Wednesday 20 May 2020

कौन सा भोजन कब करें? भोजन करने के प्रभावशाली उपाय जो रोगों से मुक्ति दिलाएं,Which meal to eat Effective ways to eat food that can relieve diseases

कौन सा भोजन कब करें?
भोजन करने के प्रभावशाली उपाय जो रोगों से मुक्ति दिलाएं
Which meal to eat
 Effective ways to eat food that can relieve diseases
Bhojan ke upay

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(1)- 
भोजन का प्रमाण और मात्रा --
Food proof and quantity

ठीक - ठीक मात्रा में भोजन करना चाहिए । आवश्यकता से कम भोजन करने पर शरीर के बल , कान्ति , तौल आदि कम हो जाते हैं , भूख हैं , पेट में वायु हो जाती है , बुद्धि मन्द पड़ जाती है और निद्रा कम हो जाती है । अधिक भोजन करने पर आमाशय , यकृत तथा अन्तड़ियों को अधिक काम करना पड़ता है , जिससे वे दुर्बल और रोगी हो जाती हैं । उदर का दो भाग भोज्य पदार्थों से तथा तीसरा भाग जल से पूर्ण करना चाहिए । चौथा भाग वायु के संचरण के लिए खाली छोड़ देना चाहिए ।

खाया हुआ भोजन पचने से पूर्व ही और भोजन करना बहुत हानि कारक होता है । यह घोर व्याधि या मृत्यु का कारक होता है । हमारे देश में बचपन मे तीन बार , युवावस्था में दो बार तथा वृद्धावस्था में एक बार भोजन करना अच्छा माना जाता है ।

(अति भोजनं रोगमूलम् । )
अर्थात् --
आवश्यकता से अधिक भोजन करना रोग का मूल कारण है ।

(2)-
भोजन को अच्छी प्रकार चंबाना --
Chew the food

 भोजन को अच्छी प्रकार से चबाकर खाना चाहिए । ऐसा न करने से भोजन का पूरा लाभ नहीं होता और मन्दाग्नि रोग भी हो जाता है , क्योंकि दांत और दाढ़ों का काम भी आमाशय पर पड़ जाने से वह दुर्बल हो जाता है । भोजन अच्छी प्रकार चबाने से दो लाभ होते हैं । पहला दाँत का काम आंत को नहीं करना पड़ता और भोजन ठीक से पच जाता है । दूसरा लाभ भोजन में मुंह की लार का मिलना है । यह पाचक रस जितना ही अधिक भोजन में मिलता है , उतना ही अधिक भोजन से सार भाग हमारे शरीर को मिलता है । भोजन को इतना चबाओ कि मुँह की लार के साथ मिलकर वह पतला हो जाये और उसको निगलने के लिये पानी का सहारा न लेना पड़े ।

(3)-
मानसिक प्रसन्नता के लिए --
For mental happiness

मानसिक प्रसन्नता का भोजन करने की विधि से बहुत संबंध है । भोजन , दाल , साग , भात आदि जो भी पदार्थ सामने आयें उनको भगवान का प्रसाद मानकर प्रेम के साथ ग्रहण करना चाहिए । प्रसन्नता से किया गया भोजन ही है । ईर्ष्या , भय , क्रोध और द्वेष से भी अन्न भलीभांति नहीं पचता और अजीर्ण हो जाता है । किसी कारण से मन क्रोध , शोक आदि से उद्विग्न हो तो अमृत अच्छा है कि उस समय पेट को ही छुट्टी दे दें ।

(4)-
स्वच्छता के लिए --
For cleanliness

भोजन को शुद्ध व पवित्र स्थान पर बनाना व रखना चाहिए । भोजन के पदार्थों को मक्खी , मच्छर , चींटी , चूहा आदि के स्पर्श से तथा धूल , गर्दा , मिट्टी , कंकड आदि की मिलावट से बचाना चाहिए । भोजन करने से पूर्व हाथ , पैर और मुँह अच्छी प्रकार धोयें और कुल्ला करें । स्वयं स्वच्छ होकर भोज्य पदार्थों को स्वच्छ थाल में परसकर स्वच्छ स्थान में , स्वच्छ आसन पर बैठकर भोजन करना चाहिए ।

(5)-
आचमन करना --
To drive

भोजन सामने आ जाने पर खाने से पूर्व एक हाथ के चुल्लूभर जल आचमन के रूप में पीने से भोजन के समय बढ़े पित्त की उष्मा ( तेजी ) मर्यादा में हो जाती है ।

(6)-
भोजन का निश्चित समय --
Fixed meal time

निश्चित समय पर भोजन करना स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है । इससे भोजन का परिपाक ठीक होता है और समय पर अपने आप भूख लग जाती है । जब - तब खाने वाले लोग रोगी ही देखे जाते हैं । और सायंकाल भोजन करने का उचित समय है ।

प्रातःकाल एक प्रहर के बाद , दूसरे प्रहर के मध्य ( 9 से 12 बजे के मध्य ) भोजन करना चाहिए , क्योंकि प्रथम प्रहर के अन्दर भोजन न करने से रसोत्पत्ति होती है । दूसरे प्रहर के व्यतीत होने पर भोजन करने से बल की हानि होती है । इस सिद्धान्त के अनुसार दूसरे प्रहर के बाद ( 1 से 2 बजे तक ) भोजन करने की - जो प्रथा हमारे देश में चल पड़ी है वह ठीक नहीं । पित्त प्रकृति वालों को तो दोपहर में भोजन नहीं करना चाहिए ।

रात्रि में , प्रथम प्रहर के मध्य में ही दिन की अपेक्षा कुछ कम और हल्का भोजन करना चाहिए । देर में पचने वाले आहार को नहीं खाना चाहिए । प्रात : काल का भोजन यदि पचा न हो तो पुनः दिन में ही दुबारा नहीं खाना चाहिए । किन्तु रात्रि में तो अजीर्ण रहने पर भी कुछ हल्का भोजन करना ही चाहिए । यदि रात्रि का भोजन न पचा हो तो प्रात : काल भोजन करना विषतुल्य होता है । अभिप्राय यह है कि प्रात : काल बिना भोजन के रहना हानिकर नहीं होता , परन्तु रात्रि को भोजन न करना हानिकर है । इसी कारण उपवासों में प्रात : काल के भोजन की ही नागा की जाती हैं ।

(7)-
भोजन के समय सबसे पहले भोज्य वस्तु --
First food item at meals
सर्वप्रथम सदा नमक और अदरक भक्षण करना हितकारी है , क्योंकि वह अग्नि का दीपन करने वाला , रुचिकारक तथा जिह्वा और कण्ठ का शोधन करने वाला है । भोजन के पूर्व अथवा सार्थ केला , ककड़ी , खीरा , फलों को कदापि न खायें ।

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