Friday 8 May 2020

हिन्दी साहित्य (भाग-13) मध्यकालीन बोध(ज्ञान) और आधुनिक बोध (ज्ञान) मे अन्तर,Modern Bodh (Knowledge

हिन्दी साहित्य (भाग-13) मध्यकालीन बोध(ज्ञान) और आधुनिक बोध (ज्ञान) मे अन्तर 
Hindi Literature (Part-13) Difference between Medieval Bodh (Knowledge) and Modern Bodh (Knowledge

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मध्यकालीन बोध और आधुनिक बोध में अंतर प्रत्येक कालखंड में युगीन परिस्थितियों अथवा वातावरण के कारण विभिन्न स्तरों पर भिन्नता होना अनिवार्य होता है । स्पष्टतः मध्यकालीन बोध और आधुनिक बोध में भी पर्याप्त अंतर देखा जा सकता है  --

1- मध्यकाल ' शब्द का स्पष्ट अर्थ आधुनिक काल का पूर्ववर्ती काल है और दूसरा अर्थ है प्राचीन काल के बाद का । वहीं ' आधुनिक काल ' नूतनता तथा विभिन्न प्रकार के परिवर्तनों की ओर संकेत करता है ।

2- आधुनिककाल ' में सामान्य मनुष्य विभिन्न स्तरों ( जैसे - सामाजिक , राजनीतिक तथा आर्थिक ) पर परिवर्तित होने का बाध्य हुआ , किंतु मध्यकाल में उसके लिए ऐसी परिस्थितियाँ नहीं बनी थी ।

3- वर्ण्य - विषय की दृष्टि से मध्यकाल में भक्ति भावना , शृंगार , प्रेम , वीरता , प्रशस्ति , नीति तथा काव्यशास्त्रीय विवेचन की प्रधानता रही , किंतु आधुनिक काल में वर्ण्य - विषय राष्ट्रीयता , संघर्ष , राजतंत्र , प्रजातंत्र , विकास तथा विभिन्न प्रकार की समस्याओं पर केंद्रित रहे ।

4- हिंदी साहित्य में आधुनिक काल का आरंभ सन् 1857 से माना जाता है जब भारतवर्ष ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश साम्राज्य का उपनिवेश बन गया । आर्थिक , शैक्षणिक और प्रशासनिक नीतियों में परिवर्तन होने से इस देश के लोग भी नये संदर्भ में कुछ नया सोचने और करने के लिए बाध्य हुए । साहित्य मनुष्य के बृहत्तर सुख - दुख के साथ पहली बार जुड़ा । पद्य के साथ - साथ गद्य का आविर्भाव तेजी से हुआ । नयी अभिव्यक्ति हेतु ब्रजभाषा के स्थान पर खड़ीबोली का प्रचार - प्रसार व्यापक स्तर पर हुआ ।

5- ढांचागत आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन आधुनिक बोध तथा मध्यकालीन बोध की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं । आधुनिक काल के पूर्व भारतीय गाँवों का आर्थिक तथा सामाजिक ढांचा प्रायः अपरिवर्तनशील और स्थिर रहा । अंग्रेजी राज्य की स्थापना के साथ - साथ इस देश की सामाजिक संरचना में विघटन और परिवर्तन लक्षित होने लगे । अनेक जातियों उपजातियों में विभक्त इस देश में पारस्परिक एकता का सर्वदा अभाव रहा है । विदेशी मुसलमानों की विजय का कारण भी यही था और अंग्रेजों की विजय का भी । पुरातन आर्थिक व्यवस्था के छिन्न - भिन्न होने पर जाति प्रथा शिथिल तो हुई , पर मिट नहीं सकी । आधुनिक काल में इस प्रथा पर करारी चोट की गई । मुस्लिम शासक यायावर थे और सामाजिक विकास की दृष्टि से उन्नत नहीं थे । उनकी स्थिति पूर्व - सामंतीय थी । फलत : वे यहाँ के सामाजिक ढांचे में कोई बुनियादी परिवर्तन नहीं ला सके । आर्थिक इकाइयों की स्थिति भी वैसी ही बनी रही । इसके विपरीत अंग्रेज शासक सामंतीय व्यवस्था से आगे बढ़कर पूंजीवादी व्यवस्था को परिवर्तित करने में भी वे सफल रहे । ' जमीन बंदोबस्त महाजनी प्रथा से छुटकारा ' तथा कचहरियों की स्थापना आदि आर्थिक तथा सामाजिक परिवर्तन आधुनिक काल में ही सामने आए ।

6- आधुनिक युग में आकर शिक्षा का परंपरागत ढांचा टूट गया । फलतः नई समस्याएँ उत्पन्न हुई । अठारहवीं शताब्दी के अंत में भारतवर्ष को जिस पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान के संपर्क में आना पड़ा , वह भारत के ज्ञान- विज्ञान से प्रकृति में तथा व्यवहार में भिन्न था ।

भारतीय ज्ञान परंपरागत था , जबकि पाश्चात्य ज्ञान नये जीवन संदर्भो के अनुरूप था , भारतीय ज्ञान - विज्ञान का लक्ष्य जहाँ आध्यात्मिक और पारलौकिक था वहीं पाश्चात्य ज्ञान - विज्ञान का लक्ष्य भौतिक और इहलौकिक । इस देश की विद्या वर्ग अथवा जाति विशेष तक सीमित थी , परंतु पाश्चात्य शिक्षा सर्वसुलभ थी । यद्यापि धर्मशास्त्र , दर्शन शास्त्र , गणित , ज्योतिष , काव्यशास्त्र तथा व्याकरण आदि में भारतीय ज्ञान उन्नत तथा उत्कृष्ट था , किंतु आधुनिक संदर्भो में कहीं - कहीं वह मूल्यहीन लग रहा था , दूसरे उसमें नयी उद्भावनाओं का रास्ता रूक गया था । कहने का अभिप्राय यह है कि आधुनिक काल की परिस्थितियों तथा आवश्यकता के अनुरूप पुरातन ज्ञान - विज्ञान के स्थान पर अंग्रेजी शिक्षा की आवश्यकता तथा उपयोगिता बढ़ रही थी , जिसके लिए ईसाई मिशनरियों , सरकार द्वारा और व्यक्तिगत प्रयत्न किए जा रहे थे । इसका प्रभाव यह हो रहा था कि ईसाई धर्म भी इसके माध्यम से फैल रहा था । स्पष्टतः यह स्थिति मध्यकाल से एकदम भिन्न थी ।

7- मध्यकाल से आधुनिक काल के अंतर की दृष्टि से एक बड़ा परिवर्तन उन्नीसवीं शताब्दी में यातायात के साधनों का विकास कहा जा सकता है । मध्यकाल में जहाँ बैलगाड़ी तथा घोडागाड़ी की यातायात के मुख्य साधन होते थे , वहीं आधुनिक काल में रेल , बस तथा यातायात के अन्य साधन विकसित हुए । फलतः लोगों का आवागमन बढ़ा , वैचारिक आदान - प्रदान बढ़ा । इसके अतिरिक्त आवश्यक वस्तुओं का भी आवागमन बढ़ा , जिसने मामूली किसान से लेकर पूंजीपति वर्ग को भी प्रभावित किया ।

8- प्रेस का विकास तथा प्रचार - प्रसार आधुनिक बोध को मध्यकालीन बोध से पूर्णतः अलग कर देता है । नवीन शिक्षा पद्धति से जहाँ जन चेतना उत्पन्न हुई , वहीं विभिन्न समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं ने पुनर्जागरण के लिए उल्लेखनीय योगदान दिया । आधुनिक युग का साहित्य मुद्रण - कला के विकास के कारण अपने रूप - रंग , अभिव्यंजना तथा प्रभाव आदि में मध्यकालीन साहित्य से भिन्न तथा अधिक अस्तित्ववान हो गया ।

9- साहित्यिक दृष्टि से विचार करने पर हम पाते हैं कि आधुनिक काल में आकर मध्यकालीन साहित्य की परंपरा लगभग खंडित हो जाती है । मध्यकाल में जहाँ भक्ति , तथा रीति साहित्य की धुरी के रूप बने रहें वहीं आधुनिक काल में राष्ट्रीयता , पश्चिमी शिक्षा और उसका प्रचार - प्रसार तथा विविध प्रकार की समस्याएँ साहित्य रचना के केंद्र में रही । मध्यकाल में जहाँ एक प्रकार का तथा एक ही विधा में अधिकांश साहित्य मिलता है वहीं आधुनिक काल में गद्य , पद्य , उपन्यास , कहानी , पत्रकारिता तथा अनुवाद आदि विविध विधाएँ विकसित हुई और हो रही हैं ।

10- आधुनिक काल से पूर्व संगीत का संबंध अधिकांशतः घरानों से रहा , जहाँ पीढ़ी दर पीढ़ी यह सुरक्षित रहता था , किंतु आधुनिक काल में पूर्व तथा पश्चिम के संगीत में भी मिश्रण हुआ और अखिल भारतीय संगीत परिषद की स्थापना की गई । अब संगीत किसी राजे - रजवाड़े तथा घरानों का दास नहीं रहा ।

11- अभिव्यक्ति की दृष्टि से भी मध्यकालीन बोध तथा आधुनिक बोध में विभिन्न अंतर आए । मध्यकाल में जहाँ अवधी और ब्रज - भाषा का प्रधान्य रहा , वहीं आधुनिक काल में गद्य - पद्य सभी के लिए खड़ी बोली का व्यवहार किया गया । मध्यकाल में जहाँ छंदोबद्धता तथा आलंकारिकता काव्य के आभूषण तथा अनिवार्य अंग माने जाते थे , आधुनिक काल में आकर छंद तथा अलंकारों के बंधन टूट गये और सहज अभिव्यक्ति ' जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह तू लिख ' का स्वर गूंजने लगा ।

12- मध्यकाल में रचनात्मकता अथवा कला दरबारी वैभव की ओर अधिक उन्मुख रही , जबकि आधुनिक काल में वह जन - सामान्य के अधिक निकट आई ।

13- मध्यकाल की रचनात्मकता में ईश्वर केंद्र में रहा , किंतु आधुनिक काल में मनुष्य उसके केंद्र में रहा ।

14- मध्यकाल परंपरा को प्रतिपादित करता है जबकि आधुनिक काल आधुनिकता को ।

निष्कर्ष --
मध्यकालीन बोध और आधुनिक बोध के अंतर को सार रूप में समझाते हुए डॉ . बच्चन सिंह लिखते हैं - ' मध्यकाल अपने अवरोध , जड़ता और रूढ़िवादिता के कारण स्थिर और एकरस हो चुका था , एक विशिष्ट ऐतिहासिक प्रक्रिया ने उसे पुनः गत्यात्मक बनाया । मध्यकालीन जड़ता और आधुनिक गतयात्मकता को साहित्य और कला के माध्यम से समझा जा सकता है । रीतिकाल में कला और साहित्य अपने - अपने कथ्य , अलंकृति और शैली में एकरूप हो गये थे । वे घोर शृंगारिकता के बंधे घाटों से बह रहे थे । न छंदों में वैविध्य था और न विन्यास में एक ही प्रकार के छंद एक ही प्रकार के ढंग । आधुनिक काल में बंधे हुए घाट टूट गये और जीवन धारा विविध स्रोतों से फूट निकली । साहित्य मनुष्य के बृहत्तर सुख - दुख के साथ पहली बार जुड़ा । ' एक अन्य महत्वपूर्ण अंतर की ओर संकेत करते हुए वे आगे लिखते हैं - ' मध्यकाल में पारलौकिक दृष्टि से मनुष्य इतना अधिक आच्छन्न था कि उसे अपने पाश की सुध ही नहीं थी , पर आधुनिक युग में वह अपने पर्यावरण के प्रति अधिक सतर्क हो गया ।

उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि युगीन वातावरण तथा परिस्थितियाँ परिवर्तन का कारण बनती हैं । इसलिए आधुनिक बोध विविध संदर्भो में मध्यकालीन बोध से अलग है । मध्यकालीन बोध तथा आधुनिक बोध के स्वरूप का उद्घाटन करते हुए हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने भी लिखा है - ' इस नये युग में व्यक्ति क्रमशः स्वतंत्र होता गया है तथा और भी स्वतंत्र होता जा रहा है । इससे पहले के युग में मनुष्य और मनुष्य का संबंध सीधा और प्रत्यक्ष होता था । लेकिन नए युग का संबंध बाजार के माध्यम से होने लगा है । प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक , राजनीतिक दृष्टि से . स्वतंत्र तो हो रहा है परंतु उसकी योग्यता और स्वाधीनता बाजार के मूल्यों द्वारा नियंत्रित होती है । '

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