Monday 4 May 2020

हिंदी ' शब्द से अभिप्राय एवं हिन्दी का विकास ,हिंदी साहित्य का इतिहास व संक्षिप्त परिचय (भाग-1)

हिंदी साहित्य का इतिहास व संक्षिप्त परिचय (भाग-1)History and Brief Introduction to Hindi Literature (Part-1)

हिंदी ' शब्द से अभिप्राय एवं हिन्दी का विकास Meaning of 'Hindi' and development of Hindi


इस ब्लॉग पर हिन्दी व्याकरण रस,और सन्धि प्रकरण,  तथा हिन्दी अलंकारMotivational Quotes, Best Shayari, WhatsApp Status in Hindi के साथ-साथ और भी कई प्रकार के Hindi Quotes ,संस्कृत सुभाषितानीसफलता के सूत्र, गायत्री मंत्र का अर्थ आदि gyansadhna.com शेयर कर रहा हूँ ।

1- हिन्दी शब्द से अभिप्राय

हिंदी ' शब्द का संबंध संस्कृत के ' सिन्धु ' शब्द से माना जाता है । जिस प्रकार पहाड़ों में रहने वालों को सामान्यतः पहाड़ी कह दिया जाता है उसी प्रकार ' सिन्ध ' नदी तथा उसके आसपास की भूमि को ' सिन्धु ' कहा जाता था । कालान्तर में धीरे - धीरे ईरानी भारत के अधिकाधिक भागों से परिचित होते गये और इस शब्द के अर्थ में विस्तार होता गया । इसका परिणाम यह हुआ कि ' हिन्द ' शब्द धीरे - धीरे पूरे भारत का वाचक हो गया । ' हिन्द ' शब्द से ईरानी का ' ईक ' प्रत्यय लगने से ' हिंदीक ' बना , जिसका अर्थ है ' हिन्द का ' ।

यूनानी शब्द ' इन्दिका ' तथा अंग्रेजी शब्द ' इण्डिया ' को इसी ' हिंदीक ' का विकसित रूप कहा जा सकता है । ' हिंदीक ' से ही ' हिंदी ' शब्द बनकर सामने आया । ' हिंदी ' और ' उर्दू ' की शैलियों में अधिकाधिक साम्य के कारण आरम्भ में ' हिंदी ' शब्द का प्रयोग हिंदी तथा उर्दू दोनों के लिए होता था । मुल्ला वजही , सौदा , मीर तथा गालिब आदि विद्वानों ने कई स्थानों पर अपने शैरों को हिंदी शेर कहकर संबोधित किया है ।

अपभ्रंश भाषा की कालावधि सामान्यतः 500 ई . से 1000 ई . तक मानी जाती है । अधिकांश विद्वानों का यह मानना है कि अपभ्रंश के विभिन्न क्षेत्रीय रूपों अथवा बोलियों से ही आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ । 

जैसे--
अपभ्रंश की बोलियाँ    विकसित भारतीय भाषाएँ 
1- शौरसेनी   -     पश्चिमी हिंदी , राजस्थानी ,                                    पहाड़ी , गुजराती 
2- पैशाची   -       लहंदा , पंजाबी । 
3- ब्राचड़      -      सिन्धी । 
4- महाराष्ट्री   -      मराठी । 
5- मागधी     -      बिहारी , बांग्ला , उड़िया ,                                    असमिया । 
6- अर्धमागधी   -   पूर्वी हिंदी । 

स्पष्टत-- हिंदी भाषा का उद्भव अपभ्रंश के शौरसेनी अर्धमागधी तथा मागधी रूपों से हुआ है ।

हिंदी भाषा क्षेत्र के अन्तर्गत सामान्यतः उत्तरप्रदेश , मध्यप्रदेश , बिहार ,  हरियाणा , राजस्थान , दिल्ली , पंजाब का कुछ भाग तथा हिमाचल प्रदेश आदि आते हैं । इन क्षेत्रों में हिंदी की पाँच उपभाषाएँ तथा उनके अन्तर्गत आने वाली बोलियाँ प्रयुक्त होती हैं ।

इन उपभाषाओं तथा बोलियों का विवरण इस प्रकार है ----

हिन्दी--
1- पश्चिमी हिन्दी बोलियाँ--
                             > खडी बोली (कौरवी)
                             > ब्रजभाषा 
                             > हरियाणवी 
                             > बुन्देली 
                             > कन्नौजी

2- पूर्वी हिन्दी बोलियाँ--
                     > अवधी
                     > बघेली
                     > छत्तीसगढी

3- राजस्थानी बोलियाँ--
                    > पश्चिमी राजस्थानी (मारवाड़ी)
                    > पूर्वी राजस्थानी (जयपुरी)
                    > उत्तरी राजस्थानी (मेवाती)
                    > दक्षिण राजस्थानी  (मालवी)

4- पहाडी बोलियाँ--
                 > पश्चिमी पहाड़ी (कुमाऊँनी- गढवाली)
                 > मध्यवर्ती पहाडी 

5- बिहारी बोलियाँ--
                 > भोजपुरी 
                 > मगही
                 > मैथिली 

2- हिन्दी का विकास--
हिंदी का विकास उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि हिंदी का उद्भव शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है । अधिकांश विद्वानों का मानना है कि हिंदी भाषा के कुछ व्याकरणिक रूप पालि में भी मिलते हैं , प्राकृत में उनकी संख्या और बढ़ी तथा अपभ्रंश में इनका अधिक प्रसार मिलता है , किंतु पालि , प्राकृत तथा अपभ्रंश में मिलने वाले प्रयोग हिंदी की आदिम अवस्था के ही द्योतक है । सही मायनों में हिंदी भाषा का प्रारम्भ 1000 - 1100 ई . से मानना ही उचित होगा ।

हिंदी की विकास यात्रा को क्रमशः इस प्रकार समझा जा सकता है ---
1- आदिकाल से पूर्व - इसके अन्तर्गत पालि , प्राकृत तथा अपभ्रंश के साथ हिंदी के छुटपुट प्रयोग को रखा जा सकता है ।

2- आदिकाल - आदिकालीन हिंदी का व्याकरण अपभ्रंश के बहुत निकट था । भाषा के अनेकविध रूप धीरे - धीरे अपभ्रंश की व्याकरणिक संरचना में स्वतंत्रत रूप से विकसित हो रहे थे ।

हिंदी के विकास के सन्दर्भ में यहाँ यह कहना अनुचित नहीं होगा कि युगीन परिस्थितियों में परिवर्तन का प्रभाव तयुगीन समाज , साहित्य तथा संस्कृति पर भी पड़ता है । फलतः भाषा भी न्यूनाधिक रूप से परिस्थितियों से प्रभावित होती है । आदिकाल में भी भक्ति - आन्दोलन का प्रारम्भ हो गया था , मुसलमानों का आगमन हो गया था , जिससे अपभ्रंश के स्थान पर हिंदी विकसित हो रही थी ।

3- मध्यकाल - इस काल में ध्वनि , व्याकरण तथा शब्द - भण्डार में अनेक परिवर्तन हुए । फारसी की शिक्षा तथा प्रयोग बढ़ने लगा , व्याकरणिक दृष्टि से हिंदी अपभ्रंश के प्रभाव से लगभग मुक्त हो चुकी थी , हिंदी वाक्य - रचना फारसी से प्रभावित होने लगी थी । फारसी , अरबी , पश्तो , तुर्की आदि के शब्द हिंदी में आने लगे थे । भक्ति - आन्दोलन बढ़ने से तत्सम शब्दों का अनुपात हिंदी में बढ़ गया था । उत्तर मध्यकाल में यूरोप से सम्पर्क होने के कारण पुर्तगाली , स्पेनी , फ्रांसीसी तथा अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग हिंदी में बढ़ने लगा था । मध्यकाल में यद्यपि दक्खिनी , उर्दू , डिंगल तथा मैथिली में भी कुछ साहित्य रचना हुई किंतु अवधी और ब्रज भाषा के प्रयोग का प्राधान्य रहा ।

4- आधुनिक काल - आधुनिक काल में भी ध्वनि , व्याकरण तथा शब्द - भण्डार में अनेक परिवर्तन हुए । यहाँ खड़ी बोली की प्रधानता तथा उसमें अंग्रेजी शब्दों का अधिकाधिक प्रयोग मिलता है । साहित्य के साथ - साथ तकनीकि , विज्ञान , कार्यालय , मीडिया , विधि , प्रशासन तथा व्यवसाय आदि विषय क्षेत्रों में भी हिंदी का प्रभाव बढ़ रहा है । आधुनिक काल में और विशेष रूप से वर्तमान युग में हिंदी विविध प्रयोजनों के साथ सम्बद्ध हो रही है जिससे समय में हिंदी राजभाषा , राष्ट्रभाषा तथा सम्पर्क भाषा के साथ - साथ संचार की भाषा के रूप में भी विकसित हो रही है । हिंदी भाषा के इस विकास के मूल में भी युगीन परिस्थितियों का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है ।

हिंदी - साहित्य 
ऐतिहासिक दृष्टि से हिंदी साहित्य की समस्त सामग्री को काल - विभाजन तथा नामकरण की दृष्टि से निम्न आरेख द्वारा सुगमता से समझा जा सकता है ---

हिंदी साहित्य 
1- आदिकाल
            > विक्रमी संवत - 1050-1375 

2- मध्यकाल 
              > पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल) वि.सं.1375-1700
              > उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल) वि.सं.1700-1900

3- आधुनिक काल वि.सं. 1900.....
                             > भारतेंदु युग
                             > द्विवेदी युग
                             > छायावाद युग
                             > प्रगतिवाद
                             > प्रयोगवाद
                             > नयी कविता 


अन्य सम्बन्धित लेख साहित्य--


0 comments: