Friday 10 April 2020

भारत की (11) वीर एवं साहसी नारियां जो है प्रेरणादायक एवं पथप्रदर्शक, India's (11) heroic and courageous women

भारत की (11) वीर एवं साहसी नारियां जो है प्रेरणादायक एवं पथप्रदर्शक
India's (11) heroic and courageous women who are inspiring and guiding

Indian womens


भारत ही एक ऐसा पहला देश है Indian womens in hindi जहाँ नारी को देवी स्वरूप माना जाता है, उनकी शक्तियों और पराक्रमों की सभी गुणगान किया करते है। यहा नारियों को भी वही स्थान प्राप्त है जो पुरूषों को है। भारत में महिलाओं की स्थिति ने पिछली कुछ सदियों में कई बड़े बदलावों का सामना किया है। अब महिलाओं को सिर्फ चूल्हा-चौका करने की अनुमति नही बल्कि अपने अधिकारों को जीने की आजादी भी है। Indian womens in hindi 
प्राचीन काल में पुरुषों के साथ बराबरी की स्थिति से लेकर मध्ययुगीन काल के निम्न स्तरीय जीवन और साथ ही कई सुधारकों द्वारा समान अधिकारों को बढ़ावा दिए जाने तक, भारत में महिलाओं का इतिहास काफी गतिशील रहा है। भारत की महिलाओं ने वह वीरता की मिशाल दी है शायद ही कोई और नही दे सकता।  आधुनिक भारत में महिलाएं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोक सभा अध्यक्ष, प्रतिपक्ष की नेता, शिक्षिका, सुरक्षाकर्मी, ऑफिसर, इन्जीनियर, वैज्ञानिक, व्यावसायिक,,अभिनेत्री, नायिका आदि जैसे कयी शीर्ष पदों पर आसीन हुई हैं। अभ भारत की दशा बदल चुकी है।

हम आपके लिए ऐसी ही 11- नारियों के बारे मे लेकर आए है जो आपका हाॅसला और प्रेरणादायक gyansadhna.com जीने के लिए महत्वपूर्ण होगा साथ ही जो आपको जीवन जीने, समझने और Life में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्व पूर्ण भूमिका निभाते है,आध्यात्म ज्ञान से सम्बंधित गरूडपुराण के श्लोक,हनुमान चालीसा का अर्थ ,ॐध्वनि, आदि

कहा भी गया है------

"जिस देश, गांव, समाज में नारियों का सम्मान हुआ है, नारियों के उत्थान के लिए कार्य हुए है, उसने हमेशा तरक्की की है और वह सीर्ष क्रम पर विद्यमान हुए है।"

नारी का महत्व
नारी वह शक्ति है जो विकास और विनाश
नारी अन्नपूर्णा का रूप है तो जरूरत पड़ने पर दुर्गा और काली का भी रूप धर सकती है। महिला घर-परिवार बचाने के लिए कई बार घरेलू हिंसा का शिकार होती रहती है लेकिन एक बार अगर इस बंधन से निकलना तय कर ले तो फिर दूसरों के लिए मिसाल बन जाती है।Indian womens in hindi 


1-
सावित्री देवी (Savitri dedi
Savitri devi

दो लोग आए और कहने लगे कि ' माँ ! हम आपका आतिथ्य स्वीकार करने में असमर्थ हैं । कारण , क्रांतिकारियों को प्रश्रय देने का अर्थ है - अपने ऊपर आफत मोल लेना , वेइन्तहा कठिनाईयाँ उन्हें झेलनी पड़ सकती हैं । " तुम्हारा यह कहना ठीक है किन्तु तुम लोग जो कठिनाइयाँ झेल रहे हो , देश को स्वतंत्र कराने के लिए अनेक यातनाएँ सह रहे हो , वह सब अपने लिए कर रहे हो क्या ? " " नहीं माँ । यह सब तो अपने देश और देशवासियों के लिए ही कर रहे हैं । " " तो फिर देशवासियों का भी कुछ तो कर्तव्य बनता ही है । प्रश्न सूचक दृष्टि से देखते हुए सावित्री ने गर्व के साथ कहा । "
" है क्यों नही माँ ? भाई साहब के निधन के उपरान्त आप घर में अकेली हैं , साथ में है आपके ऊपर दो बच्चों का भार । "

" आप लोगों को भगवान पर विश्वास है न ।

वही सबका आश्रयदाता है । मेरे लाल ! घर पर आए हुए बच्चे भूखे चले जाएँ , इससे बड़ा दुःख एक माँ को और क्या होगा , सावित्री ने क्रांतिकारी सूर्यसेन और निर्मलसेन को समझाते हुए कहा । " अब दोनों क्रांतिकारी सावित्री देवी के सामने नतमस्तक हो गए और सहर्ष दोनों ने उनका आतिथ्य स्वीकार कर लिया ।

 सावित्री देवी घलघाट गाँव में रहती थीं , उनका दो मंजिला मकान था और ऊपर के कमरे में सूर्य सेन और उनके क्रांतिकारी साथियों को भोजन कराने ले गई । 14 सितंबर 1932 को रात्रि के नौ बजे का समय , भोजन समाप्त कर सब लोग बैठे ही थे कि छोटी बालिका दौड़ती हुई आई और हाँफते हुए बोली कि बाहर गली में पुलिस वाले घूम रहे हैं । सभी क्रांतिकारी स्तब्ध , अभी कुछ सोच ही रहे थे कि एक हवलदार के साथ कैप्टन कामरूं सीढ़ियों पर चढ़ता हुआ दिखाई पड़ा । हवलदार आगे था , उसके पीछे कैप्टन था । क्रांतिकारी अपूर्व सेन नीचे उतर रहा था और उसने हवलदार को जोरदार धक्का दिया , वह धड़ाम से नीचे जा गिरा । सूर्यसेन ने कैप्टेन पर गोली दाग दी , वह भी नीचे गिर गया । इस अफरातफरी का लाभ उठाकर सूर्यसेन और महिला क्रांतिकारी प्रीतिलता वादेदार कूदकर भाग गए । अपूर्व सेन भी भागने की कोशिश में था किन्तु अन्य सैनिकों ने उसे अपनी गोली का शिकार बनाया और उसने घटना स्थल पर ही दम तोड़ दिया ।

 अंदर घिरे क्रांतिकारी निर्मल सेन भी खिड़की से कूदकर भागने की चेष्टा में गोली के शिकार हो गए और वह अन्दर चला गया । सैनिक खिड़की के रास्ते से गोलियाँ दाग रहे थे किन्तु अन्दर जाने का साहस नहीं कर पा रहे थे । मकान को चारों तरफ से घेर कर उस पर तगड़ा पहरा बिठा हवलदार ने पास के पुलिस थाने से कुमुक की और टुकड़ी लाने के लिए सैनिक को भेजा ।

कुमुक आते ही सैनिकों ने गोलियाँ दागने की झड़ी लगा दी किन्तु जवाब में अन्दर से कोई गोली नहीं आई । सैनिकों ने छुपते - छिपाते कमरे के अन्दर झांका तो उन्हें एक शव दिखाई पड़ा और यह शव निर्मलसेन का था । वे उस शव को उठा ले गए । क्रांतिकारियों को प्रश्रय देने के फलस्वरूप सावित्री देवी , उनके पत्र तथा अन्य दो व्यक्तियों को गिरफ्त में ले उन पर मुकदमा चलाया गया और सभी को चार - चार साल के कठोर कारावास का दंड दिया गया । सावित्री सी को अपने दंड का दुःख नहीं था , दुःख था तो केवल इस बात का कि उनके घर में क्रांतिकारी मारे गए ।

2- सरोजिनी नायडू (Sarojni Nayadu) 

Sarojini Nayadu

‘भारत कोकिला’ के नाम से प्रख्यात श्रीमती नायडू ने एक उत्साही स्वतंत्रता कार्यकर्ता और एक कवि के रूप में सन 1930-34 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया था। श्रीमती नायडू 1905 में स्वतंत्र भारत की पहली महिला गवर्नर बनी। इनकी कविताओं के संग्रह आज भी अंग्रेजी में महत्वपूर्ण भारतीय लेखन में मिलते है।

3- कुमुदिनी (kumudini)
जेल के अन्दर बंद क्रांतिकारी और जेल से बाहर के क्रांतिकारियों के बीच समाचार संवाद बनाए रखने का दायित्व कुमुदिनी ने बखूबी निभाया , उसमें यदि कष्ट भी उठाना पड़े तो तनिक भी चिंता नहीं थी । समाचार कैसे आते जाते थे वह निम्नलिखित उदाहरण से स्पष्ट है ।

एक चूड़ी वाला सिर पर चूड़ियों का झब्बा लादे चटगाँव जिले के ' कुमीरा ' गाँव में फेरी लगाता हुआ घूम रहा था । एक बालिका ने आवाज देकर कहा “ ऐ चूड़ी वाले भैया ! जरा अन्दर आकर अपनी चूड़ियाँ दिखाओ । "

" आया बिटिया " कहकर वह अंदर बरामदे में जाकर बैठा । बालिका उसे अन्दर सहन में ले गयी , और अंदर बैठी महिलाओं को चूड़ी दिखाने लगा । वहाँ एक सुपरिचित लड़की उसकी प्रतिक्षा में पहले से ही थी । उस लड़की ने चड़ी वाले के हाथ में तह किया एक कागज रखा । वह चूड़ी वाला एक महान क्रांतिकारी सूर्यसेन था । यह वही सूर्यसेन था जिसने चटगाँव में सेना और शस्त्रागारों को लूटा था और वह अब चूड़ी वाला बना हुआ था । सूर्यसेन के हाथ में पत्र देने वाली महिला की प्रिय शिष्या कुमुदिनी थी । कुमुदिनी उन दिनों समाचार लाने ले - जाने के काम में लगी थी । कुमुदिनी के पास पत्र क्रांतिकारी अर्धेन्दु गुहा ने भिजवाया था ।

सर्यसेन ने कागज खोला , कागज बिल्कुल कोरा था । कुमुदिनी एक ग्लास में पानी लेकर सूर्यसेन के पास पहुँची । पानी में कागज भिगोते ही उस पर लिखावट साफ नजर आ रही थी । लिखा था “ कच्ची - पक्की रोटियाँ और  पतली दाल खाते - खाते जी ऊब गया है , कुछ लड्डू और जलेबियाँ भिजवाने का कष्ट करें । सूर्यसेन ने उस भाषा का अर्थ समझ लिया , उसके अनुसार जेल के अन्दर के क्रांतिकारियों ने बम और रिवाल्वर भेजने की प्रार्थना की थी । इस महत्त्वपूर्ण कार्य में कुमुदिनी लगी हुई थी । इसी कारण से शासन को - झुकना पड़ा और क्रांतिकारियों के साथ संधि के लिए मजबूर होना पड़ा ।

4- सुचेता कृपलानी (Sucheta kriplani) 
Sucheta kriplani

सुचेता कृपलानी भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी और उत्तर प्रदेश राज्य में 1963-67 की अवधि में कार्य किया। इन्होंने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता संग्राम में तथा 1946-47 में विभाजन के दंगों के दौरान सांप्रदायिक तनाव शमन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। श्रीमती कृपलानी भारतीय संविधान की उप समिति का एक हिस्सा भी थी।

5- गौरा बाई (Gaura bai) 
" करो या मरों " की क्रांतिकारी गूंज सर्वत्र फैल चुकी थी । इसी श्रृंखला में मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के ग्राम चीचली में क्रान्तिकारी एक जुलूस निकाल रहे थे । पुलिस बल पहले से ही सतर्क था । वह जुलूस को तितर - बितर करने का प्रयास कर रहे थे किन्तु जुलूस और भी उग्र हो गया , जाश में नारे लगा रहे थे । पुलिस ने लाठियाँ भाजना आरंभ कर दिया , इसके कारण आंदोलनकारी बिखरने लगे । इस दुष्कृत्य के विरूद्ध एक महिला साराबाई ने पुलिस को प्रताड़ित किया और लोगों को भागने से रोका । लोगों ने त्थर मारने शुरू कर दिए , इससे घबड़ाकर पुलिस ने गोली चलानी शुरू । । पहली गोली गौराबाई को लगी और वह गिर गयी । एक महिला पर लाने के लिए एक युवक मंसाराम जसाटी ने पुलिस को फटकारा , उसे मार दी गई । इस प्रकार से " भारत छोड़ो आंदोलन " के अंतर्गत ग्राम के दो लोगों ने शहादत दी । एक गौराबाई और दूसरे मंसाराम या गाराबाई की आय उस समय 45 वर्ष थी । पातीराम उसके पति इ की शहादत , उनके लिए एक वीरांगना की शहादत थी । भी गोली मार दी गई । चीचली ग्राम के दो लोग जसाटी थे । गौराबाई की आ थे । गौराबाई की शहादत थी।

6- कु . प्रभावती (k.Prabhavati) 
प्रभावती एक प्रभावशाली डाक्टर थीं , सौभाग्य से उनके पिता भी डाक्टर थे । अपने मरीजों से क्रांति गाथाएँ सुनते - सुनते उसके हृदय में भी क्रांति ज्वाला भड़का उठी । " भारत छोड़ो आन्दोलन " के समय स्वयं उसमें कूद पड़ी । जूलस और नारे लगाने से भी आगे बढ़कर वह तोड़ - फोड़ करने लगी । इसी कारण से उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया । अनेक प्रकार से यातानाएँ दी गईं , बीमार पड़ने पर उपचार की कोई व्यवस्था नहीं थी । जब उनके बचने की आशा बिल्कुल क्षीण हो गई , तभी उन्हें जेल से मुक्त किया गया । जेल से आने के बाद शीघ्र ही उनकी मृत्यु हो गई ।

7- फुलेश्वरी (Fuleswari) 
एक 12 वर्ष की बालिका जिसका नाम फुलेश्वरी था । वह _ _ ' ढोकाईजुली ' गाँव में एक जुलुस का नेतृत्व कर रही थी । तेजपुर ( असम ) से 16 मील दूर ' ढोकाई जुली ' गाँव था । जुलूस थाने पर तिरंगा फहराने का प्रयास कर रहा था । बिना किसी अवरोध के तिरंगा फहराने के लिए थाने वालों से अनुरोध किया किन्त थाने में तैनात पुलिस बल इसके लिए तैयार न हुआ । जोर - जबरदस्ती करने पर पलिस ने गोली चला दी । वह 12 वर्ष की बालिका , जिसके हाथ में तिरंगा था . गोली लगने से शहीद हो गई । उसके बाद भी पुलिस गोली चलाती रही जिसमें बीस लोग शहीद हो गए ।

8- रुक्मिणी बाई (Rukmini bay) 
रुक्मिणी बाई का जन्म रायपुर ( म . प्र . ) जिले के ' तमोरा ' ग्राम में हुआ था । बिझवार काशीवाड़ा के श्री महाराजी क्षेत्रपाल से उनका विवाह हुआ था । यद्यपि वह एक महिला थी किन्तु पुरुषोचित गुण उनमें झलकते थे और वह भी क्रांतिकारी के रूप में । तोड़ - फोड़ के काम में भी पुरुषों के साथ मिलकर खूब हिस्सा लेती थी । पुलिस उससे परेशान हो उठी और बड़ी मुश्किल से उसे गिरफ्तार करने में सफल हुई । मुकदमा चला , छह महीने का कारावास का दंड मिला और कारावास में ही उनकी मृत्यु हो गई ।

9- श्रीमती रेणुका सेन (Shrimati Renuka Sen) 
श्रीमती रेणुका सेन ने प्रसिद्ध महिला क्रांतिकारी श्रीमती लीला नाग के बालिका विद्यालय से मैट्रिक पास करने के बाद बी . ए . पास किया और कलकत्ता जाने के बाद एम . ए . ( अर्थशास्त्र ) की स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की । क्रांतिकारी विचारों से पूर्णतया ओत - प्रोत थीं । ' डलहौजी स्क्वायर बम कांड ' में उन्हें पहली बार गिरफ्तार किया गया और एक महीने की सजा हुई । प्रेसीडेंसी जेल में सजा काटकर वे मुक्त हुई । इसके बाद श्रीमती लीला नाग के साथ 20 दिसंबर 1931 को पुनः गिरफ्तार की गई किन्तु उसी समय अर्थात् 1931 में ही उनको छोड़ दिया गया ।

वहाँ से छूटने के बाद उन्होंने कहा---
" मुझे इस बात का अत्याधिक खेद है कि मैं पूरा समय दीदी लीला नाग के साथ न रह सकी । जेल में मेरा अनुभव था कि मैं विश्वविद्यालय में उनसे पढ़ रही हूँ और हाईस्कूल में पढ़ते हुए मैं उतना नहीं सीख पाई जितना इस अल्प समय में अपनी दीदी के सान्निध्य में रहकर सीखा है ।

10- श्रीमती गुरुदयाल कौर (Shrimati Gurudayal kaur) 
बर्मा में आजाद हिन्द फौज और रानी झांसी रेजीमेंट दोनों अपना पड़ाव डाले हुए थे , उसी समय ब्रिटेन के बम वर्षक विमानों ने भारी गोलाबारी की । श्रीमती गुरदयाल कौर सन 1942 में रानी झांसी रेजीमेंट में भरती हुई थीं और फौज के जीवन के साथ समरस हो गयी थीं । कठिनाइयाँ भी सहज लगती थीं । इम्फाल में जीतने के बाद अंग्रेजी सेना के कदम बर्मा की ओर बढ़ चले थे और ब्रिटिश सेना के बमवर्षक नागरिक ठिकानों पर भी बम गिरा रहे थे । रानी झांसी रेजीमेंट की महिला सैनिक नागरिकों को बचाने में तत्पर थीं । उसी में गुरुदयाल कौर जख्मी हो गई और अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई ।

11- कनकलता बरुआ 
असम के लोग , अगस्त क्रांति में पुलिस और फौज द्वारा अत्याचार के कारण काफी रुष्ट थे और फिर उनके द्वारा खुलकर सत्याग्रह आंदोलन ने क्रांति का रूप धारण कर लिया । असम के ' गोपुर ' गाँव के थाने पर तिरंगा लहराने की योजना बनी । जुलूस में सबसे आगे कनक लता बरुआ , जिसकी आयु मात्र 14 वर्ष थी , तिरंगा झंडा लेकर चल रही थी । थानेदार अपने सिपाहियों के साथ कनक लता को रोकने के लिए आगे आया । उसने पुलिस को संबोधित करते हुए कहा कि " आप लोग तो हमारे भाई हैं । हमें क्यों रोकते हैं - आप भी हम लोगों में सम्मिलित हो जाएँ और हम सब साथ मिलकर झंडा फहरायेंगे । - थानेदार ने सबको अन्दर आने से रोक दिया तब कनकलता ने कड़ककर कहा कि " थाना तो जनता की संपत्ति है । जनता की संपत्ति के रक्षक यदि जनता का कहना नहीं मानेगी तो जनता उन्हें हटा देगी और अपनी संपत्ति अपने अधिकार में ले लेगी । " इतना कहकर वह थाने में अन्दर घुसने लगी । थानेदार ने तुरंत गोली चला दी , गोली कनकलता बरुआ को लगी और वह वहीं शहीद हो गई । एक नौजवान मुकुंद काबता ने उसके हाथ से झंडा लेकर उसे फहराने के लिए बढ़ा , उसे भी गोली लगी और वह भी धराशायी हो गया । जनता का दल बढ़ता रहा गोली चलती रही - लोग गिरते रहे । अंततोगत्वा थाने पर झंडा फहर ही गया और इस तरह कनकलता बरुआ की शहादत ने लोगों में जोश भर दिया ।

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अन्य सम्बन्धित लेख साहित्य----

0 comments: