Saturday 11 April 2020

महात्मा बुद्ध का जीवन परिचय एवं चार सत्य तथा अष्टांग मार्गों का विस्तृत वर्णन, भेद निरूपण (महात्मा बुद्ध जयंती)

महात्मा बुद्ध का जीवन परिचय एवं चार सत्य तथा अष्टांग मार्गों का विस्तृत वर्णन, भेद निरूपण

(महात्मा बुद्ध जयंती)

Introduction to the life of Mahatma Buddha and detailed description of the four Truths and Ashtanga paths, making a distinction 

(Mahatma Buddha Jayanti)
Mahatmabudh Jayanti 

महात्मा गौतम बुद्ध के उपदेश Gautam Buddha Quotes अनुभव के आग में तप कर सामने आए हैं। इसीलिए वे किसी खज़ाने से कम नहीं। गौतम बुद्ध विचार , Buddha Thoughts in Hindi आज भी बेहद प्रासंगिक हैं। अगर हम महात्मा बुद्ध के उपदेश , Gautam Buddha Updesh in Hindi , बुद्ध के विचार , Gautam Buddha Suvichar in Hindi को पढ़कर उन्हें अपने जीवन में अपनाएं तो अपना जीवन और सफलता को पाने में सहजता बनी रहेगी। साथ ही हम बुद्धा कोट्स , Mahatma Budh ki Shiksha in Hindi , बुद्ध के उपदेश , Bhagwan Buddha ke Vichar के द्वारा हम दूसरों का भी कल्याण कर सकते हैं। तो फिर देर किस बात की, आप भी गौतम बुद्ध के उपदेश Gautam Buddha Quotes in Hindi को पढ़ें और इन्हें अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करें।

महात्मा बुद्ध का जीवन परिचय--
Introduction to the life of Mahatma Buddha--

महात्मा बुद्ध जिन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसारही नही अपितु भारत माता के गौरव को भी बढाया है।
आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व की बात है । भारत धर्म के नाम पर कर्मकाण्ड के गुंजलकों में उलझ गया थ । चारों ओर फैली हिंसा , मिथ्याचार तथा कुरीतियों एवं कुप्रथाओं के कारण सामाजिक जीवन जर्जर हो गया था । नैतिक मूल्यों का निरन्तर ह्वास हो रहा था एवं आसुरी शक्तियाँ , धर्म , राजनीति , शिक्षा , समाज आदि सभी क्षेत्रों में हावी होती जा रही थीं । ऐसे समय करूण , दया और आत्मज्ञान की ज्योति जगाने वाल कपिलवस्तु ने लुम्बिनी कानन में , माघ पूर्णिमा के पावन दिन ईसा से 623 वर्ष पूर्व गौतमबुद्ध का जन्म हुआ । इनके पिता थे , लिच्छवी वंश में उत्पन्न राजा शुद्धोदन एवं माता का नाम महामाया था ।

सिद्धार्थ , इनका बचपन का नाम था । ये प्रारंभ से ही अत्यन्त सरल , दयालु तथा वैरागी प्रकृति के थे । 20 वर्ष की अवस्था में इनका विवाह यशोधरा से हुआ तथा उनको राहुल नामक पुत्र की प्राप्ति हुई ।

एक बार नगर भ्रमण करते समय इन्होंने एक वृद्ध , एक रोगी और एक मृतक की शवयात्रा देखी । यहीं से इनके मन में यह भाव उत्पन्न हुआ कि संसार क्षणभंगुर है और यहाँ दु : ख की प्रधानता है ।
अत : 28 वर्ष की अवस्था में एक दिन शाश्वत सत्य को खोज में गृहत्याग कर इन्होंने वन की ओर प्रस्थान किया । 6 वर्षों तक ये गहन जंगलों में जाकर तपस्या करते रहे । अन्त में बोध गया के पास अश्वत्थ अर्थात पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यानस्थ हो गए । 49 दिनों तक ध्यानस्थ रहने के बाद , इन्हें बुधत्व की प्राप्ति हुई । तब से ये गौतम बुद्ध कहलाने लगे । बोध गया में बुधत्व की प्राप्ति के बाद ये सारनाथ आए । यहाँ उन्होंने अपने पाँच साथियों को प्रथम उपदेश देकर धर्मचक्र का प्रवर्तन किया । उनके द्वारा प्रवर्तित धर्म चार आय सत्य एवं आठ सम्यक् मागों पर आधारित है ।

महात्मा बुद्ध के द्वारा बताए गये चार आर्य सत्य इस प्रकार है---
Four Satya

1- दु:ख
2- दु:ख समुदाय
3- दु:ख निराध
4- दु:ख निरोध गामिनी प्रतिपद।

1- दुःख--
मनुष्य दुख की आसक्ति खुद उत्पन्न करता है सांसारिक मोह में फसकर वह बेवजह के दुख को उजागर करता है जबकि वह असली दुख नही है।

2- दुःख समुदाय
अपार मोह मे फसकर सांसारिक भोगों पर आसक्ति होने से दुखों का समुदाय बन जाता है जिनसे निकलना मुश्किल हो जाता है।

3- दुख निराध
दुख का कोई आधार नही है,वह एक ऐसा भाव है जो प्रेम से जुडा हुआ है,जब हम अत्यधिक प्रेम किसी से करते है तो दुख का आधार वही प्रेम बन जाता है।

4- दुख निरोध गामिनी प्रतिपद
दुख को जीवन का सार भी बताया गया है, अगर जीवन मे दुख नही है तो जीवन मे सुख की अनुभूति भी नही हो सकती वह जीवन होते हुए भी नश्वर है।

निष्कर्ष---
मनुष्य चाहता है कि उसके जीवन में सुख ही सुख आए दुख की वह कल्पना भी नही करना चाहता, जबकि सुख और दुख का तो चोली दामन का साथ है दोनो का आना स्वाभाविक हैं, और यही सत्य है।

महात्मा बुद्ध के बताये गये प्रेरणास्रोत व जीवन में सफलताओं को दिलाने वाले महत्वपूर्ण अष्टांग मार्ग हैं--
Astang marg

1- सम्यक् दृष्टि
2- सम्यक् संकल्प
3- सम्यक वचन
4- सम्यक् कर्मान्त
5- सम्यक् आजीव
6- सम्यक् व्यायाम
7- सम्यक् स्मृति
8- सम्यक् समाधि

1- सम्यक् दृष्टि
महात्मा बुद्ध ने उपदेश दिया है कि मनुष्य की सोच व दृष्टि (नजर) एक जैसी ही ही होनी चाहिए अर्थात सभी प्राणियों को एक नजर से देखना और उनके अन्दर विद्यमान ईश्वर श्वरूप आत्मा को समरूप से देखना और उसकी पूजा करना।

2- सम्यक् संकल्प--
बुद्ध के अनुसार मनुष्य को सामर्थ्य अनुसार संकल्प शक्ति का विकास करना आवश्यक है अर्थात किसी भी कर्म को करने की निशचितता ,प्रमाण ही उसमे सफला दिला सकता है, और वह जीवन में एक ही हो।

3- सम्यक् वचन--
महात्मा बुद्ध ने वचनों पर विशेष बल दिया है ,क्योंकि वचन ही व्यक्ति का निर्माण भी करता है और समाज का भी सभी प्राणियों के प्रति हमारे वचन सौम्य तथा मिठास पूर्ण होना चाहिए तभी जीवन सार्थक हो सकेगा।

4- सम्यक् कर्मान्त
कर्म मनुष्य के लिए महत्वपूर्ण है,कर्मों से ही उसकी ख्याति तथा प्रसिद्धि उत्पन्न होती है, लेकिन कर्मों मे भी निश्छलता, निश्कपटता वाली होनी चाहिए,  और मानवता को दृष्टिगत रखते हुए ही कार्य को पूर्ण करना चाहिए।

5- सम्यक् आजीव
बुद्ध के अनुसार  सम्पूर्ण जीवन मे एक ही भाव होना चाहिए सबको जीने का अधिकार है और अधिकारों का हनन करना ठीक नही है,सभी जीवों मे सम्भाव होना चाहिए और उन्ही के उत्थान के लिए कार्य करना चाहिए।

6- सम्यक् व्यायाम
महात्मा बुद्ध ने व्यायाम को महत्व दिया है,क्योंकि उनका मानना है कि स्वस्थ जीवन में ही स्वस्थ विचारों और भावनाओं का विकास होता है। जब स्वस्थ रहोगे तभी सृष्टि का विकास सम्भव है।

7- सम्यक् स्मृति
मनुष्य की सोच, नजरिया सभी के प्रति एक सा होयह नही कि खुद के ही स्वार्थ के लिए नियोजन करना ,भाव एक ही रखो तभी अस्तित्व स्थापित हो सकेगा।

8- सम्यक् समाधि
सृष्टि के निर्माण के लिए समाधि का होना आवश्यक है जिस प्रकार मनुष्य के जीवन के लिए अन्न-धन की जरूरत होती है,उसी प्रकार सृष्टि के लिए ध्यान और एकाग्रता, समाधि की जरूरत होती है।

निष्कर्ष-- 
महात्मा बुद्ध जी समस्त संसार को एक ही सूत्र में पिरोये रखा,उनका विचार था कि जो संकल्प हम एक बार अपने मन मे कर लेते है उसे अवश्य पूरा करने के लिए प्रेरित रहना। और सबसे अहम बात यह कही कि जिसा हम अपने लिए सोचते है या चाहते है, वैसा ही भाव दूसरों के लिए भी बनाने की कोशिश करना।
यही मानवता भी है,और मानव धर्मं भी है

गौतम बुद्ध ने तप और भोग को छोड़कर मध्यम मार्ग को सबसे उत्तम बतलाया है । जाति - पाँति , ऊँच - नीच की भावना , तथा हिंसा को त्यागकर समरसता का प्रचार किया । उन्होंने पाश-नाश , पुण्य - संचय तथा चित्त - शुद्धि पर विशेष बल दिया । गौतम बुद्ध के कार्य की महत्ता को दृष्टिगत रखते हुए इन्हें दशावतारों में स्थान दिया गया तब से ये भगवान् बुद्ध कहलाने लगे ।

भगवान् बुद्ध के उपदेशों को ' त्रिपिटक ' ' में संकलित किया गया है ।
यह ग्रन्थ तीन भागों में विभाजित है-- 
1- सूत्र
2- विनय
3- अभिधम्म

बुद्ध के विचारों से लोग इतने प्रभावित हुए कि हजारों व्यक्ति इनके शिष्य बन गए । इनमें अनेक राजा महाराजा भी थे । धीरे - धीरे बौद्ध धर्म का प्रसार , चीन , जापान , लंका , इंडोनेशिया आदि देश - देशान्तरों तक हो गया । सम्पूर्ण संसार ने शान्ति के लिए बौद्ध धर्म में दीक्षा ली । बुद्ध ने लोक भाषा में उपदेश दिए ताकि जनसामान्य भी उन्हें समझ सकें । बुद्ध न धर्म के व्यावहारिक रूप को जनसाधारण के लिए सुलभ बनाया ।

गौतम बुद्ध ने राजगिर में तपस्या की और गया में ज्ञान प्राप्त किया था । ये दोनों स्थान मगध ( वर्तमान विहार राज्य ) में है । इसलिए बौद्ध धर्म को प्रथम राज्याश्रय मगध में ही मिला । बुद्ध के समय में राजा बिम्बसार और उनके निर्वाण के दो सौ वर्ष बाद मगध सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर , उसके प्रचार - प्रसार में सहायता की । विश्व में बौद्ध धर्म को अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्रदान करवाने में सम्राट अशोक का ही योगदान सर्वाधिक था ।

बौद्ध धर्म मुख्य रूप से आचार प्रधान धर्म है । बुद्ध जानते थे कि मनुष्य का अच्छा या बुरा होना , सुख या दु : ख पाना , उसके कर्म और चरित्र पर निर्भर करता है । मनुष्य का ध्यान इस बात पर रहना चाहिए कि वह करता क्या है , इस बात पर नहीं कि वह जानता क्या है । उन्होंने कर्म और ज्ञान में कर्म को ही प्रधानता दी ।

श्री रामधारी सिंह के विचार में गौतम बुद्ध हिन्दुत्व की परम्परा के शोधक थे , संहारक नहीं । वे अत्यन्त धैर्यवान , सहनशील तथा उदार थे । उन्होंने घृणा के बदले प्रेम करने का उपदेश दिया ।
 उन्होंने कहा था -
" अगर कोई व्यक्ति अज्ञानता के कारण मेरी निन्दा करता है तो भी मैं उसे अपने प्रेम की छाया अवश्य दूँगा और वह जितनी ही बुराई करेगा ,

मैं उतनी ही उसकी भलाई करता जाऊँगा । " उनमें अपनी बात मनवाने का दुराग्रह बिल्कुल नहीं था । अपने शिष्यों से वे कहते थे - मेरी बातों को सिर्फ इसलिए मत मानो कि वे मेरे मुख से निकली हैं बल्कि इसलिए कि उन्हें तुम्हारी बुद्धि उचित समझती है ।

 डॉ . राधाकृष्णन के शब्दों में --
 " वे मानवतावाद के प्राचीनतम प्रवर्तक थे । 

' मैथ्यू आर्नल्ड ने उन्हे--
 एशिया की ज्योति ' कहा है । 

मिस हार्नर नाम की लेखिका भगवान् बुद्ध के कृतित्व की समीक्षा करते हुए लिखती हैं - संसार के सभी धार्मिक नेताओं में से केवल बुद्ध देव ही ऐसे हैं जिन्होंने अत्यन्त प्राचीन काल में भी बुद्धिवाद पर मनुष्य की आस्था जमाने का प्रयास किया , मन को भ्रमित करने वाली दार्शनिक कल्पनाओं को व्यर्थ ठहराया और ईश्वरहीन धर्म की स्थापना करके मनुष्य को यह संदेश दिया कि जो बातें बुद्धि में नहीं आतीं , उन्हें मानने से इन्कार करने पर भी हम धार्मिक बने रह सकते हैं ।

अस्सी वर्ष की अवस्था में गौतम बुद्ध ने अपने शरीर का परित्याग कर निर्वाण को प्राप्त किया । 

उनकी सबसे बड़ी देन यह है कि उन्होंने अहिंसा को परम धर्म माना और कर्मकाण्ड के स्थान पर सदाचरण को अधिक महत्व दिया ।

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