हिन्दी साहित्य के (8) महत्वपूर्ण लेखकों की संक्षिप्त जीवनी व जीवन चरित्र तथा उनकी प्रमुख रचनाएँ
Brief biographies and biographies of (8) important writers of Hindi literature and their major compositions
इस ब्लॉग पर हिन्दी व्याकरण रस,और सन्धि प्रकरण, तथा हिन्दी अलंकारMotivational Quotes, Best Shayari, WhatsApp Status in Hindi के साथ-साथ और भी कई प्रकार के Hindi Quotes ,संस्कृत सुभाषितानी, सफलता के सूत्र, गायत्री मंत्र का अर्थ आदि gyansadhna.com शेयर कर रहा हूँ ।
1- मुंशी प्रेमचंद
प्रेमचंद का जन्म सन् 1880 में बनारस के लमही गाँव में हुआ था । उनका मूल नाम धनपत राय था । प्रेमचंद का बचपन अभावों में बीता और शिक्षा बी . ए . तक ही हो पाई । उन्होंने शिक्षा विभाग में नौकरी की परंतु असहयोग आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के लिए सरकारी नौकरी से त्यागपत्रं दे दिया और लेखन कार्य के प्रति पूरी तरह समर्पित हो गए । सन् 1936 में इस महान कथाकार का देहांत हो गया ।प्रेमचंद की कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित हैं--
1-सेवासदन 2- प्रेमाश्रम ,
3- रंगभूमि , 4- कायाकल्प ,
5- निर्मला , 6- गबन ,
7- कर्मभूमि , 8- गोदान
ये उनके प्रमुख उपन्यास हैं । उन्होंने हंस , जागरण , माधुरी आदि पत्रिकाओं का संपादन भी किया । कथा साहित्य के अतिरिक्त प्रेमचंद ने निबंध एवं अन्य प्रकार का गद्य लेखन भी प्रचुर मात्रा में किया ।
प्रेमचंद साहित्य को सामाजिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम मानते थे । उन्होंने जिस गाँव और शहर के परिवेश को देखा और जिया उसकी अभिव्यक्ति उनके कथा साहित्य में मिलती है । किसानों और मजदूरों की दयनीय स्थिति , दलितों का शोषण , समाज में स्त्री की दुर्दशा और स्वाधीनता आंदोलन आदि उनकी रचनाओं के मूल विषय हैं ।
प्रेमचंद के कथा साहित्य का संसार बहुत व्यापक है । उसमें मनुष्य ही नहीं पश - पक्षियों को भी अद्भुत आत्मीयता मिली है । बड़ी से बड़ी बात को - सरल भाषा में सीधे और संक्षेप में कहना प्रेमचंद के लेखन की प्रमुख विशेषता है।
उनकी भाषा सरल, सजीव एवं मुहावरे दार है, तथा उन्होने लोक प्रचलित शब्दों का प्रयोग कुशलतापूर्वक किया है।
2- राहुल सांकृत्यायन
राहुल सांकृत्यायन का जन्म सन् 1893 में उनके ननिहाल गाँव पंदहा , जिला आजमगढ़ ( उत्तर प्रदेश ) में हुआ । उनका पैतृक गाँव कनैला था । उनका मूल नाम केदार पांडेय था । उनकी शिक्षा काशी , आगरा और लाहौर में हुई ।सन् 1930 में उन्होंने श्रीलंका जाकर बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया । तबसे उनका नाम राहुल सांकृत्यायन हो गया ।
राहुल जी पालि , प्राकृत , अपभ्रंश , तिब्बती , चीनी , जापानी , रूसी सहित अनेक भाषाओं के जानकार थे । उन्हें महापंडित कहा जाता था । सन् 1963 में उनका देहांत हो गया ।
राहुल सांकृत्यायन ने उपन्यास , कहानी , आत्मकथा , यात्रावृत्त , जीवनी , आलोचना , शोध आदि अनेक विधाओं में साहित्य - सृजन किया । इतना ही नहीं उन्होंने अनेक ग्रंथों का हिंदी में अनुवाद भी किया । मेरी जीवन यात्रा ( छह भाग ) , दर्शन - दिग्दर्शन , बाइसवीं सदी , वोल्गा से गंगा , भागो नहीं दुनिया को बदलो , दिमागी गुलामी , घुमक्कड़ शास्त्र उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं । साहित्य के अलावा दर्शन , राजनीति , धर्म , इतिहास , विज्ञान आदि विभिन्न विषयों पर राहुल जी द्वारा रचित पुस्तकों की संख्या लगभग 150 है ।
राहुल जी ने बहुत सी लुप्तप्राय सामग्री का उद्धार कर अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य किया है । यात्रावृत्त लेखन में राहुल जी का स्थान अन्यतम है । उन्होंने घुमक्कड़ी का शास्त्र रचा और उससे होने वाले लाभों का विस्तार से वर्णन करते हुए मंज़िल के स्थान पर यात्रा को ही घुमक्कड़ का उद्देश्य बताया ।
घुमक्कड़ी से मनोरंजन , ज्ञानवर्धन एवं अज्ञात स्थलों की जानकारी के साथ - साथ भाषा एवं संस्कृति का भी आदान - प्रदान होता है । राहुल जी ने विभिन्न स्थानों के भौगोलिक वर्णन के अतिरिक्त वहाँ के जन जीवन की सुंदर झाँकी प्रस्तुत की है ।
3- श्यामाचरण दुबे
श्यामाचरण दुबे का जन्म सन् 1922 में मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में हुआ । उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से मानव विज्ञान में पीएच . डी . की । वे भारत के अग्रणी समाज वैज्ञानिक रहे हैं । उनका देहांत सन् 1996 में हुआ ।उनके महत्वपूर्ण लेख (रचनाएँ) है--
1- मानव और संस्कृति ,
2- परंपरा और इतिहास बोध ,
3- संस्कृति तथा शिक्षा ,
4- समाज और भविष्य ,
5- भारतीय ग्राम ,
6- संक्रमण की पीड़ा ,
7- विकास का समाजशास्त्र ,
8- समय और संस्कृति
प्रो . दुबे ने विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्यापन किया तथा र संस्थानों में प्रमुख पदों पर रहे । जीवन , समाज और संस्कृति के विषयों पर उनके विश्लेषण एवं स्थापनाएँ उल्लेखनीय हैं ।
भारत की और ग्रामीण समुदायों पर केंद्रित उनके लेखों ने बृहत समुदाय . आकर्षित किया है । वे जटिल विचारों को तार्किक विश्लेषण के साथ सहज भाषा में प्रस्तत करते है।
4- जाबिर हुसैन
जाबिर हुसैन का जन्म सन् 1945 में गाँव नौनहीं राजगीर , जिला नालंदा , बिहार में हुआ । वे अंग्रेजी भाषा एवं साहित्य के प्राध्यापक रहे । सक्रिय राजनीति में भाग लेते हुए 1977 में मुंगेर से बिहार विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए और मंत्री बने । सन् 1995 से बिहार विधान परिषद् के सभापति हैं ।जाबिर हुसैन हिंदी , उर्दू तथा अंग्रेज़ी - तीनों भाषाओं में समान अधिकार के साथ लेखन करते रहे हैं ।
उनकी हिंदी रचनाओं में जो आगे हैं--
1- डोला बीबी का मज़ार ,
2- अतीत का चेहरा ,
3- लोगां ,
4- एक नदी रेत भरी
अपने लंबे राजनैतिक - सामाजिक जीवन के अनुभवों में उपस्थित आम आदमी के संघर्षों को उन्होंने अपने साहित्य में प्रकट किया है । संघर्षरत आम आदमी और विशिष्ट व्यक्तित्वों पर लिखी गई उनकी डायरियाँ चर्चित - प्रशंसित हई हैं । जाबिर हुसैन ने डायरी विधा में एक अभिनव प्रयोग किया है जो अपनी प्रस्तुति , शैली और शिल्प में नवीन है ।
5- चपला देवी
चपला देवी द्विवेदी युग की लेखिका चपला देवी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाई । स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पुरुष - लेखकों . के साथ - साथ अनेक महिलाओं ने भी अपने - अपने लेखन से आज़ादी के आंदोलन को गति दी । उनमें से एक लेखिका चपला देवी भी रही हैं । कई बार अनेक रचनाकार इतिहास में दर्ज होने से रह जाते हैं , चपला देवी भी उन्हीं में से एक हैं ।यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है कि सन् 1857 की क्रांति के विद्रोही नेता धुंधूपंत नाना साहब की पुत्री बालिका मैना आज़ादी की नन्हीं सिपाही थी जिसे अंग्रेजों ने जलाकर मार डाला । बालिका - मैना के बलिदान की कहानी को चपला देवी ने इस गद्य रचना में प्रस्तुत किया है । यह गद्य रचना जिस शैली में लिखी गई है उसे हम रिपोर्ताज का प्रारंभिक रूप कह सकते हैं ।
6- हरिशंकर परसाई
हरिशंकर परसाई जी का जन्म सन् 1922 में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी गाँव में हुआ । नागपुर विश्वविद्यालय से एम०ए० करने के बाद दिनों तक अध्यापन किया । सन् 1947 से स्वतंत्र लेखन करने लगे । सभा नामक पत्रिका निकाली , जिसकी हिंदी संसार में काफ़ी सराहना हई । सन् 1995 में उनका निधन हो गया ।
हिंदी के व्यंग्य लेखकों में उनका नाम अग्रणी है ।
परसाई जी की कतियों मे है---
1- रोते हैं ,
2- जैसे उनके दिन फिरे ( कहानी संग्रह ) ,
3- रानी नागफनी की कहानी ,
4- तट की खोज ( उपन्यास ) ,
5- तब की बात और त के पाँव पीछे ,
6- बेईमानी की परत ,
7- पगडंडियों का ज़माना ,
8- सदाचार का तावीज़ ,
9- शिकायत मुझे भी है ,
10- और अंत में , ( निबंध संग्रह ) ,
11- वैष्णव की फिसलन ,
12- तिरछी रेखाएँ ,
13- ठिठुरता हुआ गणतंत्र,
14- विकलांग श्रद्धा का दौर ( व्यंग्य संग्रह )
महत्वपूर्ण उल्लेखनीय हैं ।
भारतीय जीवन के पाखंड , भ्रष्टाचार , अंतर्विरोध , बेईमानी आदि पर लिखे उनके व्यंग्य लेखों ने शोषण के विरुद्ध साहित्य की भूमिका का निर्वाह किया । उनका व्यंग्य लेखन परिवर्तन की चेतना पैदा करता है । कोरे हास्य से अलग यह व्यंग्य आदर्श के पक्ष में अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है ।
सामाजिक , राजनैतिक और धार्मिक पाखंड पर लिखे उनके व्यंग्यों ने व्यंग्य - साहित्य के मानकों का निर्माण किया । परसाई जी बोलचाल की सामान्य भाषा का प्रयोग करते है,किन्तु संरचना के अनूठेपन के कारण उनकी भाषा की मारक क्षमता बहुत बढ जाती है।
7- महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा जी का जन्म सन् 1907 में उत्तर प्रदेश के फ़र्रुखाबाद शहर में हआ था । उनकी शिक्षा - दीक्षा प्रयाग में हुई । प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्राचार्या पद पर लंबे समय तक कार्य करते हुए उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए काफ़ी प्रयत्न किए । सन् 1987 में उनका देहांत हो गया ।
महादेवी जी छायावाद के प्रमुख कवियों में से एक थीं ।
(नीहार , रश्मि , नीरजा , यामा , दीपशिखा)
उनके प्रमुख काव्य संग्रह हैं । कविता के साथ - साथ उन्होंने सशक्त गद्य रचनाएँ भी लिखी हैं जिनमें रेखाचित्र तथा संस्मरण प्रमुख हैं ।
( अतीत के चलचित्र , स्मृति की रेखाएँ , पथ के साथी , शृंखला की कड़ियाँ )
उनकी महत्वपूर्ण गद्य रचनाएँ हैं । महादेवी वर्मा को साहित्य अकादमी एवं ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया । भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से अलंकृत किया । . . महादेवी वर्मा की साहित्य साधना के पीछे एक ओर आज़ादी के आंदोलन की प्रेरणा है तो दसरी ओर भारतीय समाज में स्त्री जीवन की वास्तविक स्थिति का बोध भी है ।
हिंदी गद्य साहित्य में संस्मरण एवं रखाचित्र को बुलंदियों तक पहुँचाने का श्रेय महादेवी जी को है । उनके सस्मरणों और रेखाचित्रों में शोषित , पीडित लोगों के प्रति ही नहीं बाल्क पशु - पक्षियों के लिए भी आत्मीयता एवं अक्षय करुणा प्रकट हुइ शला सरल एवं स्पष्ट है तथा शब्द चयन प्रभावपूर्ण और चित्रात्मक ।
8- हजारीप्रसाद द्विवेदी
हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1907 में गाँव आरत दबे का जिला बलिया ( उत्तर प्रदेश ) में हुआ । उन्होंने उच्च विश्वविद्यालय से प्राप्त की तथा शांतिनिकेतन , काशी हि एवं पंजाब विश्वविद्यालय में अध्याप न विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया । सन् 1979 में उनका देहांत हो गया ।
साहित्य का इतिहास , आलोचना , शोध , उपन्यास और निबंध लेखन के में द्विवेदी जी का योगदान विशेष उल्लेखनीय है ।
उनकी प्रमुख रचनाएँ है---
1- अशोक के फल ,
2- कटज ,
3- कल्पलता इत्यादि ललित निबंध,
4- चार उपन्यास ,
5- बाणभट्ट की आत्मकथा ,
6- चारूचन्द्र लेख ,
7- पुनर्नवा ,
8- अनामदास का पोथा और आलोचना साहित्य -
9- हिंदी साहित्य का उद्भव और विकास ,
10- हिंदी साहित्य की भूमिका ,
11- कबीर
यह उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं ।
उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार एवं पद्मभूषण अलंकरण से सम्मानित किया गया । द्विवेदी जी ने साहित्य की अनेक विधाओं में उच्च कोटि की रचनाएँ की । उनके ललित निबंध विशेष उल्लेखनीय हैं । जटिल , गंभीर और दर्शन प्रधान बातों को भी सरल , सुबोध एवं मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत करना द्विवेदी जी के लेखन की विशेषता है ।
उनका रचना - कर्म एक सहृदय विद्वान का रचना - कर्म है जिसमें शास्त्र के ज्ञान , परंपरा के बोध और लोकजीवन के अनुभव का सृजनात्मक सामंजस्य है ।
अन्य सम्बन्धित लेख साहित्य--
- सामान्य हिन्दी साहित्य के 222-अती महत्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
- हिन्दी साहित्य के अति महत्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
- हिन्दी साहित्य का काल विभाजन एवं रचनाएँ
- हिन्दी व्याकरण के महत्वपूर्ण प्रश्न
- सामान्य हिन्दी के रिक्त स्थान वाले महत्वपूर्ण प्रश्न
- सामान्य हिन्दी संज्ञा,सर्वनाम, विशेषण के महत्वपूर्ण प्रश्न
- सामान्य हिन्दी की महत्वपूर्ण पत्रिकाएँ
- हिन्दी साहित्य के 101 अति महत्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
0 comments: