Wednesday 1 April 2020

हिन्दी साहित्य व काव्य की महत्वपूर्ण विशेषताएं एवं परिभाषाएं Important features and definitions of Hindi literature and poetry

हिन्दी साहित्य व काव्य की महत्वपूर्ण विशेषताएं एवं परिभाषाएं 
Important features and definitions of Hindi literature and poetry


हमारे हिन्दी साहित्य मे लेखकों के अनेकों ऐसे तथ्य,अनमोल वचन, सूक्तियां,  लेख है जिनको पढने मात्र से हमारे विकाश मे सहायक होते है, हिन््दी साहित्य मेें अनेेेेकों काव्यों की विशेषताएं है जो हमे हिन्दी को समझने मे सहायता करती है।
और जो हमें कर्तव्य निष्ठ, संस्कारवान,  तथा सभ्य बनाने मे मदत करती है। और यही हमारी मातृभाषा हिन्दी का उद्देश्य है। जिसे हमने साकार करना है।

आप के लिए हम लेकर आए है। प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न, ctet,utet,upet,b.ed,ssc,ugc net.uset.समूह ग,आदि के अति महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर जो हर परीक्षाओं में सफलता दिलाने के लिए महत्वपूर्ण है हिन्दी  वाले प्रश्न हिन्दी व्याकरण से सम्बन्धित अन्य भी लेख है, इस ब्लॉग पर हिन्दी व्याकरण रस,और सन्धि प्रकरण,  तथा हिन्दी अलंकारMotivational Quotes, Best Shayari, WhatsApp Status in Hindi के साथ-साथ और भी कई प्रकार के Hindi Quotes ,संस्कृत सुभाषितानीसफलता के सूत्र, गायत्री मंत्र का अर्थ आदि शेयर कर रहा हूँ ।

रासो काव्य की सामान्य विशेषताएँ-
General Features of Raso Poetry 

1- ऐतिहासिकता व कल्पना का सम्मिश्रण ,
2- प्रशस्ति काव्य ,
3- युद्ध व प्रेम का वर्णन ,
4-  वैविध्यपूर्ण भाषा ,
5-  डिंगल - पिंगल शैली का प्रयोग ,
6-  छंदों का बहुमुखी प्रयोग ,

7-  चंदबरदाई दिल्ली के चौहान शासक पृथ्वी राज - III चौहान के सामंत व राजकवि थे । ,

8-  अमीर खुसरो का मूल नाम अबुल हसन था । दिल्ली के सुल्तान जलालुद्दीन खल्जी ने उनकी कविता से खुश होकर उन्हें ' अमीर ' का खिताब दिया और ‘ खुसरो ' उनका तखल्लुस ( उपनाम ) था । इस प्रकार वे बन गए - अमीर खुसरो । बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । वे अरबी , फारसी , तुर्की , संस्कृत एवं हिन्दी के विद्वान थे । उन्होंने फारसी में ऐतिहासिक - साहित्यिक पुस्तकें लिखीं , व्रजभाषा में गीतों - कव्वालियों की रचना की और खड़ी बोली में पहेलियाँ - मुकरियाँ बुझाई । संगीत के क्षेत्र में उन्हें कव्वाली , तराना गायन शैली एवं सितार वाद्य यंत्र का जन्मदाता माना जाता है ।

9- विद्यापति बिहार के दरभंगा जिले के बिसफी गाँव के रहनेवाले थे । उन्हें मिथिला के महाराजा कीर्ति सिंह और शिव सिंह का संरक्षण प्राप्त था ।

10-  जिस रचना के कारण विद्यापति ' मैथिल कोकिल ' कहलाए वह उनकी मैथिली में रचित ‘ पदावली ' है । यह मुक्तक काव्य है और इसमें पदों का संकलन है । पूरी पदावली भक्ति व शृंगार की धूपछांही है ।

निर्गुण काव्य की विशेषताएं
Features of Nirguna poetry

1- निर्गुण निराकार ईश्वर में विश्वास ,
2- लौकिक प्रेम द्वारा अलौकिक आध्यात्मिक प्रेम की अभिव्यक्ति
3- धार्मिक रूढ़ियों व सामाजिक कुरीतियों का विरोध
4- जाति प्रथा का विरोध व हिन्दू - मुस्लिम एकता का समर्थन
5- रहस्यवाद का प्रभाव
6- लोक भाषा का प्रयोग ।

सगुण काव्य की विशेषताएँ
Features of virtuous poetry


1- अवतारवाद में विश्वास
2- ईश्वर की लीलाओं का गायन
3- भक्ति का विशिष्ट रूप ( रागानुगा भक्ति - कृष्ण भक्त कवियों द्वारा , वैधी भक्ति राम भक्त कवियों द्वारा )
4-  लोक भाषा का प्रयोग

5- कबीर ने अपने आदर्श - राज्य ( Utopia ) को ' अमर देस ' , रैदास ने ' बेगमपुरा ' ( ऐसा शहर जहाँ कोई गम न हो ) एव तुलसी ने ' राम - राज कहा है ।

6- संत काव्य --
संत काव्य का सामान्य अर्थ है संतों के द्वारा रचा गया काव्य । लेकिन जब हिन्दी में ' संत काव्य ' कहा जाता है तो उसका अर्थ होता है निर्गुणोपासक ज्ञानमार्गी कवियों के द्वारा रचा गया काव्य।

7- संत कवि--
कबीर , नामदेव , रैदास , नानक , धर्मदास , रज्जब , मलूकदास , दादू , सुंदरदास , चरनदास , सहजोबाई आदि ।

8- सुंदरदास को छोड़कर सभी संत कवि कामगार तबके से आते हैं ; जैसे — कबीर ( जुलाहा ) , नामदेव ( दर्जी ) , रैदास ( चमार ) , दादू ( बुनकर ) , सेना ( नाई ) , सदना ( कसाई ) ।

संत काव्य की विशेषताएँ - धार्मिक--

1-  निर्गुण ब्रह्म की संकल्पना
2-  गुरु की महत्ता
3- योग व भक्ति का समन्वय
4- पंचमकार
5- अनुभूति की प्रामाणिकता व शास्त्र ज्ञान की अनावश्यकता
6- आडम्बरवाद का विरोध
7- संप्रदायवाद का विरोध ;

 सामाजिक --
1- जातिवाद का विरोध
2- समानता के प्रेम पर बल ,

शिल्पगत --
1- मुक्तक काव्य - रूप
2- मिश्रित भाषा
3- उलटबाँसी शैली ( संधा / संध्याभाषा - हर प्रसाद शास्त्री )
4- पौराणिक संदर्भो व हठयोग से संबंधित मिथकीय प्रयोग
5- प्रतीकों का भरपूर प्रयोग ।
8-  रामचन्द्र शुक्ल ने कबीर की भाषा को ' सधुक्कड़ी भाषा ' की संज्ञा दी है । 
9- श्यामसुंदर दास ने कई बोलियों के मिश्रण से बनी होने के कारण कबीर की भाषा को ' पंचमेल खिचड़ी ' कहा है ।
10- बोली के ठेठ शब्दों के प्रयोग के कारण ही हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर को ' वाणी का डिक्टेटर ' कहा है ।

11- प्रेमाख्यानक काव्य ' का अर्थ है जायसी आदि निर्ग प्रेममार्गी सूफी कवियों के द्वारा रचित प्रेम - कथा काव्य ।

कृष्ण भक्ति काव्य की विशेषताएँ--
1- कृष्ण का ब्रह्म रूप में चित्रण।
2- बाल - लीला व वात्सल्य वर्णन ।
3- शृंगार चित्रण ।
4- नारी मुक्ति।
5- सामान्यता पर बल ।
6- आश्रयत्व का विरोध ।
7-  लोक संस्कृति पर बल ।
8- लोक संग्रह ।
9- काव्य - रूप : काव्य की प्रधानता।
10- काव्य - भाषा - ब्रजभाषा ।
11- गेय पद परंपरा ।

12- - माता - पिता की जो ' वात्सल्य ' कहते हैं । ना की जो ममता अपने संतान पर बरसती है उसे ' कहते हैं । सूर वात्सल्य चित्रण के लिए विश्व तम कवि माने जाते हैं । इन्हीं के कारण , रसों के रिक्त वात्सल्य को एक रस के रूप में मान्यता मिली ।

13- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की राय है , ' यद्यपि तुलसी के समान का काव्य क्षेत्र इतना व्यापक नहीं कि उसमें जीवन भिन्न - भिन्न दशाओं का समावेश हो पर जिस परिमित पण्यभूमि में उनकी वाणी ने संचरण किया उसका कोई कोना अछूता न छूटा । शृंगार और वात्सल्य के क्षेत्र में जहाँ तक इनकी दृष्टि पहुँची वहाँ तक और किसी कवि की नहीं । इन दोनों क्षेत्रों में तो इस महाकवि ने मानो औरों के लिए कुछ छोड़ा ही नहीं ।

14- भक्ति आंदोलन में कृष्ण काव्यधारा ही एकमात्र ऐसी धारा है जिसमें नारी मुक्ति का स्वर मिलता है । इनमें सबसे प्रखर स्थर मीरा बाई का है । मीरा अपने समय के सामंती समाज के खिलाफ एक क्रांतिकारी स्वर है ।

15- जिन भक्त कवियों ने विष्णु के अवतार के रूप में राम की उपासना को अपना लक्ष्य बनाया वे ' रामाश्रयी शाखा ' के कवि कहलाए ।

16- - कुछ उल्लेखनीय राम भक्त कवि हैं - रामानंद , अग्रदास , ईश्वर दास , तुलसी दास , नाभादास , केशवदास , नरहरिदास आदि ।

17-  राम भक्ति काव्य धारा के सबसे बड़े और प्रतिनिधि कवि है तुलसी दास ।

18- राम भक्त कवियों की संख्या अपेक्षाकृत कम है । कम संख्या का सबसे बड़ा कारण है तुलसीदास का बरगदमयी व्यक्तित्व ।

राम भक्ति काव्य की विशेषताएं--

1- राम का लोकनायक रूप।
2- लोक मंगल की सिद्धि ।
3- सामूहिकता पर बल ।
4- समन्वयवाद बाद ।
5- मर्यादावाद
6 - मानवतावाद
7- काव्य - भाषा की बहुलता ।
8- काव्य - रूप - प्रबंध व मुक्तक दोनों।
9- काव्य भाषा - मुख्यतः अवधी ।
10-  दार्शनिक प्रतीकों की बहुलता।


रीतिकालीन शिल्पगत विशेषताएँ --

1- सतसई परम्प पुनरुद्धार ।
2- काव्य भाषा - व्रजभाषा ( श्रुति मधुर व कांत पदावलियों से युक्त तराशी हुई भाषा ) ।
3- काव्य मुख्यत- मुक्तक का प्रयोग।

4- दोहा छंद की प्रधानता र ' गागर में सागर ' शैली वाली कहावत को चरितार्थ है तथा लोकप्रियता के लिहाज से संस्कृत के ' श्लोक ' " अरबी - फारसी के शेर के समतुल्य है । ) ; दोहे के अला . ' सवैया ' ( शृंगार रस के अनुकूल छंद ) और ' कवित्त ' ( वीर के अनुकूल छंद ) रीति कवियों के प्रिय छंद थे । केशवदास की ' रामचंद्रिका ' को ' छंदों का अजायबघर ' कहा जाता है ।


रीतिमुक्त / रीति स्वच्छन्द काव्य की विशेषताएँ--

बंधन या परिपाटी से मुक्त रहकर रीतिकाव्य धारा के प्रवाह के विरुद्ध एक अलग तथा विशिष्ट पहचान बनाने वाली काव्यधारा ' रीतिमुक्त काव्य ' के नाम से जाना जाता है । रीतिमुक्त काव्य की विशेषताएँ थीं ।
1- रीति स्वच्छंदता
2- स्वअनुभूत प्रेम की अभिव्यक्ति ।
3- विरह का आधिक्य ।
4- कला पक्ष के स्थान पर भाव पक्ष पर जोर ।
5- पृथक् काव्यादर्श / प्राचीन काव्य परम्परा का त्याग ।
6- सहज , स्वाभाविक एवं प्रभावी अभिव्यक्ति ।
7- सरल , मनोहारी बिम्ब योजना व सटीक प्रतीक विधान ।

द्विवेदी युग की विशेषताएं --

1- जागरण - सुधार ( राष्ट्रीय चेतना , सामाजिक सुधार / सामाजिक चेतना , मानवतावाद आदि ) ।
2- सोद्देश्यता , आदर्शपरकता व नीतिमत्ता , ।
3- आधुनिकता ,
4- समस्या पूर्ति ,
5- प्रकृति चित्रण ,
6- विषय - विस्तार , इतिवृत्तात्मकता / विवरणात्मकता व उपदेशात्मकता ,
7- काव्य - रूप - प्रबंध काव्य , खंड काव्य व मुक्तक कविता तीनों पर जोर , ।
8- गद्य और पद्य दोनों की भाषा के रूप में खड़ी बोली की मान्यता , बोधगम्य भाषा ।

9- राम नरेश त्रिपाठी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीयता की एक संकल्पना विकसित की । उनकी राय में राष्ट्रीयता के तीन खतरे हैं विदेशी शासन ( पराधीनता ) , एक तंत्रीय शासन ( तानाशाही शासन ) और विदेशी आक्रमण । इन्ही तीन विषयों को लेकर त्रिपाठीजी ने काव्य त्रयी ( Trio ) की रचना की ' मिलन ' , ' पथिक ' व ' स्वप्न ' ।।

10- मैथिली शरण गुप्त ने दो नारी प्रधान काव्य - ' साकेत ' व ' यशोधरा ' की रचना की ।

11- भारतेन्दु युग में जिस तरह अम्बिका चरण व्यास समस्यापूर्ति की राह से कविता के क्षेत्र में आये उसी तरह द्विवेदी युग , में नाथूराम शर्मा ' शंकर ' ।

12- पहली बार द्विवेदी युग में प्रकृति को काव्य - विषय के रूप में मान्यता मिली । इसके पूर्व प्रकृति या तो उद्दीपन के रूप में - आती थी या फिर अप्रस्तुत विधान का अंग बनकर | द्विवदी युग में प्रकृति को आलंबन तथा प्रस्तुत विधान के रूप में मान्यता मिली । पर द्विवेदी युग में प्रकृति का स्थिर - चित्रण हुआ है , गतिशील चित्रण नहीं ।

13- द्विवेदी युगीन कविता कथात्मक तथा अभिधात्मक होने के कारण इतिवृत्तात्मक / विवरणात्मक हो गई है ।

14- प्रबंध काव्य -
' प्रिय प्रवास ' व ' वैदेही वनवास ' ( हरिऔध ) , ' साकेत ' व ' यशोधरा ' ( मैथिली शरण गुप्त ) , ' उर्मिला ' ( बालकृष्ण शर्मा नवीन ) आदि ।

15- खण्ड काव्य-
रंग मे भंग- पंचवटी , जयद्रथ वध, व किसान, मिलन, पथिक, स्वप्न आदि।

छायावाद युग की विशेषताएं--

1- आत्माभिव्यक्ति अर्थात ' मैं ' शैली / उत्तम पुरुष शैली ,
2- आत्म - विस्तार / सामाजिक रूढ़ियों से मुक्ति ।
3-  प्रकृति प्रेम
4- नारी प्रेम एवं उसकी मुक्ति का स्वर।
5-  अज्ञात व असीम के प्रति जिज्ञासा ( रहस्यवाद )
6- सांस्कृतिक चेतना व सामाजिक चेतना / मानवतावाद ।
7- स्वच्छंद कल्पना का नवोन्मेष ।
8-  विविध काव्य - रूपों का प्रयोग।
9- काव्य - भाषा – ललित - लवंगी कोमल कांत पदावली वाली भाषा।
10- मुक्त छंद का प्रयोग ।

11- प्रकृति संबंधी बिम्बों की बहुलता।

12-  भारतीय अलंकारों के साथ - साथ अंग्रेजी साहित्य के मानवीकरण व विशेषण विपर्यय अलंकारों का विपुल प्रयोग ।

13- छायावाद के कवि चातुष्टय – प्रसाद , निराला , पंत व महादेवी ।

14-  छायावादी काव्य में प्रसाद ने यदि प्रकृति को मिलाया , निराला ने मुक्तक छन्द दिया , पंत ने शब्दों को खराद पर चढ़ाकर सुडौल और सरस बनाया , तो महादेवी ने उसमें प्राण डाले ।

15-  छायावाद को हिन्दी साहित्य में भक्ति काव्य के बाद स्थान दिया जाता है ।

16- प्रसाद की प्रथम काव्य कृति - उर्वशी ( 1909 ई० )
- प्रसाद की प्रथम छायावादी काव्य कृति - झरना ( 1918 ई० )
- प्रसाद की अंतिम काव्य कृति । - कामायनी ( 1937 ई० ) सर्वाधिक प्रसिद्ध काव्य कृति।

17-  कामायनी के पात्र हा - मनु , श्रद्धा व इड़ा ।

18- पंत की प्रथम छायावादी काव्य कृति - उच्छवास ( 1918 ई० )
-पंत की अंतिम छायावादी काव्य कृति - गुंजन ( 1932 ई० )

प्रगतिवादी काव्य की विशेषताएं --

1- समाजवादी यथार्थवाद सामाजिक यथार्थ का चित्रण ,
2-  प्रकृति के प्रति लगाव ।
3-  नारी प्रेम ।
4- राष्ट्रीयता ।
5- सांप्रदायिकता का विरोध ।

6 -बोधगम्य भाषा ( जनता की भाषा में जनता की बातें ) व व्यंग्यात्मकता।

7- मुक्त छंद का प्रयोग ( मुक्त छंद का आधार कजरी , लावनी , ठुमरी जैसे लोक गीत ) ।

8- मुक्तक काव्य रूप का प्रयोग ।

प्रयोगवाद की विशेषताएँ --

1- अनुभूति व यथार्थ का संश्लेषण / बौद्धिकता का आग्रह ।
2- वाद या विचार धारा का विरोध ।
3- निरंतर प्रयोगशीलता ।
4- नई राहों का अन्वेषण
5 . साहस और जोखिम ।
6- व्यक्तिवाद ।
7- काम संवेदना की अभिव्यक्ति ।
8- शिल्पगत प्रयोग ।
9- भाषा - शैलीगत प्रयोग ।

10-  शिल्प के प्रति आग्रह देखकर ही इन्हें आलोचकों ने रूपवादी ( Formist ) तथा इनकी कविताओं को ' रूपाकाराग्रही कविता ' कहा ।

11-  प्रगतिवाद ने जहाँ शोषित वर्ग / निम्न वर्ग के जीवन को अपनी कविता के केन्द्र में रखा था जो उनके लिए अनजीया , अनभोगा था वहाँ मध्यवर्गीय प्रयोगवादी कवियों ने उस यथार्थ का चित्रण किया जो स्वयं उनका जीया हुआ , भोगा हुआ था । इसी कारण उनकी कविता में विस्तार कम है लेकिन गहराई अधिक ।

नयी कविता की विशेषताएं --

1- कथ्य की व्यापकता ,
2- अनुभूति की प्रामाणिकता ।
3- लघुमानववाद , क्षणवाद तथा तनाव व द्वन्द्व ।
4-  मूल्यों की परीक्षा ( वैयक्तिकता का एक मूल्य के रूप में स्थापना , निरर्थकता बोध , विसंगति बोध , पीड़ावाद ; सामाजिकता ) ।

5- लोक - सम्पृक्ति ।

6- काव्य संरचना ( दो तरह की कविताएं : छोटी कविताएं प्रगीतात्मक , लंबी कविताएं नाटकीय , क्रिस्टलीय संरचना , छंदमुक्त कविता , फैंटेसी / स्वप्न कथा का भरपूर प्रयोग ) ।

7- काव्य - भाषा – बातचीत की भाषा , शब्दों पर जोर ।

8-  नये उपमान , नये प्रतीक , नये बिम्बों का प्रयोग ।

9- यदि छायावादी कविता का नायक ' महामानव ' था , प्रगतिवादी कविता का नायक ' शोषित मानव ' तो नयी कविता का नायक है ' लघुमानव ' ।


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