Wednesday 15 April 2020

भारत माता का अर्थ, महत्व, विशेषता,उपयोगिता, कैसे नाम पढा आदि विस्तृत वर्णन,Bharat Mata

भारत माता का अर्थ, महत्व, विशेषता,उपयोगिता, कैसे नाम पढा आदि विस्तृत वर्णन
Meaning, significance, specialty, utility, how to read name etc. detailed description of Bharat Mata
Bharat mata

भारत माता का महत्व
Importance of Mother India

भारत एक विशाल देश है जहाँ अनेकों धर्म, और भाषाई लोग रहते हुए भी एकता के सूत्र में बधे हुए है, कारण यह है कि हम सभ इस भारत माता की संतान है।भारत माता में देश के सभी जाति, धर्म, प्रान्त, भाषा संस्कृति आदि का दर्शन और मान्यताऐं सन्निहित हैं। भारत माता इस देश की विविधताओं में एकता का प्रतीक है। देश के सभी 125 करोड़ देशवासियों के हृदय में भारत माता के प्रति प्यार और सम्मान की भावना निहित है क्योंकि भारत माता किसी धर्म या ईश्वर का प्रतीक नहीं हैं, और ना ही ये कोई देवी-देवता हैं। यह तो इस देश का तिरंगा थामे जन-जन की भावना का प्रतीक है। इसलिये हर भारतवासी पूरी निष्ठा और जोश के साथ गर्व से कहता है, "भारत माता की जय" और अपने प्रधानमंत्री जी ने तो इस उद्घोष को विश्व पटल तक पहुँचा दिया है।

जो मां अपने बच्चों के लिए कहती है, मैं माता हूं, अपने बेटों की खुशहाली चाहती हूं। मेरी हैरानी-परेशानी का सबब आज का बदलता परिवेश है। मैं जानती हूं समय के साथ सब बदलता है और यही प्रकृति का नियम है। मनुष्य प्राणियों में भेद कर रहा है,भावनाओ में विकार उत्पन्न आ चुके है, लेकिन यह बदलाव मेरे पुत्रों को पतन के रास्ते पर ले जाते दिखे तो दिल में पीड़ा होती है।

कभी मैं गुलामी की जंजीरों में जकड़ी थी। मेरे सपूतों ने अपनी जान की बाजी लगाकर मुझे उन कठोर जंजीरों से मुक्त किया। उस समय मैं खुलकर हंसी थी, चहकी थी, मेरी उन्मुक्त खिलखिलाहट चारों ओर फैल गई थी। मै हमेशा अपने बच्चों को हंसते- मुस्कुराते हुए देखना चाहती हूं।  मेरी आंखों में सुनहरे भविष्य के सतरंगी सपने तैरने लगे कि अब फिर से स्थितियां बदलेंगी। अब मेरा कोई बेटा भूखा और बेसहारा नहीं होगा। मेरी बेटियां फिर से अपने गौरव को पहचानेंगी और मान-सम्मान पा सकेंगी। मेरे नन्हे बच्चे अपने मजबूत हाथों से मेरे गौरवपूर्ण अतीत को भविष्य में बदलेंगे जैसी कि पहले मेरी ख्याति थी, वह मैं फिर से पा सकूंगी।

भारत माता मंदिर हरिद्वार
भारत माता प्रसिद्ध मन्दिर हरिद्वार में स्थित है, जो (‘मदर इण्डिया’) के नाम से प्रसिद्ध है। भारत माता को समर्पित इस मंदिर में आठ मंजिलें हैं और यह 180 फुट की उंचाई पर स्थित है। आठवीं मंजिल प्रकृति प्रेमी और आध्यात्मिक व्यक्ति दोनों के लिए एक उपहार के सामान है, क्योंकि यहाँ भगवान शिव का मंदिर है। जो अपने बच्चों के हित के लिए नित्य चिंतनशील रहती है ,और अपना आशीर्वाद बनाए रखती है।

भारत माता मंदिर हरिद्वार कानिर्माण दिवस---
हरिद्वार का ‘भारत माता मंदिर’ एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मंदिर भारत माता को समर्पित है एवं इसका निर्माण प्रसिद्ध धार्मिक गुरु स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी द्वारा करवाया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने वर्ष 1983 में इस मंदिर का उद्घाटन किया था। मंदिर में आठ मंजिलें हैं एवं यह 180 फुट की उंचाई पर स्थित है। हरिद्वार पहले ही धार्मिक स्थल है लेकिन इस मंदिर के होने से हरिद्वार तीर्थ की उपयोगिता बढ चुकी है।

भारत माता का विस्तृत वर्णन
Detailed description of Mother India
Bharat mata

 भारत माता यह हमारी भारत माता है , हमारी प्यारी जन्म भूमि , जहाँ जन्म लेने के लिए देवता भी लालायित रहते हैं।

वेदों में कहा भी गया है- -
"गायन्ति देवा किल गीतकानि ,
धन्यास्तु ते भारत भूमि भागे । 
स्वर्गापवर्गा स्पदहेतुभूते ,
भवन्ति भूय पुरषासुरत्वात् । ।

अर्थात--
देवता लोग भी निरन्तर यही गाया करते हैं कि जिन्होंने स्वर्ग और मोक्ष के मार्गभूत भारतवर्ष में जन्म लिया है , वे पुरुष हम देवताओं की अपेक्षा अधिक सौभाग्यशाली हैं ।

यही वह पुण्यभूमि है जिसका कण - कण , ज्ञान भक्ति और तपोमय कर्म से पवित्र हुआ है । यहीं परमेश्वर ने दस अवतार धारण कर बार - बार अवतरित होकर विश्व का कल्याण किया ।

इसी पुण्य भूमि के लिये भगवान् रामचन्द्र ने लंका के राज्य को अस्वीकार करते हुए कहा था---
"अपि स्वर्णमयी लंका , न मे लक्ष्मण रोचते ।
जननी जन्मभुमिश्च , स्वर्गादपि गरीयसी ।।

अत्यंत महिमामयी है हमारी यह मातृभूमि । इसकी गौरवमण्डित संस्कृति ने सम्पूर्ण विश्व को अपने ज्ञान से आलोकित कर विश्व गुरु का गौरव प्राप्त किया ।

हमारी इस प्यारी मातृभूमि का स्वरूप विश्व में सबसे सुन्दर है । उत्तर में अडिग प्रहरी नगाधिराज हिमालय के उत्तुंग भाल पर भगवान शंकर का कैलाश , जन - मन को मोहित करने वाली विश्व की अत्युत्तम झील मानसरोवर , ललाट में स्थित पृथ्वी के स्वर्ग कश्मीर की अनुपम छटा , पश्चिम में अरावली की पर्वत मालाएँ एवं लहराता सिंधु सागर , पूर्व में असम की मनोहर छटा , मध्य प्रदेश में करधनी की भाँति सुशोभित विंध्याचल पर्वतमाला तथा दक्षिण में अहर्निश माँ के चरणों का प्रक्षालन करती हिन्दू महासागर की उत्ताल तरंगें ।

भारत माता की वंदना करते हुए हम अपने राष्ट्रगीत के माध्यम से अपनी मातृभूमि का सुन्दर वर्णन करते हैं---

 वन्दे मातरम् ।
सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम । 
शस्य श्यामलां मातरम् ।
शुभ्र ज्योत्स्नां पुलकित् यामिनीम् । । 
फुल्ल-कुसुमित-द्रुमदल-शोभिनीम्, सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम् ,
सुखदां वरदां मातरम् । ।
वन्दे मातरम् ।

भारत माता की उपासना ही हम सब भारतीयों का परम धर्म है ---
"त्वं ही दुर्गा दशप्रहरण-धारिणी, 
कमला कमलदल विहारिणी ,
वाणी विद्यादायिनी , नमामि त्वां । 
नमामि कमला अमला अतुलाम् सुजलां सुफलां मातरम् । ।
वन्दे मातरम् । ।

अद्भुत है हमारी भारत माता का स्वरूप । इसका विशाल हृदय विश्व की समस्त ऋतुओं को संजोए है । यहाँ ऋतु अनुरूप खान - पान की विविधता , भाषा तथा वेश - भूषा में भी देखी जा सकती है ।

 इसलिए एकात्मता स्त्रोत में हम माता की वन्दना करते हुए गाते हैं--- 
"रत्नाकराधौतपदा हिमालय किरीटिनीम् ।
ब्रह्मराजर्षि रत्नाढ्या , वन्दं भारतमातरम् ।। 

अर्थात--
सागर जिसके चरण धो रहा है , हिमालय जिसका मकट है और जो ब्रह्मर्षि तथा राजर्षि रूपी रत्नों से समृद्ध है , ऐसी भारत माता की . मैं वन्दना करता हूँ ।

"महेन्द्रो मलयः सह्यो , देवतात्मा हिमालयः ,
ध्येयो रैवतको विंध्यो , गिरिश्चारावलिस्तथा ।।
अर्थात--
महेन्द्र , मलयगिरि , सह्याद्रि , देवतात्मा हिमालय , रैवतक ( गिरनार ) विंध्याचल तथा अरावली पर्वत ध्यान करने योग्य हैं ।

"गंगा सरस्वती सिंधुर्ब्रह्मपुत्रश्च गण्डकी ।
कावरी यमुना रेवा कृष्णा गोदा महानदी ।।

ये नदियां भारतमाता के गले का हार हैं---
 "अयोध्या , मथुरा , माया , काशी , कांची , अवंतिका ।
वैशाली , द्वारिका , ध्येया , पुरी , तक्षशिला , गया ।
' प्रयागः पाटलीपुत्रं , विजया नगरं महत् ।
इन्द्रप्रस्थः , सोमनाथ : तथाऽमृतसरः प्रियम् ।।

 उपर्युक्त नगर हमारी भारत माता की शोभा हैं । इसी माता की गोद में बैठकर ऋषियों , मनीषियों तथा कवियों ने चार वेद , अठारह पुराण , एक सौ आठ उपनिषद् तथा रामायण , महाभारत , श्रीमद्भगवद्गीता , जैन ग्रन्थ , त्रिपिटक तथा गुरू ग्रंथ जैसे ग्रन्थों की रचना की ।
भारत माता की प्रशंसा जितनी की जाए , उतनी ही कम है । गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर इसकी समन्वित संस्कृति की महिमा का गायन करते लिखते हैं - ---

 हे मोर चित्त पुण्य तीर्थे जागो रे धीरे एई भारतेर महामानवेर सागर तीरे केह नाहिं जाने , 
कार आह्वाने , कत मानुषेर धारा दुर्वार स्त्रोतों एलो कोना हते , 
समुद्रे हलो हारा । 

इसका आशय है कि भारत महामानवता का पारावार है । ओ मेरे हृदय ! इस पवित्र तीर्थ में श्रद्धा से आँखें खोलो । किसी को भी ज्ञात नहीं कि किसके आह्वान पर मनुष्यता की कितनी निर्बाध वेग से बहती हुई , कहाँ - कहाँ से आई और इस महासमुद्र में मिलकर खो गई । ऐसी है हमारी भारत माता । आर्षभ भरत के नाम पर इस भूमि का नाम भारत हुआ । राजा भरत भगवान ऋभवदेव जी के ज्येष्ठ पुत्र थे । वे एक चक्रवर्ती सम्राट थे । सम्पूर्ण भारत को एकता सूत्र में बांधकर , उन्होंने स्वराज्य की स्थापना की इसीलिए इस भूमि को भारत माता के नाम से जाना जाने लगा । एक सम्प्रदाय के मतानुसार शकुन्तला - दुष्यंत पुत्र भरत के नाम पर ही हमारे देश . को भारत माना जाता है ।

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