Tuesday 14 April 2020

रवीन्द्रनाथ टैगोर जी का व्यक्तित्व व जीवनी तथा जीवन परिचय , Personality and biography and life introduction of Rabindranath Tagore

रवीन्द्रनाथ टैगोर जी का व्यक्तित्व व जीवनी तथा जीवन परिचय 
Personality and biography and life introduction of Rabindranath Tagore
Rabindranath Tagore

जिनके व्यक्तित्व से समाज में नयी दिशा मिली ,जिनके ज्ञान से भारत ही नहीं समस्त मानव जाती का व्यक्तित्व विकास gyansadhna.com हुआ है, जिन्होंने समाज उत्थान के लिए हमें सकारात्मक कार्य किया ऐसे महान नायक है भारत के गुरूवर रविन्द्रनाथ टैगोर जिनकी दिशा में  सभी के अन्दर सकारात्मक ऊर्जा का विकास हुआ है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर की संक्षिप्त जीवनी
Brief biography of Rabindranath Tagore
Rabindranath ki jeevani

स्थानीय नाम  = রবীন্দ্রনাথ ঠাকুর
जन्म तिथि   = 07 मई 1861कलकत्ता (अब कोलकाता), ब्रिटिश भारत
मृत्यु तिथि   =07 अगस्त 1941कलकत्ता, ब्रिटिश भारत 
व्यवसाय  = लेखक, कवि, नाटककार, संगीतकार, चित्रकार 
प्रमुख भाषा  = बांग्ला, अंग्रेजी 
साहित्यिक आन्दोलन  = आधुनिकतावाद 
उल्लेखनीय रचनाएँ = गीतांजलि, गोरा, घरे बाइरे, जन गण मन, रबीन्द्र संगीत, आमार सोनार बांग्ला, नौका डूबी । 
उल्लेखनीय सम्मान  = साहित्य के लिए नोबल पुरस्कार 
जीवनसाथी  = मृणालिनी देवी (वि◦ १८८३–१९०२) 
सन्तान (पुत्र) =  ५ पुत्र  (जिनमें से दो का बाल्यावस्था में निधन हो गया)
रवीन्द्रनाथ टैगोर जी का जीवन परिचय-
Life introduction of Rabindranath Tagore

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर कविवर रवीन्द्र के नाम से सुविख्यात है। जिनके ज्ञान व विचारों से मानव जाती का उत्थान हुआ है।

महाकवि रवीन्द्रनाथ का जन्म 7 मई 1861 को कलकत्ता में हुआ था । उनके पिता महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर ब्रह्मसमाजी तो थे ही , उन्होंने बंगाल के धं रार्मिक , साहित्यिक , कलात्मक तथा राजनीतिक उत्थान का भी नेतृत्व किया था । माता शारदा देवी धर्मपरायण एवं शांत स्वभाव की थीं । उनके पितामह द्वारिकानाथ ठाकुर प्रसिद्ध व्यापारी थे । यह परिवार धन - धान्य से सम्पन्न था , जहाँ सभी सुविधाएँ उपलब्ध थीं ।

बालक रवीन्द्र अपने चौदह भाई बहनों में सबसे छोटे थे । उनका लालन वैभव एवं सम्पन्नता के वातावरण में हुआ था । उनकी स्कूली शिक्षा ओरियन्टल सेमिनरी स्कूल से प्रारम्भ हुई । बड़े होने पर उनका प्रवेश नार्मल स्कूल में करा दिया गया । पर स्कूली शिक्षा में उनका मन कभी नहीं लगा । उनकी अधिकतर शिक्षा घर पर ही स्वाध्याय एवं स्वावलंबन के माध्यम से हुई ।

रवीन्द्र वर्ग से ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुए थे किन्तु बंगाल की जनता ने उनके पितामह को ठाकुर की उपाधि प्रदान की थी , जिसे अंग्रेजों ने अपभ्रंश कर टैगोर कर दिया था ।

बालक रवीन्द्र को भारतीय संस्कृति के संस्कार बचपन से ही मिल गए उनके पिताश्री ने बड़े धूमधाम से उनका उपनयन संस्कार कराया । गीता और गायी तथा उपनिषदों का अध्ययन उन्होंने बाल्यावस्था में ही कर लिया था ।

1877 में रवीन्द्र को अपने बड़े भाई सत्येन्द्रनाथ के साथ उच्च शिक्षा के लिए लन्दन भेजा गया । इस समय उनकी आयु सत्रह वर्ष की थी । उनके पिताजी की बनी थी कि वे आई . सी . एस . की परीक्षा उत्तीर्ण कर प्रशासनिक अधिकारी बनें अथवा एक सफल बैरिस्टर । पर लंदन में रवीन्द्र का मन नहीं लगा अतः वे भारत वापिस आकर और घर का कारोबार संभालने लगे ।

9 दिसम्बर 1883 को बाईस वर्ष की आयु में रवीन्द्रनाथ का विवाह हुआ । उनकी पत्नी का नाम श्रीमती मृणालिनी देवी था । 1902 में उनकी पत्नी उनको छोड स्वर्गलोक को प्रस्थान कर गई । कुछ मास बाद उनकी पुत्री का भी निधन हो गया । पिता की आज्ञा से रवीन्द्रनाथ ने जमींदारी के प्रबंध का काम संभाल तो लिया । उनकी जमीदारी शिइलदह में थी पर गाँव के संकुचित वातावरण में उनका मन न रमा ।

 में रवीन्द्रनाथ ने गीतांजलि पूर्ण की । उसका अंग्रेजी अनुवाद कर प्रकाशित करवाया गया । 1913 में यूरोप की तीसरी यात्रा में वे अंग्रेजी के सुप्रसिद्ध कवि ईट्स के संपर्क में आए ।

1913 में गीतांजलि की रचना के लिए रवीन्द्रनाथ को नोबुल पुरस्कार से सम्मानित किया गया । गीतांजलि विश्व साहित्य जगत में समादृत हुई । नोबेल पुरस्कार से प्राप्त 8000 पौंड की सारी राशि इन्होंने अपने प्रसिद्ध विद्या केन्द्र शान्ति निकेतन में लगा दी जिसकी स्थापना इन्होंने 1901 में की थी । उसी वर्ष कलकत्ता विश्वविद्यालय ने उन्हें डी . लिट की मानक उपाधि से सम्मानित किया ।

1916 में महाकवि ने जापान और अमेरिका की यात्राएँ कीं । जापान में दिए गए उनके व्याख्यान " नेशनेलिज्म " तथा अमेरिका में दिए व्याख्यानों का संग्रह “ पर्सनिलिटा " के नाम से प्रकाशित हुए ।

रवीन्द्रनाथ बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार थे । उन्होंने अनेक उपन्यास , कहानियाँ , नाटक निबन्ध लिखे

उनके द्वारा रचित प्रमुख कृतियाँ इस प्रकार हैं--
उपन्यास - गोरा , आँख की किरकिरी , जुदाई की शाम नाटक - फाल्गुनी , डाकघर , चित्रांगदा गद्य - निबंध - जीवनस्मृति , साधना , पर्सनिलिटी , नेशनेलिज्म कविताएँ - चयनिका , गीतांजलि कहानियाँ - काबुली वाला गद्य पद्य , की सभी विद्याओं में तथा बंगला एवं अंग्रेजी पर उनका अधिकार था ।

1905 के बंगभंग के विरोध में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने जनता का नेतृत्व किया । बंग भंग के समय रवीन्द्रनाथ टैगोर ने जो राष्ट्रगान लिखे वे लोगों के मुख से सर्वत्र सुनाई पड़ने लगे । इन गीतों ने बंगाल में उग्र राष्ट्रवाद की ज्वाला भड़का दी । राजनीति में उनकी कोई रुचि नहीं थी अतः वे किसी भी दल में सम्मिलित नहीं हुए परन्तु मातृभूमि की रक्षा तथा सांस्कृतिक जागरण के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे । काका कालेलकर ने उनके विषय में कहा है कि देश भक्ति उनका व्यसन नहीं अपितु स्वभाव था ।

1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारंभ हो गया । इस युद्ध में मानवता का जो विनाश हुआ , उससे गुरुदेव बहुत दु : खी हो गए । 6 अगस्त 1941 को उन्होंने इहलोक की लीला समाप्त की । इस समय उनकी अवस्था 80 वर्ष की थी । हमारे वर्तमान राष्ट्रगान ' जन - गण - मन ' के रचनाकार गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ही हैं ।

शान्ति निकेतन में स्थापित विश्वविद्यालय विश्वभारती भारतीय संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में उनका एक महत्वपूर्ण योगदान है । शिक्षा के क्षेत्र में उनकी धारणा थी कि यह सांस्कृतिक , कलात्मक और आर्थिक विकास पर तथा राष्ट्रीय जटिल प्रणाली पर आधारित हो । “ विश्वभारती " गुरुदेव के इन्हीं आदर्शों को पूरा करती है । यहाँ लोक - कला गाँव , और पर्यावरण को आधार बनाकर विभिन्न हस्त कलाओं से युक्त नृत्य , संगीत चित्रकथा , मूर्तिकला तथा कुटीर उद्योगों से युक्त बनाया है । विश्व के अनेक महापुरुषों एवं महान कलाकारों ने विश्व भारती को अपना योगदान दिया है । सर्वजन हितश्च और सर्वजन सुखाय की कामना करते हुए।

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर गीतांजलि में लिखते हैं--
वैराग्य साधन में जो मुक्ति है,
वह मेरी नहीं ,
है आनन्द असंख्य बन्धनों के बीच में,
मुक्ति के स्वाद का ,
अनुभव करूंगा ।
यह वही जीवन जो ,
जन्ममरण रुपी महासिन्धु के ,
अनन्त ज्वार भाटों में किल्लोलित होता है ,

वे चाहते थे कि भारत के प्राचीन आदर्शों को फिर जागृत और जीवित करना चाहिए ।

1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड से सारा देश कराह उठा । कविवर भी तिलमिला उठे और उन्होंने अंग्रेजों द्वारा दिया हुआ सर्वोच्च सम्मान पद अर्थात ' नाइटहुड ' लौटा दिया और उनके नाम के साथ कभी भी ' सर ' की उपाधि का प्रयोग नहीं होने दिया ।
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