Sunday 31 May 2020

18 पुराण व उपपुराणों का संक्षिप्त परिचय पुराणों का लक्षण, परिभाषा एवं महत्व , 18 Puranas and Uppuranas Brief Introduction

18 पुराण व उपपुराणों का संक्षिप्त परिचय
पुराणों का लक्षण, परिभाषा एवं महत्व 
18 Puranas and Uppuranas Brief Introduction
 Characteristics, Definition and Importance of Puranas

 दोस्तों भारत में प्राचीन संस्कृत-साहित्य में पुराण-साहित्य बहुत विशाल और गौरवमय है,18 purana in Hindi भारतीय अनुपम संस्कृती की विभिन्न परम्पराओं तथा वेदों के बाद पुराणों की ही मान्यता है। 18 purana in Hindi पुराणों को एक प्रकार से भारतीय सभ्यता, संस्कृति, राजनीति, भूगोल, इतिहास आदि का विश्वकोष कहा जा सकता है. चलिए जानते हैं पुराणों के बारे में. पुराणों के कितने भाग थे और उनकी संख्या कितनी थी। 18 purana in Hindi
के 18 भागों की संक्षिप्त चर्चा भी हम करेंगे, आपकों हम बता रहे है जिससे आपके ज्ञान में अवश्य वृद्धि होगी।

 हमारे धार्मिक ग्रन्थों व शास्त्रों में दो प्रकार के पुराण है-- 
1- महापुराण
2- उपपुराण
महापुराणों की संख्या 18 है और उपपुराण भी 18 हैं ।

पुराणसाहित्य ' को वौदिक साहित्य और लौकिक साहित्य की मध्यवर्ती कडी के रूप में स्वीकार किया जाता है । वेदों के दुर्वोध अर्थ को जनसामान्य के लिए बोधगम्य बनाने हेतु पुराणों का उदय हुआ । अथर्वसंहिता के अनुसार , ऋक् , साम , यजुः , छन्द एवं पुराण सभी एक साथ आविर्भूत हुए । gyansadhna.com बृहदारण्यकोपनिषद् में कहा गया है कि जैसे गीली अग्नि की आग से धुआं निकलता है ; उसी प्रकार इस महाभूत से ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद , अथर्ववेद , इतिहास , पुराण , उपनिषद विद्या , श्लोक , सूत्र , अनुव्याख्यान एवं व्याख्यान नि : श्वासरूप से उद्भूत हुए ।

ब्रह्माण्डपुराण के अनुसार सर्वप्रथम ब्रह्म के पुराणों का स्मरण किया । वेद का वास्तविक स्वरूप पुराणों में ही वर्णित है । ब्रह्मपुराण का उपर्युक्त तथ्य का उल्लेख करते हुए महामहोपाध्याय पण्डित गिरधर शर्मा चतुर्वेदी ने पुराणों की अनादिता नामक शीर्षक के अन्तर्गत लिखा है कि कलियुग के प्रारम्भ में मनुष्यों की स्मृति एवं बुद्धिदौर्बल्य को देखकर भगवान वेदव्यास ने जहाँ वेदों को चार सहिंताओं में विभाजित किया है , वहीं पुराणों को भी सक्षिप्त रूप में अट्ठारह विधाओं के रूप में प्रस्तुत किया ।

पुराण का महत्व,लक्षण एवं परिभाषा
Importance, characteristics and definition of Purana

पुराण की परिभाषा तथा लक्षण ज्ञात करने के लिए ' पुराण ' शब्द की व्युत्पत्ति करना आवश्यक है ।

(पुराणं कस्मात् ? पुरा नवं भवति ।')                  महार्षि यास्क
अर्थात अतीत काल में नया होता है ।

(यस्मात् पुरा हि अनति इदं पुराणम् ।) -वायुपुराणकार महर्षि '

पुराण ' शब्द की एक व्युत्पत्ति ' पुराणात् पुराणम् ' भी है । इसका अभिप्राय यह है कि वेदार्थ के पूरण करने के कारण ही इन ग्रन्थोंको पुराण कहा गया है । इसी व्युत्पत्ति के आधार पर जीव गोस्वामी ने पुराणों को वेदों के ही समान अपौरुषेय बतलाया है । 

परिभाषा (Definition)
सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च ।
वंशानुचरितञ्चैव पुराणं पञ्चलक्षणम् ।।

अर्थात - पुराणों में पांच वातों का लक्षण होना चाहिए '
1- सृष्ट्युत्पत्ति
2- सृष्टिसंहार
3- सृष्टि की आदिवंशावली
4- मन्वन्तर - अर्थात् विविध मनुष्यों की कालावधि ,
5- वंशानुचरित - अर्थात् सूर्य तथा चद्रवंशों का इतिहास ।

वर्तमान समय में उपलब्ध पुराणों में इन विषयों के अतिरिक्त बहुत से अन्यान्य विषय , स्तुति , उपवास , उत्सव , पर्व एवं तीर्थ आदि का अत्यन्त विस्तृत वर्णन पाया जाता है । केवल विष्णुपुराण में ही से सभी लक्षण घटित होते हुए दिखाई पड़ते हैं । इससे यह समझा जाता है कि प्राचीन काल में सभी पुराणों में उपर्युक्त तथ्य दृष्टिगत होते थे , किन्तु कालान्तर में ऐसे ही विषय भी उनमें जोड़ दृष्टिगत होते थे , किन्तु कालान्तर में ऐसे ही विषय भी उनमें दिए गए जिनका उनसे कोई संबंध नहीं है ।

उपपुराण तथा महापुराण --
उपपुराणों की संख्या 30 तथा महापुराणों संख्या 18 मानी जाती है । महार्षि कृष्णद्वैपायन व्यास द्वारा विरचित तथा ख्याति प्राप्त , प्राचीन पुराणों को महापुराण तथा उसके वाद विविध विद्वानों द्वारा विरचित पुराणग्रंथों को ' उपपुराण ' के नाम से जाना जाता है ।

महापुराणों का संक्षिप्त परिचय --
1- ब्रह्मपुराण -
अष्टादश महापुराणों में ब्रह्मपुराण सर्वाधिक प्राचीन है ; अत : इसे आदि पुराण भी कहते हैं । ऐसा कहा जाता है कि वेदव्यास ने सर्वप्रथम इसी पुराण की रचना की । इसमें उड़ीसा के तीर्थों के विस्तृत वर्णन के साथ - साथ सूर्य और शिव में अभेद प्रदर्शित करते हुए उनकी महत्ता का वर्णन किया गया है । इसके परिशिष्ट भाग को ' सौरपुराण ' के नाम से जाना जाता है ; जिसमें पुरी के समीप कोणार्क में निर्मित पूर्वमन्दिर ( 1241 ई . लगभग ) का उल्लेख है । विष्णु , शिव , भागवत , नारद , ब्रह्मवैवर्त , मार्कण्डेय , तथा देवी भागवतपुराणों में ब्रह्मपुराण की श्लोक संख्या 10,000 बताई गई है । किंतु लिंग वाराह , कूर्म , मत्स्य , तथा पदम पुराणों में यह संख्या 13,000 बताई गई है । बम्बई ( मुम्बई ) से प्रकाशित ब्रह्मपुराण में कुल 13787 श्लोक हैं ।

2- पद्मपुराण -
सम्प्रति पद्मपुराण पाँच खण्डों में उपलब्ध होते हैं --
1- सृष्टिखण्ड ,
2- भूमिखण्ड ,
3- स्वर्गखण्ड
4- पातालखण्ड ,
5- उत्तखण्ड ।
पदम् ' से ब्रह्म की उत्पत्ति प्रदर्शित करने के कारण यह पद्मपुराण के नाम से प्रसिद्ध है । इसमें ब्रह्म , विष्णु तथा शिव , तीनों के एकत्व की उद्भावना की गई है । श्रीकृष्ण की पत्नी के रूप में यहां राधा का उल्लेख हुआ है । शकुन्तला एवं राम की कथाओं के साथ अनेक कथाएं भी इसमें वर्णित हैं । इसकी सम्पूर्ण श्लोक संख्या 55000 है ।

3- विष्णुपुराण -
समस्त पौराणिक लक्षणों से परिपूर्ण इस में अवतारों के माध्यम से विष्णु की स्तुति की गई है । किंतु विष्णुभक्तों के व्रत , उत्सव तथा मन्दिर आदि का कहीं कोई वर्णन नहीं है । ध्यातव्य है कि इसमें मौर्यवंशी राजाओं का भी संकेत मिलता है । विष्णु पुराण के बम्बई संस्करण में कुल 16000 श्लोक हैं , जबकि अन्य पुराणों में यह संख्या 23000 बताई गई है ।

4- वायु पुराण / शिवपुराण -
कुछ विद्वान वायुपुराण और शिवपुराण को एकमात्र पुराण के रूप में स्वीकार करते हैं , जबकि कुछ विद्वान दोनों पुराणों में किञ्चित भेद मानते हैं । सृष्टि आदि के अतिरिक्त यहाँ पर अन्यान्य विविधि विषयों का वर्णन है , किंतु इसका प्रधान उद्देश शिव - स्तुति ही है । ध्यातव्य है कि इसके दो अध्याय विष्णुपरक हैं ; जिसमें गुप्त साम्राज्य का वर्णन है । जिसका संकेत महाकवि वाण भट्ट ने अपनी कादम्वरी से किया है । ' पुराणेषु वायुप्रलपितम् ' । इस पुराण के 104 वें अध्याय में अष्टादश - पुराणों की श्लोक संख्या प्रदर्शित की गई है । इस पुराण के बम्बई संस्करण में कुल सात खण्ड तथा 24000 श्लोक हैं , जबकि स्वयं वायुपुराण के 104 वें अध्याय के अनुसार इसमें कुल 23000 श्लोक थे ।

5- भागवतपुराण-
यह पुराण सर्वाधिक प्रसिद्ध तथा लोकप्रिय पुराणार्द्ध इसमें कुल 12 स्कन्द तथा 18000 श्लोक हैं । इसमें भगवान श्रीकृष्ण का चरित्र अत्यन्त विस्तार के साथ वर्णित है । इसका दशम स्कन्द श्रीकृष्ण लीला के कारण अत्यन्त प्रसिद्ध है । इसमें गौतमबुद्ध तथा कपिलमुनि को भी विष्णु का अवतार बतलाया गया है । इस ग्रंथ को वैदुष्य की कसौटी के रूप में जाना जाता है - ' विधावतां भागवते परीक्षा ' । ध्यातव्य है कि भागवतपुराण के ही समान देवी भागवत पुराण में भी 12 स्कन्द तथा 18000 श्लोक पाए जाते हैं । भागवतों का ग्रन्थ भागवतमहापुराण है , जबकि शाक्तों का ग्रन्थ देवीभागवतमहापुराण कहा जाता है ।

6- नारदपुराण -
इसे वृहन्नारदीय पुराण भी कहते हैं । इसमें विष्णु की महिमा तथा विष्णु की भक्ति का वर्णन है । यह विशुद्ध रूप से वैष्णव पुराण है तथा इसमें पुराणों के प्रतिपाद्य सृष्टि , प्रलय आदि की चर्चा तक इसमें नहीं है । सम्पूर्ण नारदपुराण दो खण्डों में विभक्त है । पूर्वखण्ड में 125 अध्याय तथा उत्तरखण्ड में 82 अध्याय हैं । इस पुराण के अन्दर ही वर्तमान साक्ष्यों के अनुसार कुल 25000 श्लोक थे । ध्यातव्य है कि इस पुराण विष्णुभक्ति को ही मोक्षप्राप्ति का साधन बताया गया है ।

7- अग्निपुराण -
अपने विषय वैविध्य के कारण यह पुराण आटादश पुराणों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । इसमें अष्टादश विद्याओं का वर्णन , रामायण , महाभारत , हरिवंश आदि ग्रंथों का सार धनुर्वेद ,
गान्धर्ववेद , आयुर्वेद , अर्थशास्त्र , दर्शन , व्याकरण , कोश , काव्य तथा भारतीय - संस्कृति आदि का विशिष्ट वर्णन किया गया है । इसकी सम्पूर्ण श्लोकसंख्या 15000 है ।

8- ब्रह्मवैवर्तपुराण -
सम्पूर्ण सृष्टि को ब्रह्म का विवर्त ( माया ) बतलाने के कारण यह पुराण ' ब्रह्म वैवर्तपुराण ' कहा जाता है । पूर्वोक्त भागवत और नारदीय पुराण की भाँति यह भी विशुद्ध वैष्णवपुराण है ।

यह पुराण कुल चार खण्डों में विभक्त है -
1-  ब्रह्मखण्ड ,
2- प्रकृतिखण्ड ,
3- गणेशखण्ड तथा
4- कृष्णजन्मखण्ड ।

ब्रह्मखण्ड में सृष्टि का वर्णन हैं । प्रकृतिखण्ड में कृष्ण के आदेश से दुर्गा , लक्ष्मी , सरस्वती , सावित्री , राधा आदि रूपों में प्रकृति ही परिवर्तित होती है । गणेश खण्ड में गणेश को कृष्ण के अवतार के रूप में वर्णित किया गया है । अन्तिम खण्ड श्रीकृष्णजन्म में कृष्ण के जन्म , युद्ध तथा रासलीला का वर्णन है । इस पुराण की श्लोक संख्या 18000 है ।

9- वराहपुराण -
भगवान विष्णु के वराह अवतार का निदर्शन होने के कारण यह वराहपुराण के नाम से जाना जाता है ; जो एक वैष्णवपुराण है । सृष्टि तथा वंशानुक्रम का वर्णन होने के बाद भी वह पौराणिक लक्षणों की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है । इसमें शिव , दुर्गा तथा गणेश की स्तुतियों के अतिरिक्त श्राद्ध , प्रायश्चित तथा देव मूर्तियों की प्रतिष्ठापना का भी वर्णन है । एशियाटिक सोसायटी बंगाल संस्करण के अनुसार इसमें कुल 15000 श्लोक हैं ।

10- स्कन्दपुराण -
आकार की दृष्टि से अष्टादशपुराणों में यह वृहत्तय ग्रन्थ है । मूलतः इसमें 81100 श्लोक थे , किंतु वेंकटेश्वर प्रेस संस्करण में कुल 81000 श्लोक हैं । यह पुराण शैवपुराण होते हुए भी अन्य सम्प्रदाय वालों के लिए भी पर्याप्त , सामग्री समाहित किए हुए है । भारत के विभिन्न तीर्थस्थानों का वर्णन होने के कारण भौगोलिक दृष्टि से इस पुराण का बहुत बड़ा महत्त्व है । इसका सर्वाधिक प्रचार दक्षिण भारत में हुआ है ।

11- मार्कण्डेय पुराण -
निवृत्ति एवं प्रवृत्ति - लक्षण - सम्पन्न बहुसंवत्सर जीवी मार्कण्डेय मुनि द्वारा महाभारत के पात्रों के संदर्भ में किए गए अनेकशः प्रश्नों ( यथा , कृष्ण मानव कैसे बने ? ) का समाधान किए जाने के कारण इसे मार्कण्डेय पुराण कहा गया है । इसमें इन्द्र , ब्रह्म , आग्नि और सूर्य को प्रमुखता है । ' दुर्गासप्तशती ' इसी पुराण का एक अंश है । मूलतः इसमें कुल 9000 श्लोक थे , किन्तु वर्तमान समय में 6900 श्लोक ही उपल्बध होते हैं ।

12- वामनपुराण - 
इस पुराण में विष्णु के वामन अवतार की प्रमुखता होने के कारण इसे वामनपुराण ' की संज्ञा से आभीहित किया गया है । गौणरूप में लिंग पूजा तथा शिव - पार्वती - विवाह का भी इसमें वर्णन हुआ है । इसकी सम्पूर्ण श्लोक संख्या 10000 है ।

13- कूर्मपुराण -
इस पुराण में विष्णु के विविध अवतारों के साथ - साथ कर्मावतार का विशिष्ट वर्णन होने के कारण इसे कूर्मपुराण कहा जाता है । विष्णु के अलावा यहाँ पर शिव के अवतारों का भी वर्णन प्राप्त होता है । नारद पुराण के अनुसार इसमें कुल 17000 श्लोक थे , किंतु सम्पत्ति 6000 श्लोक ही उपलब्ध होते हैं ।

14- मत्स्यपुराण-
मौलिकता और प्राचीनता की दृष्टि से मतस्यपुराण का अन्यतम स्थान है । इसमें मत्स्यावतार से संबद्ध जलप्लावन का आख्यान वर्णित है ; जिसमें मत्स्य का रूप धारण करके भगवान विष्णु ने जल प्रलय के समय मनु को को वचाया था । इसमें वैष्णवों के धार्मिक कृत्यों के साथ - साथ शैवों के कृत्यों का भी वर्णन है । भवन - निर्माण , दक्षिण भारतीय वास्तुकला तथा मूतिकला का इसमें बहुत सुन्दर निदर्शन होता है । इसकी सम्पूर्ण श्लोक संख्या 14000 है ।

15- गरूड़ पुराण -
इस पुराण की कथा को विष्णु ने कश्यप को सुनाया था । पौराणिक विषयों के साथ - साथ इसमें विष्णुभक्ति वैष्णव धार्मिक कृत्य तथा प्रायश्चित आदि का विवरण है । इसमें गणित और फलित ज्योतिष , औषधियाँ , रत्न तथा व्याकरणादि विषयों का वर्णन है । जिसका पौराणिक लक्ष्णों एवं उद्देशों से कोई संबंध नहीं है । गरुडपुराण का उत्तरखण्ड ही प्रेतकल्प कहा जाता है ; जिसमें मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति , मनमार्ग , प्रेतों की गति , पुनर्जन्म तथा उससे मुक्ति एवं मृतक के निर्मित किए जाने वाले क्रिया कलापों का वर्णन है । श्राद्ध अवसर पर इसका पाठ भी किया जाता है । इसकी सम्पूर्ण श्लोकसंख्या 18000 है ।

16- ब्रह्माण्डपुराण -
यह उपाख्यानों तीर्थमाहात्म्यों एवं स्तोत्रों का बृहद् संग्रह है । इसके सात खण्डों में अध्यात्म रामायण वर्णित है । इसका कथन है कि अद्वैतभावना और रामभक्ति से मोक्ष की प्राप्ति होती है । इसकी सम्पूर्ण श्लोक संख्या 12000 है ।

17- लिङ पुराण -
इस महापुराण में शिवभक्ति , लिंगपूजा एवं शिव के 28 अवतारों का वर्णन है । कर्मकाण्ड इसका मुख्य प्रतिपाद्य विषय है । इसकी श्लोक संख्या 11000 है ।

18- भविष्यपुराण -
इसमें भविष्य के लिए महत्त्वपूर्ण भविष्यवाणियाँ की गई हैं । इसमें चारो वर्णों के कर्तव्यों तथा सूर्य , अग्नि एवं नागदेवों की पूजा का विवरण है । इसके अनेक सर्याख्यानों में नागपन्चमी व्रत के अन्तर्गत सर्पदैत्यों की गणना है । उद्भिजविद्या पर ऐसा व्यापक प्रकाश डाला गया है ; जो आधुनिक वैज्ञानिकों के पथप्रदर्शन में सर्वथा समर्थ हैं ।

उपपुराण -
वर्तमान समय में प्राप्त 30 उपपुराण निम्नलिखित ---
(1) सनत्कुमारपुराण
(2) नरसिंह पुराण
(3) बृहन्नारदीयपुराण
(4) शिवधर्मपुराण
(5)दुर्वाससपुराण
(6)कपिलपुराण
(7)मानवपुराण
(8) उशनस्पुराण
(9)वारुणपुराण
(10)कालिकापुराण
(11)साम्बपुराण
(12)नन्दकेश्वर पुराण
(13) सौरपुराण
(14) पाराशरपुराण
(15) आदित्यपुराण
(16) ब्रह्माण्डपुराण
(17) माहेश्वरपुराण
(18) भागवतपुराण
(19) देवीभागवतपुराण
(20) महाभागवतपुराण
(21) वरिष्ठ पुराण
(22)कौर्मपुराण
(23)भार्गवपुराण
(24)आदिपुराण
(25) मुद्गलपुराण
(26)कल्किपुराण
(27) बृहदधर्मपुराण (28)परानन्दपुराण
(29) पशुपतिपुराण
(30) हरिवंशपुराण


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