हिन्दी व्याकरण समास का विस्तृत वर्णन
(परिभाषा,अर्थ, भेद,उदाहरण)
Detailed description of Hindi grammar margins
(Definition, meaning, distinction, example

Samas prakaran
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Samas in hindi
समास ( Compund )
परिभाषा--
परस्पर संबंध रखने वाले दो या दो से अधिक स्वतंत्र सार्थक पदों के संक्षिप्त रूप को समास कहते हैं ,या पदों के संक्षिप्तीकरण की प्रक्रिया को समास कहते हैं ।
1- पदों का संक्षिप्त रूप समस्त पद कहलाता है ।
जैसे - देशभक्ति , घृतान्न ।
2- समस्त पद का प्रथम पद ( शब्द ) पूर्वपद और द्वितीय पद ( शब्द ) उत्तर पद कहलाता है ।
देश - भक्ति ।
3- समस्त पद के बीच वाले लुप्त पद को प्रकट रूप में लाकर उसे संपूर्ण रूप में प्रकट करना ही विग्रह कहलाता है ।
जैसे --
1- देश के लिए भक्ति ।
2- घी में मिला हुआ अन्न ।
स्पष्टीकरण --
घृतान्न एक समस्त पद है । इसमें घृत और अन्न क्रमश : पूर्व और उत्तर पद हैं । इन दोनों पदों में परस्पर संबंध हैं । ये स्वतंत्र और सार्थक भी हैं । अतः संक्षिप्त रूप में यह नया शब्द घृतान्न हुआ ।
घृत और अन्न के बीच वाले पद में मिला हुआ को प्रकट रूप में लाकर यदि घृत में मिला हुआ अन्न लिखा जाए और इसे संपूर्ण रूप में व्यक्त किया जाए,तो यह विग्रह कहलाएगा ।
समास के मुख्य रूप से चार भेद होते हैं --
1- अव्ययीभाव समास 2- तत्पुरुष समास
3- वंद्व समास 4- बहुब्रीहि समास ।
1- अव्ययीभाव समास --
अव्ययीभाव समास में पहला पद अव्यय होता है । वही पद प्रधान होता है और द्वितीय पद अर्थ के लिए प्रथम पद का अनुसरण करता है । दोनों पद मिलकर क्रियाविशेषण का रूप ले लेते हैं ।
अतः समस्त पद अव्यय बन जाता है । कभी - कभी पूर्व पद ( विकारी / अविकारी ) को दुहराकर लिख दिया जाता है । ऐसे पद भी क्रियाविशेषण बन जाते हैं और अव्ययीभाव समास का रूप ले लेते हैं ।
Samas in hindi
उदाहरण--
समस्त पद विग्रह
अनुरूप रूप के योग्य
आजन्म जन्म से लेकर
आसमुद्र समुद्रपर्यंत/समुद्र तक
आमरण मरणपर्यंत/मरण तक
आजीवन जीवनपर्यंत/जीवन भर
यथाशक्ति शक्ति के अनुसार
यथामति मति के अनुसार
प्रतिदिन हर दिन
दिनोंदिन दिन ही दिन में
रातोंरात रात ही रात में
हाथोंहाथ हाथ ही हाथ में
बातोंबात बात ही बात में
यथोचित जैसा उचित हो
यथासंभव जितना संभव हो
भरपेट पेट भर कर
बेखटके बिना किसी खटके के
यथाविधि विधि के अनुसार
सादर आदर के सहित
निस्संदेह संदेह से रहित
यथाशीघ्र जितना शीघ्र हो
हर घड़ी प्रत्येक घड़ी
गाँव-गाँव हर गाँव
विशेष--
कभी - कभी पूर्व और उत्तर दोनों ही पद अव्यय नहीं होते ।
जैसे-गाँव - गाँव । पर दोनों मिलकर अव्यय का कार्य करते हैं । ऐसे पुनरुक्त शब्दों को भी अव्ययीभाव समास की श्रेणी में रखा गया है ।
2-- तत्पुरुष समास --
तत्पुरुष समास में उत्तर पद ( दूसरा पद ) प्रधान होता है और पूर्व पद ( पहला पद ) गौण ।
तत्पुरुष समास के निम्नलिखित भेद हैं ---
( क ) कर्म तत्पुरुष --
जहाँ 'को ' विभक्ति का लोप हो ।
उदाहरण--
समस्त पद विग्रह
परलोकगमन परलोक को गमन
ग्रामगत ग्राम को गया हुआ
स्वर्गप्राप्त स्वर्ग को प्राप्त
शरणागत शरण को आया हुआ
यशप्राप्त यश को प्राप्त
लोकप्रिय लोक को प्रिय
( ख ) करण तत्पुरुष --
जहाँ से , के द्वारा विभिक्ति का लोप हो ।
उदाहरण--
समस्त पद विग्रह
वाणाहत बाण से आहत
तुलसीकृत तुलसी द्वारा कृत
रेखांकित रेखा द्वारा अंकित
अकालपीड़ित अकाल से पीड़ित
दयार्द्र दया से आर्द्र
हस्तलिखित हाथ से लिखित
ज्वरपीड़ित ज्वर से पीड़ित
मनगढंत मन द्वारा गढ़ा
रेलयात्रा रेल द्वारा यात्रा
शोकाकुल शोक से आकुल
गुणयुक्त गुण से युक्त
मदांध मद से अंधा
(3)- संप्रदान तत्पुरुष--
संप्रदान तत्पुरुष में के लिए ' का लोप होता है ।
समस्त पद विग्रह
रसोई घर रसोई के लिए घर
सत्याग्रह सत्य के लिए आग्रह
परीक्षा भवन परीक्षा के लिए भवन
वलिपशु वलि के लिए पशु
डाकगाड़ी डाक के लिए गाड़ी
देशभक्ति देश के लिए भक्ति
प्रयोगशाला प्रयोग के लिए शाला
हवन-सामग्री हवन के लिए सामग्री
दानपात्र दान के लिए पात्र
युद्धभूमि युद्ध के लिए भूमि
मार्ग व्यय मार्ग के लिए व्यय
(4) अपादान तत्पुरुष --
अपादान तत्पुरुष में से ' ( अलग होने का भाव ) विभक्ति का लोप होता है । प्रथम पद अपादान कारक में होता है ।
उदाहरण--
समस्त पद विग्रह
पदच्युत पद से च्युत
पथभ्रष्ट पथ से भ्रष्ट
जन्मांध जन्म से अंधा
ऋणमुक्त ऋण से मुक्त
गुणहीन गुण से हीन
कर्महीन कर्म से हीन
हृदयहीन हृदय से हीन
भयभीत भय से भीत
( 5 ) संबंध तत्पुरुष--
संबंध तत्पुरुष समास के दोनों पदों के बीच का , के , की विभक्ति का लोप होता है । प्रथम पद संबंधकारक में होता है ।
उदाहरण--
समस्त पद विग्रह
राजपुत्र राजा का पुत्र
नगर निवासी नगर का निवासी
घुड़दौड़ घोड़ों की दौड़
अमृतधारा अमृत की धारा
गुरुभक्ति गुरु की भक्ति
राजकुमार राजा का कुमार
भारतसरकार भारत की सरकार
देशवासी देश का वासी
पुष्पवाटिका पुष्पों की वाटिका
परनिंदा पराये की निंदा
पूँजीपति पूँजी का पति- स्वामी
प्रेमसागर प्रेम का सागर
रामभक्ति राम की भक्ति
राजदूत राजा का दूत
( 6 ) अधिकरण तत्पुरुष--
अधिकरण तत्पुरुष समास में दोनों पदों के बीच ‘ में ' , ' पर ' विभक्ति का लोप होता है । इसमें पूर्व पद अधिकरण कारक में होता है ।
उदाहरण--
समस्त पद विग्रह
आनंदमग्न आनंद में मग्न
जल-मग्न जल में मग्न
रस-मग्न रस में मग्न
ध्यान-मग्न ध्यान में मग्न
कर्म-कुशल कर्म में कुशल
सिरदर्द सिर में दर्द
दानवीर दान में वीर
डिब्बाबंद डिब्बे में बंद
व्यवहार-कुशल व्यवहार में कुशल
(7)- उपपद समास--
जब किसी शब्दांश अथवा अक्षर को किसी पद में जोड दिया जाए और बद्ध पदवत कार्य करे - अर्थात् पद जैसा अर्थ दे , तो वहाँ पर उपपद समास होता है । जैसे पंकज में ' ज ' अक्षर है जो पंक के साथ जुड़ने पर एक पद ( जन्मना ) का अर्थ दे रहा है । तंत्र रूप में यह इस तरह का कोई अर्थ नहीं देता है , पर पद के साथ आकर दसने भी एक पद का ही रूप धारण कर लिया है । इस तरह के समस्त पद को उपपद की पुरुषोत्तम वनवास की श्रेणी रखा जाता है ।
उदाहरण--
समस्त पद विग्रह
गिरहकट गिरह को काटने वाला
शास्त्रज्ञ शास्त्र का ज्ञाता
पंकज पंक में जन्मा
( 8 ) मध्य पद लोपी--
कभी - कभी एकाधिक मध्य पदों को लुप्त करके उन्हें समस्त पद का रूप दिया जाता है । ऐसे समस्त पद मध्य पद लोपी के अंतर्गत आते हैं ।
उदाहरण--
समस्त पद विग्रह
दही-बड़ा दही में डूबा हुआ बड़ा
घी-शक्कर घी में मिली हुई शक्कर
गोबर-गणेश गोबर से बना हुआ गणेश
वनमानुस वन में रहने वाला मानुस
( 9 ) नञ्तत्पुरुष तत्पुरूष---
जिस समस्त पद में पहला पद न या नहीं ( निषेध ) का भाव प्रकट करे , वहाँ नञ्तत्पुरुष होता है ।
उदाहरण--
समस्त पद विग्रह
अधर्म न धर्म
अन्याय न न्याय
अनहोनी न होनी
अनदेखी न देखा
असंभव न संभव
असत्य न सत्य
अज्ञान न ज्ञान
अनादि न आदि
अनंत न अंत
अनादर न आदर
अस्थिर न स्थिर
अयोग्य न योग्य
अनिच्छा न इच्छा
नास्तिक न आस्तिक
(10) अलुक् तत्पुरुष--
लुक् का अर्थ छिपना है अलुक् का अर्थ है - जो न छिपे । अलुक् तत्पुरुष में पूर्व पद अपने मूल रूप में होता है अर्थात् उसमें कोई तोड़ - मरोड़ नहीं होती है ।
जैसे - युधिष्ठिर में पूर्व पद युधि ' संस्कृत में सप्तमी के एकवचन में है , जिसका अर्थ है - युद्ध । इस तरह समस्त पद बनाते समय पूर्वपद के रूप में कोई परिवर्तन नहीं है ।
इसीलिए इसे अलुक् ( अर्थात् अपने मूल रूप में प्रकट ) तत्पुरुष कहते हैं ।
उदाहरण
समस्त पद विग्रह
1- युधिष्ठिर युधि ( युद्ध में ) स्थिर
2- सरसिज सरसि ( तालाब में ) ज ( उत्पन्न )
3- मनसिज मनसि ( मन में ) ज ( उत्पन्न )
4- खेचर खे ( आकाश में ) चर ( विचरना )
5- धनंजय धनम् ( धन में ) जय ( विजयी )
तत्पुरुष समास के दो अन्य उपभेद भी होते हैं--
(1) द्विगु समास
(2) कर्मधारय समास
(1) द्विगु समास--
जिस समस्त पद में पूर्व पद संख्यावाची विशेषण हो और समूह का बोर कराए . उसे द्विगु समास कहते हैं ।
उदाहरण---
समस्त पद विग्रह
अष्ट सिद्धि आठ सिद्धियों का समाहार
नव निधि नव निधियों का समूह
नवग्रह नव ग्रहों का समाहार
अठन्नी आठ आनों का समूह
द्विगु दो गायों का समूह
षट्कोण छह कोणों का समूह
अष्टाध्यायी आठ अध्यायों का समूह
पंचामृत पाँच अमृतों का समूह
चवन्नी चार आनों का समूह
पंचवटी पाँच वटों का समूह
सप्तर्पि सात ऋषियों का समाहार
चौमासा चार मासों का समूह
नवरत्न नौरत्नों का समूह
त्रिभुवन तीन भुवनों का समूह
चतुर्युग चार युगों का समाहार
पंचपात्र पाँच पात्रों का समाहार
(2) कर्मधारय समास--
जहाँ विशेषण - विशेष्य की स्थिति हो अथवा उपमेय - उपमान की स्थिति हो , वहाँ कर्मधारय समास होता है ।
उदाहरण--
समस्त पद विग्रह
अंधकूप अंधा कूप
अधखिला आधा खिला
अधपका आधा पका
भ्रष्टमति भ्रष्टमति ( बुद्धि )
नील कमल नीला कमल
नील गाय नीली गाय
कृष्ण सर्प काला साँप
कमल नयन कमल के समान नयन
कनक लता कनक के समान लता
घनश्याम घन के समान श्याम
कुसम कोमल कुसुम के समान कोमल
प्राणप्रिय प्राण के समान प्रिय
(2) द्वंद्व समास--
जिस समस्त पद में दोनों पद प्रधान हों अर्थात् दोनों ही समान महत्त्व के हों और जिसमें ( और एवं या अथवा तथा ) समुच्चयबोधक का लोप हो , वहाँ द्वंद्व समास होता है ।
उदाहरण--
समस्त पद विग्रह
स्वर्ग-नरक स्वर्ग और नरक
माता-पिता माता और पिता
ऊँच-नीच ऊँच और नीच
अमीर-गरीब अमीर और गरीब
सुख-दुख सुख और दुख
राम-लक्ष्मण राम और लक्ष्मण
जय-पराजय जय और पराजय
नर-नारी नर और नारी
देश-विदेश देश और विदेश
दिन-रात दिन और रात
गंगा-यमुना गंगा और यमुना
फूला-फला फूला और फला
रुपया-पैसा रुपया और पैसा
4- बहुब्रीहि समास--
जिस समस्त पद में न पूर्व पद और न ही उत्तर पद प्रधान हो , अपितु समस्त पद के रूप में अन्य पद की प्रधानता होती है , वहाँ बहुब्रीहि समास होता है । विग्रह के अंत में वाला , जिसे , जिसको , है जो आदि आते हैं ।
उदाहरण--
समस्त पद विग्रह
चतुरानन चार आननों ( मुखों ) वाला है जो अर्थात् ब्रह्मा ।
नीलकंठ नीले कंठ वाला है जो अर्थात् शिव ।
गजानन गज के समान आनन है जिसका अर्थात् गणेश ।
गरुड़वाहन - गरुड़ है वाहन जिसका अर्थात् विष्णु ।
लंबोदर लंबा है उदर जिसका अर्थात् गणेश
चक्रधर चक्र को धारण करने वाला अर्थात् कृष्ण
दशानन दस आनन हैं जिसके अर्थात् रावण ।
दिगंबर दिशाएँ ही वस्त्र हैं जिसके लिए अर्थात् नग्न ।
मृगनयनी मृग के समान नेत्रों वाली । सुंदर मुख वाली ।
त्रिवेणी तीन नदियों के संगम वाला स्थान अर्थात् प्रयागराजा । बारहसिंगा बाहर सींगों वाला । ( एक विशेष पशु )
हँसमुख हँसते हुए मुख वाला । षडानन छह आननों वाला अर्थात् कार्तिकेय ।
निशाचर रात्रि में घूमने वाला अर्थात् राक्षस ।
संधि और समास में अंतर--
संधि दो वर्गों में होती है । दो वर्णों ( ध्वनियों ) के आपस में मिलने से उत्पन्न विकार ( परिवर्तन ) को संधि कहते हैं । पर समास दो या दो से अधिक शब्दों ( पदों ) में होता है । संधिस्थ शब्दों को तोड़ने की क्रिया को संधिच्छेद / संधि - विच्छेद / विच्छेद कहते हैं लेकिन समस्त पदों के पदों को अलग - अलग करने की प्रक्रिया विग्रह कहलाती है ।
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