Sunday 10 May 2020

हिन्दी साहित्य (भाग-20) प्रयोगवाद तथा नयी कविता का विस्तृत वर्णन एवं महत्वपूर्ण विशेषताएं, Detailed description and important features of experimentalism and new poetry

हिन्दी साहित्य (भाग-20)
प्रयोगवाद तथा नयी कविता का विस्तृत वर्णन एवं महत्वपूर्ण विशेषताएं 
Hindi literature (part-20)
Detailed description and important features of experimentalism and new poetry


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1- प्रयोगवाद--

प्रयोगवाद ' नाम उन रचनाओं के लिए रूढ़ हो गया है जो कुछ नये बोधों , संवेदनाओं तथा उन्हें प्रेषित करने वाले शिल्पगत चमत्कारों को लेकर शुरू - शुरू में ' तारसप्तक ' के माध्यम से सन् 1943 से प्रकाशन जगत में आयी और जो प्रगतिशील कविताओं के साथ विकसित होती गयीं तथा जिनका पर्यवसान नयी कावता में हो गया । प्रयोगवादी कविता हासोन्मुख मध्यवर्गीय समाज के जीवन का चित्र है । इस युग के कवि ने मध्यवर्गीय व्यक्ति - मन के सत्यों को उद्घाटित 7म ही नये सत्यों की प्रतीति और उनका संप्रेषण समझा । इस युग के कवियों न व्यक्ति के अंतः संघर्षों , क्षणों की अनुभूतियों और सूक्ष्म से सूक्ष्म , ( छोटी से घाटा ) संवेदनाओं और मन की विभिन्न स्थितियों को लेकर छोटी - छोटी तीव्र पशाली कविताएँ लिखीं । इस युग के कवियों में - अज्ञेय , शमशेर बहादुर सिंह , हता , गिरजाकुमार माथुर , गजानन माधव मुक्तिबोध तथा धर्मवीर भारती भाद प्रमुख हैं । प्रयोगवादी रचनाओं की विशेषताएँ न्यूनाधिक रूप में नया कावा का विशेषताओं में भी निहित हैं । इसलिए हम इन विशेषताआ के कविता ' के अंतर्गत कर रहे हैं ।

2- नयी कविता --

नयी कविता ' भारतीय स्वतंत्रता के बाद लिखी गयी उन कविताओं को । ' था , जिनमें परंपरागत कविता से आगे नये भावबोधो की अभिव्यक्ति के साथ - साथ नये मूल्यों और कविता में जीवन के प्रति । गत कविता से आगे नये भावबोधों की अभिव्यक्ति के साथ-साथ नये मूल्यों और नये शिल्प - विधान का अन्वेषण किया गया । नयी वन के प्रति आस्था दिखाई पड़ती है । जीवन का पूर्ण स्वीकार । भोगने की लालसा है । नयी कविता में दो तत्त्व प्रमुख है- अनुभूति  की सच्चाई और बुद्धिमूलक यथार्थवादी दृष्टि । नयी कविता ने दर्शन , नीति आचार सभी प्रकार के मूल्यों की चुनौती दी है ; और जीवन की नवीन अनुभति . नवीन चिंतन , नवीन गति के मार्ग में आने वाले फॉर्मलों अथवा मूल्यों की विघातक असंगतियों को अनावृत करना सर्जनात्मकता से असंबद्ध नहीं है वरन् सृजन की आकुलता ही है । नयी कविता लोक - सम्पृक्ति का प्रयत्न के रूप में सामने आयी । उसने लोक जीवन के बिंबों , प्रतीकों , शब्दों और उपमानों को लोक जीवन के बची से चुनकर अपने को अत्यधिक संवेदनापूर्ण और सजीव बनाया ।

नयी कविता के कवियों में भवानीप्राद मिश्र , शमशेर बहादुर सिंह , धर्मवीर भारती , मुक्तिबोध तथा शंभुनाथ सिंह आदि प्रमुख हैं । नयी कविता ' के पश्चात् अकविता , विद्रोही पीढ़ी , कबीर पीढ़ी , क्रुद्ध पीढ़ी , भूखी पीढ़ी तथा नकेनवाद आदि नयी - नयी विचार धाराएँ काव्य क्षेत्र में आविर्भूत दिखती हैं । इन्हें किसी वाद अथवा युग में नहीं बांधा जा सकता , क्योंकि ये कुछ व्यक्तियों तथा विचारधाराओं को लेकर सामने आयी हैं । इनमें विभिन्न प्रकार के विषय देखें जा सकते हैं इनमें एक ओर युद्धों की विभीषिका है तो दूसरी और अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में विभिन्न प्रकार की समस्याओं का वर्णन भी मिलता है ।

राजनीतिक , सामाजिक , आर्थिक , धार्मिक तथा सांस्कतिक यथार्थ की गहन अनुभूति इन कविताओं में देखी जा सकती है । सहक , बोजगार भखमरी का शिकार बच्चा , दहज की शिकार लडकी . बलात्कार , शोषण , आतंकवाद तथा भ्रष्टाचार का शिकार आम आदी सामने आया । इन कवियों में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना . धमिन ममता कालिया , हरिशंकर परसाई , बेढ़व बनारसी , गोपाल । ऋतराज वेणुगोपाल तथा रामदरश मिश्र आदि प्रमुख हैं ।

यहाँ हम प्रयोगवादी कविता तथा नयी कविता की प्रमुख विशेषताओं का एक साथ वर्णन कर रहे है --

1- जीवन के प्रति आस्था -
नई कविता प्रति आस्था । आस्था का अर्थ है जीवन को कि जाना । जीवन के उपभोग में विश्वास वर्तमान ; भी रहा है । शुरुआती दौर में नई कविता अना श्री । नई कविता में सभ्यता की विकृतियों को अस्तित्व वादी चिंतन से उभारा है।

2- अतिनग्न यथार्थवाद -
नई कविता में जीवन को किसी एक दृष्टिकोण से न देखा विश्वास वर्तमान कवि का ही नहीं पुराने कवि का कविता अनास्था , संदेह और निराशा से भरपूर तियों को अस्तित्ववादी चिंतन से उभारा है । कविता में दूषित मनोवृत्तियों का चित्रण है । और अस्वस्थ समझकर साहित्य जगत से जिसे अरुचिकर , अश्लील , ग्राम्य और भी प्रयोगवादी कवि चित्रण कर गौरव अनुभव  करता है । नए कवि का लक्ष्य दमित वासनाओं और कुंठाओं का चित्रण मात्र रह गया है ।

अनंत कुमार पाषाण की इस कविता से इसे समझा जा सकता है --
पास घर आए तो ,
दिन भर का थका जिया मचल मचल जाए ।

3- अनास्थामूलक दृष्टिकोण - 
अधिकांश नए कवियों में अनास्थामूलक स्वर सुने जा सकते हैं । यह कवि ईश्वर , धर्म , नैतिकता और सामाजिक मूल्यों के प्रति विश्वास नहीं रखता । वह तो अनास्थामूलक दृष्टिकोण स्वीकारता है । धर्मवीर भारती कहते हैं जिनको तुम कहते हो प्रभु उसने जब चाहा मर्यादा को अपने ही हित में बदल लिया , वंचक है ।

4- वैयक्तिकता का प्रतिस्थापन -
नई कविता में व्यक्ति की स्वच्छंदता का प्रतिपादन है । नया कवि स्वयं को समाज की विकासोन्मुख धारा से अलग रखता है । वह सभ्यता और संस्कृति की गतिशील धारा में प्रवाहित होना नहीं चाहता , वह तो संस्कृति की गतिशील धारा का बाधक द्वीप बनना ज्यादा अच्छा समझता है ।

अज्ञेय स्वयं को नदी के द्वीप के रूप में प्रस्तुत करते हुए कहते हैं --
किंतु ,
हम हैं द्वीप
हम धारा नहीं हैं ।
स्थिर समर्पण हैं , हमारा ,
हम सदा से द्वीप हैं स्रोतस्विनी के । 
किंतु हम बहते नहीं ,
क्योंकि बहना रेत होना है ।

5- निराशावादी दृष्टिकोण -
नई कविता के कवि में अतीत के प्रति रणा और भविष्य की उल्लासमयी उज्ज्वल आकांक्षा ही नहीं है । उसकी दृष्टि पल वर्तमान पर टिकी है । दृश्यमान् जगत् के प्रति उसका दृष्टिकोण क्षणवादी मा निराशावादी है ।

आज का कवि तो मौजूदा क्षण में ही सब कुछ प्राप्त कर लेना चाहता है -- 
आओ हम उस अतीत को भूलें ,
और आज की अपनी रग-रग के अंतर को छू लें ।
छू लें इसी क्षण ,
क्योंकि कल के वे नहीं रहे ,
क्योंकि कल हम भी नहीं रहेंगे ।

6- उन्मुक्त भोग -
व्यक्ति पूर्ण स्वतंत्रता या स्वच्छंदता का उपयोग प्रायः भोग - विलास में करता है । उनका परिणाम निराशा और मृत्यु होता है । नई कविता में इस तरह के तत्त्वों की व्यंजना पर्याप्त मात्रा में मिलती है ।

कुंवर नारायण की ये पंक्तियाँ इस संदर्भ में दी जा सकती हैं --
आमाशय यौनाशय गर्भाशय ,
जिसकी जिंदगी का यही आशय यही इतना भोग्य ,
कितना सुखी है वह भाग्य उसका ईर्ष्या के योग्य ।

7- विचारात्मकता एवं शुष्कता - 
नयी कविता में अनुभूति और रागात्मकता न के बराबर रह गई है । विचारप्रधानता ज्यादा दिखने लगी है ।
राजेंद्र किशोर की इन पंक्तियों से यह बात और स्पष्ट हो जाती है --
अंतरंग की इन घड़ियों पर छाया डाल दूँ ।
अपने व्यक्तित्व को एक निश्चित सांचे में ढाल दूँ ।
निजी जो कुछ है अस्वीकृत कर दूं ।
संबोधनों के स्वर्ग को उपसंहृत कर दूँ !

 ये पंक्तियाँ एकदम अस्पष्ट हैं । केवल बुद्धि व्यायाम है । पाठक माथा - पच्ची करने के बाद भी इस कविता के भाव को नहीं समझ सकता ।

8- विकृत चित्रण -
नए कवियों ने विकृत एवं जुगुप्साजनक चित्र भी अपनी कविताओं के माध्यम से चित्रित किए हैं । इसका कारण उनमें अस्वस्थ सौंदर्य चेतना और विकृति रुचि के भाव होना है ।

भदेस के ये चित्र अज्ञेय की कविता में भी है --
मुद्राराक्षस की कविता से एक उदाहरण देखा जा सकता है --
मुहब्बत एक गिरे हुए गर्भ के बच्चे सी होती है ।
चाहत वह , मजबूरी हो सकती है , 
जिसे मरीज खांस कर थूक न सके ।

9- प्रभावशून्य व्यंग्य -
नई कविता के कवियों ने आधनिक जीवन के विविध पक्षों पर व्यंग्य किया है । पर व्यंग्य के जिस मानसिक संतुलन की आवश्यकता होती है । इनमें नहीं परिलक्षित होती ।

अज्ञेय तक के व्यंग्य - व्यंग्य न होकर कटूक्तियाँ बनकर रह गए हैं --
सांप तुम सभ्य तो हुए नहीं , न होंगे, 
नगर में बसना भी तुम्हें नहीं आया ,

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