Wednesday 29 April 2020

गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन परिचय व व्यक्तित्व चित्रण एवं रामचरित मानस के प्रमुख अंग, depiction of Goswami Tulsidas ji

गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन परिचय व व्यक्तित्व चित्रण एवं रामचरित मानस के प्रमुख अंग
Life introduction and personality depiction of Goswami Tulsidas ji and major parts of Ramcharit Manas
Tulsidas

इस ब्लॉग पर हिन्दी व्याकरण रस,और सन्धि प्रकरण,  तथा हिन्दी अलंकारMotivational Quotes, Best Shayari, WhatsApp Status in Hindi के साथ-साथ और भी कई प्रकार के Hindi Quotes ,संस्कृत सुभाषितानीसफलता के सूत्र, गायत्री मंत्र का अर्थ आदि gyansadhna.com शेयर कर रहा हूँ ।

तुलसीदास
रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म 1554 विक्रम संवत् सावन शुक्ला सप्तमी के दिन बाँदा जिले के राजापुर गांव में हुआ था । कुछ विद्वान इनकी जन्मभूमि उत्तर प्रदेश के सौरों नामक ग्राम सूकर खेत को मानते हैं । उनके पिता श्री आत्माराम दुबे और माता हुलसी थीं ।

मूल नक्षत्र में जन्म लेने के कारण शैशववस्था में ही उनका परित्याग कर दिया गया था । पर " जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय " की कहावत उन पर चरितार्थ हुई । किसी भिखारिन महिला पार्वती ने उनका पालन - पोषण किया , गुरु नरहरि ने शिक्षा - दीक्षा की व्यवस्था की और अनेक स्थानों पर देशाटन के माध्यम से ज्ञानार्जन करते हुए वे महाकवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए । यहाँ तक कि साहित्यकारों ने कहा - कविता करके तुलसी न लसे , कविता लसि पा तुलसी की कला , अर्थात तुलसी को पाकर कविता धन्य हो गयी ।

तुलसीदास केवल महाकवि या सन्त ही नहीं बल्कि एक क्रान्तिकारी यग - द्रष्टा भी के जीवन काल में दिल्ली पर मुगलों की सत्ता प्रतिष्ठित थी , हिन्दु राजा व शन्य हो गए थे । ऊँचे घराने के लोग विलासिता में डूबे थे तथा नीचे स्तर के अभावों से संत्रस्त होकर आत्मगौरव खो रहे थे । पंडित और ज्ञानी आपस में ही व्यर्थ दावादों में उलझे हुए थे ।

ऐसे घोर निराशा के कालखण्ड में गोस्वामी जी ने श्रीराम जीवन को जनभाषा में प्रतिष्ठित कर समाज को एक नई दिशा दी । उन्होंने भारतीयों निदरता पैदा करने के लिए स्थान - स्थान पर हनुमान मन्दिरों और अखाड़ों की स्थापना की तथा करवाई ।

जगह - जगह पर रामायण वाचन एवं रामलीलायें आरम्भ की जिसमें ज के सभी वर्गों के पात्र अपना - अपना अभिनय करते । उन्होंने अपने काव्य के माध्यम से पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं का मंत्र देकर देश के लोगों में स्वाधीनता की बलक उत्पन्न की । राजा - महाराजाओं के आश्रय में रहने वाले तथा उनका स्तुतिगान करने वाले कवियों पर व्यंग्य करते हुए लिखा--

" कीन्हेसि प्राकृत नर गुन गाना ,
सिर धुनि गिरा लागि पछताना ।।"

इसी तरह तत्कालीन शासकों को फटकारते हुए उन्होंने लिखा--
"जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी ।
सो नृप अवसि नरक अधिकारी ।

" सियाराम मय सब जग जानी "

का सन्देश देते हुए उन्होंने रुढ़िवादियों के तीव्र विरोध के बावजूद भी पूरे समाज को एक सूत्र एवं संगठन में गूंथने का प्रयत्न किया । अब्दुल रहीम खानाखाना इनके परम मित्र थे । उन्होंने इनको अकबर के दरबार में आने का तथा जागीर दिलाने का प्रस्ताव रखा तो इन्होंने इसे ठुकराते हुए कहा ---
" हम चाकर रघुवीर के , पटो लिखो दरबार ,
तुलसी अब क्या होयिंगे , नर के मनसबदार "

समन्वयवादिता उनकी महत्वपूर्ण विशेषता थी । श्रीराम के मर्यादा पुरुषोत्तम स्वरूप का आदर्श स्थापित कर उन्होंने लोक व्यवहार की मर्यादाओं से सामान्य जनता को परिचित करवाया । उन्होंने समाज के भिन्न - भिन्न पंथों यथा - निर्गुण - संगुण , शैव - वैष्णव , शाक्त आदि में समन्वय स्थापित कर , समाज में एकता की स्थापना की ।

उन्होंने अपने 126 वर्ष के जीवनकाल में 12 महत्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की ।

उनमें प्रमुख इस प्रकार हैं --
1- श्री रामचरितमानस
2- विनय पत्रिका
3- दोहावली
4- कवितावली
5- रामलला नहछू
6- बरवै रामायण
7- रामाज्ञाप्रश्न
8- कृष्णगीतावली
9- जानकी मंगल
10- पार्वती मंगल
11- वैराग्य संदीपनी
12- गीतावली

गोस्वामी तुलसीदास संघर्ष एवं विद्रोह के कवि थे । अपने समर्पित जीवन से उन्होंने ज्ञान की धारा को बहाया । उसमें आज भी करोड़ों भातरवासी ही नहीं विदेशी भी , अवगाहन कर अपना जीवन धन्य करते रहे हैं ।

युग प्रवर्तक इस महाकवि ने सम्वत् 1680 में वाराणसी के असीघाट पर श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन इह - लीला समाप्त की ।

कहा भी गया है---
सम्वत सोलह सौ असी ,
असी गंग के तीर ,
सावन कृष्णा तृतीया ,
तुलसी तज्यो सरीर । ।

रहीम ने अपनी श्रद्धांजली देते हुए उनकी महानता पर प्रकाश डाला है - सुरतिय , नरतिय , नाग तिय , सब चाहत अस होए । गोद लिए हुलसी फिरें , तुलसी सो सुत होए । । इनके ग्रन्थ रामचरितमानस को भी सर्व लोक कल्याणकारी बताते हुए कहा है--
 " हिन्दुवान को वेद है तुर्कन प्रगट कुरान । "

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अन्य सम्बन्धित लेख साहित्य--

0 comments: