हिन्दी साहित्य (भाग-16)
द्विवेदी युग का विस्तृत वर्णन
Hindi literature (part-16)
Detailed description of Dwivedi era
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द्विवेदी युग --
द्विवेदी युग ' वस्तुतः भारतेंदुकालीन नवजागरण का ही विकास है । जहाँ नवीन परिस्थितियों के संदर्भ में भारतेंदु कालीन बोध तत्कालीन राजनीतिक , सामाजिक , आर्थिक समस्याओं के प्रति अधिक सजग होने के कारण अधिक समस्या प्रेरित है , वहाँ द्विवेदी युग में नवोदित बुद्धिवाद और मूल्य बोध के आलोक में समस्याओं का समाधान सुधारवादी जीवन दृष्टि में खोजा गया । मोटे तौर पर द्विवेदी युग की पूर्वापर सीमाएँ सन् 1900 से 1920 ई . मानी गयी हैं । सन् 1900 से ' सरस्वती ' पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हो गया था तथा सन् 1903 में इस युग के प्रतिनिधि साहित्यकार आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने ' सरस्वती ' के संपादन का दायित्व ग्रहण किया तथा इन्होंने साहित्य चिंतन और भाषा के स्वरूप के निर्देशन और नेतृत्व के दायित्व का सम्यक् निर्वाह भी प्रारंभ कर दिया ।
द्विवेदी युग ' में भी भारतेंदु युग की भाँति अंग्रेजी शासन का शोषण और दमन का चक्र निरंतर चलता रहा । अंग्रेज भारत में राजनीतिक साम्राज्यवाद के साथ सांस्कृतिक साम्राज्यवाद भी स्थापित करना चाहते थे । इसलिए मैकाले की अंग्रेजी शिक्षा - योजना को क्रियान्वित करने पर विशेष बल दिया गया था । जबकि भारतीय धार्मिक - सांस्कृतिक संस्थाएँ ' ब्रह्म समाज ' , ' आर्य समाज ' , ' रामकृष्ण मिशन ' , ' प्रार्थना समाज ' आदि मानसिक दासता की प्रवृत्ति के प्रसार की विदेशी योजनाओं को निर्मूल करने के लिए राष्ट्रीय जागरण और सांस्कृतिक अस्मिता के बोध का मंत्र फूंक कर भारतीय जनमानस को प्रशिक्षित कर रही थी ।
साहित्यिक दृष्टि से इस युग में भारतेंदु युगीन परंपराओं और प्रवृत्तियों का ही विकास हुआ , किंतु जहाँ भारतेंदु युग में मुक्तक काव्य की प्रधानता रही वही द्विवेदी युग में प्रबंध - काव्यों के सृजन पर विशेष बल रहा । राष्ट्रीय चेतना और सांस्कृतिक अस्मिता के बोध को जीवन के व्यापक फलक पर चरितार्थ करके दर्शाना ही प्रबंध काव्यों का प्रमुख लक्ष्य था । राष्ट्रीय जागरण संपूर्ण जीवन - व्यवस्था को प्रभावित और प्रेरित कर रहा था । इसलिए इस युग में हिंद - मानस के उपजीव्य राम और कष्ण को आधार मानकर अनेक महाकाव्यों और खंडकाव्यों की सृष्टि की गयी ।
द्विवेदी युगीन कवियों में ' श्रीधर पाठक की काश्मीर सुषमा ' भारतगीत , नाथूराम शर्मा शंकर की ' शंकर सरोज ' , आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की ' काव्य मंजूषा ' , हरिऔध द्वारा रचित ' प्रिय प्रवास , प्रबंध काव्य ' , कवि जगन्नाथ दास रत्नाकर का ' उद्धव शतक ' तथा मैथिलीशरण गप्त द्वारा रचित ' भारत | भारती ' ' रंग में भंग ' , ' यशोधरा ' पंचवटी , किसान , साकेत आदि रचनाओं में प्रकृति , राष्ट्रीयता तथा धार्मिकता का स्वर मुखर दिखाई पड़ता है ।
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