Thursday 23 April 2020

विद्यार्थी जीवन में तथा सफलता व लक्ष्य प्राप्ति के लिए अति महत्वपूर्ण है स्वाध्याय,(Self study

विद्यार्थी जीवन में तथा सफलता व लक्ष्य प्राप्ति के लिए अति महत्वपूर्ण है स्वाध्याय
(Self study) is very important in student life and for success and achievement of goals
self study

दोस्तों आगे हर कोई बढना चाहता है, जीवन में संघर्ष नही है तो कुछ नहीं है अपने मन में नकारात्मक विचारों को दूर करके आपके भीतर जोश, उत्साह, उमंग, और गहरा आत्मविश्वास पैदा करेगा जिससे आप नकारात्मक विचार (negative thinking)छोड़कर सफलता के पथ पर अग्रसर हो जाएंगे,और खासकर विद्यार्थी जीवन के लिए,Best Success Quotes thoughts in Hindi for studentsसफलता पर अनमोल विचार और प्रसिद्द हस्तियों के कथन,बहुत ही लाभदायक सिद्ध होगाIndian womens in hindi अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगे तो आगे भी पढे  gyansadhna.com


स्वाध्याय का अर्थ --
(Meaning of self study)

भारतीय योग दर्शन में पांच नियम आते हैं- शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान, ये पांच नियम जीवन को सुव्यवस्थित और अनुशासित करने के लिए हैं, जो इस नियम का प्रिपालन करता है वही (सक्सेसफुल) सफलता को प्राप्त करता है। याद रखिए जीवन की प्रक्रियाओं को समझने और जानने के लिए हैं,इन पांच नियमों में एक है स्वाध्याय. स्वयम् का अध्ययन, खुद को जानना स्वाध्याय कहलाता है, यही स्वाध्याय का सर्वश्रेष्ठ अर्थ है।

स्वाध्याय का महत्व
Importance of self study

अगर आगे सबसे आगे बडना है तो स्वाध्याय self study in hindiबहुत ही जरूरी है।
Essay on Student Life in Hindi ( Vidyarthi Jeevan )  विद्यार्थी जीवन काल किसी भी मनुष्य के जीवन का सबसे अधिक महत्वपूर्ण काल होता है।इस काल में अगर अध्ययन से छूटे तो जीवन में कुछ नही कर पाओगे, इसी विद्यार्थी जीवन काल पर मनुष्य का सम्पूर्ण भविष्य निर्भर करता है।self study in hindi इसमें जीवन को कडी परीक्षा और परीश्रम से तपाना है, इस काल का सदुपयोग करने वाले विद्यार्थी अपने भविष्य काल को बहुत ही आरामदायक और सुखमय बना सकते हैं, विद्यार्थी काल एक ऐसा समय है जब वह खुद का तथा देश का भविष्य सुधारने के लिए महत्वपूर्ण है। self study in hindi और इस काल को व्यर्थ में ही नष्ट कर देने वाले विद्यार्थी अपने आने वाले भविष्य को अंधकारमय बना लेते हैं। विद्यार्थी जीवन काल एक ऐसा समय है जिसमें किसी भी मनुष्य के चरित्र की नींव पड़ जाती है।self study in hindi 
एक सही कहावत है--
"लक्ष्य का निर्धारण करना है तो पीछे मत देखो और रूको मत कितने ही कष्ट या दुख क्यों न आए थोडा सा संयम ही जीवन सुधार देगा।"

इसीलिए सभी विद्यार्थियों को अपने इस जीवन काल में अपना हर एक कदम बहुत ही सोच समझकर उठाने की जरूरत होती है।self study in hindi 
शास्त्रों मे यह वाक्य प्रसिद्ध है--
‘स्वयं का अध्ययन करना’। 
यानी मेरे अन्दर जो कमी है उसे पहचान कर उस कमी को दूर करने के लिए प्रयास करना। हमारे विभिन्न हिन्दू दर्शनों में स्वाध्याय एक ‘नियम’ है। स्वाध्याय का अर्थ ‘स्वयं अध्ययन करना’ तथा वेद एवं अन्य साहित्यों का पाठ करना भी है। जितना पढोगे उतना ज्ञान अधिक बढेगा, ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती है।self study in hindi 

 जीवन-निर्माण और सुधार संबंधी पुस्तकों का पढ़ना, परमात्मा और मुक्ति की ओर ले जाने वाले ग्रंथों का अध्ययन, श्रवण, मनन, चिंतन आदि करना स्वाध्याय कहलाता है। आत्मचिंतन का नाम भी स्वाध्याय है। अपने बारे में जानना और अपने दोषों को देखना भी स्वाध्याय है। स्वाध्याय के बल से अनेक महापुरुषों के जीवन बदल गए हैं। शुद्ध, पवित्र और सुखी जीवन जीने के लिए सत्संग और स्वाध्याय दोनों आधार स्तंभ हैं। सत्संग से ही मनुष्य के अंदर स्वाध्याय की भावना जाग्रत होती है। स्वाध्याय का जीवन निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है। स्वाध्याय से व्यक्ति का जीवन, व्यवहार, सोच और स्वभाव बदलने लगता है।

स्वाध्याय के विभिन्न आयाम
Different dimensions of self-study


1- स्वाध्याय क्यों जरूरी है ? -
Why is self-education important

जीवन में आगे बढ़ने के लिए स्वाध्याय अति आवश्यक है । प्राचीन काल में आश्रम वासी शिष्यों को गुरुजन बोधित करते हुए उपदेश देते थे । सत्यं वद अर्थात् सत्य बोलो । धर्मं चर - मानवोपयोगी सदाचरणयुक्त कर्त्तव्य कम पर ही चलते रहो । ' स्वाध्यायात् मां प्रमद ' - स्वाध्याय में कभी आलस मत करो । इससे यह स्पष्ट होता है कि स्वाध्याय व्यक्ति के विश्वास का एक अनिवार्य है । आज भी माता - पिता अपनी संतान को तनिक भी समझ आने पर अच्छ - अच्छे विद्यालयों में भेजकर उसे अधिक से अधिक और अच्छी तरह से स्वाध्याय बनाने पर ही अधिक बल देते है । क्योंकि यहाँ सभी जानते है कि आज बालक पढ़ने - लिखने के कार्य को मनोयोग पूर्वक कर लेंगे , स्वाध्यायी बन कर श्रेष्ठ से श्रेष्ठ ज्ञान का अर्जन कर लेंगे उनका भविष्य निश्चित ही उतना ही उज्य एवं समुन्नत होगा ।

कहा भी गया है --
बच्चो पढ़ना है सुखदायी , 
मिले इसी से सभी बड़ाई । 
पहले थोड़ा कष्ट उठाना,
फिर सब दिन आनन्द मनाना । । 
अर्थात-- जो विद्यार्थी , विद्यार्थी जीवन में कष्ट नहीं उठा कर आराम जाते है । आलस में , निद्रा में और तन्द्रा में जीवन के बहुमूल्य क्षणों का कर देते हैं उनका भविष्य अंधकारमय हो जाता है ।स्वाध्याय के द्वारा वि का ज्ञानार्जन करके ही विद्यार्थी भावी जीवन के लिए अच्छी तरह त है । स्वाध्याय का सुख व्यक्ति को व्यर्थ विचलन और भटकाव से बच । कर आराम तलब हो मूल्य क्षणों को व्यर्थ नष्ट " यक द्वारा विविध विषयों अच्छी तरह तैयार हो पाता टिकाव से बचाता है । और इससे जीवन की दिशा निर्धारण में उसे मदद मिलती है ।

भारतीय संस्कृति के अनुसार जीवन को चार प्रमुख आश्रमों में बाँटा गया - ब्रह्मर्चय , गृहस्थ , वानप्रस्थ और सन्यास । इनमें सबसे महत्वपूर्ण और पूरे जीवन की आधार शिला ब्रह्मचर्य यानी विद्यार्थी जीवन पर ही टिकी हुई है ।

इसे श्लोक के द्वारा भी स्पष्ट किया गया है-- 
"प्रथमे नार्जिता विद्या,द्वितीये नार्जितं धनम् । 
तृतीये नार्जितं पुण्यं चतुर्थे किं करिष्यति ॥ 
अर्थात् --
जिसने जीवन की इन अवस्थाओं को पर कर लिया वही समग्र ज्ञानी है।
प्रथम अवस्था - ब्रह्मचर्याश्रम यानी विद्यार्थी जीवन में अच्छे स्वाध्याय के द्वारा विद्यार्जन नहीं किया ।
दूसरी अवस्था -यानी गृहस्थाश्रम में समुचित रूप से धनार्जन नहीं किया।
तीसरी अवस्था - वानप्रस्थाश्रम में पर्याप्त पुण्यार्जन नहीं किया ऐसा व्यक्ति ।
चौथी अवस्था - यानी संस्यासाश्रम में आखिर क्या करेगा ?

यही सब सोचकर विद्यार्थी को सदैव स्वाध्यायी एवं अध्यवसायी होना चाहिए ।

2- स्वाध्याय कैसे करें ? - 
      How to do self-study
स्वाध्याय में अधिक से अधिक समय तक पुस्तकें पढ़ते रहना ही काफी नहीं है । यह भी ध्यान देने योग्य है कि पुस्तकें विषय के अनुकूल प्रासंगिक एवं लाभदायक हों ।

पूरी तत्परता एवं मनन के साथ ही स्वाध्याय किया जाए । स्वाध्याय करते समय कलम तथा नोट बुक भी साथ लेकर बैठना चाहिए । ध्याननीय एवं मननीय बिन्दुओं को चिह्नित एवं रेखांकित करके उन्हें नोट कर लिया जाए ?

स्वाध्याय के समय समग्र एवं खण्ड विधि को काम में लाया जाय । अर्थात् पूरे प्रकरण को समग्र रूप से पढ़ा जाय उसके बाद उसे खण्ड या टुकड़ों में पढ़ें इस विधि से जब तक पूरा प्रकरण भली भांति याद न हो जाय या पूरी तरह समझ में न आ जाए इसी प्रकार अभ्यास करते रहें । यह विधि अधिक प्रभावी एवं कारगर होती है । कुछ बिन्दु फिर भी जटिल है तो उन्हें पृथक रूप से अंकित करके अपने वरिष्ठ जनों तथा गुरुजनों से पूछ कर स्पष्ट कर लेना चाहिए । कभी कभी सरसरी दृष्टि ( विहगंम् दृष्ट्या ) से भी स्वाध्याय किया जाता है । आकाश मार्ग से उड़ते हुए जैसे चिड़िया सब जगह सरसरी निगाह दौड़ाती रहती है कभी - कभी उसी तरह भी स्वाध्याय किया जाता है और कभी - कभी जब किसी प्रकरण को अच्छी तरह याद करना होता है तो उसका बार - बार सिंहावलोकन किया जाता है , अर्थात् जैसे शेर जंगल में चलते हुए बीच बीच में पीछे भी देखता हुआ जाता है । उसी तरह पाठ को आगे याद करने के साथ - साथ उसे पीछे भी दुहराते रहना।

शास्त्रों में कहा गया है--
"काव्य शास्त्र विनोदेन कालो गच्छति धीमताम् । " 
आदर्श विद्यार्थी अपने समय का एक - एक क्षण अच्छे और उपयोगी कार्यों में विताता है । उसका पूरा समय एक सुन्दर समय सारिणी के द्वारा बँधा हुआ होता है । समय का सही सदुपयोग ही जीवन की आदर्श कला है ।

3- स्वाध्याय की उपयोगिता - 
Usefulness of self study
अच्छी पुस्तकें एक अच्छी पथ प्रदर्शक तथा अच्छे मित्र की तरह होती है । अच्छे साहित्य के स्वाध्याय से मन में अच्छी एवं उदार भावनाएँ आती हैं । व्यक्ति सत्कर्मों की और सहज ही उन्मुख होता है अच्छ स्वाध्याय से अर्जित सद्ज्ञान के द्वारा मन में सुविचारों का सागर हिलोरे लेने लगता है । कुविचारों के दुष्चक्र से सहज ही मुक्ति मिल जाती है ।

एक सच्चा स्वाध्याया व्यक्ति सतत् आत्म निर्माण की दिशा में ही सोचता रहता है । वह अपने प्रतिदिन के कार्य का मूल्यांकन करके यह पता लगाता रहता है कि सुधार की दिशा में कदम प्रतिदिन कितने आगे बढ़े और अभी आगे कितना और मुझे जाना है । एक सच्चा स्वाध्यायी हर क्षण जाग्रत रहता है । उसके कानों में उपनिषदा क वचन गूंजते रहते है
"उत्तिष्ठ जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत् ।  
अविद्यया मृत्यु तीर्त्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते ॥ 

' सोऽहं , शिवोऽहं , सच्दिानंदोऽहम् , अयमात्मा ब्रह्मत्वमसि ' 

एक स्वाध्यायी की चितवृत्ति सीमित स्वार्थ की अपेक्षा परमार्थ एवं लोक कल्या ओर अधिक प्रवृत्त होती है । सर्वत्र ईश्वरदर्शन की सत्प्रेरणा उसे अच्छा से मिलती रहती है । वह सहज ही सद्गुणों से परिपूर्ण होता जाता है । दुर्गुणो दोषों से उसे सहज मुक्ति मिलती जाती है उसकी ज्ञान पिपासा , जिज्ञासा निर बढ़ती हुई उसकी अक्षुणण ज्ञान सम्पदा में निरन्तर वृद्धि करती जाती है ।

उस मस्तिष्क चिन्तनशील होता जाता है । उसके विचारों का , चिन्तन का सदैव व्यापक से व्यापकतर होता जाता है ।
(' वसुधैव कुटुम्बकम् ')
के स्तर पर जीने का अभ्यस्त होता हुआ वह संकीर्णता एवं क्षुद्रता के बंधनों से मुक्त हो जाता है । एक स्वाध्यायी समय का सदा सदुपयोग करके समाज के सम्मान एवं सदभावना का पात्र बन जाता है । उसमें नित्य खोजी बुद्धि का विकास होता जाता है । इसी कारण वह सही कार्य एवं गलत कार्यों के बीच अन्तर समझकर सही निर्णय करने की शक्ति से सम्पन्न हो जाता है ।

निष्कर्ष
आत्मविश्वास वैचारिक दृढता एवं चारित्रिक परिपक्वता के कारण एक सच्चे स्वाध्यायी में कुशल नेतृत्व शक्ति का सहज ही विकास होता जाता है । अभिरुचियों के परिष्कार एवं आदतों के परिमार्जन सेवा एक सुयोग्य आदर्श नागरिक के रूप में जाना जाता है । इस प्रकार स्वाध्याय रूपी कल्पवृक्ष को पाकर एक आदर्श स्वाध्यायी श्रेय सद्गुण , श्री , कीर्ति , यश सम्मान सब कुछ सहज ही पा लेता है । जीवन के चरम लक्ष्य तक पहुँचाने वाला यह पाथेय विद्यार्थी को सारे भौतिक एवं आध्यात्मिक संसाधनों से सुसम्पन्न कर देता है ।
इसीलिए " सफल जीवन का बस यही उपाय पढ़ें लिखें नित करें स्वाध्याय । "
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