Saturday 25 April 2020

विनम्रता और विवेक है सफलता की सीढ़ी, ऐसे लाए अपने अन्दर ए महत्वपूर्ण गुण,Humility and prudence

विनम्रता और विवेक है सफलता की सीढ़ी, ऐसे लाए अपने अन्दर ए महत्वपूर्ण गुण
Humility and prudence are the ladder to success, in this way you bring an important quality
Achche jeewan ka sote

दोस्तों विनय,विनम्रता और विवेक ए मनुष्य के आंतरिक गुण है जो मनुष्य का प्राण माना जाता है जिसके अन्दर ए गुण नही है ,न तो उस शरीर का अस्तित्व है,और न उस आत्मा का।हिन्दी अर्थ, संस्कृत भावार्थ सहित समाहित करने का छोटा सा प्रयास किया गया है।Hindi Quotes ,संस्कृत सुभाषितानीसफलता के सूत्र, गायत्री मंत्र का अर्थ आदि शेयर कर रहा हूँ । जो आपको जीवन जीने, समझने और Life में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्व पूर्ण भूमिका निभाते है,आध्यात्म ज्ञान से सम्बंधित गरूडपुराण के श्लोक,हनुमान चालीसा का अर्थ ,ॐध्वनि, आदि Sanskrit sloks with meaning in hindi धर्म, ज्ञान और विज्ञान के मामले में भारत से ज्यादा समृद्धशाली देश कोई दूसरा नहीं।gyansadhna.com

विनम्रता आपके आंतरिक प्रेम की शक्ति से आती है। दूसरों को सहयोग व सहायता का भाव ही आपको विनम्र बनाता है। आपके अन्दर नयी ऊर्जा व ज्ञान का विस्तार भी करता है।
 यह कहना गलत है कि यदि आप विनम्र बनेंगे तो दूसरे आपका अनुचित लाभ उठाएँगे। जबकि यथार्थ स्वरूप में विनम्रता आपमें गज़ब का धैर्य पैदा करती है। आपमे सोचने समझने की क्षमता का विकास करती है। विनम्र व्यक्तित्व का एक प्रचंड आभामण्डल होता है। जो दिव्य तेज की तरह चमकता रहता है, और उसकी कांती चारों दिशाओं में फैल जाती है। धूर्तो के मनोबल उस आभा से निस्तेज हो स्वयं परास्त हो जाते है।शत्रु स्वयं ही उससे दूर हो जाते है, और वह अपने लक्ष्य को भी हासिल करते है तथा कामयाबी व सफलता भी प्राप्त करता है।

विनय और विवेक इस प्रकार व्यक्ति में प्रवेश करता है--
Vinay and Vivek thus enter the person

विनय और विवेक प्रकार हमारे व्यवहार में जो कुछ है , वह हमारे विचारों की ही देन है । अच्छे विचार ही अच्छे आचरण के रूप में प्रकट होकर हमारी आदत बन जाते हैं । अच्छी अच्छी आदतों से मिलकर ही हमारा चरित्र बनता है । हमारा चरित्र ही हमारा व्यक्तित्व है । वही हमारी पहचान भी है । कुल मिलाकर कोई भी व्यक्ति अपने व्यवहार से ही जाना - पहचाना जाता है । हमारे कार्य और व्यवहार में हमारे भीतर ' सँजोए गये सदगुण ही प्रकटित होते है । इसलिए हमेशा अच्छे सदगुणों के प्रति सजग और सावधान रहना चाहिए । विनय और टिक ऐसे ही ना सद्गुण हैं , जिनसे हम अपने और अपने आसपास के जीवन को सु और श्रेष्ठ बना सकते हैं ।
आइए , जरा इन्हें जाने - पहचानें और जीवन में उतारें ।


विनय-नम्रता क्या हैWhat is modesty

विनय शब्द दो प्रमुख अर्थों में प्रयुक्त होता है , एक तो विनम्रता के अर्थ में और दूसरे अनुशासन के अर्थ में । वस्तुतः दोनों अर्थों में यह एक जैसा ही लगता है । यदि कोई व्यक्ति विनम्र है तो वह अनुशासित भी अवश्य होगा ही । साथ ही एक अनुशासित व्यक्ति विनम्र भी अवश्य होगा । इसमें दो राय नहीं हो सकती । विद्या से प्रथमतः विनय प्राप्त होता है । विनय से प्राप्त होती है पात्रता और  पात्रता से धन अर्थात् अर्थ की प्राप्ति होती है । धन के प्राप्त होने से व्यक्ति उस धन  को धार्मिक एवं सामाजिक प्रयोजनों में लगाता है , तब उससे जो आत्म संतुष्टि मिलती है वही है सच्चा सुख । 

इसी बात को यह श्लोक कहता है--- 
"विद्या ददाति विनयं विनयात् याति पात्रताम् । 
पात्रत्वात् धनमाप्नोति , धनात् धर्मस्ततः सखम् ॥"

 व्यक्ति में जैसे - जैसे विद्या का विकास होता है उतना ही वह नम्र होता जाता है , विद्या - विहीन व्यक्ति का आचरण भी रूखा और शिष्टता विहीन होता है । फलों से भरी हुई शाखा झुक जाती है । उसी प्रकार विद्या से सम्पन्न व्यक्ति भी विद्या पाकर विनम्र हो जाता है । जिस प्रकार थोथे बादल आकाश में ऊँचे मंडराते रहते . हैं किन्तु जब वे जल से भरे होते हैं तो भूमि के निकट आकर बरसने लगते हैं ।

गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में कहा है :
"बरसहिं जलद भूमि नियराये । 
जथा नवहिं बुध विद्या पाये । 

इसी को एक दूसरी प्रकार से भी समझा जा सकता है कि जिसके पास ज्ञान व विद्या नहीं होती वह दिखावा करके अपने आपको ज्ञानी या विद्वान प्रदर्शित करना चाहता है । " थोथा चना बाजे घना " की तरह वह बड़ी - बड़ी डींग हाँकता है । जैसे आधी भरी हुई गगरी छलकती जाती है वैसे ही वह भी इतराता - फिरता है , किन्तु जिसके पास विद्या है ज्ञान है , वह विनयशील होता है ।
कबीरदास जी कहते हैं जो भी झुक कर किसी को नमन करता है , प्रणाम करता है वह दूसरे के लिए कम , अपने लिए अधिक लाभदायी है । जिस प्रकार तराजू का वही पलड़ा नीचे झुकता है जो भारी होता है ।

"कबिरा नवै सो आप को ,पर को नवै न कोय । 
घालि तराजू तौलिये , नवै सो भारी होयत ।  

महापुरुषों के अनेकों ऐसे दृष्टान्त हैं जिनसे उनकी विनम्रता प्रकट होती है । वे तो सचमुच विनय , भूषण ही होते हैं, आप भी उनके व्यक्तित्व से खुद के जीवन को सींचने का प्रयास कीजिए । जैसे---

1-राजेन्द्र प्रसाद की विनम्रता : - 

भारत के प्रथम राष्ट्रपति देश रत्न डॉ . राजेन्द्र प्रसाद जी उस समय कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गये थे । वह एक बड़ा सम्माननीय और गौरवशाली पद हुआ करता था । वे प्रयाग ( इलाहाबाद ) में ' लीडर ' अखबार के सम्पादक श्री चिंतामणि से मिलने आये । चपरासी को कार्ड दिया । चपरासी सम्पादक की मेज पर कार्ड रख कर लौट आया और उनसे प्रतीक्षा करने को कहा । राजेन्द्रबाबू के कपड़े वर्षा से भीग गये थे । खाली समय जानकर वे उधर बैठे मजदूरों की अंगीठी के पास खिसक गये और हाथ सेकने तथा कपड़े सुखाने लगे । थोड़ी देर में सम्पादक की नजर कार्ड पर गई । वे हड़बड़ाकर उनके स्वागत के लिए स्वयं दौड़े आये । परन्तु राजेन्द्र बाबू वहाँ नहीं दिखे । वे तो मजदूरों की अँगीठी पर हाथ सेकते कपड़े सुखाते मिले । सम्पादक जी ने इसके लिए क्षमा माँगी । राजेन्द्रबाबू हँसते हुए बोले - " इससे क्या हुआ ? कपड़े सुखाना भी तो एक काम था । इस बीच यह निपट गया । अच्छा ही हुआ ।
" ऐसे थे विनम्रता की मूर्ति राजेन्द्र बाबू । 

2- परमहंस की विनम्रता - 

डॉ . महेन्द्रनाथ सरकार कलकत्ते के प्रसिद्ध डॉक्टर था वे रामकृष्ण परमहंस से मिलने गये । परमहंस जी बगीचे में टहल रहे थे । उन्हें माली समझकर डॉक्टर साहब ने कहा - " ओ माली ! थोड़े से फूल लाकर द परमहंस जी को भेंट करने हैं । " उन्होंने अच्छे - अच्छे फूल तोड़कर उन्हें दे दिए।

थोडी देर में परमहंस जी सत्संग स्थान पर पहुँचे । डॉ . सरकार परमहंस जी की विनम्रता परः चकित रह गये । जिनको माली समझा गया वे ही परमहंस निकले । वे बड़े शर्मिंदा हुए ।

3- श्रीकृष्ण की विनम्रता - 

भगवान श्री कृष्ण तब योगेश्वर कृष्ण के रूप में विख्यात हो चुके थे । पाण्डवों का राजसूय यज्ञ हुआ । श्री कृष्णजी ने उस यज्ञ में अपने लिए जो कार्य - दायित्व स्वयं चुने , वे थे , अतिथियों के चरण धोना , घोड़ों की सफाई करना और जूठे पत्तल उठाना । यह थी श्री कृष्ण की महानता - उनकी विनम्रता

विवेक कैसे आता है--
How does sanity come
बुद्धि तो हर एक को प्राप्त होती है , किन्तु विवेक किसी किसी के पास ही रहता है , जिसके द्वारा वह अपनी बुद्धि का सही - सही उपयोग कर पाता है । शारीरिक श्रम और बुद्धि का भण्डार लेकर भी यदि व्यक्ति विवेक - शून्य है तो सब कुछ व्यर्थ है । बुद्धि और शरीर बल का सही और उपयोगी इस्तेमाल तो विवेक से ही हो सकता है । -
" सहसा करि पाछे पछताई , 
कहहिं वेद - बुध ते बुध नाहीं । " 

जल्दी बाजी में बिना विवेक प्रयोग किए ; बिना सोचे समझे कुछ लोग काम करके बाद में अपने किए पर पश्चाताप करते हैं उन्हें बुद्धिमानों में बुद्धिहीन ही समझा जाता है ।

"बिना विचारे जो करे , सो पाछे पछताय । 
काम बिगारे आपनो , जग में होत हँसायत ।।

बिना विवेक का समुचित प्रयोग किए काम करने पर अपनी ही क्षति होती है लाह अपनी ही जग हँसाई । इसलिए कोई भी कार्य करने से पूर्व उसके बारे छी तरह सोच - विचार करके तब कार्य करना चाहिए । का मानव विज्ञान के पंख लगाकर आकाश में उड़ने लगा है । फिर भी त एव संतुष्टि नहीं । चारों ओर जटिलताएँ , अशान्ति , विक्षोभ और संघर्ष दल मंडरा रहे हैं । मानव क्षुब्ध है , परेशान है ।

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