Friday 10 April 2020

महावीर स्वामी जी का व्यक्तित्व जीवन परिचय एवं उनके उपदेश तथा प्रेरणादायक विचार, महावीर जयंती

महावीर स्वामी जी का व्यक्तित्व जीवन परिचय एवं उनके उपदेश तथा प्रेरणादायक विचार
महावीर जयंती 
Mahavir Swamiji's personal life introduction and his sermons and inspirational thoughts
 Mahavir Jayanti
Mahaveer Shwami

महावीर जयंती Mahavir Jayanti
जैन धर्म के तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी अपने धर्मं के अनुसार दुनिया में सत्य, अहिंसा, प्रेम, का प्रचार प्रसार करने के लिए तत्पर रहते थे, इनके जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला पर्व महावीर जयंती के नाम से विश्व विख्यात है। जो कि हर वर्ष Mahavir Jayanti inhindi  gyansadhna.com
के रूप में जाना जाता है।  यह जैन धर्म का प्रमुख पर्व है,और अब हर भारतीय इसे हर्मषोल्लास के साथ मनाया जाता है। महावीर जयंती हर वर्ष हिंदी महीने चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष के 13वे दिन मनाया जाता है जो की अंग्रेजी माह के मार्च के अंत या अप्रैल महीने के शुरुआत के दिनों में पड़ता है, इस दिन सभी जैन अनुयायी व अन्य सभी इनके गुणों का बखान किया करते है,तथा इनके विचारों को अपने जीवन मे ढालने का प्रयास करते है।Mahavir Jayanti in hindi
Mahaveer Jayanti 

हमारे इस  भूमि भारत पर ऐसे कयी वीर ,ऋषि मुनियों तथा वीर योद्धाओं का वास हुआ है जिन्होंने अपने पराक्रम और तेज तथा ज्ञान से भारत ही नही पूरे विश्व को प्रकाशमय कर दिया।

महावीर स्वामी जी का जीवन परिचय-
(Life introduction of Mahavir Swamij
आज हम बात कर रहे है, महावीर स्वामी 599 ईसा पूर्व अर्थात आज से 2580 वर्ष पूर्व की बात है । यज्ञ एवं कर्मकाण्डों के नाम पर हिंसा का खेला ताण्डव हो रहा था । धर्म के नाम पर समाज में अनेक विकृतियाँ फैली थीं । पारम्परिक वितण्डावाद से राष्ट्रीय एकता खण्डित हो रही थी । ऐसी संक्रातिकालीन स्थिति में चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के पावन दिन , कण्ड ग्राम के राजा सिद्धार्थ एवं रानी त्रिशला के घर राजकुमार वर्धमान का जन्म हुआ ।

 इनका मूल जन्म स्थान वैशाली ( बसाट ) नगर के समीप कृष्णा ग्राम में था । वैशाली लिच्छवी गणतंत्र की राजधानी थी । इनके पिता इक्ष्वाक वंशीय काश्यप गोत्री क्षत्रिय थे । माता त्रिशला वैशाली के राजा चेटक की बड़ी कन्या थों ( श्वेताम्बर ऐसा मानते हैं कि यह राजा चेटक की बहन था ) इनके जन्म से ही राज्य की समद्धि में दिनों दिन वृद्धि होने लगी थी , इसलिए उनका नाम वर्धमान रखा गया ।

 वर्धमान बाल्यकाल से ही अत्यन्त बलवान तथा शक्तिशाली थे । आठ वर्ष की अवस्था में उन्होंने एक दिन खेलते खेलते एक भीमकाय अजगर की पंछ पकड़कर उसे बहुत दूर फेंक दिया । तभी से उन्हें महावीर कहा जाने लगा । राजमहलों में रहते हुए भी महावीर भोग वासनाओं से निरासक्त थे । शरीर की क्षणभंगरता , भोगों की निस्सारिता का अनुभव कर उन्होंने तीस वर्ष की आयु में शाश्वत आनन्द की प्राप्ति के लिए राजसुख का त्याग कर दिया तथा दीक्षा धारण कर नि : ग्रन्थ होगा । उन्होंने बारह वर्षों तक , निर्जन वन प्रान्तों मे राग - द्वेष रूपी आत्मविकारों को जीतने के लिए कठोर तपस्या की ।

42 वर्ष की अवस्था में , कैवल्य प्राप्त कर वे अर्हत या जिन कहलाए ।
कैवल्य की प्राप्ति के बाद तीस वर्षों तक वे निम्न स्थान पर रहे---
1-काश्मीर            2- कुरू  
3  कौशल             4- मगध 
5- मिथिला            6- गान्धार 

आदि कयी जनपदों में घूम - घूमकर धर्म - चक्र का प्रवर्तन करते रहे । उनकी धर्म सभा समवशरण कहलाती थी । इन सभाओं में सभी जातियों और वर्गों के लोग सारे भेदभाव भूलकर सम्मिलित होते थे । महावीर निरन्तर विहार करते रहते थे । इस कारण भारत का एक प्रदेश विहार के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।

बिहार के अनेक नगरों के नाम जैसे वर्धमान , वीरभूमि , सिंहभूमि आदि उन्हीं के नाम पर हैं । भगवान् महावीर ने धर्म की नई व्याख्या की । उसे अहिंसा की नींव पर स्थापित कर अहिंसा को ही परम धर्म की संज्ञा दी ।

उनके बतलाए गए मार्ग में पाँच महाव्रतों के पालन पर अधिक बल दिया गया है । 
ये पाँच महाव्रत हैं---
1- अहिंसा 
2- अमृषा 
3-अचौर्य 
4- अमैथुन 
5- अपरिग्रह 

इन्होंने मनुष्य के गुण एवं कर्म की प्रधानता पर ही जैन संघ की नींव रखी ।
जैन धर्म की यह मान्यता है कि सृष्टि अनादि है और वह इन छह तत्वों से बनी है , वे तत्व भी अनादि हैं । 
ये छह तत्व निम्न प्रकार हैं---
1- जीव 
2- पुद्गल 
3- धर्म 
4- अधर्म 
5- आकाश 
6- काल 

जैन दर्शन के अनुसार सत्य के अनेक पहलू होते हैं और हम जब जिस पहलू को देखते हैं तब वही पहलू हमें सत्य नजर आता है । इसलिए सच्चा दर्शन अनेकान्तवाद है । इस कारण जैन दर्शन सत्य के अनेक पहलुओं में सम्यक् दृष्टि रखता है ।

इसी तथ्य को उन्होंने स्याद्वाद नाम से अभिहित किया । स्यात् का अर्थ ' शायद ' , ' कदाचित ' होता है । जैन दर्शन के अनुसार यह कहना अधिक उचित है कि शायद यह ठीक हो । महावीर स्वामी से पूर्व तेईस और तीर्थकर हो चुके हैं । अपने उपदेशों से लोक जीवन को निर्मल बनाने वाले महापुरुष तीर्थकर कहलाते हैं । प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव था बाईसवें तीर्थकर भगवान नेमिनाथ और तेईसवें तीर्थकर पार्श्वनाथ हुए ।

इनका जन्म (874) विक्रम पूर्व अर्थात् (817 ई .) पूर्व में हुआ था । महावीर ने ही सर्वप्रथम आध्यात्मिक साम्यवाद की परिकल्पना प्रस्तुत की । उनक अनुसार धर्म का अर्थ ही समता और समरसता है । संसार के सभी जीव समान ह सभी को अपनी चेतना विकसित करने का अधिकार है । सभी जीव विशुद्ध चित्त र निवाण प्राप्त कर सकते हैं । इस प्रकार महावीर पारम्परिक वर्ण व्यवस्था का खण्डन करके स्वयंकृत कर्म की व्यवस्था देते हैं ।

महावीर ने नारी को तत्कालीन दासता से मक्त करके पुरुष के समकक्ष होने तथा करने का अवसर दिया । समता की इसी भूमिका के कारण महावीर अपरिग्रह थक तथा सर्वोदयवाद की प्रतिष्ठा करते हैं ।

महावीर पृथ्वी , जल , अग्नि , वायु और वनस्पति में चेतना स्थापित कर पर्यावरण को सुरक्षा के लिए प्ररित करते हैं । अहिंसा का विधान देकर वे प्राकृतिक सन्तुलन स्थापित करते हैं तथा पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाते हैं । जैन दर्शन के अनुसार धर्म के प्रचार प्रसार के लिए ।

महावीर स्वामी ने अपने अनुयायियों का एक संघ बनाया । 
संघ की विशेषताएं---

  • इस संघ में स्त्री - पुरुष दोनों को समान स्थान मिला,
  • जैन दर्शन का प्रचार - प्रसार धीरे - धीरे दक्षिण और पश्चिम भारत में हुआ ,
  • जैन दर्शन न हो सर्वप्रथम वर्ण व्यवस्था तथा वैदिक कर्मकाण्ड की बुराइयों को रोकने के लिए गभीर प्रयास किया,
  • महावीर स्वामी ने अपने विचारों के प्रचार के लिए आम बोल - चाल की भाषा को अपनाया ,
  • महावीर स्वामी ने अपने धार्मिक ग्रन्थ अर्ध मागधी भाषा में लिखे,
  • महावीर स्वामी जी ने कयी जैन ग्रन्थ अपभ्रंश भाषा में भी लिखे,
  • अपभ्रंश का पहला व्याकरण भी जैन विद्वानों ने ही तैयार करवाया था ,
  • महावीर स्वामी जी ने  “ मानव " को देव सभा श्रेष्ठ घोषित किया,
  • महावीर स्वामी जी के  प्रवचन - आचारांग , उत्तराध्ययन , दस वैकालिक , चूलिका , दसाश्रुत , स्कन्ध सूत्र , सूत्र - कृतांग तथा ज्ञात धर्म कथा सूत्र में संग्रहित हैं,
  • भगवान महावीर ने कर्ममय जीवन का आदर्श प्रस्तत कर जनतंत्रवादी समाजका स्थापना की,
  • महावीर स्वामी जी ने जीवो पर दया ,प्रेम, सद्भावना, और सहयोग का ज्ञान दिया।
  • 72 वर्ष की अवस्था में कार्तिक मास की अमावस्या दीपोत्सव के दिन पावापुर में इस महापुरुष ने निर्वाण प्राप्त किया,

महावीर स्वामी जी के प्रेरणादायक विचार--
1-प्रत्येक आत्मा स्वयं में सर्वज्ञ और आनंदमय है।आनंद बाहर से नहीं आता। अपितु उस नारायण रूपी आत्मा में ही निहारना पढता है।

2- आत्मा अकेले आती है, अकेले चली जाती है, न कोई उसका साथ देता है ,न कोई उसे जीत सकता है, या मार सकता है।

3- खुद पर विजय प्राप्त करना लाखों शत्रुओं पर विजय पाने से बेहतर है।क्योंकि खुद तुम्हारे अन्दर बहुत बडा शत्रु बैठा है।

4- मनुष्य का सबसे बडा शत्रु तो क्रोध, घमंड, लालच, आसक्ति और नफरतहै,जिसे उसने अपने अन्दर पाल रखा है।

5- स्वयं से लड़ो , बाहरी दुश्मन से क्या लड़ना,अगर तुम खुद पर विजय पा सकोगे तो समझो आपसे कोई नहीँ जीत सकता।

6- एक व्यक्ति जलते हुए जंगल के मध्य में एक ऊँचे वृक्ष पर बैठा है।वह सभी जीवित प्राणियों को मरते हुए देखता है।लेकिन वह यह नहीं समझता की जल्द ही उसका भी यही हश्र  होने वाला है।वह आदमी मूर्ख है।

7- अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है।और हिंसा करना सबसे बडा पाप है।

8- सभी मनुष्य अपने स्वयं के दोष की वजह से दुखी होते हैं ,जबकि यह तो एक मिथ्या है जिसे मानव खुद ही तैयार करता है।सिर्फ खुद अपनी गलती सुधार कर ही आप खुश हो सकते हैं।

9- सभी जीवित प्राणियों के प्रति सम्मान,उदारभाव,दया,करूणा,सहयोग,मित्रता ही अहिंसा है।

10- प्रत्येक जीवित प्राणी के प्रति दया भाव रखना चाहिए,द्वेष, घृणा से तो सिर्फ विनाश ही होता है।

11- पर दुख को जो दुख न माने,पर पीड़ा में सदय न हो।
सब कुछ दो पर प्रभु किसी को,जग में ऐसा हृदय न दो।
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