हिन्दी साहित्य का इतिहास एवं संक्षिप्त परिचय (भाग-3)
आदिकाल का काल विभाजन
History and Brief Introduction to Hindi Literature (Part-3)
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भाषिक दृष्टि से आदिकाल में हिंदी भाषा साहित्यिक अपभ्रंश के साथ - साथ चलती हुई क्रमशः जनभाषा के रूप में - साहित्य - रचना का माध्यम बन रही थी । आलोच्य - युग में काव्य - रचना शैलियों की दष्टि से डिंगल तथा पिंगल का विकास हआ ।किसी भी काल के विभाजन से पूर्व यह जान लेना आवश्यक है कि कोई भी साहित्यिक विचारधारा अथवा आन्दोलन किसी एक निश्चित तिथि से आरम्भ नहीं होता है और न ही समाप्त । इसलिए साहित्येतिहास की दृष्टि से किसी भी काल के विभाजन का विषय सदैव विवादाग्रस्त रहा है । अपने - अपने शोध तथा अध्ययन - विश्लेषण के आधार पर किसी एक काल को विद्वान अलग - अलग रूप में तथा अलग - अलग तिथियों में बाँधकर विवेचित , करते हैं ।
आदिकाल के काल - विभाजन विषयक भी मतवैभिन्न्य सर्वत्र देखा जा सकता है । जार्ज ग्रियर्सन , शिवसिंह सेंगर , चन्द्रधरशर्मा गुलेरी , डॉ . हजारीप्रसाद द्विवेदी तथा रामकुमार वर्मा आदि विद्वान राहुल सांकृत्यायन जी के मत से लगभग सहमत हैं । राहुल सांकृत्यायन ने सरहपाद को हिंदी का पहला कवि माना है जिससे आदिकाल के आरम्भ की सीमा 8वीं शताब्दी निश्चित हो जाती है । किंतु आचार्य शुक्ल हिंदी साहित्य का आरम्भ ईसा की 10वीं शताब्दी से मानते हैं । उनका मानना है कि मुंज तथा भोज के समय 993ई . से पुरानी हिंदी का प्रयोग शुद्ध साहित्य में हुआ ।
विभिन्न विद्वानों द्वारा आदिकाल का कालविभाजन इस प्रकार किया गया है ---
1- जार्ज ग्रियर्सन -
विक्रमी संवत् 700 से 1300 ई तक,
2- मिश्रबंधु - संवत् 700 से 1444 ई.तक,
3- आचार्य शुक्ल - संवत् 1050 से 1375 ई तक,
4- रामकुमार वर्मा - संवत् 700 से 1375 ई तक ,
5- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी - सन् 1000 से 1400 ई तक,
6- राहुल सांकृत्यायन - सरहपाद को हिंदी का प्रथम कवि मानते हैं इसलिए आदिकाल का आरम्भ वि . सं . 769 से निश्चित हो जाता है ।
7- डॉ . नगेन्द्र - सातवीं सती के मध्य से 14वीं सती के मध्य तक ।
आदिकाल विषयक उपर्युक्त काल - निर्धारण से यह स्पष्ट है कि हर विद्वान एकमत नहीं है । यहाँ भी मुख्यतः दो वर्ग हैं एक वर्ग उन विद्वानों का है जो राहुल सांकृत्यायन के मत को महत्वपूर्ण मानते हैं और 7वीं शताब्दी से हिंदी साहित्य का आरम्भ मानते हैं और 10वीं शताब्दी से हिंदी साहित्य का आरम्भ मानते हैं ।
इसी प्रकार का विवाद अथवा मतवैभिन्न्य आलोच्य काल की अन्तिम सीमा को लेकर भी है । कुछ विद्वान वि . सं . 1300 - 1350 तक आदिकाल की अन्त सीमा मानते हैं तो कुछ वि . सं . 1350 - 1400 तक । आलोच्य काल के काल - निर्धारण विषयक मतभेद के सम्बंध में डॉ . पूरनचन्द टण्डन लिखते हैं - ' वास्तव में सातवीं शताब्दी से दसवीं शताब्दी के कालखंड को हिंदी साहित्य की पृष्ठभूमि के रूप में स्वीकार कर लिया जाए तो यह मतभेद भी समाप्त है क्योंकि इस कालखंड की रचनाएँ अपभ्रंश में हैं और अपभ्रंश से ही हिंदी भाषा का जन्म हुआ ।
निष्कर्ष-- अधिकांश विद्वानों ने आदिकाल की समय - सीमा दसवीं शताब्दी से चौदहवीं शताब्दी तक मानी है । जो कि अधिकाधिक तार्किक तथा संगत मा कही जा सकती है ।
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