मैं हूँ धरती, मेरी पुकार सुनो ( कविता)
I am earth listen my call
Poem (Dharti) and Environmental

Environmental

मैं धरती मां हूँ,
मैं हूँ जीवन दायिनी,
मै कभी पुलकित हो खिलखिलाया करती थी,
एक समय था जब मै उडती थी परिंदों के झुण्ड मे,
स्वछंद थी, निरोगी थी, सुन्दर और मनोनीत थी,
आज जकड लिया है मानव ने जंजीरों से,
तोड दी हदें सारी इस मां की।
इसीलिए तो मानव तू भुगत रहा।
नये-नये रोगों-अवरोधों से ,
तू हर पल मानव जूझ रहा।
मेरी शुद्ध हवा से बडकर दूजी न कोई औषधि,
मेरे हर अंग-रंग में है जादू,
क्यूँ इधर-उधर तू ढोल रहा,
मेरी कदर करना सीख ले,
तेरी दशा-दिशा सुधर जाएगी।
फिर भी मां की ममता जाग उठी,
अब मेरा बेटा भूखा-बेसहारा नहीं होगा ।
मेरी उन्मुक्त खिलखिलाहट चारों दिशा में गूंजेगी ,
मेरी हर बेटियाँ फिर से अपने गौरव को पहचानेगी ।
मेरे नन्हें-मुन्ने बच्चे अपने मजबूत हाथों से ,
अतीत को भविष्य में बदलेंगे।
जो खोया है मैंने जग में,
उसको मैं फिर से पा लूंगी ।
मैं धरती मां हूँ,
मैं हूँ जीवन दायिनी,
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