Sunday 26 April 2020

जानिए ॐ मंत्र का रहस्य, अर्थ व महत्व तथा ॐ शब्द लाभ व विस्तृत वर्णनKnow the secret, meaning Om

जानिए ॐ मंत्र का रहस्य, अर्थ व महत्व तथा ॐ शब्द लाभ व विस्तृत वर्णन
Know the secret, meaning Om and importance of  the mantra and gain and detailed description of the words
Om ka mahtwa

" ॐ " ईश्वर का बोध कराने वाला मुख्य जाद है । ब्रह्मा ने ओंकार के अवयव अकार , उकार तथा मकार को तीन वेदों से दुहा , अर्थात यह ॐ तीनों वेदों का सार है ।
आपको मेरे इस ब्लॉग पर Motivational QuotesBest Shayari, WhatsApp Status in Hindi के साथ-साथ और भी कई प्रकार के Hindi Quotes ,संस्कृत सुभाषितानीसफलता के सूत्रगायत्री मंत्र का अर्थ आदि शेयर कर रहा हूँ । जो आपको जीवन जीने, समझने और Life में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्व पूर्ण भूमिका निभाते है,आध्यात्म ज्ञान से सम्बंधित गरूडपुराण के श्लोक,हनुमान चालीसा का अर्थ ,ॐध्वनि, आदि कई gyansadhna.com 

इसीलिए इसे मांगलिक कहा गया है ।
" अ " से सृष्टि की उत्पत्ति ,
" उ " से जगत की स्थिति या विस्तार,
" म " से सृष्टि का अंत या प्रलय का बोध होता है ।

यही तीनों ऐसी विशेषताएँ हैं ,जिनसे हम परमात्मा के अस्तित्व और उसकी शक्ति का अनुमान और अनुभव करते हैं ।

ॐ मंत्र का महत्व
Importance of Om mantra
ओम (ॐ) के बिना किसी घर की पूजा पूरी नहीं होती,  कहते हैं बिना ओम (ॐ)के बिना सृष्टि की कल्पना भी नहीं हो सकती है, यह अविनाशी तथा लोक कल्याण करने वाला महा मंत्र इतना प्रभावशाली है कि विदेशी भी इस ॐ शब्द की शक्ति से अचंभित है। माना जाता है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्डसे हमेशा  ॐ की ध्वनि निकलती है. आज आपको बताउंगी ॐ शब्द का मतलब क्या है. इससे निकलने वाली ध्वनि कैसे दिला सकती है आपके रोगों से छुटकारा. ॐ शब्द के उच्चारण का सही तरीका और सही समय क्या है।

ॐकार की महिमा सभी भारतीय ग्रंथों एवं पंथ - सम्प्रदायों में है । प्रणव का दूसरा नाम ॐकार है । “ अवतीति ओम " इस व्युत्पत्ति के अनुसार सर्वरक्षक परमात्मा का नाम ऊँ है । सम्पूर्ण वेद एक स्वर से ओंकार की महिमा गाते हैं ।


ओ३म् के उच्चारण के शारीरिक तथा मानसिक लाभ (फायदे)
Physical and mental benefits (benefits) of the pronunciation of OM
अगर बात करें ॐ शब्द के लाभों की तो कहना मुश्किल क्योंकि इस परम और श्रेष्ठ शब्द ध्वनि के अनगिनत फायदे है या ए कहे कि यह मंत्र सभी रोगों की दवा और सभी मंत्रों की शक्ति है, फिर भी इसके कुछ लाभों के बारे में आपको बता रहे है--
शारीरिक लाभ
१. अनेक बार ओ३म् का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनावरहित हो जाता है, और मन को शान्ति मिलती है।

२- यह हृदय और खून के प्रवाह को संतुलित रखता है, और रोगों से भी लडता है।

३- घबराहट या मन मे शंका उत्पन्न होना या जी मिचलाने मे ओ३म् के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं। आजमा के देखिए।

४- इससे पाचन शक्ति तेज होती है, और अपच, गैस ,एसिडिटी,  बदहजमी जैसी बीमारियों से निजात मिलती है।

5- डर लगना, मृत्यु का भय सताना, नींद न आना,आदि समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है,रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चित नींद आएगी।

मानसिक लाभ
१. जीवन साकार बनता है , सोच मे निखार आता है, जीने की शक्ति और दुनिया की चुनौतियों का सामना करने का अपूर्व साहस मिलता है।

२- आध्यात्म से मन लगा रहता है, ज्ञान का प्रभाव अधिक होता है।

3- आपके उत्तम व्यवहार से दूसरों के साथ सम्बन्ध उत्तम होते हैं, शत्रु भी मित्र हो जाते हैं, आपको कोई वैरी नही सभी आपसे प्रेम करने लगते है।

४- इसे करने वाला व्यक्ति जोश के साथ जीवन बिताता है और मृत्यु को भी ईश्वर की व्यवस्था समझ कर हँस कर स्वीकार करता है.

५- आत्महत्या जैसे कायरता के विचार आस पास भी नहीं फटकते. बल्कि जो आत्महत्या करना चाहते हैं, वे एक बार ओ३म् के उच्चारण का अभ्यास ४ दिन तक कर लें. उसके बाद खुद निर्णय कर लें कि जीवन जीने के लिए है।

ॐ का विस्तृत वर्णन व विश्लेषण
Detailed description and analysis

कठोपनिषद में ओंकार की महिमा का वर्णन करते हुए धर्मराज नचिकेता से कहते हैं ---

सर्वे वेदा यत्पदमामनन्ति ,
तपासि सर्वाणि च यद्वदन्ति ,
यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्य चरन्ति ,
तत्ते पदसंग्रहेण ब्रवीम्योमित्येतत् । ।

अर्थात- हे नचिकेता , सम्पूर्ण वेद जिस पद को कहते हैं , सम्पर्ण तप के फल का जिसकी उपासना के फल में अन्तर्भाव है , जिसकी इच्छा से ब्रह्मचारी ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं , वह यह ऊँ है । यही कारण है कि सभी कर्मों के आरंभ में इसका प्रयोग बतलाया गया है । इस ऊँकार के ऋषि ब्रह्मा और गायत्री छन्द हैं ।

गीता में कहा गया है--

"ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन् ।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमांगतिम् ।।
अर्थात--
जो पुरुष ॐ ऐसे एक अक्षर रूप ब्रह्म को उच्चारण करता हुआ और उसके अर्थस्वरूप परमात्मा का चिन्तन करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है , वह पुरुष परमगति को प्राप्त होता है । ऊँ अर्थात प्रणव की संरचना अ + उ + म - तीन वर्णो से हुई है । प्रणव का लेखन ऊर्ध्वशुण्ड , मध्य शुण्ड और अधः शुण्ड के रूप में चन्द्रकला एवं बिंदु के योग से पूर्ण होता है ।

ये तीन शुण्ड रूप प्रमुख भाग ही सोम , सूर्य और अग्निरूपी तीन पास ऊँ में विराजमान हैं --

"सोम सूर्याग्नि रूपास्तु तिस्त्रो मात्रा प्रतिष्ठिताः ।
प्रणवे स्थूल रूपेण याभिर्विश्वं व्यवस्थितम् । ।

तंत्रशास्त्र के अनुसार --
सोम की एक सौ छत्तीस , 
सूर्य की एक सौ सोलह ,
अग्नि की एक सौ आठ मात्राएँ होती हैं । 
इनका योग तीन सौ साठ है । 

ये एक वर्ष के दिवसों का बोध कराती हैं । ओंकार को सारे मंत्रों का सेतु बताया गया है ( मत्राणां प्रणवः सतु ) इसलिए मनोवाञ्छित फल की प्राप्ति के लिए प्रत्येक मंत्र का ओ३म् के साथ उच्चारण किया जाता है ।

सिक्ख सम्प्रदाय में भी ऊँकार को ईश्वर का प्रतीक माना गया है ।

गुरु नानक देव ने सिक्ख धर्म का जो मूल मंत्र बनाया था उसमें वे कहते हैं--
" एक ओंकार , सतिनामु करता पुरखु निरभउ , निरवैरु , अकाल मूरति अजूनी सैभं , गुर प्रसादि । ।

इसका अर्थ है - वह परमेश्वर एक है जिसका सत्य नाम ओंकार है अथवा ओंकार ही सतनाम ईश्वर का है । वह सृष्टिकर्ता तीनों कालों - भूत , भविष्य , वर्तमान में है । अपने आप होने वाला , भय रहित और बैर रहित है । जो अजन्मा और अमर है , उसकी उपलब्धि गुरु की कृपा से ही संभव है ।
ऊँ सच्चिदानन्द घन परमात्मा के स्वरूप को व्यक्त करने के साथ नाद ब्रह्म का भी सुचक है । भारतीय मनीषियों की मान्यता के अनुसार समस्त सृष्टि इसी नाद से ही संचालित हो रही है । प्रसिद्ध वैज्ञानिक आईस्टीन ने भी इसे एक संभावना के रूप में स्वीकार किया है कि इस विराट ब्रह्माण्ड का परिचालन ध्वनि के आधार पर हो रहा है ।

ऊँ की ध्वनि का योगशास्त्र में भी बड़ा महत्व है । देह एवं मन की सुषुप्त शक्तियों को जागृत करने तथा षड्चक्रों के भेदन के लिये हठयोग में ऊँकार की महिमा का प्रतिपादन किया गया है । योगशास्त्र के प्रणेता पतंजलि ने इसको ईश्वर का बोधक शब्द माना है । यही कारण है कि प्रत्येक मंत्र के आरंभ में ऊँ की ध्वनि ही उच्चरित होती है । योगी लोग ऊँकार का उच्चारण दीर्घतम घण्टा ध्वनि के समान बहुत लम्बा या अत्यन्त प्लत स्वर से करते हैं उसका नाम उदगीथ है । प्लुत के सूचनार्थ ही इसके बीच ' ३ ' का अंक लिखा जाता है ।

ॐ पूर्ण मदः पूर्णमिदं पूर्णात पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय , पूर्ण मेवावशिष्यते । । 
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अन्य सम्बन्धित लेख साहित्य---

0 comments: