Saturday 9 May 2020

हिन्दी साहित्य(भाग-18) छायावाद का वर्णन तथा छायावाद की प्रमुख विशेषताएं ,Description of Shadowism and Key Features of Shadowism

हिन्दी साहित्य(भाग-18)
छायावाद का वर्णन तथा छायावाद की प्रमुख विशेषताएं 
Hindi literature (part-18)
 Description of Shadowism and Key Features of Shadowism


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छायावाद का महत्व 

हिंदी साहित्य में सन् 1920 से 1936 तक की कालावधि छायावाद के नाम से जानी जाती है । द्विवेदी - युग ने रीतिकालीन शृंगार भावना का तीव्र विरोध किया , इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप छायावाद में शृंगार भावना के सूक्ष्म तथा स्थूल दोनों रूपों की नवीन स्वीकृति दिखाई देती है । इसके साथ ही यह युग भारत के लिए अस्मिता की खोज का युग था । सदियों की दासता के कारण भारतीय जनता आत्म - केंद्रित होती हुई रूढ़िग्रस्त हो गई थी । विदेशी साम्राज्य से त्रस्त देश की आत्मा पूरी शक्ति और उद्वेलन के साथ जाग उठी । इस युग के कवियों ने द्विवेदीयुगीन इतिवृत्तात्मकता के विरूद्ध सूक्ष्म भावनाओं की प्रतिष्ठा की , अतीत का गौरवगान किया और मानव मात्र की स्वाधीनता के मूल्य की प्रतिष्ठा की । इस युग के कवियों में जयशंकर प्रसाद , निराला , पंत , महादेवी वर्मा , रामनरेश त्रिपाठी , माखनलाल चतुर्वेदी तथा सुभद्राकुमारी चौहान आदि मुख्य है ।

छायावाद की प्रमुख काव्य-प्रवृत्तियां एवं विशेषताएं ---

(1)  व्यक्तिवादिता - 

व्यक्तिवादिता छायावादी काव्य की प्रमुख विशेषता है । यह व्यक्तिवादिता आधुनिक औद्योगिकता से प्रेरित है । आधुनिक युग की प्रतिद्वंद्वात्मक व्यवस्था , अधिकार - स्वायत्त और पूंजी मितव्ययता के कारण व्यक्तिवाद का जन्म हुआ । इसी कारण छायावादी कवियों ने स्वच्छंदतावाद , कलावाद की दुहाई दी । छायावादी कविता मूलत : व्यक्तिवाद की कविता है । व्यक्तिवादिता में कोई बुरी बात नहीं है , किंतु छायावादी काव्य के संबंध में ज्ञात होना चाहिए कि इसके व्यक्तिवाद के ' अहं ' ' स्व ' में सर्व सन्निहित है । अर्थात् छायावादी काव्य का ह्रास और रुदन रूढ़िगत संघर्ष परायण प्रबुद्ध भारतीय का ह्रास और रुदन है ।
छायावादी कवियों की भावनाएँ यदि उनके विशिष्ट वैयक्तिक दुःखों के रोने - धोने तक सीमित रहती , उनके भाव यदि केवल आत्म - केंद्रित ही होते तो उनमें इतनी व्यापकता कदापि न आती ।

निराला ने लिखा है --
मैंने मैं शैली अपनाई ,
देखा एक दुखी निज भाई ,
दुख की छाया पड़ी हृदय में ,
झट उमड़ वेदना आई । 

इससे स्पष्ट है कि व्यक्तिगत सुख - दु : खों की अपेक्षा अन्य के सुख - दुख की अनभति ने ही नए कवियों के भाव प्रवण और कल्पनाशील हृदयों को स्वछंदतावाद की ओर प्रेरित किया ।

2- प्रकृति - चित्रण - 

प्रकृति के सौंदर्य और उससे प्रेम का वर्णन छायावादी 2 कवियों की श्रृंगारिकता का प्रमुख प्रवृत्ति है । इसे तीन रूपों में देखा जा सकता नारी सौंदर्य और प्रेम चित्रण , प्रकृति के सौंदर्य और प्रेम की अभिव्यंजना और अलौकिक प्रेम या रहस्यवाद का चित्रण । छायावादी कवियों का मन कति में विशेष रमा है । इस काव्य में प्रकृति पर चेतना का आरोप किया गया के चारों प्रमुख कवि - पंत , प्रसाद , महादेवी और निराला के काव्य से रूप में चित्रण है , सौंदर्य और प्रेम की अभिव्यक्ति है ।

प्रसाद इन पंक्तियों में इन विशेषताओं को देखा जा सकता है --
पगली हां संभाल से कैसे छूट पड़ा तेरा अंचल ।
देख बिखरती है मणि राशि अरी उठी बेसघन चित्रण है । 

छायावाद के चारों प्रमुख कवि - पंत , प्रसाद महा में प्रकृति का नारी रूप में चित्रण है . सौर उठी बेसुध चंचल । बन रूप में रखकर उसका शृंगारिक रीतिकालीन कवियों के समान नहीं है। अपितु इनकी प्रकृति संबंधी शृंगाकिता में सात्त्विकता है । इन कवियों ने प्रकृति का अलौकिक रूप में भी चित्रण किया है । जिनमें उनकी निजी अनुभूतियाँ विशेष रूप से चित्रित हैं --
विस्तृत नभ का कोई कोना ,
मेरा न कभी अपना होना ,
परिचय इतना , इतिहास यही ,
उमड़ी कल थी मिट आज चली ,
मैं नीर भरी दुख की बदली । 

3- नारी के सौंदर्य एवं प्रेम का मोहक चित्रण - 
छायावादी कवियों की यह बड़ी विशेषता है । उनका नारी - चित्रण सूक्ष्म तथा श्लील है । इनमें स्थूलता और नग्नता न के बराबर है । ये कवि स्वच्छंदतावादी हैं इसलिए उनके प्रेम - वर्णन में जाति , वर्ण , सामाजिक रीति - नीति , रूढ़ियाँ और मिथ्या मान्यताएँ मान्य नहीं हैं ।

इन कवियों को विरहानुभूतियों के चित्रण में विशेष सफलता मिली है -- 
शून्य जीवन के अकेले पृष्ठ पर ,
विरह अहह कराहते इस शब्द को, 
किसी कलिश की तीक्ष्ण चभती नोक से ,
निष्ठुर विधि ने आँसुओं से है लिखा । 

4- रहस्यवाद का अलौकिक चित्रण -- 

छायावादी कवियों में रहस्यवादी संस्पर्श देखा जा सकता है । उनके वर्णन लौकिक होने के साथ - साथ अलौकिक भी हैं । छायावाद के सभी आलोचकों ने इसमें दार्शनिक अनुभूति अथवा आध्यात्मिकता का पाया जाना अनिवार्य माना है । इसलिए प्रत्येक कवि ने आंतरिक अनुभूतियों के चित्रण में रहस्यवादी भावना की अभिव्यक्ति की है । इसी प्रकार छायावादी रहस्यात्मकता में भी स्वभाव भिन्नता के कारण प्रतीकों में अनेकरूपता मिलती है ।

5-  रहस्यभावना एवं स्वतंत्र्य प्रेम का आह्वान - 
छायावादी काव्य में रहस्य भावना तो है ही इसके साथ - साथ स्वतंत्रता का आह्वान भी है । राष्ट्रीय जागरण की गोद में पलने वाला छायावादी साहित्य रहस्यात्मक और राष्ट्रीय - प्रेम की भावनाओं को साथ लेकर चला है ।

जयशंकर प्रसाद की ये पंक्तियाँ इस सत्य को उजागर करती हैं --
अरुण यह मधुमय देश हमारा ,
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा । 

6-  स्वच्छंतावाद - 

छायावादी कवि ने व्यक्तिवादी और अहंवादी होने के कारण विषय , भाव , कला , दर्शन बल्कि समाज के सभी क्षेत्रों में स्वच्छंतावादी प्रवृत्ति को अपनाया । भाव क्षेत्र में उसने ' मैं ' शैली अपनाई यद्यपि ' मैं ' में समूचा समाज है ।

7- वेदना एवं निराशा - 
छायावादी कवियों ने काव्य में वेदना की अनुभूति व्यक्त की है । यह कहीं पर अनंत वेदना के रूप में अभिव्यक्त हुई है । तो कहीं - करूणा एवं निराशा के रूप में । प्रसाद व महादेवी के काव्य में अभिव्यक्त वेदना मानवतावाद तथा अध्यात्मवाद पर आधारित है ।

8- मानवतावाद - 

छायावादी काव्य भारतीय सर्वात्मवाद तथा अद्वैतवाद से प्रभावित हुआ है । इसके अतिरिक्त इस पर रामकृष्ण परमहंस , विवेकानंद , टैगोर और अरविंद दर्शन का भी प्रभाव है । स्वच्छंदतावादी होने के कारण इस युग के कवि को साहित्य के समान धर्म , दर्शन आदि में रूढ़ियाँ और मिथ्या परंपराएँ स्वीकार्य नहीं हैं । रवींद्र साहित्य का भी छायावादी काव्य पर प्रभाव पड़ा ।
इसीलिए पंत नारी को कामुक नारी के रूप में नहीं देखते अपितु वे नारी की उसकी पारंपरिक छवि से मुक्त करते हुए लिखते हैं -- 
मुक्त करो नारी को , 
युग युग की कारा से , 
बंदिनी नारी को '

9- आदर्श और युगीन प्रभाव -
छायावादी काव्य में क्योंकि आंतरिकता की प्रवृत्ति की प्रधानता है , इसलिए उसमें पदार्थों के बाह्य रूप - चित्रण की प्रवृत्ति नहीं है । अंतर्मुखी प्रवृत्ति के कारण उसका दृष्टिकोण आदर्शवादी रहा है । इसी कारण उनका दृष्टिकोण कल्पनात्मक रहा और उसमें सुंदर तत्त्व की प्रधानता रही ।

प्रसाद की ' कामायनी ' में इस सुंदर तत्त्व की प्रधानता का आंकलन किया जा सकता है --
ज्ञान दूर कुछ क्रिया भिन्न है ,
इच्छा क्यों पूरी हो मन की ,
एक दूसरे से न मिल सके ,
यह विडंबना है जीवन की ,

10- प्रतीकात्मकता , चित्रात्मकता और लाक्षणिक पदावली -
छायावादी काव्य में बाह्य स्थूलता का चित्रण न होकर सूक्ष्मता का चित्रण हआ है । प्रकृति कायावादी कवि के वैयक्तिक जीवन का प्रतीक बन गई है । इस धारा के कविया ने सर्वत्र मानवीय भावनाओं का आरोप किया और उसका संवेदनात्मक रूप में चित्रण किया गया ।

भाषा की चित्रात्मकता इन पंक्तियों में देखी जा सकती है --
शशि मुख पर बूंघट डाले , अंचल में दीप छिपाए ,
जीवन की गोधूली में कौतूहल से तुम आए ।

11- गीतात्मकता -
छायावादी कवि संगीत के भी जानकार है इसलिए इस धारा का काव्य छंद और संगीत दोनों दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । इसमें न केवल प्राचीन छंदों का प्रयोग मिलता है अपितु साथ - साथ नवीन छंदों का निर्माण भी । मुक्तक छंद एवं अतुकांत कविताएँ भी लिखी गई और गीतिशैली अपनाई गई । इसमें गीतिकाव्य के सभी गुण मिलते हैं ।

12- अलंकार -विधान -
छायावादी कवियों ने प्राचीन अलंकारों का प्रयोग तो किया ही दो नवीन अलंकारों का भी उपयोग किया - मानवीकरण तथा विशेषण विपर्यय । ये दोनों अलंकार अंग्रेजी साहित्य में प्रयुक्त होते रहे हैं । स्पष्ट है कि छायावादी काव्य में मूलतः सौंदर्य और प्रेम की व्यंजना की गई है । यह प्रेम या रहस्यवाद के निरूपण के रूप में है । इस काव्य - शैली की प्रमुख विशेषताएँ हैं - मुक्तकगीति शैली , प्रतीकात्मकता , प्राचीन एवं नवीन अलंकार का प्रचुर मात्रा में प्रयोग । इसके अतिरिक्त गीत शैली का प्रयोग है । प्रतीकों का प्रयोग है मूर्त को अमूर्त रूप में तथा अमूर्त को मूर्त रूप में चित्रित करने के लिए अनेक नवीन उपमानों का प्रयोग किया गया है ।

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