यानपूर्वक सुनीं सुनकर कहा - " किसी महापुरुष के बलिदान से ही हिन्दू धर्म की रक्षा हो सकती है । " इनके पुत्र बालक गोविन्द सिंह जिनकी आयु केवल नौ वर्ष की थी , वहीं पास में बैठे पिता की बात सुन रहे थे । उन्होंने कहा - पिताजी इस युग में , आपसे बड़ा महापुरुष और कौन हो सकता है ?

अपने इस नन्हें बालक के इस कथन में गुरु तेगबहादुर को जैसे ईश्वरीय सन्देश मिल गया । उन्होंने पंडितों को संबोधित करते हुए कहा - जाओ , औरंगजेब से कह दो कि यदि हमारे गुरु तेगबहादुर इस्लाम कबूल कर लेंगे तो हम भी कर लेंगे

औरंगजेब तक जब यह समाचार पहुँचा तब औरंगजेब ने उनसे वार्ता के लिए उन्हें दिल्ली आमंत्रित किया । गुरु तेगबहादुर समझ गए कि उनकी मृत्यु का सन्देश है । अत : उन्होंने पुत्र गोबिन्दसिंह को बुलाकर कहा - " बेटा दिल्ली में औरंगजेब मेरा वध भी कर दे तो शोक मत करना । उनका प्रतिशोध लेना । भाई मतिदास तथा भाई दयाला को साथ लेकर गुरुजी दिल्ली पहँचे । जैसा कि पूर्व से ही संभावित था , औरंगजेब ने उन्हें दरबार में बुलाकर पूछा - " आप तो सिख हैं । फिर आप पंडितों का नेतृत्व क्यों कर रहे हैं ? " गुरु तेगबहादुर ने दृढ़तापूर्वक कहा – “ हिन्दू और सिख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । दोनों हिन्दू हैं । 

चिढ़कर औरंगजेब ने कहा - " या तो इस्लाम कबूल करो अन्यथा मृत्यु के लिए तैयार हो जाओ । " " मुझे मृत्यु स्वीकार है पर बलात धर्म स्वीकार करना नहीं । यह पाप है । " गुरुतेगबहादुर ने मस्तक ऊँचा कर , स्वाभिमान से कहा । तब औरंगजेब ने उन्हें दरबार में ऊँचा पद देने तथा अन्य प्रकार के कई प्रलोभन दिए पर गुरु तेगबहादुर अपनी प्रतिज्ञा से रत्तीभर भी नहीं डिगे ।

गुरु तेग बहादुर को आतंकित करने तथा उन्हें अपने निश्चय से डिगाने के लिए उनके सामने ही भाई मतिदास के शरीर के टुकड़े - टुकड़े कर दिए गए । भाई दयाला  को गर्म उबलते हुए तेल के कड़ाहे में डाल दिया गया । पर इन दृश्यों का भी गुरु तेगबहादुर पर कोई प्रभाव नहीं पडा । तब पाँच दिनों तक उन्हें भीषण यातनाए ।

अन्ततः-- 11 नवम्बर 1675 मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी संवत 1732 का दिला चाँदनी चौक में गुरु तेग बहादुर का शीश काटकर फेंक दिया गया । गरु तेगबहादर के इस अदभत बलिदान की स्मति में चांदनी चौक म बना . गरुद्वारा आज भी हमें यह सन्देश देता है कि जो देह की अपेक्षा अपना " ,धर्म को अधिक मूल्यवान समझता है , उसका यश अमर एवं शाश्वत हो जाता है।

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अन्य सम्बन्धित लेख साहित्य----

0 comments: