Monday 27 April 2020

श्रीकृष्ण जी का जीवन परिचय,जीवन चरित्र व प्रेरणादायक विचार,Life introduction, life character and inspirational thoughts of Shri Krishna

श्रीकृष्ण जी का जीवन परिचय,जीवन चरित्र व प्रेरणादायक विचार
Life introduction, life character and inspirational thoughts of Shri Krishna,
Krishna 

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भगवान श्रीकृष्ण हमारी संस्कृति के एक अद्भुत एवं विलक्षण महानायक हैं। जिन्होंने भारत वर्ष को नयी दिशा प्रदान की, एक ऐसा व्यक्तित्व जिसकी तुलना न किसी अवतार से की जा सकती है, ऐसा प्रेम जो अटूट बनकर सदा के लिए धरती पर अमर व अमिट रह गया। कोई और न संसार के किसी महापुरुष से। उनके जीवन की प्रत्येक लीला में, प्रत्येक घटना में एक ऐसा विरोधाभास दीखता है जो साधारणतः समझ में नहीं आता है। यही उनके जीवन चरित की विलक्षणता है और यही उनका विलक्षणः जीवन दर्शन भी है। ज्ञानी-ध्यानी जिन्हें खोजते हुए हार जाते हैं, जो न ब्रह्म में मिलते हैं, न पुराणों में और न वेद की ऋचाओं में, वे मिलते हैं ब्रजभूमि की किसी कुंज-निकुंज में राधारानी के पैरों को दबाते हुए- यह श्रीकृष्ण के चरित्र की विलक्षणता ही तो है कि वे अजन्मा होकर भी पृथ्वी पर जन्म लेते हैं। मृत्युंजय होने पर भी मृत्यु का वरण करते हैं।

श्रीकृष्ण का संक्षिप्त जीवनी
Brief biography of Shri Krishna

देवनागरी में  =  कृष्ण
संस्कृत में   = कृष्णः
संबंध = स्वयं भगवान् , परमात्मन ,ब्राह्मण, विष्णु, राधा कृष्ण
निवासस्थान  = वृंदावन, द्वारका, गोकुल, वैकुंठ
अस्त्र  =  सुदर्शन चक्र
युद्ध  =  कुरुक्षेत्र युद्ध
जीवनसाथी  = राधा ,रुक्मिणी, सत्यभामा, जांबवती, नग्नजित्ती, लक्षणा, कालिंदी, भद्रा
माता-पिता  = देवकी (माँ) और वासुदेव (पिता), यशोदा (पालक मां)
 और नंदा बाबा (पालक पिता)
शास्त्र  =  भागवत पुराण , हरिवंश , विष्णु पुराण, महाभारत ('भगवद् गीता' ), गीत गोविंद
त्यौहार  =  कृष्णा जन्माष्टमी, होली

श्रीकृष्ण का विस्तृत जीवन चरित्र
Detailed Life Character of Shri Krishna

श्रीकृष्ण भारतीय जनमानस को जिस महापुरुप के सर्वांगपूर्ण व्यक्तित्व ने सर्वाधिक प्रभावित किया वह यदुकुलनन्दन श्रीकृष्ण का है ।
महाकवि वेदव्यास ने एक श्लोकी भागवत में श्रीकृष्ण के जीवन का वृतांत कहा है---

"आदौ देवकीदेव गर्भ जननं ,
गोपी गृहे वर्धनम् ।
माया पूतनादि हननं ,
गोवर्धनो धारणं ।
कंसच्छेदन कौरवादि दलनं ,
कुन्ती सुता पालनम् ।
श्रीमदभागवत पुराण कथितं , 
श्रीकृष्ण लीलामृतम् । ।

द्वापर युग के अन्तिम चरण में मथुरा में कंस के नृशंस शासन से ब्रज की जनता अत्यन्त त्रस्त थी । कंस ने अपने ही पिता राजा उग्रसेन को बन्दी बनाकर राज्य सत्ता हस्तगत कर ली थी । उसकी बहिन देवकी का विवाह वसुदेव के साथ हुआ था ।

ज्योतिषियों की भविष्यवाणी के अनुसार देवकी के गर्भ से उत्पन्न आठवें बालक के द्वारा ही कंस का वध होना था । अत : मृत्यु के भय से कंस ने वसुदेव - देवकी दोनों को कारागृह में डाल दिया और उनके सात पुत्रों की हत्या कर दी ।

आठवें पुत्र के रूप में कंस के कारागृह में ही श्रीकृष्ण का जन्म हुआ । बालक श्रीकृष्ण की जीवन रक्षा के लिए वसुदेव ने उन्हें यमुनापार गोकुल ग्राम में राजा नन्द के यहाँ पहुँचा दिया । अत : बालक कृष्ण का लालन - पालन राजा नन्द और उनकी पत्नी यशोदा के द्वारा ब्रज भूमि में हुआ । श्री बलराम उनके बड़े भाई थे ।

होनहार बिरवान के होत चीकने पात की उक्ति बाल कृष्ण पर भी घटित हुई । उनकी विलक्षण बुद्धि और अद्वितीय पराक्रम की गाथाएँ दूर - दूर तक फैलने लगीं । कंस ने जब यह सुना तो वह और अधिक आतंकित होने लगा । उसने पूतना , धेनुकासुर , बकासुर आदि अनेक दुष्टों को भेजकर कृष्ण की हत्या करवानी चाही पर उसके षड्यंत्र सफल न हो सके । कृष्ण ने उन सबको पराजित कर डाला ।

ब्रज के लोग बाढ़ और अतिवृष्टि से बचने के लिए देवराज इन्द्र की पूजा करते थे पर फिर भी यमुना नदी में बाढ़ आने से , धन - जन की भारी क्षति होती थी । अत : श्रीकृष्ण ने ब्रज के सभी ग्वाल बालों को संगठित कर , गोवर्धन पर्वत के समीप बाँध बनाया । इससे यमुना की धारा बदलकर बाढ़ से छुटकारा मिल गया ।

यमुना नदी के पास ही कालीय नामक एक नागवंशी रहता था । वह एक दुष्ट व्यक्ति था जिसने सारे वातावरण को प्रदूषित कर रखा था । श्रीकृष्ण ने उसे पराजित करके उसके अत्याचारों से जन - सामान्य को मुक्ति दिलाई । - ब्रज का सारा दूध - दही बिकने जाया करता था । इससे ग्रामीण बालकों को दूध - दही से वंचित हो जाना पड़ता था । कृष्ण ने बालकों को संगठित कर इस कुप्रथा को बन्द करवाया ।

श्रीकृष्ण के समाज सुधार के कार्यों तथा ग्वाल बालों की संगठन शक्ति से घबरा कर कंस ने फिर एक षड्यंत्र रचा । उसने मथुरा में क्रीड़ा प्रतियोगिता आयोजित कर कृष्ण , बलराम को उसमें अपने शौर्य तथा पराक्रम का प्रदर्शन करने के लिए आमंत्रित किया ।

श्रीकृष्ण , बलराम के मथुरा पहुंचने पर उनकी हत्या करने के लिए उन पर एक पागल हाथी को उकसाकर छुडवाया गया । जब पागल हाथी भी पराजित हो गया तब चाणूर और मुष्टिक नामक खूखार पहलवानों से उनकी कुश्ती करवाई गई । पर ये दोनों पहलवान भी कृष्ण , बलराम के हाथों से मारे गए । जब कंस का षड्यंत्र सफल न हो पाया तब वह स्वंय तलवार लेकर कृष्ण को मारने खड़ा हो गया । पर इसके पूर्व ही श्रीकृष्ण ने सिंहासन से खींचकर , उसको जमीन पर पटका तथा उसका वध कर दिया । मथुरा का राज्य कंस के पिता उग्रसेन को सौंपकर , श्रीकृष्ण ने सम्पूर्ण ब्रज में सुख और शान्ति की स्थापना की । उनकी शिक्षा - दीक्षा उज्जैन के समीप सन्दीपनी ऋषि के गुरुकुल में हुई थी ।

सुदामा उनके बाल सखा थे । इन दिनों हस्तिनापुर मे कौरव , पांडवों के मध्य सत्ता का संघर्ष चल रहा था । धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन ने द्यूत - क्रीड़ा में पांडवों को हराकर उनका राज्य छीन लिया था और उन्हें वनवास में जाने के लिए विवश कर दिया था । पाण्डवों की माता कुन्ती श्रीकृष्ण की बुआ थी । पर श्रीकृष्ण ने पाण्डवों का पक्ष लेकर , कुरुक्षेत्र में हुए महाभारत के युद्ध में उन्हें विजय इसलिए दिलाई कि वे सत्यवादी एवं सदाचारी थे ।

श्रीकृष्ण वीर और पराक्रमी होने के साथ - साथ कुशल कूटनीतिज्ञ भी थे । मगध नरेश जरासंध , शिशुपाल एवं दुर्योधन जैसे दुष्टों की समाप्ति , उन्होंने नीति के द्वार ही करवाई थी । पांडवों को भी वे समय - समय पर मार्गदर्शन प्रदान करते रहते थे । उन्होंने गुजरात में द्वारकापुरी को अपनी राजधानी बनाया था । जरासन्ध द्वारा अपहृत की गई सोलह हजार युवतियों के साथ विवाह कर उन्होंने सामाजिक पतन से उनकी रक्षा की थी । निर्धन , असहाय और सद्मार्ग पर चलने वालों की वे हमेशा रक्षा करते थे । इसलिए उन्हें दीन - बन्धू , दीन दयाल भी कहा जाता है ।

 श्रीकृष्ण द्वारा प्रणीत श्रीमद्भगवद्गीता के आलौकिक जीवन दर्शन से यह सिद्ध होता है कि वे महान दार्शनिक एवं परम ज्ञानी थे । संसार में बाईबल ग्रन्थ को छोड़कर यदि किसी अन्य ग्रन्थ का सभी भाषाओं में अनुवाद हुआ है तो वह गीता ही है । उनका सारा जीवन लोक कल्याण , जनहित , आतताइयों के विनाश एवं सद्धर्म की स्थापना में लगा । इसलिए पाँच हजार वर्ष बाद भी वे सम्पूर्ण भारत में लोकनायक भगवान श्रीकृष्ण के रूप में सुपूजित हैं । उनका आदर्श चरित्र हम सबके लिए अनुकरणीय है ।

 भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को प्रत्येक भारतीय उनका जन्मोत्सव उल्लास पूर्वक मनाता है ।

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