Wednesday 6 May 2020

हिन्दी साहित्य का संक्षिप्त परिचय (भाग-6) भक्तिकाल एवं भक्तिकाल का काल विभाजन,Time division of Bhaktikal and Bhaktikal

हिन्दी साहित्य का संक्षिप्त परिचय (भाग-6)
भक्तिकाल एवं भक्तिकाल का काल विभाजन
Brief Introduction to Hindi Literature (Part-6)
Time division of Bhaktikal and Bhaktikal

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1- भक्तिकाल -
हिंदी - साहित्य के इतिहास में विक्रमी - संवत् 1375 - 1700 तक की कालावधि को अधिकांश विद्वानों ने पूर्व - मध्यकाल अथवा भक्तिकाल की संज्ञा दी है । हिंदी - साहित्य के संदर्भ में भक्तिकाल से तात्पर्य उस काल से है , जिसमें मुख्यतः भागवत धर्म के प्रचार तथा प्रसार के परिणामस्वरूप भक्ति - आंदोलन का सूत्रपात हुआ था और उसकी लोकोन्मुखी प्रवृत्ति के कारण धीरे - धीरे लोक प्रचलित भाषाएँ भक्ति - भावना की अभिव्यक्ति का माध्यम बनती गईं और कालांतर में भक्ति विषयक विपुल साहित्य की बाढ़ - सी आ गई ।

आलोच्य काल में भक्ति - भावना की प्रधानता रही , जिसमें धर्म का प्रवाह कर्म , ज्ञान और भक्ति इन तीन धाराओं में चला । यहाँ सगुण तथा निर्गुण दोनों प्रकार की भावनाएँ विषय बनकर सामने आई । सगुण भक्ति की दृष्टि से राम तथा कृष्ण प्रमुख आराध्य देव रहे तथा निर्गुण भक्ति की दृष्टि से ज्ञान मार्ग तथा प्रेममार्ग का अवगाहन किया गया । - ब्रज , अवधी तथा मिश्रित भाषा के तयुगीन काव्य में विशिष्टता का संचार किया । ' हिंदी - साहित्य का इतिहास ' नामक पुस्तक में आलोच्यकाल को हिंदी - साहित्य का स्वर्णयुग के रूप में स्थापित किया गया है - ' इस प्रकार गुण और परिमाण दोनों की दृष्टि से कथ्य और कथन को पूर्ण उत्कर्ष प्रदान कर आनंद और कल्याण निःश्रेयस् और अभ्युदय - के समन्वय द्वारा इस युग के कवियों ने जो कीर्तिमान स्थापित किए , वे परवर्ती युगों में प्रायः दुर्लभ ही रहे ।

2- भक्तिकाल का काल विभाजन --

भक्तिकाल ' के काल विभाजन विषयक विद्वानों का दृष्टिकोण इस प्रकार है --
1- मिश्रबंधु  -  संवत 1445 से 1680 तक
2- आचार्य रामचंद्र शुक्ल - संवत 1375 से 1700 तक
3- हजारी प्रसाद द्विवेदी - सन् 1400 से 1700 तक
4- डॉ . रामकुमार वर्मा - संवत 1375 से 1700 तक
5- डॉ . नगेंद्र - चौदहवीं शती के मध्य से सत्रहवीं शती के मध्य तक

आलोच्य काल के काल - विभाजन के संबंध में उपर्युक्त मतों से यह स्पष्ट है कि इस काल के आरंभ तथा अंतिम सीमा को लेकर अधिक विवाद नहीं है । लगभग सभी विद्वानों ने विक्रमी संवत 1400 से 1700 तक की कालावधि को पूर्वमध्यकाल अथवा भक्तिकाल के रूप में स्वीकार किया है । जो सर्वथा उचित ही कहा जा सकता है ।

3- नामकरण --
1- जार्ज ग्रियर्सन - पंद्रहवीं शती का धार्मिक पुनर्जागरण , जायसी की प्रेम कविता , कृष्ण संप्रदाय , मुगल दरबार , तुलसीदास ।

2- मिश्रबंधु   - माध्यमिक काल , 

3- आचार्य रामचंद्र शुक्ल - पूर्व मध्यकाल ( भक्तिकाल )

4- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी - पूर्व मध्यकाल

5- डॉ . रामकुमार वर्मा - भक्तिकाल डॉ .

6- नगेंद्र , - भक्तिकाल

विद्वानों द्वारा किए गए उपर्युक्त नामकरणों से यह स्पष्ट है कि इस विषय में अधिक मतभेद नहीं है । लगभग सभी विद्वानों ने पूर्व मध्यकाल तथा भक्तिकाल दोनों नामों को ही तार्किक तथा उपयुक्त माना है । ' भक्तिकाल ' नाम के मूल में जहाँ तयुगीन साहित्य की प्रमुख प्रवृत्ति ' भक्ति ' की प्रधानता है । वहीं पूर्व मध्यकाल नामकरण ऐतिहासिक आधार का द्योतक है । स्पष्टतः विक्रमी संवत 1400 से 1700 तक की कालावधि को ' भक्तिकाल ' के नाम से अभिहित करना उपयुक्त है ।

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1 comment:

  1. Thankyou so much sir ji for this article

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